ज़रूर करें ब्रज परिक्रमा, हर कदम पर मिलता है अश्वमेध यज्ञ का फल !

भारत में अनेकों ऐसी जगहें हैं, जिसकी पहचान किसी न किसी भगवान के जन्म-स्थल या उनसे जुड़ी किसी घटना के रूप में की जाती है। उन जगहों से जुड़ी ढ़ेरों किस्से-कहानियां भी हमे सुनने को मिलती हैं, और साथ ही लोगों की आस्था भी उस जगह में काफी बढ़ जाती है। ऐसी ही एक जगह है “ब्रज भूमि”, जिसे हम भगवान श्रीकृष्ण और उनकी शक्ति राधा रानी की लीला भूमि के रूप में जानते हैं। ब्रज भूमि लगभग 84 कोस की परिधि में फैली हुई है, जहाँ पर राधा-कृष्ण ने अनेकों चमत्कारिक लीलाएं की हैं। वेद-पुराणों में ब्रज की 84 कोस की परिक्रमा का बहुत महत्व बताया गया है, चलिए आज इस लेख में आपको ब्रज भूमि और 84 कोस परिक्रमा से जुड़ी कुछ रोचक बातें बताते हैं –

साल भर चलती है ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा

उत्तरप्रदेश के मथुरा जिले के अलावा हरियाणा के फरीदाबाद जिले की होडल तहसील और राजस्थान के भरतपुर जिले की डीग तहसील का पूरा क्षेत्र फल ब्रज 84 कोस के अंतर्गत आता है। ब्रज 84 कोस की परिक्रमा के अंदर 1300 से अधिक गांव, 1000 सरोवर, 48 वन, अनेक पर्वत, यमुना घाट और कई अन्य महत्वपूर्ण स्थल हैं। वैसे तो ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा साल भर चलती रहती हैं, लेकिन दिवाली से लेकर होली तक मौसम की अनुकूलता के कारण यह प्रमुख रूप से चलती है। यह परिक्रमा वृंदावन में यमुना पूजन से शुरू होती है। ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा लगभग 268 कि.मी. यानि 168 मील की होती है, जिसे पूरा करने में लगभग 20 से 45 दिन का समय लगता है। इस दौरान तीर्थयात्री बडी ही श्रद्धा के साथ भजन गाते हैं, कीर्तन करते और ब्रज के प्रमुख मंदिरों और दर्शनीय स्थलों के दर्शन करते हुए समूचे ब्रज की परिक्रमा करते हैं।

हर कदम पर मिलता है अश्वमेध यज्ञ का फल

पुराणों में भी ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा का विशेष महत्व बताया गया है। ऐसा कहा जाता है कि, ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा को लगाने से एक-एक कदम पर जन्म-जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं। यह भी कहा गया है, यह परिक्रमा चौरासी लाख योनियों के संकट हर लेती है। शास्त्रों के अनुसार इस परिक्रमा को करने वाले को हर कदम पर अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। साथ ही व्यक्ति को निश्चित ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

यशोदा और नन्द बाबा ने की थी शुरुआत

गर्ग संहिता में यह बताया गया है, कि एक बार नन्द बाबा और यशोदा मैया ने भगवान श्री कृष्ण से चारों धामों की यात्रा करने की इच्छा व्यक्त की। इस पर भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि आप इस वृद्धा अवस्था में कहां-कहां जाएंगे ! मैं चारों धामों को ब्रज में ही बुला देता हूं। भगवान श्रीकृष्ण के बस इतना कहते ही चारों धाम ब्रज में आकर विराजमान हो गए। उसके बाद यशोदा मैया और नन्द बाबा ने उनकी परिक्रमा की। तभी से ब्रज में चौरासी कोस की परिक्रमा की शुरुआत मानी जाती है। 

क्या-क्या मिलती है इस दौरान सुविधाएँ 

ब्रज 84 कोस की कुछ परिक्रमा शुल्क लेकर और कुछ नि:शुल्क निकाली जाती हैं। एक दिन में लगभग 10-12 कि.मी. की परिक्रमा की जाती है। परिक्रमा करने वाले लोगों के खाने-पीने की व्यवस्था परिक्रमा के साथ चलने वाले रसोडों में रहती है। परिक्रमा के कुल 25 पड़ाव होते हैं। आजकल समय के अभाव और सुविधा के चलते वाहनों द्वारा भी ब्रज चौरासी कोस दर्शन यात्राएं होती हैं। तीर्थयात्रियों को इन यात्राओं को लक्जरी कोच बसों या कारों से एक हफ्ते में कराए जाते हैं, जिसमें समूचे ब्रज चौरासी कोस के प्रमुख स्थलों के दर्शन कराते हैं। ये यात्राएं हर दिन सुबह जिस स्थान से प्रारम्भ होती हैं, रात को वहीं पर आकर समाप्त हो जाती हैं।

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