कुंडली में अस्त ग्रह और उनका प्रभाव

ज्योतिष में अस्त ग्रह एक ऐसा शब्द है, जो बड़ा महत्वपूर्ण है। इसके बारे में हम इस लेख में विस्तृत जानकारी प्रदान करेंगे। वैदिक ज्योतिष में ग्रहों का स्थान सर्वोपरि है। यही ईश्वर के वे तत्व हैं, जो हमारे जीवन में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डालते हैं और इसी कारण लोग ग्रहों में आस्था रखते हैं और अपने जीवन की समस्याओं को दूर करने के लिए ग्रहों की शरण में जाते हैं। ग्रहों की अपनी अवस्थाएं होती हैं तथा विशेष स्थति होती है, जिनमें मुख्य रुप से उच्च अवस्था, मूलत्रिकोण राशि, स्वराशि, सम राशि, मित्र राशि, शत्रु राशि, नीच राशि में स्थित होना आदि महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। इसके अतिरिक्त ग्रहों का वक्री और अस्त होना अलग-अलग प्रभाव दिखाता है।

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ज्योतिष में अस्त ग्रह का अध्ययन करना भी बहुत जरूरी होता है क्योंकि यदि इन पर दृष्टि ना डाली जाए तो कुंडली में ग्रहों के फल कथन में भारी चूक हो सकती है। किसी भी ग्रह का अस्त होना किसी विशेष स्थिति और उसकी अंशात्मक स्थिति पर निर्भर करता है। जिस प्रकार सूर्य उदित होता हुआ जीवन देने वाला होता है और अनुकूल होता है तथा अस्त होता हुआ सूरज अंधकार के आगमन की सूचना देता है, उसी प्रकार कुंडली में अस्त ग्रह जीवन में समस्याओं के बारे में सूचना देता है क्योंकि वह बल से हीन हो जाता है और अपने मुख्य कारकत्वों में कमी कर देता है। आज इस लेख में हम अस्त ग्रह के बारे में जानेंगे।

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ज्योतिष में अस्त ग्रह 

समस्त ग्रह मंडल के राजा सूर्य देव हैं और उनका प्रकाश सर्वाधिक है इसलिए जब भी कोई उनके समक्ष जाता है तो उसका तेज समाप्त होने लगता है। ज्योतिष में भी ग्रहों के राजा सूर्य के निकट जब कोई ग्रह किसी विशेष अंशात्मक दूरी पर आ जता है तो वह सूर्य ग्रह के प्रभाव से बलहीन हो जाता है और इसी को सूर्य से अस्त होना कहा जाता है। ऐसा होने से उस ग्रह के नैसर्गिक कारकत्व मैं कमी आ जाती है और वह अपना प्रभाव दिखाने में सक्षम नहीं हो पाता तथा बल से रहित हो जाता है। भले ही वह कुंडली में उच्च राशि में हो या स्वराशि में अथवा मूल त्रिकोण राशि में स्थित हो लेकिन यदि वह अस्त ग्रह है तो उसकी शक्ति क्षीण हो जाती है। वास्तव में ग्रह कुछ विशेष निश्चित अंशों पर सूर्य के निकट होता है तो वह सूर्य के तेज से ढक जाता है और क्षितिज पर भली प्रकार दृष्टिगोचर नहीं होता है। इस कारण से उसके मुख्य प्रभाव में कमी आ जाती है। यही ग्रह का अस्त होना कहलाता है।

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ज्योतिष ग्रंथों में इसको और भी ज्यादा अच्छे तरीके से समझाते हुए अस्त ग्रह की तुलना एक अस्वस्थ और बल हीन राजा के रूप में की गई है जिसके पास सब कुछ होने के बावजूद भी वह कुछ कर पाने में सक्षम नहीं हो पाता। यही वजह है कि कुंडली में ग्रहों का अस्त होना एक अच्छी बात नहीं मानी जाती है क्योंकि ऐसा होने से वह ग्रह अपने मुख्य कार्यों में विलंब कर देता है और व्यक्ति को जीवन में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त यदि यही अस्त ग्रह किसी नीच राशि में स्थित हो अथवा कुंडली के अशुभ स्थानों में स्थित हो या पाप प्रभाव में हो तो और भी ज्यादा अशुभ फल देने वाला बन जाता है।

