कार्तिक पूर्णिमा के दिन चंद्रग्रहण: ऐसे में कब, क्यों और कैसे मनाई जाएगी देव दिवाली?

हिन्दू पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि यानी कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दीवाली पर्व मनाया जाता है। आमतौर पर देखा जाए तो दीवाली के 15 दिनों बाद यह त्योहार मनाया जाता है। लेकिन इस बार कार्तिक पूर्णिमा के दिन साल का आख़िरी चंद्रग्रहण 2022 भी लगने जा रहा है। ऐसे में देव दिवाली किस दिन मनाई जाएगी, इसे लेकर संदेह की स्थिति बनी हुई है। तो आइए विस्तार से जानते हैं देव दिवाली 2022 मनाने की सही तिथि, महत्व, पौराणिक कथा, रीति-रिवाज और इस दिन किए जाने वाले अचूक ज्योतिषीय उपायों के बारे में।

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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देव दिवाली देवताओं की दिवाली होती है। इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक एक राक्षस का संहार करके देवताओं को इसके अत्याचारों से मुक्त किया था, जिसकी ख़ुशी में सभी देवताओं ने स्वर्ग में दीये जलाकर दिवाली मनाई थी। हिन्दू धर्म में इस पर्व का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यह ब्रह्मा-विष्णु-महेश तीनों से संबंधित है। यह पर्व विशेष रूप से महादेव की नगरी कहे जाने वाले बनारस यानी कि वाराणसी में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। 

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देव दिवाली 2022: तिथि व समय

हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा 8 नवंबर 2022 को पड़ रही है और इसी दिन साल का आख़िरी चंद्रग्रहण भी लग रहा है, इसलिए विद्वान ज्योतिषाचार्यों की सलाह है कि देव दिवाली 7 नवंबर 2022 को मनाई जाए क्योंकि यह चंद्रग्रहण भारत के कुछ हिस्सों में आंशिक रूप से दिखाई देगा। इसके कारण 8 नवंबर को सूतक काल रहेगा, जिसमें कोई भी शुभ या धार्मिक कार्यक्रम या पूजा-पाठ आदि नहीं किया जाता है। 

पूर्णिमा तिथि आरंभ: 7 नवंबर 2022 की शाम 04 बजकर 18 मिनट से

पूर्णिमा तिथि समाप्त: 8 नवंबर 2022 की शाम 04 बजकर 34 मिनट तक

राहु काल: 8 नवंबर 2022 की दोपहर 02 बजकर 48 मिनट से शाम 04 बजकर 09 मिनट तक

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2022 के आख़िरी चंद्रग्रहण का समय

चंद्रग्रहण आरंभ: 8 नवंबर 2022 की शाम 05 बजकर 28 मिनट से 

चंद्रग्रहण समाप्त: शाम 07 बजकर 26 मिनट तक

अवधि: लगभग 45 मिनट 48 सेकेंड

नोट: यह चंद्रग्रहण एशिया, ऑस्ट्रेलिया, प्रशांत महासागर, हिंद महासागर, उत्तरी पूर्वी यूरोप, उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका के अधिकांश हिस्से में दिखाई देखा। भारत में इसकी दृश्यता की बात करें तो पूर्ण चंद्रग्रहण केवल पूर्वी भागों में दिखाई देगा जबकि आंशिक ग्रहण भारत के अधिकांश हिस्सों में देखा जा सकेगा।

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सूतक काल

जैसा कि हमने आपको बताया कि भारत में यह चंद्रग्रहण केवल पूर्वी भागों में पूर्ण रूप से दिखाई देखा और आंशिक रूप में कई हिस्सों में भी देखा जा सकेगा। ऐसे में चंद्रग्रहण के प्रभाव से सूतक काल मान्य होगा। दुनिया के जिन क्षेत्रों में ग्रहण नग्न आँखों से नहीं दिखेगा, वहाँ सूतक काल मान्य नहीं होगा। चंद्रग्रहण का सूतक काल ग्रहण लगने से 3 पहर पहले यानी कि 9 घंटे पहले से माना जाता है। ऐसे में पूरा दिन कोई भी शुभ या मांगलिक कार्य नहीं किया जाएगा। यही वजह है कि देव दिवाली 8 नवंबर 2022 की बजाय 7 नवंबर 2022 को मनाने की सलाह दी जा रही है।

सूतक काल आरंभ: सुबह 09 बजकर 21 मिनट से 

सूतक काल समाप्त: शाम 06 बजकर 18 मिनट तक

देव दिवाली 2022: महत्व

हिन्दू धर्म में साल भर की सभी पूर्णिमा तिथियों का बहुत महत्व होता है क्योंकि प्रत्येक पूर्णिमा पर कोई न कोई हिन्दू पर्व अवश्य होता है। मान्यता है कि इस दिन दीये जलाने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है। यही वजह है कि लोग इस ख़ास दिन पर अपने पूर्वजों का तर्पण करते हैं। शास्त्रों की मानें तो कार्तिक पूर्णिमा यानी कि देव दिवाली के दिन गंगा या किसी अन्य पवित्र नदी में स्नान करने से मनुष्य को भगवान विष्णु की कृपा से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

धार्मिक महत्व की बात करें तो, इस दिन भगवान शिव ने देवताओं को त्रिपुरासुर के अत्याचारों से बचाने के लिए अर्धनारीश्वर का रूप धारण करके उसका वध किया था, जिसके बाद समस्त देवताओं ने स्वर्ग में दीये जलाकर दिवाली मनाई थी। 

