पढ़ें दत्तात्रेय जयंती का महत्व और इसका शुभ मुहूर्त

हिंदू धर्म में कई देवी-देवताओं का जिक्र किया गया है। इन सभी देवी-देवताओं से जुड़े कई त्यौहार भी हैं जिन्हे पूरी आस्था और विश्वास के साथ मनाया जाता है। आज इन्ही में से एक ऐसे त्यौहार के बारे में हम आपको बता रहे हैं जिसे दत्तात्रेय जयंती के नाम से जाना जाता है।  भारतीय धर्म ग्रथों के अनुसार भगवान दत्तात्रेय त्रिदेवों यानी की भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु, और भगवान महेश से एक भगवान विष्णु के अवतार हैं।

इन भगवान के अंदर गुरु और ईश्वर, दोनों का स्वरूप निहित माना जाता है. इनके तीन मुंह और छह हाथ हैं। इन भगवान के साथ कुत्ते और गाय भी दिखाई देते हैं. इन्होंने अपने चौबीस गुरु माने हैं, जिसमे प्रकृति, पशु पक्षी और मानव भी शामिल होते हैं. मान्यता है कि भगवान दत्तात्रेय की उपासना-व्रत तत्काल फलदायी होती है और इससे किसी भी तरह के कष्टों से जल्दी से जल्दी निवारण मिल जाता है. बता दें कि इस बार भगवान दत्तात्रेय की जयंती 11 दिसंबर, बुधवार को है.

जानें दत्तात्रेय जयंती का शुभ मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार दत्तात्रेय जयंती मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा तिथि को पड़ती है, जो इस वर्ष 11 दिसंबर को यानि सुबह 11: 01:22 मिनट से शुरु होगी और पूर्णिमा तिथि 10: 44 : 24 सुबह, 12 दिसंबर 2019 को समाप्त होगी।

जानिए हिंदू धर्म में भगवान दत्तात्रेय का महत्व

मान्यता है कि जिस दिन भगवान दत्तात्रेय का जन्म धरती पर हुआ था उस दिन को दत्तात्रेय जयंती के रूप में मनाया जाता है। जनास्था है कि दत्तात्रेय भगवान का धरती पर जन्म मार्गशीर्ष माह में पूर्णिमा के दिन हुआ था, इस दिन उन्होंने त्रिदेवों को अपने अंदर समा लिया था।  हालांकि उन्हें त्रिमूर्ति के अंश के रुप में जाना जाता है लेकिन, मुख्य रुप से भगवान दत्तात्रेय को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है।

मान्यता है कि दत्तात्रेय भगवान के भक्त पितृ ऋण और कठिनाइयों से मुक्ति पाने के लिए इस दिन उनकी पूजा करते हैं। वैसे तो दत्तात्रेय जयंती भारत के हर हिस्से में मनाई जाती है लेकिन महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और गुजरात के हिस्सों में इस त्यौहार को बहुत ही भव्य तरीके से मनाया जाता है। बता दें कि इन प्रदेशों में भगवान दत्तात्रेय के कई मंदिर भी हैं जहाँ से भक्तों की आस्था के तार जुड़े हुए हैं।

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दत्तात्रेय जयंती पर कैसे करें अनुष्ठान और पूजन

भगवान दत्तात्रेय की जयंती के दिन लोग पितृ ऋण से मुक्ति और अपने जीवन की परेशानियों को दूर करने के लिये पूजा-पाठ करते हैं। हालांकि इस दिन कुछ रस्मों-रिवाज़ों को नियम से करना भी ज़रूरी होता है। जानिए क्या हैं भगवान दत्तात्रेय की पूजा से जुड़े ये नियम :

  • किसी भी पावन-पवित्र दिन की ही तरह दत्तात्रेय जयंती के दिन भी सुबह जल्दी उठकर स्नान और ध्यान करना चाहिये।
  • इस दिन किसी भी पवित्र नदी में स्नान करना अति शुभ माना जाता है। अगर नदी में स्नान मुमकिन नहीं है तो घर में तो स्नान अवश्य करना चाहिए।
  • इस दिन पूजा के साथ-साथ उपवास का भी अपना महत्व बताया गया है।
  • इस दिन की जाने वाली पूजा में भक्तों को दीप, धूप, अगरबत्ती, फूल, कपूर आदि भगवान दत्तात्रेय को अर्पित करने चाहिये।
  • इस दिन पूजा स्थल पर भगवान दत्तात्रेय की प्रतिमा या तस्वीर लगानी चाहिये। और उसके बाद भगवान दत्तात्रेय की प्रतिमा पर सिंदूर, हल्दी और चंदन चढ़ाना चाहिये।
  • इस दिन भजन-कीर्तन करने के साथ-साथ धार्मिक पुस्तकों को पढ़ना चाहिये। पूजा पूरी करने के बाद आप इस दिन गीता का पाठ भी कर सकते हैं। इसके आपका मन शांत रहता है।
  • पूजा की प्रक्रिया पूरी करने के बाद, भक्तों को भगवान की तस्वीर या मूर्ति की सात बार परिक्रमा करनी चाहिए।
  • इसके बाद सभी लोगों को मिलकर भगवान की आरती करनी चाहिए।
  • आरती करने के बाद पहले भगवान को प्रसाद का भोग लगाएँ और उसके बाद भक्तों में प्रसाद बांटे।
  • ‘श्री गुरु दत्तात्रेय नम:’ मंत्र का जाप करें। इससे आपके मन को शांति अवश्य मिलेगी।

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