ज्योतिष में ग्रह कब अस्त होते हैं

भारतीय फलित ज्योतिष अथवा वैदिक ज्योतिष में किसी भी कुंडली में ग्रहों की अवस्थाओं के बारे में बताया गया है। कोई भी ग्रह कुंडली में दस प्रकार की अवस्थाओं में स्थित हो सकता है। ये दस अवस्थाएं मुख्य रूप से दीप्त, स्वस्थ, मुदित, शक्त, षान्त, पीडित, दीन, विकल, खल और भीत कहलाती हैं। इन्हीं में से एक स्थिति है ग्रह का अस्त होना। जब किसी जातक की कुंडली में कोई ग्रह अस्त अवस्था में होता है तो उसे विकल भी कहा जाता है। सभी नव ग्रह सौरमंडल में अपने परिक्रमा पथ पर परिक्रमा करते रहते हैं और जब यह ग्रह किसी विशेष अवस्था में सूर्य के निकट आ जाते हैं तो उसके प्रभाव से अस्त हो जाते हैं अर्थात सूर्य से उस ग्रह के बीच की अंशात्मक दूरी के आधार पर ही कोई ग्रह अस्त होता है। आइए जानते हैं ज्योतिष जगत में विभिन्न ग्रह कब अस्त अवस्था में होते हैं:

  • सूर्य सभी ग्रहों को अस्त करता है लेकिन स्वयं अस्त नहीं होता।
  • राहु और केतु को छाया ग्रह माना जाता है। इसी कारण ये भी अस्त नहीं होते हैं।
  • चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि विभिन्न अंशात्मक दूरी पर सूर्य के निकट आने पर अस्त हो जाते हैं।
  • जब चंद्रमा परिक्रमा पथ पर गति करते हुए सूर्य देव के अंशों से 12 अंश या इससे भी अधिक निकट आ जाते हैं तो अस्त हो जाते हैं।
  • यदि मंगल की बात करें तो यह 17 अंश या उससे अधिक सूर्य के निकट आने पर अस्त हो जाते हैं।
  • बुध ग्रह सूर्य के दोनों और 13 या इससे अधिक निकट आने पर अस्त कहलाते हैं। मतांतर से इसे 14 अंश भी माना जाता है। यदि बुध ग्रह अपनी वक्री अवस्था में स्थित होते हैं तो सूर्य से 12 अंश या उस से अधिक निकट आने पर भी वे अस्त हो जाते हैं।
  • बृहस्पति की बात की जाए तो यह सूर्य के दोनों ओर 11 अंश की अंशात्मक दूरी या उससे अधिक निकट आ जाने पर अस्त हो जाते हैं।
  • शुक्र ग्रह के लिए यह 10 अंश होता है। यदि यह सूर्य के दोनों और 10 अंशों या उससे अधिक निकट आते हैं तो अस्त हो जाते हैं। यदि शुक्र ग्रह वक्री अवस्था में होते हैं तो 8 अंश या इससे अधिक निकट आने पर भी अस्त कहलाते हैं।
  • सूर्य से 15 अंश दोनों ओर या उससे अधिक निकट आने पर शनिदेव अस्त हो जाते हैं।

अपनी कक्षा के अनुरूप यदि बुध ग्रह की स्थिति को देखा जाए तो वह सामान्यतः अस्त स्थिति में ही रहते हैं क्योंकि वह सूर्य के सबसे अधिक निकट हैं। यही वजह है कि बुध को अस्त होने का दोष नहीं माना जाता है और सूर्य और बुध का साथ होना अर्थात सूर्य बुध की युति बुधादित्य योग का निर्माण करती है, जो जातक के जीवन में उत्तम ज्ञान और समृद्धि लाती है।

