भाद्रपद‌ ‌अमावस्या‌ ‌के‌ ‌दिन‌ ‌इन‌ ‌कार्यों‌ ‌को‌ ‌कर‌ ‌के‌ ‌मिटाए‌ ‌कुंडली‌ ‌के‌ ‌दोष!‌ ‌

19 अगस्त, बुधवार को भाद्रपद अमावस्या या कह लें पिठोरी, पिथौरी या फिर कुशग्रहणी अमावस्या मनाई जाएगी। हम सभी जानते हैं कि अमावस्या के दिन स्नान, दान और तर्पण का अधिक महत्व होता है। भाद्रपद अमावस्या के बारे में और जीवन में चल रही किसी भी समस्या का समाधान जानने के लिए हमारे विशेषज्ञ ज्योतिषी से प्रश्न पूछे।  

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अब आप सोच रहे होंगे कि अमावस्या हर महीने में आती है, तो फिर इस दिन में क्या खास है। तो जिन लोगों को इस दिन के विषय में ज़्यादा पता नहीं है, उनकी जानकारी के लिए बता दूँ कि सबसे पहले तो भाद्रपद माह में श्री कृष्ण का जन्म इस महीने को बहुत पुण्यकारी बना देता है और इसके महत्व और प्रभाव कई गुना बढ़ा देता है।

क्यों खास है भाद्रपद अमावस्या?

भाद्रपद अमावस्या पर धार्मिक कार्यों के लिए कुशा(घास) एकत्रित करते हैं। ऐसी मान्यता है कि धार्मिक कार्यों आदि में उपयोग की जाने वाली घास यदि इस दिन एकत्रित करें, तो वह बेहद पुण्य फलदायी होती है। इस दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए पूरे विधिपूर्वक पूजा-पाठ करते हैं, तो वहीँ कुछ स्थान पर महिलाएं अपने पति और बच्चों के लिए व्रत आदि भी रखती हैं। इस दिन आप अपने छोटे-छोटे कर्मों द्वारा शनि देव, शिव जी, माँ दुर्गा आदि को बहुत ही आसानी से प्रसन्न कर सकते हैं। दक्षिण भारत में पिठौरी अमावस्या, को पोलाला अमावस्या के नाम से मनाया जाता है। दक्षिण भारतीय लोग माता पोलेरम्मा जो कि माँ पार्वती का एक रूप हैं उनकी पूजा करते हैं।  

भाद्रपद अमावस्या शुभ मुहूर्त और समय :

18 अगस्त, 2020 को 10:41:11 से अमावस्या आरम्भ

19 अगस्त, 2020 को 08:12:40 पर अमावस्या समाप्त

नोट: बता दें कि यह मुहूर्त केवल दिल्ली के लिए प्रभावी होगा। अपने क्षेत्र का भाद्रपद अमावस्या मुहूर्त देखने के लिए यहाँ क्लिक करें। 

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भाद्रपद अमावस्या का महत्व

प्रत्येक महीने की अमावस्या तिथि का अपना अलग और विशेष महत्व होता है। भाद्रपद माह की अमावस्या, कुशग्रहणी अमावस्या भी कहते हैं इस दिन धार्मिक कार्यों के लिए कुशा(घास) एकत्रित की जाती है। पौराणिक ग्रंथों में इस दिन को कुशोत्पाटिनी अमावस्या कहा गया है। ऐसा माना जाता है कि मान्यता है कि इस दिन एकत्रित की जाने वाली घास यदि धार्मिक कार्यों आदि में इस्तेमाल करें तो वह साल भर तक पुण्य फलदायी होती है। यदि भाद्रपद अमावस्या सोमवार के दिन पड़ रहा हो तो इस घास का प्रयोग बारह सालों तक किया जा सकता है। 

शास्त्रों में दस तरह की कुशों के बारे में ज़िक्र किया गया है। कुशग्रहणी अमावस्या के दिन इन दस प्रकार की घास में से जो भी आसानी से मिल जाए, उसे एकत्रित कर लेनी चाहिए। लेकिन इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि घास को केवल हाथ से ही एकत्रित निकाले और उसकी पत्तियां पूरी होनी चाहिए यानि आगे का भाग टूटा हुआ ना हो। सूर्योदय का समय और उत्तर दिशा की ओर मुख कुशा एकत्रित करने के उचित रहता है। 

