पढ़ें देवउठनी एकादशी की पौराणिक कथा और पाएँ भगवान विष्णु का आशीर्वाद।

हर वर्ष आने वाले कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवउठनी एकादशी कहते हैं। वर्ष 2019 में देवउठनी एकादशी देश भर में 8 नवंबर को मनाई जाएगी। इस दिन विशेष रूप से आंवले के वृक्ष की पूजा करने का विधान है क्योंकि मान्यता है कि देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु अपनी योग निद्रा से उठते हैं, और इसके बाद से पूर्णिमा तक वे आंवले के वृक्ष पर ही अपना निवास करते हैं। ऐसे में हिंदू धर्म में इस दिन का विशेष महत्व देखा गया है और इसी के चलते इस दिन श्रद्धालु देवउठनी एकादशी व्रत रखते हुए भगवान विष्णु की कथा सुनकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। चलिए पढ़ें देवउठनी एकादशी व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा।   

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देवउठनी एकादशी पौराणिक व्रत कथा

मान्यता अनुसार पौराणिक काल में एक राजा के राज्य में संपूर्ण जनता एकादशी के दिन व्रत करती थी। ऐसे में इस दिन हर किसी को अन्न देने की मनाही थी। एक बार एकादशी के दौरान दूसरे राज्य का एक व्यक्ति उस राजा के दरबार में नौकरी मांगने आया। राजा ने व्यक्ति से कहा कि तुम्हें इस राज्य में नौकरी तो मिलेगी, लेकिन एक शर्त ये है कि एकादशी के दिन यहाँ अन्न नहीं मिलेगा।

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राजा की बात सुनकर व्यक्ति को पहले तो आश्चर्य हुआ लेकिन नौकरी के लालच में उसने राजा की ये शर्त भी मान ली। जिसके बाद एकादशी आने पर उसने भी व्रत रखते हुए केवल फलाहार किया लेकिन समय के साथ उसकी भूख बढ़ती गई। उसने राजा से कहा कि उसे खाने के लिए अन्न दिया जाए, क्योंकि फल से उसकी भूख नहीं मिटेगी, अन्यथा वह भूख के मारे मर जाएगा।

व्यक्ति की बात सुनकर राजा ने उसे अपनी शर्त याद दिलाई, लेकिन भूख से व्याकुल वो व्यक्ति फिर भी नहीं माना। तब राजा ने उसे अन्न खाने का आदेश दे दिया और इसके लिए उसे चावल, आटा, दाल, आदि दिए गए। जिसे लेकर वो रोज की तरह नदी में स्नान करने के बाद भोजन बनाने लगा। भोजन बनाने के बाद उस व्यक्ति ने एक थाली में भोजन निकालते हुए भगवान को भोजन के लिए आमंत्रित किया। व्यक्ति की प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु पीताम्बर में वहां आए और व्यक्ति द्वारा दिए गए भोजन को ग्रहण कर वहां से चले गए। इसके बाद वो व्यक्ति भी रोज़ाना की तरह अपने काम पर चला गया।

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जब भक्त ने दोबारा किया भगवान को याद 

इस घटना के बाद दूसरी एकादशी का दिन आया जिस दौरान व्यक्ति ने राजा से विनती करते हुए कहा कि उसे खाने के लिए दोगुना अनाज दिया जाए। इस पर जब राजा ने कारण पूछा तो व्यक्ति ने बताया कि पिछली बार भगवान द्वारा भोजन किये जाने के बाद वह भूखा ही रह गया था। क्योंकि जितना अन्न उसे दिया गया था उसमें दोनों का पेट नहीं भर सकता था। 

व्यक्ति की बात सुनकर राजा आश्चर्य में पड़ गया। उसने व्यक्ति की उन बातों पर विश्वास नहीं किया, जिसके बाद उसने राजा से अपने साथ चलने को कहा। राजा उसके साथ चले गए और इस बार भी नदी में स्नान करने के बाद उसने भोजन बनाया, फिर एक थाली में खाना निकालकर भगवान को बुलाया, लेकिन इस बार भगवान नहीं आए। ऐसा करते हुए शाम हो गई। इस दौरान राजा पास ही के एक पेड़ के पीछे छिपकर सारा दृश्य देख रहा था। अंत में व्यक्ति ने भगवान से कहा कि यदि वो खाना खाने नहीं आए तो नदी में कूदकर वो अपने प्राण त्याग देगा। 

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जिसके बाद भी भगवान को न आता देखकर वह नदी की ओर जाने लगा। तभी भगवान उसके सामने प्रकट हुए और उसे ऐसा करने से रोकने लगे। इसके बाद भगवान ने व्यक्ति के हाथों से न केवल भोजन ग्रहण किया, बल्कि उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर उसे अपने साथ लेकर अपने धाम भी चले गए।

इसके बाद राजा को इस बात का ज्ञात हुआ कि आडम्बर और दिखावे से भगवान को खुश नहीं किया जा सकता। इसके लिए केवल सच्चे मन से ईश्वर को याद करना होता है तभी वो दर्शन देते हैं और आपकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। इस घटना के बाद से ही राजा भी सच्चे मन से एकादशी का व्रत करने लगा, जिसके बाद अंत में उसे भी व्यक्ति की तरह स्वर्ग की प्राप्ति हुई।

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