चंद्र ग्रहण 2021: वो विशेष घटना जो हर साल चंद्र ग्रहण की वजह बनती है

चंद्र ग्रहण यानी कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जब सूर्य, चन्द्रमा और पृथ्वी एक सीध में आ जाएँ और स्थिति ऐसी स्थिति बने कि चन्द्रमा और सूर्य के बीच हमारी पृथ्वी हो तो यह चंद्र ग्रहण होता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से चंद्र ग्रहण एक बड़ी खगोलीय घटना तो होती ही है लेकिन हिन्दू धर्म और ज्योतिष शास्त्र में भी इसकी काफी मान्यता है। न सिर्फ मान्यता बल्कि चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण को लेकर एक हिन्दू धर्म में एक पौराणिक कथा भी मौजूद है। आज बात उसी पौराणिक कथा की लेकिन उससे पहले साल के पहले चंद्र ग्रहण की थोड़ी सी जानकारी ले लीजिये।

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26 मई को 2021 का पहला चंद्र ग्रहण

साल 2021 का पहला चंद्र ग्रहण करीब है। इस साल का पहला चंद्र ग्रहण 26 मई को बुधवार के दिन पड़ने वाला है। हिन्दू पंचांग के अनुसार इस साल पहला चंद्र ग्रहण विक्रम संवत 2078 के वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को घटित हो रहा है। दुनिया भर के कई हिस्सों में इस चंद्र ग्रहण को देखा जा सकता है। वहीं अगर भारत की बात करें तो साल 2021 का पहला चंद्र ग्रहण यहाँ उपछाया ग्रहण के रूप में देखा जाएगा। आपको बता दें कि उपछाया ग्रहण होने पर चंद्र ग्रहण का कोई भी धार्मिक प्रभाव या सूतक काल मान्य नहीं होता है। 

क्या है चंद्र ग्रहण से जुड़ी पौराणिक कथा?

भारत में चंद्र ग्रहण से जुड़ी अनेकों कथाएं और दंतकथाएं मौजूद हैं लेकिन सबसे ज्यादा प्रचलित जो कथा है वह समुद्र मंथन की घटना से जुड़ी हुई है। कहते हैं कि समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत कलश बाहर आया तो सुर और असुर सभी के बीच इसे पाने की होड़ लग गयी। ऐसे में भगवान श्री हरि विष्णु ने मोहिनी का रूप धरा और सभी देवताओं में अमृत का वितरण किया। इस वितरण की प्रक्रिया के दौरान स्वरभानु नामक एक दैत्य चालाकी दिखाते हुए देवताओं की कतार में जाकर बैठ गया।

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स्वरभानु को भगवान विष्णु ने अमृत भी दे दिया। लेकिन जब तक वह दैत्य पूरा अमृत पी पाता, उससे पहले ही वहां मौजूद सूर्य और चन्द्रमा देवता ने उसे पहचान लिया और इसकी खबर भगवान विष्णु को दे दी। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से स्वरभानु के सिर को उसके धड़ से अलग कर दिया। चूंकि सुदर्शन चक्र के प्रहार से पहले ही स्वरभानु अमृत की दो-तीन बूँद पी चुका था इस वजह से उसके सिर और धड़ अलग होने के बावजूद जीवित रहे और इस दैत्य के जीवित सिर को राहु और धड़ को केतु कहा गया। कहा जाता है कि इसके बाद से ही राहु और केतु सूर्य और चन्द्रमा को अपना दुश्मन मानते हैं और हर साल उन पर ग्रहण हैं।

हम उम्मीद करते हैं कि इस लेख की वजह से आपकी जानकारी में वृद्धि हुई होगी। अगर ऐसा है तो आप इसे अपने अन्य शुभचिंतकों के साथ साझा कर सकते हैं। 

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