Bhishma Ashtami 2021: जानें भीष्म अष्टमी की रोचक कथा और शिक्षा

भीष्म अष्टमी 2021(Bhishma Ashtami 2021) सूर्य के उत्तरार्ध से शुरू होता है, जो उत्तरायण के समय होता है। सूर्य उत्तरार्ध साल का सबसे पवित्र अर्धांश होता है, और इस दिन भीष्म अष्टमी का संयोग हिन्दू धर्म में बेहद शुभ माना जाता है। भीष्म अष्टमी का दिन बेहद भाग्यशाली और शुभ होता है, और इस दिन यदि जातक व्रत, अनुष्ठान करता है, तो उसे संस्कारी संतान की प्राप्ति होती है। भीष्म अष्टमी के दिन गंगा पुत्र भीष्म पितामह ने अपने देह का त्याग किया था। इस दिन को भीष्म पितामह ने स्वंय देह त्याग करने के लिए चुना था, उन्हें इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था इसलिए युद्ध में पराजित होने के पश्चात भीष्म पितामह ने उत्तरायण का इंतजार किया और 8 दिनों तक शरशैया पर लेटे रहे थे । इस साल भीष्म अष्टमी 2021 19 फरवरी को मनाई जाएगी, आइए जानते है कथा और भीष्म पितामह के द्वारा दी गई शिक्षा ।

भीष्म अष्टमी 2021 पूजा मुहूर्त (Bhishma Ashtami 2021 Puja Muhurat)

अष्टमी तिथि प्रारंभ- 19 फरवरी, 2021 को 10:58 बजे से

अष्टमी तिथि समाप्त- 20 फरवरी, 2021 को 01:31 बजे तक

शुभ मुहूर्त- सुबह 11:27 से रात 01:43 तक

कुल अवधी- 2 घंटे 16 मिनट

भीष्म अष्टमी रोचक व्रत कथा

पौराणिक मान्यता के अनुसार, गंगा पुत्र भीष्म देवी गंगा और राजा शांतनु के पुत्र थे। गंगा पुत्र को जन्म के वक्त देव व्रत नाम दिया गया था। महर्षि पशुराम से शास्त्र विद्या प्राप्त करने के बाद देवी गंगा देव व्रत को उनके पिता  राजा शांतनु के पास ले गई थी, और उसके बाद राजा शांतनु ने देव व्रत को हस्तिनापुर का राजकुमार घोषित कर दिया था। कुछ दिन गुजरने के बाद राजा शांतनु को एक सत्यवती नाम की एक स्त्री से प्यार हो गया, और उन्होंने उनसे विवाह करने का मन बना लिया, लेकिन सत्यवती से विवाह करने के लिए उनके पिता ने राजा शांतनु के सामने एक शर्त रख दिया। शर्त के मुताबिक राजा शांतनु और उनकी बेटी सत्यवती का पुत्र  यदि हस्तिनापुर का उत्तराधिकारी बनेगा तभी वह अपनी बेटी का हाथ राजा शांतनु के हाथ में देंगे। अपने पिता पर आए इस धर्म संकट को देखते हुए देवव्रत ने पिता के प्यार की खातिर अपना राज्य त्याग कर पूरे जीवन शादी ना करने का प्रण ले लिया था, और ऐसे भीष्म प्रण और प्रतिज्ञा के कारण ही  देवव्रत का नाम भीष्म हो गया।

यह सब देखने के बाद राजा शांतनु अपने बेटे से प्रसन्न हुए, और उनको इच्छा मृत्यु का वरदान दिया, देवव्रत अपने जीवनकाल के दौरान भीष्म पितामह को बहुत सम्मान मिला। वक्त के साथ-साथ हस्तिनापुर के उत्तराधिकारी बड़े हो गए। कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध हुआ, महाभारत के इस युद्ध में भीष्म पितामह ने अपना कर्तव्य निभाते हुए कौरवों का साथ दिया। भीष्म पितामह ने पूरी निष्ठा के साथ युद्ध मे कौरवों की तरफ से युद्ध किया। महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह पर अर्जुन ने शिखंडी के पीछे खड़े होकर प्रहार किया था, जिसके बाद वह घायल होकर गिर पड़ें, फिर पितामह के कहने पर अर्जुन  ने बाणों की शय्या पर लेटा दिया। 8 दिनों तक बाणों की शरशैया पर लेटने बाद सूर्य उत्तरायण के शुभ दिन पर भीष्म पितामह ने अपना शरीर त्याग दिया था।

हिन्दू मान्यता के मुताबिक जो भी जातक सूर्य उत्तरायण के दिन अपना शरीर छोड़ता है, उस जातक को मोक्ष मिलता है, इसी कारण से उत्तरायण के दिन भीष्म अष्टमी मनाई जाती है, ऐसी भी मान्यता है, की भीष्म अष्टमी के दिन पूजा-पाठ करने और कथा सुनने से व्यक्ति को संस्कारी संतान का सुख प्राप्त होता है। 

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भीष्म पितामह की शिक्षा

जब भीष्म बाणों की शय्या पर लेटे अपना देह त्याग करने के लिए शुभ दिन का इंतजार कर रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर उन्होंने युधिष्ठिर का दुख दूर करने के लिए उन्हें शिक्षा दिया था

  • गुस्से पर काबू करना सीखें, लोगों को क्षमा करना सीखें ।
  • जो  भी काम करें, उसको पूरा जरूर करें, अधूरा काम नकारात्मकता फल देता है।
  • किसी भी चीज से और लोगों से जुड़ने से बचे।
  • व्यक्ति के जीवन में धर्म हमेशा पहले आना चाहिए।
  • कड़ी मेहनत करें, सबकी रक्षा करें, और सदैव दयालु बनें।

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