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यदि चंद्रदेव की बात की जाए तो वास्तव में यह पृथ्वी के उपग्रह हैं और सूर्य से इनकी अंशात्मक दूरी पूर्णिमा के उपरांत कम होने लगती है और अमावस्या के समय चंद्रमा और सूर्य लगभग एक समान अंशों पर स्थित होते हैं। यही वजह है कि चंद्रमा सूर्य से 12 अंकों से कम दूर हों तो अस्त होते हैं लेकिन इससे अधिक अंशों पर होने पर भी चंद्रमा को शुभ नहीं माना जाता है। कम से कम चंद्रमा सूर्य से 70 अंशात्मक दूरी पर हो तभी चंद्रमा को बली समझना चाहिए जिससे कि वे प्रभावित ना हों क्यूंकि चंद्र देव सूर्य के जितने निकट होंगे, उनकी कलाएं उतनी ही कम होंगी और उनका नकारात्मक प्रभाव बढ़ जाएगा।

हालांकि वर्तमान समय में कुछ लोग यह मानते हैं कि कोई ग्रह जब सूर्य से 3 अंश या उससे अधिक निकट होता है तो ही उसे पूर्ण रूप से अस्त मानना चाहिए। हालांकि यह केवल मतान्तर है। इस प्रकार आप किसी भी जातक की कुंडली में यह देख सकते हैं कि कोई भी ग्रह उसकी कुंडली में अस्त अवस्था में है अथवा नहीं और उसी के आधार पर उस ग्रह का फल कथन किया जा सकता है। वास्तव में जो ग्रह सूर्य से न्यूनतम से न्यूनतम अंशों में अस्त होगा, उसी अनुपात में उसको अस्त होने का दोष लगेगा अर्थात उसी के अनुसार उसके फल देने की क्षमता प्रभावित होगी।

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ज्योतिष में अस्त ग्रह का प्रभाव  

ज्योतिष में अस्त ग्रह का बड़ा गहरा प्रभाव देखने को मिलता है। विशेष रूप से जब आपको  किसी ग्रह से बहुत ज्यादा अच्छे फलों की उम्मीद हो और यदि वह कुंडली में अस्त अवस्था में है तो वह अपने मुख्य कार्यों में विलंब करा देता है और जिस कारकत्व के लिए वह जाना जाता है, उस कारकत्व के फलों में भी कमी कर देता है जिससे आप उसके मुख्य फलों से वंचित रह जाते हैं और जीवन में समस्याएं बढ़ जाती हैं। जो ग्रह सूर्य के जितने अधिक निकट होकर अस्त होगा, उसका उतना ही प्रभाव कमजोर होगा।

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ज्योतिष के अनुसार “त्रीणि अस्ते भवे जड़वत।” अर्थात जब किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में तीन ग्रह अस्त अवस्था में आ जाते हैं तो ऐसा व्यक्ति जड़ हो जाता है अर्थात जीवन में स्थिरता आ जाती है और उसके कार्य में शिथिलता आने से ग्रहों की निर्बलता के कारण समस्याएं आने लगती हैं और उसकी कुंडली के अस्त ग्रह अपने नैसर्गिक गुणों को खो देते हैं और अच्छे फल देने में असक्षम हो जाते हैं।

