सनातन धर्म में दीपावली के त्योहार के साथ-साथ देव दिवाली के पर्व का भी विशेष महत्व है। दिवाली के ठीक 15 दिन बाद देव दीपावली मनाई जाती है। पौराणिक मान्यता है कि देव दीपावली यानी देवताओं की दिवाली के दिन सभी देवता काशी पर उतरते हैं और दिवाली मनाते हैं। मुख्य रूप से देव दिवाली काशी में गंगा नदी के तट पर मनाई जाती है। शास्त्रों के अनुसार, भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरासुर का वध किया और इसके बाद देवताओं ने दीप जलाकर उत्सव मनाया जो देव दीपावली के रूप में प्रचलित है।
इस पावन दिन में पवित्र नदी में स्नान का बहुत अधिक महत्व होता है। वहीं काशी में देव दीपावली का अलग ही उल्लास देखने को मिलता है। पूरी काशी को दीपों से सजाया जाता है और गंगा घाट पर चारों तरफ मिट्टी के दिए जलाए जाते हैं। साथ ही, लोग अपने घरों के बाहर भी दीपक जलाते हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से माता लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
तो आइए इसी क्रम में आगे बढ़ते हैं और जानते हैं देव दिवाली 2024 की तिथि, पूजा मुहूर्त, महत्व, पौराणिक कथा और ज्योतिषीय उपाय के बारे में।
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देव दिवाली 2024: तिथि व समय
हिंदू मान्यताओं के अनुसार, हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को देव दीपावली का त्योहार मनाया जाता है। इस साल कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि 15 नवंबर को दिन शुक्रवार को पड़ रही है।
पूर्णिमा तिथि आरंभ : 15 नवंबर 2024 की सुबह 06 बजकर 21 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 16 नवंबर 2024 की सुबह 02 बजे तक।
देव दिवाली का महत्व
देव दिवाली को देव दीपावली भी कहा जाता है। यह कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है और इसका धार्मिक महत्व अत्यधिक पवित्र और महत्वपूर्ण है। यह त्योहार विशेष रूप से उत्तर भारत, खासकर वाराणसी में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इसे “देवताओं की दिवाली” कहा जाता है, क्योंकि मान्यता है कि इस दिन सभी देवता स्वर्ग से पृथ्वी पर गंगा नदी के तट पर आते हैं और दीप जलाकर भगवान शिव की पूजा करते हैं और दिवाली के रूप में इस त्योहार को मनाते हैं।
देव दिवाली का संबंध भगवान शिव से है और इस दिन भोलेनाथ की प्रिय काशी के गंगा घाटों पर दीपों की पंक्ति सजाई जाती है और भगवान शिव का विशेष पूजन किया जाता है। भक्त गंगा नदी में स्नान करके शिवलिंग पर जल और पुष्प अर्पित करते हैं। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था। इस विजय के उपलक्ष्य में देवता, ऋषि-मुनि, और पृथ्वी के लोग मिलकर दीप जलाते हैं और भगवान शिव की आराधना करते हैं। देव दिवाली के दिन, भक्त गंगा नदी में स्नान करते हैं, जिसे अत्यधिक पुण्यकारी माना जाता है। यह स्नान व्यक्ति के पापों को धोने और आत्मा को शुद्ध करने में सहायक होता है।
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देव दिवाली की पूजा विधि
- देव दिवाली की पूजा करने से पहले प्रातः काल स्नान करें। यदि संभव हो, तो गंगा नदी या किसी पवित्र जल में स्नान करें।
- स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें और पूजा स्थल को अच्छे से साफ कर लें।
- गंगा किनारे, घर के मंदिर, या आंगन में दीप जलाएं।
- पूजा स्थल पर भगवान शिव और गंगा माता की मूर्ति या चित्र रखें।
- शिवलिंग पर जल, दूध, और बेलपत्र अर्पित करें। चंदन, फूल, धूप, दीप, और नैवेद्य अर्पित करके भगवान शिव की आरती करें।
- गंगा माता की मूर्ति के समक्ष ताजे फूल, धूप, और दीप अर्पित करें और मां गंगा आरती करें।
- देव दिवाली के दिन भगवान विष्णु की भी पूजा का महत्व है क्योंकि यह कार्तिक पूर्णिमा का अवसर है। भगवान विष्णु की मूर्ति के समक्ष दीप जलाएं और तुलसी के पत्ते अर्पित करें।
- भगवान विष्णु की आरती करें और “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें।
- पूजा के अंत में भगवान शिव, गंगा माता, और भगवान विष्णु को भोग अर्पित करें। प्रसाद में फल, मिठाई, या विशेष पकवान शामिल करें।