देव दिवाली के बारे में कहा जाता है कि इस दिन बनारस या यूं कहें कि काशी में सभी देवी-देवताओं का आगमन होता है। यही वजह है कि इस दिन बनारस के घाटों में बड़ी मात्रा में दीपदान करने की परंपरा है। कार्तिक पूर्णिमा के इस पूरे माह को बेहद पवित्र और लाभकारी माना जाता है क्योंकि इस माह में भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश, अंगिरा और आदित्य ने महापुनीत पर्वों को प्रमाणित किया है।

अन्य धार्मिक मान्यता के अनुसार, देव दिवाली के दिन ही ब्रह्मा जी का पुष्कर सरोवर राजस्थान के पुष्कर ज़िले में अवतरित हुआ था। तब से लेकर आज तक, सुप्रसिद्ध पुष्कर मेला देवउठनी एकादशी के दिन से शुरू होता है और कार्तिक पूर्णिमा के दिन समाप्त होता है। ब्रह्मा जी के सम्मान में आयोजित किए गए पुष्कर मेले को देखने दुनियाभर से श्रद्धालु आते हैं और भगवान के मंदिर जाकर दर्शन करते हैं। मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन पुष्कर सरोवर में दिव्य स्नान करने से मनुष्य को शुभ फलों की प्राप्ति होती है और उसके सभी पाप धुल जाते हैं।

देव दिवाली व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, तारकासुर नाम का एक दैत्य था, जिसके 3 पुत्र थे। तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली (त्रिपुरा)। जब भगवान शिव के पुत्र भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया तो उसके तीनों पुत्रों ने बदला लेने के लिए दिन-रात घोर तपस्या करनी शुरू कर दी। उनके तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन तीनों को वरदान मांगने को कहा तो उन्होंने अमर होने का वरदान मांगा। ब्रह्मा जी यह बात भलीभांति जानते थे कि यदि उन्हें यह वरदान दे दिया गया तो वे अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करेंगे और सभी को परेशान करेंगे, इसलिए उन्होंने यह वरदान देने से इनकार कर दिया।

ब्रह्मा जी ने उनसे कहा कि तुम लोग इसकी जगह कोई अन्य वरदान मांग लो, तो उन्होंने कहा कि उनके नाम का एक नगर बसाया जाए और जब भी कोई उनका वध करना चाहे तो सिर्फ़ एक तीर से तीनों का अंत एकसाथ कर सके। इस पर ब्रह्मा जी ने तथास्तु कह दिया।

वरदान प्राप्त करने के बाद तारकासुर के पुत्रों ने तीनों लोकों पर कब्ज़ा कर लिया और देवताओं पर अत्याचार करने लगे। उनके अत्याचारों से परेशान होकर सभी देवता भगवान शिव के पास गए और उन तीनों का वध करने की प्रार्थना की। तब महादेव ने विश्वकर्मा जी से एक रथ का निर्माण कराया और उस पर सवार होकर तीनों का वध करने निकल पड़े। देवताओं और राक्षसों के बीच भयानक युद्ध चल रहा था और युध्द के दौरान जब तीनों राक्षस एक सीध में आए तभी भगवान शिव ने एक तीर से तीनों का वध कर दिया। कहा जाता है कि तभी से भगवान शिव को त्रिपुरारी कहा जाने लगा। उन तीनों के अत्याचारों से मुक्त होने की ख़ुशी में देवताओं ने देव दिवाली महापर्व मनाना शुरू कर दिया।

देव दिवाली के दिन किए जाने वाले अचूक उपाय

  • जीवन में मौजूद सभी कष्टों को दूर करने के लिए देव दिवाली के दिन भगवान शिव के समक्ष एक दीया जलाएं।
  • टोने-टोटके और बुरी नज़र के प्रभाव से बचने के लिए देव दिवाली के दिन तीनमुखी दीया जलाएं।
  • संतान संबंधी समस्याओं से निजात पाने के लिए देव दिवाली के दिन छहमुखी दीया जलाएं।

देव दीवाली 2022: क्या करें, क्या न करें!

  • सूर्योदय से पहले उठकर गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करें। यदि ऐसा करना संभव न हो तो घर में ही नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर दिव्य स्नान कर लें।
  • इस दिन आप भगवान सत्यनारायण पूजा-कथा का आयोजन भी कर सकते हैं। ऐसा करने से मानसिक शांति का अनुभव होता है।
  • तुलसी के पौधे पर एक दीया ज़रूर जलाएं।
  • पितरों की आत्मा की शांति के लिए दीप प्रज्वलित करें।
  • घर की पूर्व दिशा की ओर मुंह करके दीपक जलाएं। ऐसा करने से दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य का आशीर्वाद मिलता है।
  • रात में चांदी के बर्तन से चंद्रमा को जल अर्पित करने से कुंडली में चंद्रमा मज़बूत होता है।
  • दान में कपड़े, भोजन, पूजा सामग्री और दीपक जैसी चीज़ें दें। इससे सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
  • अपने घर के मुख्य द्वार पर आम के पत्तों से बना बंदनवार या तोरण लगाएं। इसे बेहद शुभ माना जाता है।
  • किसी पर गुस्सा न करें। मन में ईर्ष्या भाव न लाएं। किसी पर अत्याचार न करें।
  • तामसिक चीज़ों का सेवन न करें। साथ ही मांस-मदिरा से भी दूर रहें।
  • तुलसी के पत्तों को न छुएं और न ही तोड़ें।
  • ब्रह्मचर्य का पालन करें।

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