जब भी कोई ग्रह अस्त होता है तो उसके मुख्य गुण अर्थात उसके नैसर्गिक गुणों का ह्रास होता है और उन में कमी आती है। वह ग्रह जिन भावों का स्वामी होता है और जिन भावों में स्थित होता है, उनसे संबंधित फलों में विलंब और कमी करता है। उदाहरण के लिए यदि मंगल मेष राशि में ही अस्त अवस्था में स्थित है तो हो सकता है कि ऐसा व्यक्ति गुस्से वाला हो लेकिन डरपोक हो। दूसरी ओर, यदि देव गुरु बृहस्पति कुंडली के पंचम भाव के स्वामी होकर अस्त अवस्था में हैं तो संभव है कि व्यक्ति अपनी बुद्धि का सही इस्तेमाल ना कर पाए और उसे संतान सुख में बाधा हो अथवा उसकी शिक्षा या उसके प्रेम जीवन में समस्याएं आएं। 

इसी प्रकार यदि कुंडली के चतुर्थ भाव का स्वामी अस्त हो जाए और अशुभ भावों अर्थात अष्टम भाव या छठे भाव में स्थित हो तो व्यक्ति को सुखों में कमी का अनुभव होता है और माता के सुख में भी कमी आ सकती है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति को वाहन सुख में कमी होना और संपत्ति की कमी होना भी संभव है। किसी भी ग्रह का अंत होना वास्तव में उसकी कमजोरी है। यदि ऐसा ग्रह अपनी स्वराशि, मूल त्रिकोण राशि अथवा उच्च राशि में भी स्थित हो तो भी उसे कमजोर ही मानना चाहिए। यदि कुंडली के त्रिक भावों के स्वामी अर्थात छठे, आठवें और बारहवें भाव के स्वामी ग्रह अस्त हों या इन भावों में अस्त ग्रह स्थित हों तो व्यक्ति को अच्छे परिणाम मिलते हैं और उसको सुख – समृद्धि की प्राप्ति होती है।

कुंडली में विभिन्न ग्रहों के अस्त होने का फल

ज्योतिष के अंतर्गत विभिन्न ग्रहों के अस्त होने का अलग-अलग फल मिल सकता है। आइए जानते हैं जब कोई ग्रह अस्त होता है तो किस प्रकार के फल प्रदान करता है:

  • चंद्रमा जब कुंडली में अस्त अवस्था में होता है तो मानसिक तनाव को बढ़ाता है। ऐसा व्यक्ति मानसिक रूप से स्थिर नहीं हो पाता है और उसके जीवन में अशांति रहने लग जाती है। चंद्रमा मन और माता का कारक भी होता है। यही वजह है कि व्यक्ति की माता के सुख में कमी आती है। उनका स्वास्थ्य खराब होता है या फिर उनसे व्यक्ति की नहीं बनती है। अधिक स्थिति खराब होने पर व्यक्ति मानसिक अवसाद या मानसिक रोगों का शिकार भी हो सकता है। इसके अतिरिक्त चंद्रमा से संबंधित शारीरिक समस्याएं जैसे कि खून की कमी, फेफड़ों के रोग, डिप्रेशन, अस्थमा, मानसिक तनाव जैसी समस्याएं परेशान कर सकती हैं। जातक के जीवन में जन सहयोग का अभाव होता है उसे मिर्गी के दौरे आने की संभावना भी होती है और कई बार उसे किसी बीमारी के लिए लंबे समय तक दवाई खाने की आवश्यकता पड़ती है। यदि अस्त चंद्रमा का संबंध कुंडली के अष्टम भाव से हो जाए तो व्यक्ति बहुत लंबे समय तक डिप्रेशन में रहता है। इसके अतिरिक्त यदि चंद्रमा पर पाप प्रभाव हो या द्वादश भाव से संबंध बने तो व्यक्ति नशे का आदी हो सकता है। चंद्रमा यदि अस्त अवस्था में है तो जातक को माता के सुख में कमी आती है। पैतृक संपत्ति मिलने में समस्या होती है और मानसिक अशांति जैसी समस्याएं भी समय-समय पर आती रहती हैं।
  • मंगल ग्रह बल का कारक है। यदि मंगल ग्रह अस्त है तो व्यक्ति क्रोधी स्वभाव का चिड़चिड़ा और डरपोक हो जाता है। उसका अपने भाइयों से तनाव होता है और भूमि और संपत्ति संबंधित विवाद बढ़ने लगते हैं। व्यक्ति का रक्त दूषित हो जाता है और रक्तचाप में उतार-चढ़ाव आते हैं। कैंसर जैसे रोग भी परेशान कर सकते हैं। व्यक्ति को रक्त संबंधित समस्याएं ज्यादा परेशान करती हैं। उसे कोर्ट कचहरी के मामलों में भी परेशानियां उठानी पड़ सकती हैं। यदि मंगल का संबंध कुंडली के छठे या आठवें भाव से या अथवा अशुभ ग्रहों के साथ हो तो उसको दुर्घटना होने की संभावना या किसी ऐसी ही समस्या की संभावना रहती है, जिसमें खून बहे। ऐसा मंगल व्यक्ति को कर्ज का शिकार बना देता है और द्वादश भाव से संबंध होने पर व्यक्ति नशे का आदी बन जाता है। उच्च अवसाद और भ्रष्टाचार से युक्त व्यक्ति अथवा घोटाले करने वाला व्यक्ति मंगल के अस्त हो जाने के कारण हो सकता है। यदि ऐसे मंगल का संबंध राहु अथवा केतु से हो तो व्यक्ति किसी मुकदमे में भी पड़ सकता है और उसको नुकसान उठाना पड़ सकता है।
  • बुध ग्रह को वाणी और व्यापार का कारक कहा जाता है। यदि कुंडली में बुध ग्रह अस्त हो तो व्यक्ति बुद्धि का काम सही प्रकार से नहीं कर पाता या फिर आवश्यक समय पर बुद्धि काम नहीं आती है। वह बातों को अच्छे से याद नहीं रख पाता है। उसको वाणी दोष होता है और गले में खराबी हो सकती है। ऐसा जातक विश्वास की कमी से जूझता है और शरीर में त्वचा संबंधित समस्याएं, चर्म रोग, गले के रोग, श्वास रोग होने की संभावना रहती है। यही बुध द्वादश भाव से संबंध होने पर भी व्यसनी भी बना देता है। यदि इस बुध का संबंध मंगल के साथ हो या किसी अशुभ ग्रह का प्रभाव हो तो जातक को मानसिक अवसाद की शिकायत या किसी अपने प्रिय की मृत्यु के समाचार को सहन करना पड़ सकता है। बुध के अस्त होने की स्थिति में व्यक्ति को धोखा मिल सकता है और इस वजह से वह मानसिक अशांति का शिकार हो सकता है।