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देव दिवाली की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में त्रिपुर नामक तीन बहुत ही शक्तिशाली राक्षस थे, जिन्हें त्रिपुरासुर कहा जाता था। वे तीनों भाई थे और उन्होंने कठोर तपस्या करके ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त कर लिया था। ब्रह्मा जी ने उन्हें वरदान दिया कि वे तीन अलग-अलग शहरों (त्रिपुर) में निवास करेंगे, जो आकाश में स्थित होंगे और उन तीनों को केवल एक साथ मिलकर एक ही समय पर नष्ट किया जा सकता है। इस वरदान से त्रिपुरासुर अत्यंत अभिमानी और शक्तिशाली हो गए।
त्रिपुरासुर ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया और देवताओं को परेशान करने लगे। वे तीनों राक्षस स्वर्गलोक और पृथ्वी पर अत्याचार करने लगे, जिससे देवता और ऋषि-मुनि अत्यधिक पीड़ित हो गए। देवताओं ने इस संकट से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव की शरण ली और उनसे त्रिपुरासुर का वध करने की प्रार्थना की। भगवान शिव ने देवताओं की प्रार्थना स्वीकार की और त्रिपुरासुर का वध करने का संकल्प लिया। उन्होंने अपने धनुष से एक दिव्य बाण का निर्माण किया। कार्तिक पूर्णिमा के दिन, भगवान शिव ने अपने रथ पर चढ़कर तीनों त्रिपुर को निशाना बनाया और अपने धनुष से बाण चलाकर तीनों को एक साथ नष्ट कर दिया। इस प्रकार त्रिपुरासुर का अंत हुआ और देवताओं को उनके अत्याचारों से मुक्ति मिली।
भगवान शिव की इस विजय के बाद, देवताओं ने प्रसन्न होकर उनकी आराधना की और दीप जलाकर उत्सव मनाया। यह वही दिन था जब देवताओं ने पहली बार “देव दिवाली” मनाई थी। इस दिन को देवताओं के दिवाली के रूप में मनाने की परंपरा शुरू हुई। देवताओं ने गंगा तट पर आकर दीप जलाए और भगवान शिव की महिमा का गुणगान किया।
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देव दिवाली के दिन जरूर करें ये ख़ास उपाय
शत्रुओं से बचाव के लिए
देव दिवाली के दिन हनुमानजी की पूजा करें। उन्हें सिंदूर और चमेली का तेल अर्पित करें और हनुमान चालीसा का पाठ करें। यह उपाय शत्रुओं से आपकी सुरक्षा करेगे और हर समस्याओं का निवारण करेगा।
राहु-केतु दोष से छुटकारा पाने के लिए
देव दिवाली के दिन शिवलिंग पर गंगाजल और दूध चढ़ाएं। इससे भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और कुंडली में उपस्थित शनि दोष और राहु-केतु दोष का प्रभाव कम होता है। साथ ही, “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का 108 बार जाप करें।
शनि ग्रह के अशुभ प्रभाव को कम करने के लिए
देव दिवाली के दिन काले तिल का दान करना विशेष फलदायी होता है। इससे शनि ग्रह के अशुभ प्रभाव कम होते हैं और कुंडली में शनि दोष का निवारण होता है। इसके अलावा, काले तिल को जल में प्रवाहित करना भी शनि ग्रह को शांत करता है।
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सुख-समृद्धि के लिए
इस दिन घर के कोनों में गंगा जल का छिड़काव करें। इससे घर की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इसके अलावा, गंगाजल का छिड़काव वास्तु दोष को समाप्त करता है और घर में शांति और सुख-समृद्धि आती है।
बुध ग्रह के शुभ प्रभाव के लिए
देव दिवाली पर गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र, और धन का दान करें और गौ माता को हरा चारा और गुड़ खिलाएं।
गुरु की स्थिति मजबूत करने के लिए
देव दिवाली के दिन पीपल के वृक्ष के पास दीया जलाएं और उसकी परिक्रमा करें। पीपल वृक्ष को जल अर्पित करने से गुरु ग्रह का दोष शांत होता है और कुंडली में गुरु की स्थिति सुदृढ़ होती है।
मंगल दोष दूर करने के लिए
देव दिवाली के दिन लाल कपड़े में गुड़ बांधकर किसी जरूरतमंद व्यक्ति को दान करें। यह उपाय मंगल दोष को शांत करता है और जीवन में सकारात्मकता लाता है।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
इस साल देव दिवाली 15 नवंबर को मनाई जाएगी।
देव दीपावली यानी कार्तिक पूर्णिमा के शुभ दिन पर गंगा या अन्य किसी पवित्र नदी में डुबकी लगानी चाहिए और शाम के समय मिट्टी के दीपक जलाने चाहिए।
कालांतर में भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया। इस उपलक्ष्य पर देवताओं ने स्वर्ग में दीप जलाकर दीपावली मनाई जाती है।