आने वाले 12 जुलाई से देवशयनी एकादशी के बाद चातुर्मास प्रारंभ हो जाएंगे और इसके साथ ही अगले चार महीनों तक किसी भी शुभ कार्य को करने की मनाही होगी। यहाँ हम आपको चातुर्मास के दौरान किये जाने वाले और नहीं किये जाने वाले कार्यों के बारे में बताने जा रहे हैं। इसके साथ ही बताएंगे आपको चातुर्मास के विशेष महत्व के बारे में।
चातुर्मास के दौरान क्या करें
ऐसी मान्यता है कि यदि चातुर्मास के दौरान कुछ ख़ास नियमों का पालन किया जाए तो इससे आपको अश्वमेध यज्ञ के बराबर लाभ मिलता है। आईये देखें कौन से हैं वो ख़ास कार्य जिन्हें चातुर्मास के दौरान जरूर करना चाहिए।
- इस दौरान भगवान विष्णु की विधिवत रूप से प्रतिदिन पूजा अर्चना करें।
- विशेष फलप्राप्ति के लिए इस दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना महत्वपूर्ण माना जाता है।
- चातुर्मास में गरीब ब्राह्मणों को सोने चांदी और पीले रंग की वस्तुओं का दान करना चाहिए।
- प्रतिदिन विष्णु जी का मनन करें और उन्हें कमल का फूल चढ़ाएं।
- चातुर्मास के दौरान शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए गाय का घी और दूध, दही इत्यादि का सेवन करें।
- चातुर्मास के दौरान खासतौर से श्री हरी मंदिर में दीपदान करना चाहिए।
चातुर्मास के दौरान ना करें ये काम
बेशक चातुर्मास के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है लेकिन इस दौरान यदि आप कुछ कार्यों को करने से बचते हैं तो आप विशेष लाभ प्राप्त कर सकते हैं। इस दौरान भूलकर भी ना करें इन कामों को।
- चातुर्मास के दौरान मांस, मछली और शराब इत्यादि का सेवन ना करें।
- इस दौरान पलंग पर सोने के बजाय नीचे जमीन पर बिस्तर लगाकर सोएं।
- भोजन के लिए कांसे के बर्तन का प्रयोग ना करें।
- ऐसी मान्यता है कि चातुर्मास के दौरान शरीर के किसी भी हिस्से पर तेल नहीं लगाना चाहिए।
- किसी के लिए अपशब्दों का प्रयोग न करें और ना ही किसी की पीठ पीछे बुराई करें।
- भूलकर भी चातुर्मास के दौरान कोई भी मांगलिक या शुभ काम ना करें।
- किसी प्रकार के तैलीय भोज्य पदार्थों का सेवन ना करें।
चातुर्मास का धार्मिक महत्व
ऐसी मान्यता है कि चातुर्मास में भगवान् विष्णु चार महीनों तक क्षीर सागर में निंद्रा की अवस्था में आराम करते हैं। वो नींद से शुक्ल पक्ष की देवउठनी एकादशी के दिन नींद से जागते हैं। ऐसी मान्यता है कि चार महीनों तक भगवान् विष्णु के निंद्रा अवस्था में होने की वजह से सकारात्मक शक्तियां निर्बल हो जाती हैं और इसलिए किसी मांगलिक कार्य जैसे की विवाह, उपनयन संस्कार, गृह प्रवेश आदि जैसे शुभ कार्य नहीं किये जाते हैं। इस दौरान सकारात्मक शक्तियों को सबल बनाये रखने के लिए विशेष हवन और यज्ञ आदि करवाने का भी प्रावधान है।