  • बृहस्पति ग्रह एक अत्यंत शुभ ग्रह है। यदि यह ग्रह अस्त हो जाए तो अपने शुभ प्रभावों में कमी कर देते हैं। व्यक्ति का मन पूजा पाठ में नहीं लगता है। व्यक्ति को धन, विवाह और संतान से संबंधित समाचार मिलने में समस्या होती है। विवाह में विलंब होता है। संतान होने में कष्ट होता है या संतान को समस्याएं रहती हैं। परिवार के बुजुर्ग सदस्यों को समस्याएं रहती हैं और व्यक्ति को ज्ञान प्राप्ति की मार्ग में बाधाएं आती हैं। ऐसा व्यक्ति नास्तिक भी हो सकता है। गुरु बृहस्पति के अस्त होने पर व्यक्ति को आमाशय के रोग, टाइफाइड बुखार, साइनस की समस्या, मधुमेह का रोग, जैसी समस्याएं पैदा हो सकती हैं। इसके अतिरिक्त कोर्ट कचहरी के कामों में समस्या, गुरुजनों और शिक्षकों से मतभेद और पढ़ाई में मन ना लगना जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं। यदि बृहस्पति अस्त होने के साथ पाप ग्रहों के अधिक प्रभाव में हों तो व्यक्ति को संतान सुख का अभाव भी हो सकता है अथवा अष्टम भाव से संबंध होने पर किसी प्रिय जन के वियोग का समाचार सुनना पड़ सकता है। यदि यही बृहस्पति द्वादश भाव से संबंध बनाए तो व्यक्ति अनैतिक संबंधों का शिकार हो जाता है और मानहानि उठानी पड़ती है।
  • शुक्र ग्रह को काम और भोग तथा भौतिक सुख का कारक माना जाता है। यदि कुंडली में शुक्र ग्रह अस्त अवस्था में है तो ऐसे व्यक्ति को विवाह में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यदि वह जातक कोई महिला है तो उसे गर्भाशय का रोग हो सकता है या स्त्री रोग जैसी समस्याएं हो सकती हैं। अस्त शुक्र ग्रह स्थिति व्यक्ति को जननांगों के रोग या यौन रोग भी प्रदान कर सकती है। ऐसा व्यक्ति चरित्रहीन हो सकता है। उसको गुर्दों के रोग, आंखों की समस्या, मूत्राशय के रोग और त्वचा संबंधित समस्याएं भी हो सकती हैं। यदि शुक्र का संबंध राहु अथवा केतु से हो तो वह व्यक्ति के मान सम्मान को हिला देता है। इसके अतिरिक्त कुंडली के छठे या आठवें भाव से संबंध होने पर व्यक्ति को बड़े रोग हो जाते हैं। यदि व्यक्ति विवाहित है तो जीवन साथी को भी स्वास्थ्य कष्ट काफी परेशान कर सकते हैं। यदि शुक्र का संबंध अस्त अवस्था में अष्टम भाव से हो जाए तो दांपत्य जीवन में समस्याएं आने लगती हैं और द्वादश भाव से संबंध होने पर व्यक्ति विभिन्न प्रकार के व्यसनों में पड़ सकता है तथा जीवन में सुख सुविधाओं से वंचित हो सकता है।
  • शनि ग्रह कर्म फल दाता माने जाते हैं। यदि कुंडली में शनि देव अस्त अवस्था में हों तो जातक को अपने कर्म में समस्याएं आती हैं। वह जहां नौकरी या व्यापार करता है, वहां परेशानी उठानी पड़ती है। वरिष्ठ अधिकारियों या समाज के गणमान्य लोगों से तालमेल नहीं बैठ पाता और उनसे अनबन हो जाती है। सामाजिक प्रतिष्ठा में कमी आती है और कई बार व्यक्ति नशीली वस्तुओं के सेवन में लग जाता है। शनि के अस्त होने पर व्यक्ति को पैरों में दर्द, जोड़ों में दर्द, कमर दर्द तथा स्नायु तंत्र के रोग परेशान कर सकते हैं। यदि ऐसा शनि छठे भाव के स्वामी के साथ संबंध बनाए तो रीढ़ की हड्डी में समस्या दे सकता है या फिर जोड़ों के दर्द भी हो सकते हैं। यदि शनि का प्रभाव अष्टम के स्वामी के साथ हो जाए या फिर अष्टम भाव से हो जाए तो व्यक्ति का रोजगार भी जा सकता है और द्वादश भाव से ऐसे शनि का संबंध होने पर व्यक्ति किसी गंभीर बीमारी का शिकार हो जाता है और उसको मानसिक अशांति घेर लेती है। उसे अपने जीवन में सफलता पाने के लिए अत्यंत ही कठोर श्रम करना पड़ता है और कई बार नीच प्रवृत्ति के लोगों के साथ उसकी संगति हो जाती है, जो बाद में उसके लिए दुखदायी साबित होती है।

