जानें कैसे शुरु हुआ था भीष्म पंचक व्रत और इसका महत्व!

कार्तिक माह में आने वाले भीष्म पंचक व्रत का हिंदू धर्म में बड़ा महत्व है। यह व्रत कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से शुरु होता है और कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि तक चलता है, यह व्रत पांच दिनों का होता है। साल 2019 में यह व्रत 08 नवंबर से शुरु हुआ था और 12 नवंबर तक चलेगा। ऐसा माना जाता है कि संयम और ब्रह्मचर्य का पालन करके यदि कोई इस व्रत को रखे तो उसके जीवन की सारी परेशानियां दूर हो जाती हैं। 

कैसे शुरु हुआ भीष्म पंचक व्रत ?

ऐसा माना जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद भीष्म पितामह सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा में शरशैया पर थे। इस दौरान उनसे ज्ञान लेने के लिये भगवान कृष्ण पांचों पांडवों के साथ उनके पास पहुंचे। भीष्म पितामह ने पांच दिनों तक सबको वर्ण, राज और मोक्ष धर्म पर उपदेश दिये। उनसे शिक्षा लेकर पांचों पांडवों और भगवान कृष्ण ने उन्हें धन्यवाद दिया। भगवान कृष्ण ने भीष्म पितामह के उपदेश के बाद कहा कि, आपने शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा यानि पांच दिनों तक धर्म उपदेश दिया है, इसकी याद में मैं भीष्म पंचक व्रत की स्थापना करता हूं। जो भी व्यक्ति इन पांच दिनों तक व्रत रखता है उसे जीवन की सारी खुशियां प्राप्त होती हैं। 

भगवान शिव के इस धाम में मौजूद हैं करोड़ों शिवलिंग!

कैसे की जाती है पूजा ?

  • पंचक व्रत में चार द्वार वाले एक मंडप को बनाकर गाय के गोबर से उसे लीपा जाता है और उसके मध्य में एक वेदी बनायी जाती है। 
  • जिस दिन यह व्रत शुरु होता है तब से इसकी समाप्ति तक घी के दीयों से भगवान की पूजा की जाती है। 
  • वेदी पर कलश की स्थापना की जाती है और इसके बाद वासुदेव भगवान की पूजा करते हैं। 
  • इस व्रत में ब्रह्मचर्य का पालन किया जाता है। जो भी जातक इस व्रत को रखता है उसे पांच दिनों तक ज्यादा से ज्यादा कंदमूल फल खाने चाहिये। सात्विक आहार करना इस व्रत में शुभ माना जाता है। 
  • इन पांच दिनों में अर्घ्य देना चाहिये और अर्घ्य के जल में केवड़ा, फूल, कुमकुम, दूध, दही शहद आदि मिलाना चाहिये। 
  • इन पांच दिनों में स्नान के दौरान यदि आप जल में गौमूत्र मिलाते हैं तो आपको कई रोगों से झुटकारा मिल जाता है। 

भीष्म पंचक व्रत रखने का महत्व

आपको बता दें कि माता गंगा के पुत्र भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। यह वरदान उन्हें अपने पिता से मिला था। भीष्म पितामह ने अपने पिता की इच्छा को पूरा करने के लिये आजन्म अखण्ड ब्रह्मचर्य का पालन करने की दृढ़ प्रतिज्ञा ली थी। इसलिये भीष्म पचक व्रत के दौरान भी ब्रह्मचर्य का पालन करने की बात कही जाती है। जो भी जातक भीष्म पंचक व्रत रखता है उसके जीवन में खुशियां तो आती ही हैं, साथ ही उसे अंत समय में मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। इसके साथ ही भीष्म पंचक व्रत को रखने से मन में शांति का वास होता है और सामाजिक स्तर पर व्यक्ति को ख्याति प्राप्त होती है।   

2500 वर्ष पुराना है उत्तराखंड स्थित यह शिव धाम !

Dharma

बजरंग बाण: पाठ करने के नियम, महत्वपूर्ण तथ्य और लाभ

बजरंग बाण की हिन्दू धर्म में बहुत मान्यता है। हनुमान जी को एक ऐसे देवता के रूप में ...

51 शक्तिपीठ जो माँ सती के शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों के हैं प्रतीक

भारतीय उप महाद्वीप में माँ सती के 51 शक्तिपीठ हैं। ये शक्तिपीठ माँ के भिन्न-भिन्न अंगों और उनके ...

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र (Kunjika Stotram) से पाएँ दुर्गा जी की कृपा

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र एक ऐसा दुर्लभ उपाय है जिसके पाठ के द्वारा कोई भी व्यक्ति पराम्बा देवी भगवती ...

12 ज्योतिर्लिंग: शिव को समर्पित हिन्दू आस्था के प्रमुख धार्मिक केन्द्र

12 ज्योतिर्लिंग, हिन्दू आस्था के बड़े केन्द्र हैं, जो समूचे भारत में फैले हुए हैं। जहाँ उत्तर में ...

दुर्गा देवी की स्तुति से मिटते हैं सारे कष्ट और मिलता है माँ भगवती का आशीर्वाद

दुर्गा स्तुति, माँ दुर्गा की आराधना के लिए की जाती है। हिन्दू धर्म में दुर्गा जी की पूजा ...

Leave a Reply

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा.