भारतीय धर्म ग्रंथों व पुराणों के अनुसार वेदों से अवतरित ज्योतिष शास्त्र को नेत्र का स्थान दिया गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जातक के जीवन का भविष्य निर्धारित करने के लिए अनेक पद्धतियां हैं। उन पद्धतियों में घटनाओं के समय को सुनिश्चित करने के लिए दशा को विशेष स्थान दिया गया है। ज्योतिष शास्त्र में विंशोत्तरी, अष्टोत्तरी, चर व योगिनी दशाओं के माध्यम से जातक के वर्तमान व भविष्य के बारे में दिशा-निर्देश दिए जाते हैं।
बात करते हैं योगनी दशा की, कहा जाता है कि योगिनी दशाएं स्वयं भगवान शिव के द्वारा बनाई हुई हैं एवं जातक के जीवन को प्रभावित करती हैं। ज्योतिष शास्त्र में योगिनी दशाओं का महत्वपूर्ण स्थान है। जन्म कुंडली में बिना योगिनी के भविष्यवाणी की सफलता में संदेह बना रहता है। अत: किसी भी जातक को अपनी शुभ-अशुभ योगिनी की जानकारी होना चाहिए तथा अशुभ योगिनी की शांति तुरंत करवाना चाहिए, क्योंकि यह प्रारंभ में ही कष्ट देना शुरू कर देती है। ये योगिनियां आठ प्रकार की होती हैं।
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योगिनी दशा एवं उनके अधिपति (स्वामी)
वैदिक ज्योतिष के अनुसार कुल 8 प्रकार के योगिनी दशों को परिभाषित किया गया है। इन दशों के नाम हैं — मंगला, पिंगला, धन्या, भ्रामरी, भद्रिका, उल्का, सिद्ध और संकटा। आइये अब जानते हैं कि इन सभी योगिनी दशाओं के स्वामी कौन-कौन होते हैं।
1. मंगला- चन्द्र
2. पिंगला- सूर्य
3. धान्या- गुरु
4. भ्रामरी- मंगल
5. भद्रिका- बुध
6. उल्का- शनि
7. सिद्धा- शुक्र
8. संकटा- राहु
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योगिनी दशा वर्ष व उसका प्रभाव
- मंगला- मंगला योगिनी 1 वर्ष की होती है। इस समय जातक को सफलता, यश, धन एवं अच्छे कार्यों से प्रशंसा प्राप्त होती है।
- पिंगला- पिंगला 2 वर्ष की होती है। इसमें जमीन-जायदाद, भाई-बंधु की चिंता, मानसिक कष्ट, अशुभ समाचार, हानि, अपमान, बीमारी से कष्ट आदि होते हैं।
- धान्या- धान्या की दशा में धन प्राप्ति के योग होते हैं। इसका समय 3 वर्ष का होता है। राजकीय कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।
- भ्रामरी- यह 4 वर्ष की होती है एवं 4 वर्ष तक अशुभ यात्रा, कष्ट, व्यापार में हानि, कर्ज की चिंता आदि अन्य अशुभ कार्य भ्रामरी के कारण होते हैं।
- भद्रिका- भद्रिका 5 की होती है। इसकी दशा में धन-संपत्ति का लाभ होता है। सुंदर स्त्रियों एवं सुखोपभोग की प्राप्त होती है। राजकीय कर्मचारी को पदोन्नति प्राप्त होती है।
- उल्का- उल्का 6 वर्ष की योगिनी होती है। इस समय नाना प्रकार के कष्टों से जातक परेशान हो जाता है। मानहानि, शत्रु भय, ऋण, रोग, कोर्ट केस, पारिवारिक कष्ट, मुंह, सिर, पैर में रोग होते हैं।
- सिद्धा- सिद्धा की दशा 7 वर्ष की होती है। इसमें बुद्धि, धन व व्यापार में वृद्धि होती है। घर में विवाह आदि कार्य होते हैं।
- संकटा- संकटा योगिनी 8 वर्ष की होती है। यह धन, बल, व्यापार व परिवार से संबंधित नाना प्रकार के कष्ट देकर जातक को भयभीत कर देती है। अपने ही जनों का विसंयोग होता है।
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विशेष
बृहत् जातक ग्रन्थ के अनुसार कहा गया है कि यदि योगिनीमहा दशाओं में संकटा अशुभ माना गया है। कहा गया है की यदि संकटा की दशा के साथ विंशोत्तरी दशाओं में भी किसी अशुभ ग्रह की महादशा-अंतर-दशा हो तो जातक को अनेकों कष्ट भोगने पड़ते हैं। यदि मारकेश की महादशा/अंतर-दशा के साथ संकटा की दशा भी चल रही हो, तो जातक का जीवन तक संकट में पड़ जाता है।
- यदि संकटा में संकटा योगिनी हो तो जातक अनेकों कष्टों से ग्रसित व मृत्यु या मृत्युतुल्य कष्ट जैसे भोगता है।
- संकटा की दशा में जब मंगला का अंतर होता है तो ऐसे जातकों को सिर की बीमारी व दांपत्य जीवन में कष्ट होता है।
- संकटा में जब पिंगला की अंतर दशा होता है, तब स्वास्थ्य एवं शत्रु भय व कष्ट होता है।
- संकटा में जब धान्या व भ्रामरी के अंतर में विवाद, स्थानातंरण व यात्रा में कष्ट आदि फल होते हैं।
- संकटा के अंतर्गत सिद्धा दशा में पुत्र लाभ, सुख एवं व्यापारोन्नति आदि शुभ फल होते हैं। ठीक इसी प्रकार आगे योगिनियों में अन्य अंतर आते हैं एवं शुभाशुभ फल प्रदान करते हैं।
- संकटा में जब भद्रिका का अंतर होता है, तब अपने जनों से कष्ट, रोग तथा सामान्य लाभ प्राप्त होता है।
- संकटा की दशा के साथ जब उल्का का अंतर होता है, तब घर-परिवार में असामंजस्य, विवाद, धोखा आदि फल प्राप्त होते हैं।
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