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अस्त ग्रहों से संबंधित कुछ सामान्य नियम

आमतौर पर यही माना जाता है कि जब कोई ग्रह अस्त अवस्था में होता है तो वह बल हीन हो जाता है और ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे किसी व्यक्ति के पास सब कुछ होने के पश्चात भी वह खाली हाथ हो और उसकी ताकत उससे छीन ली गई हो। कुंडली में अस्त ग्रह के बारे में विवेचन करने के कुछ सामान्य नियम भी हैं, जो इस प्रकार हैं:

  • यदि जो ग्रह अस्त हो रहा है, वह सूर्य देव का मित्र है तो कम अशुभ होता है अर्थात कम समस्याएं देता है।
  • यदि अस्त होने वाला ग्रह सूर्य देव का शत्रु है तो वह और भी अधिक अशुभ हो जाता है और अधिक समस्याएं देने लगता है।
  • अस्त ग्रह कितने अंशों पर अस्त होता है और कितने अंशों पर वह किसी  कुंडली में अस्त है इसका ध्यान करना आवश्यक है क्योंकि इसी के आधार पर पता चलता है कि अस्त ग्रह कितना निष्प्रभावी हुआ है।
  • अधिक निकट होने पर अस्त ग्रह अधिक बलहीन होता है और कम निकट होने पर अपेक्षाकृत थोड़ा सा कम बलहीन होता है।
  • उदाहरण के तौर पर यदि शुक्र सूर्य से 10 अंशों पर अस्त हो और किसी दूसरे जातक की कुंडली में शुक्र सूर्य से 2 अंशों पर अस्त हो तो दोनों प्रकार के अस्त शुक्र के फलों में काफी अंतर दिखाई देगा।
  • यदि कोई ग्रह अस्त अवस्था में है परंतु वह किसी शुभ भाव में स्थित है अथवा किसी शुभ ग्रह की दृष्टि से देखा जा रहा है तो उसके अस्त होने के दुष्परिणामों में काफी हद तक कमी आ सकती है।
  • यदि लग्न का स्वामी अस्त अवस्था में हो और किसी पाप ग्रह के साथ संबंध बनाए तो वह काफी समस्या प्रद हो जाता है।

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कुंडली में अस्त ग्रहों का उपाय 

जहां समस्या होती है, वहां समाधान भी होता है। इसी प्रकार जब कुंडली में कोई ग्रह अस्त होता है तो उसके प्रभाव को अनुकूल बनाने और मजबूत करने के लिए उस ग्रह को अतिरिक्त बल देने की आवश्यकता होती है ताकि वह अपने फलों को मजबूती से प्रदान कर सके और जातक को उसका लाभ मिले। यहाँ पर यह भी देखना आवश्यक होता है कि वह ग्रह उस कुंडली के लिए शुभ ग्रह है अथवा अशुभ। यदि वह अशुभ ग्रह है तो उससे संबंधित दान किया जाता है और यदि वह शुभ ग्रह है तो उसके रत्नों को धारण भी किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त ग्रहों के मंत्रों का जाप करना भी सर्वाधिक उपयुक्त रहता है।  

यदि आप की कुंडली में कोई ग्रह अस्त अवस्था में है तो आप नीचे दिए गए नवग्रहों के बीज मंत्रों में से अपनी कुंडली के अस्त ग्रह के मंत्र का जाप कर सकते हैं-

  • सूर्य – ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:।
  • चन्द्र – ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चन्द्रमसे नम:।
  • मंगल – ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:।
  • बुध – ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:।
  • गुरू – ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरुवे नम:।
  • शुक्र – ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:।
  • शनि – ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:।
  • राहु – ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:।
  • केतु – ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं स: केतवे नम:।

उपरोक्त ग्रहों के मंत्र जाप के अतिरिक्त आप उस ग्रह से संबंधित औषधि से स्नान कर सकते हैं अथवा उस ग्रह से संबंधित दान भी कर सकते हैं।

इस प्रकार जीवन में अस्त ग्रहों के प्रभाव को समझा जा सकता है और उनके शुभ प्रभाव को प्राप्त करने के लिए आवश्यक उपाय किए जा सकते हैं।

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