देवउठनी एकादशी 2018: जानें इस एकादशी का पौराणिक, ज्योतिषीय और वैज्ञानिक महत्व

कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहते हैं। इस एकादशी को प्रबोधनी ग्यारस भी कहा जाता है। चार माह के शयन के बाद देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु का विवाह तुलसी के पौधे से होता है। इस दिन को तुलसी विवाह के उत्सव के रूप में मनाते हैं। भारतीय हिंदू संस्कृति में इस दिन का बहुत महत्व है। इस दिन के साथ सभी शुभ कार्य आरंभ हो जाते हैं। विवाह, गृह प्रवेश व अन्य मांगलिक कार्यों के लिए देवउठनी एकादशी को बहुत ही शुभ मुहूर्त मानते हैं। जो लोग अपने घर में तुलसी विवाह का अनुष्ठान कराते हैं। वे व्रत धारण कर भगवान विष्णु जी की मूर्ति को स्थापित करते हैं।

देवउठनी एकादशी व्रत मुहूर्त New Delhi, India के लिए
देवउठनी एकादशी पारणा मुहूर्त 06:47:17 से 08:55:00 तक 20th, नवंबर को
अवधि 2 घंटे 7 मिनट

देवोत्थान एकादशी का पौराणिक, ज्योतिषीय और वैज्ञानिक महत्व

भगवान विष्णु को पीले रंग के वस्त्र व फूलों से सजाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि पीले रंग के पुष्पों को देव अर्पण करने से व्यक्ति का गुरु ग्रह मजबूत होता है। गुरु ग्रह मजबूत होने से व्यक्ति को समाज में मान सम्मान मिलता है और धन-धान्य की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही मानसिक अशांति दूर होकर व्यक्ति का जीवन सुखमय हो जाता है। वहीं विष्णु भगवान की पूजा अर्चना करने से व्यक्ति को पुरानी खाँसी, पेट के रोग, पीलिया, कान का दर्द व वायु विकार से मुक्ति मिलती है।

तुलसी के पौधे के चारों तरफ गन्ने का मंडप बनाया जाता है। पौधे को चुनरी से सुसज्जित करते हैं। धार्मिक ग्रंथों में ऐसा कहा गया है कि तुलसी की सेवा से व्यक्ति का मंगल ग्रह मजबूत होता है। इससे अशांति, मतभेद, विवाह में देरी, अग्निकांड का भय, संपत्ति विवाद आदि से मुक्ति मिलती है। साथ ही उच्च रक्त संचार, मधुमेह, हृदय रोग, ऑपरेशन आदि से भी शुभ मंगल हमें बचाता है। यानि हम यह कह सकते हैं कि इस पूरे अनुष्ठान से व्यक्ति के गुरु एवं मंगल ग्रह मजबूत होते हैं। बिगड़े हुए काम बनते हैं। विधि अनुसार पूजन व मंत्रोच्चारण के साथ तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है। मंत्रोच्चारण से वातावरण शुद्ध होती है। साथ ही व्यक्ति के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचरण होता है।

पढ़ें : देवउठनी एकादशी की पौराणिक कथा

द्वादशी के दिन भगवान विष्णु जी व तुलसी जी की पूजा अर्चना के पश्चात व्रत पारण किया जाता है। गन्ना, आँवला व बेर खाकर व्रत को खोलते हैं। कहते हैं इन फलों के सेवन से सभी पापों से मुक्ति मिलती है। अगर वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो गन्ने के सेवन से व्यक्ति के शरीर का विष हरण होता है। जबकि आँवला एक औषधीय फल है। इसके सेवन से शरीर रोग मुक्त हो जाता है। वहीं बेर के सेवन से पाचन क्रिया मजबूत होती है। कब्ज जैसी समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए यह बड़ा लाभकारी होता है।

भारतीय संस्कृति बड़ी महान है। क्योंकि इसके हर रीति रिवाज़ के पीछे गहन विज्ञान छिपा है। अगर सामाजिक दृष्टि से देखा जाए तो विश्व के अन्य देशों की तुलना में भारत में हो रहे शुभ मुहूर्त पर विवाह सफल होते हैं। अन्य देशों में विवाह के लिए शुभ मुहूर्त जैसा विधान नहीं है। अतः वहाँ बड़ी तेजी शादियाँ टूट जाती है। लेकिन भारत में विवाह को जन्म-जन्मांतर का बंधन माना जाता है। भारत में विवाह दो व्यक्तियों के मधुर मिलन के साथ-साथ दो परिवारों का भी मिलन होता है। दोनों परिवार एक दूसरे की प्रतिष्ठा का सम्मान करते हैं और पूरे जीवन भर इसको निभाते हैं। अर्थात यह शुभ मुहूर्त पर होने वाले विवाह का शुभ प्रभाव ही तो होता है।

किंतु आज के समय में जब हमने पश्चिमी सभ्यता की तरफ रुख किया है तो शुभ मुहूर्त को आज के युवा अनदेखा कर रहे हैं और इसका परिणाम हमारे सामने है। आज विवाह, कल तलाक जैसी स्थिति हमारे सामने आ गई है। अपनों को ठुकरा कर गैरों को गले लगाना कौन सी समझदारी है? इसलिए हमें हमारी संस्कृति, तीज-त्यौहारों का मान-सम्मान करना चाहिए। इससे हमारा अस्तित्व बचा रहेगा।

 आप सभी को एस्ट्रोसेज की ओर से देवउठनी एकादशी और तुलसी विवाह की ढेरों शुभकामनाएँ !

दीप्ति जैन
आधुनिक वास्तु एस्ट्रो विशेषज्ञ

दीप्ति जैन एक जानी-मानी वास्तुविद हैं, जिन्होंने पिछले 3 सालों से वास्तु विज्ञान के क्षेत्र में अपने कौशल और प्रतिभा को बखूबी दर्शाया है। उनके इस योगदान के लिए उन्हें कई सारे पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया है। दीप्ति जैन न केवल वास्तु बल्कि सामाजिक मुद्दों, हस्‍तरेखा विज्ञान, अध्यात्म, कलर थेरेपी, सामुद्रिक शास्त्र जैसे विषयों की भी विशेषज्ञ हैं।

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