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इस दिन किए जाते हैं ये कुछ खास काम 

  • भाद्रपद अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ की परिदक्षिणा की जाती है। साथ ही पितरों की आत्मा की शांति के लिए कच्चे दूध में काले तिल और गंगाजल को मिलाकर चढ़ाया जाता है। 
  • शास्त्रों में इस दिन भगवान शिव की पूजा करने का खास महत्व बताया गया है।
  • कुशग्रहिणी अमावस्या के दिन सुबह के समय दाहिने हाथ से कुशा को उखाड़कर पूजा में प्रयोग करना चाहिए।   
  • पुत्रवती स्त्रियां अपने बच्चों की ख़ुशी, अच्छी सेहत, और लम्बे उम्र  के लिए इस दिन माँ दुर्गा की पूजा अवश्य करें। कई जगहों पर महिलाएं पुत्र प्राप्ति की कामना से भाद्रपद अमावस्या को व्रत भी रखती हैं।  
  • यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि और राहु-केतु ग्रहों का बुरा प्रभाव है, तो उसे खत्म करने के लिए जातक को पितरों के नाम से दान और तर्पण करना चाहिए।
  • इस दिन जिन लोगों पर कालसर्प दोष है, उसके निवारण के लिए पूजा-अर्चना भी की जा सकती है।
  • इस दिन ज़रूरतमंद और गरीब लोगों को अपने सामर्थ्य अनुसार दान अवश्य दें।
  • घर में किसी व्यक्ति की सेहत खराब रहती हो, तो भाद्रपद अमावस्या के दिन उसके नाम से गरीबों को भोजन ज़रूर कराएं।
  • पितरों की आत्मा की शांति के लिए उनके नाम से इस दिन गाय को चारा खिलाएं और नदी के तट पर पिंडदान करें। 

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भाद्रपद अमावस्या को कहते हैं पिठौरा अमावस्या भी 

भाद्रपद अमावस्या को पिठौरा अमावस्या भी कहा जाता है। इस दिन विधि-विधान से देवी दुर्गा की पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सबसे पहले माता पार्वती ने देवराज इंद्र की पत्नी इंद्राणी को इस व्रत का महत्व बताया था। विवाहित स्त्रियां संतान की प्राप्ति और अपनी संतान के अच्छे जीवन, सुख-समृद्धि के लिए यह उपवास रखती हैं। 

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भाद्रपद्र अमावस्या के दिन इस विधि से करें पूजा 

चलिए जानते हैं इस दिन की जाने वाली पूजा की संपूर्ण विधि –

  • भाद्रपद्र अमावस्या के सूर्योदय से पहले उठकर किसी नदी, जलाशय या कुंड में स्नान करें। और यदि ऐसा संभव न हो तो घर में ही नहाने के पानी में गंगाजल और कुशा डालकर स्नान कर लें।  
  • स्नान के बाद साफ़ वस्‍त्र धारण करें और हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्‍प लें। 
  • अब सूर्य देव को अर्घ्य दे और बहते जल में तिल प्रवाहित करें। 
  • पीठ का अर्थ होता है आटा। इस दिन आटे से 64 देवियों की प्रतिमा बनाकर उनका अच्छी तरह से श्रृंगार करें। 
  • अब सभी देवियों को एक थाली में रखें और फल, फूल, धुप, सिन्दूर, आदि से उनकी पूजा करें। 
  • अंत में सभी देवी-देवता की आरती उतारे और उनका आशीर्वाद लें।  
  • विधि-विधान से पूजा करने के बाद किसी पंडित या घर के बड़े को प्रसाद देकर उनका भी आशीर्वाद लें।
  • यथासंभव ब्राह्मण या गरीब को दान-दक्षिणा दें। 
  • अमावस्या वाले दिन शाम के समय पितरों को याद करते हुए पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं और सात बार वृक्ष की परिक्रमा लगाएँ।
  • अमावस्या को शनिदेव का दिन भी बताया गया है। इसलिए इस दिन उनकी पूजा भी  ज़रूर करें।

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आशा करते हैं भाद्रपद अमावस्या के बारे में इस लेख में दी गई जानकारी आपको पसंद आयी होगी।

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