साल 2021 में 25 मार्च को आमलकी एकादशी पड़ रही है। वैसे तो एक साल में हिन्दू कैलेण्डर में 24 एकादशी आती है लेकिन होली से ठीक पहले आने वाली इस एकादशी(आमलकी एकादशी) का अपना विशेष महत्व है। आमलकी एकादशी या फिर कहें तो रंगभरनी एकादशी का हमारे सनातन धर्म में विशेष महत्व है। आमलकी का अर्थ आंवला होता है। इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा करने से विशेष फल प्राप्त होता है।
विद्वान ज्योतिषियों से प्रश्न पूछें और पाएं सटीक समाधान
पुराणों की कथा के अनुसार जब भगवान् विष्णु ने सृष्टि के निर्माण के लिए भगवान् ब्रह्मा को जन्म दिया था तब उन्होंने आंवले के पेड़ को भी जन्म दिया था। तब आंवले के पेड़ को भगवान् विष्णु ने ‘आदि वृक्ष’ की संज्ञा दी। मान्यता है कि आंवले के पेड़ के हर हिस्से में भगवान वास करते हैं और इसके जड़ में तो स्वयं भगवान् विष्णु निवास करते हैं। ऐसे में आमलकी एकादशी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा से विशेष फल प्राप्त होता है और भगवान विष्णु इस कार्य से बहुत प्रसन्न होते हैं।
भगवान् शिव से भी जुड़ा है आमलकी एकादशी का महत्व :
आमलकी एकादशी को रंगभरनी एकादशी भी कहा जाता है। आमलकी एकादशी को इस नाम से पुकारे जाने के पीछे एक कहानी है जो भगवान शिव और उनकी अर्धांगिनी माता पार्वती से जुड़ी हुई है। दरअसल माता पार्वती से विवाह के बाद जब भगवान शिव पहली बार अपनी प्रिय नगरी काशी वापस आये थे तो काशी के लोगों ने अपने इष्ट के स्वागत में पूरे शहर को अलग-अलग रंगों से पाट कर बड़ी ही ख़ूबसूरती से सजा दिया था। तब से ही आमलकी एकादशी को रंगभरनी एकादशी के नाम से भी पुकारा जाता है। आज भी काशी के लोग इस दिन रंग और गुलाल से शहर की सजावट तो करते ही हैं और साथ ही इस दिन काशी में बाबा विश्वनाथ का विशेष श्रृंगार भी किया जाता है.
क्या करें?
इस दिन सभी भक्त व्रत रखते हैं। सुबह में भगवान् विष्णु की आराधना के बाद आंवले के पेड़ के आसपास की जमीन की साफ़-सफाई की जाती है। फिर इसे गाय के गोबर से पवित्र किया जाता है। इसके बाद आंवले के जड़ में वेदी बना कर कलश स्थापित किया जाता है। कलश में तमाम देवी-देवताओं और समुद्र देवता को आमंत्रित करने के बाद कलश में सुगन्धि और पंचरत्न डाला जाता है। कलश के ऊपर पंचपल्लव लगा कर उस पर दीपक प्रज्वलित किया जाता है और अंत में कलश के ऊपर ही भगवान परशुराम की मूर्ति स्थापित कर उनकी पूजा की जाती है। इस दिन रात भर भक्तजन भगवान विष्णु का भजन व कथा करते हैं और फिर अगले दिन ब्राह्मणों को भोजन करा कर उन्हें मूर्ति और कलश दान में दे दी जाती है। ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देने के बाद ही भक्त अपना व्रत तोड़ते हैं।
क्या न करें?
आमलकी एकादशी के दिन कुछ कार्य ऐसे हैं जिनके करने पर मनाही है। अगर कोई व्यक्ति इस दिन इन कार्यों को करता है तो वह पाप का भागीदार बनता है।
- इस दिन किसी भी प्रकार का तामसी भोजन ग्रहण न करें जैसे कि प्याज, लहसुन और मांस।
- मदिरा सेवन पर भी इस दिन ख़ास तौर से मनाही होती है। माना जाता है कि इस दिन मदिरा सेवन करने से व्यक्ति को अपने जीवन में नर्क के समान यातनाएं झेलनी पड़ती हैं।
- इस दिन दान-दक्षिणा का ख़ास महत्व है। ऐसे में आपकी चौखट पर आये किसी भी व्यक्ति को खाली हाथ वापस न जाने दें। उन्हें दान-दक्षिणा जरूर दें या फिर भोजन जरूर कराएं।
- किसी भी प्रकार की हिंसा इस दिन वर्जित होती है।
हम आशा करते हैं कि हमारा यह लेख आपके लिए काफी उपयोगी साबित हुआ होगा। अगर ऐसा है तो आप इस लेख को अपने शुभचिंतकों के साथ साझा कर के उन्हें भी आमलकी एकादशी का महत्व और इस दिन के वर्जित कार्यों के बारे में बता सकते हैं।
आपकी कुंडली में भी है राजयोग? जानिए अपनी राजयोग रिपोर्ट से