हिन्दू धर्म में पंचांग की काफी मान्यता है। आज भी कई लोग ऐसे हैं जो पंचांग पर आँख मूँद कर विश्वास करते हैं। फिर बात हो किसी व्रत त्यौहार की या शादी के मुहूर्त की, पंचांग के अनुसार से चलने वाले आपको कई लोग मिल जायेंगे। हालाँकि कई बार ऐसा देखा गया है की किसी पंचांग की कोई बात दूसरे पंचांग की बातों से मेल नहीं खाती है। ऐसे में लोगों के बीच संशय की स्थिति बन जाती है कि आखिर वो सच मानें भी तो किसे? ऐसे में इसी समस्या का समाधान निकालने के मकसद से मध्य प्रदेश के उज्जैन में हुए एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन में देश भर में एक पंचांग होने की बात उठायी गयी।
उज्जैन को माना जाये कालगणना का केंद्र
इस सम्मेलन में मौजूद कुछ ज्योतिष विद्वानों ने कहा कि, “अगर चारों शंकराचार्य बैठ कर इस मुद्दे पर बात करें तो जल्द ही देश में एक पंचांग लाया जा सकता है।” अगर ऐसा हो जाता है तो यकीनन ही देश से सभी संशय और भ्रांतियां दूर जो जाएँगी। विद्वान् ज्योतिषियों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अगर उज्जैन को कालगणना का केंद्र मान लिया जाये तो पूरे देश के लिए एक पंचांग बनाया जा सकता है।
सम्मेलन में आये ज्योतिषियों की राय है कि देश में त्योहारों की सरकारी छुट्टियां घोषित करने से पहले इस बारे में ज्योतिषियों से एक राय ले लेनी चाहिए। कई बार दो पंचांगों में अलग-अलग जानकारियां होने के कारण लोगों के बीच संशय पैदा हो जाता है इसलिए कुछ प्रमुख त्यौहार जैसे गंगा दशमी, बसंत पंचमी, निर्जला एकादशी, दिवाली, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, राम नवमी आदि त्योहारों के बारे में पहले से ही और निश्चित चर्चा कर लेनी चाहिए। इससे तिथि, त्यौहार, समय, मुहूर्त को लेकर कोई संशय या भ्रान्ति नहीं रह जाएगी।
इस बारे में बात करते हुए मध्यप्रदेश ज्योतिष परिषद के अध्यक्ष आचार्य पंडित रामचंद्र शर्मा वैदिक ने कहा कि, “जो भी परंपरागत पंचांगकर्त्ता हैं उन्हें मिलकर सभी त्योहारों का दिन, मुहूर्त इत्यादि की स्थिति साफ़ कर देनी चाहिए। ऐसा करने के लिए बनारस और उज्जैन के पंचांगकर्ताओं से आग्रह करना चाहिए।”
जानिए क्यों उठी देश में एक पंचांग की ज़रूरत?
ये बात तो हम सभी जानते हैं कि मौजूदा समय में हम लोग 1 जनवरी से नए साल की शुरुआत करते हैं हालाँकि अगर हम सनातनी परंपरा की बात करें तो उसके अनुसार चंद्र गणना पर आधारित काल गणना ही पद्दत्ति मानी जाती है। विक्रम सवंत पंचांग की गणना इस आधार पर की जाती है। ऐसे में अलग-अलग पद्दतियों के होने की वजह से अलग-अलग पंचांगों में अलग-अलग तिथि,महूर्त का अंतर आ जाता है। ऐसे में अगर देश में एक ही पंचांग होता है तो लोगों की इस समस्या का हल निश्चित हो ही जायेगा।