कल आषाढ़ी एकादशी: जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व के बारे में

हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष को होने वाली एकादशी को आषाढ़ी एकादशी या देवशयनी एकदशी के नाम से जाना जाता है। माना जाता है की इस एकदशी से लेकर आने वाले चार महीने तक भगवान् श्री विष्णु निद्रा अवस्था में पाताल लोक में निवास करते हैं। आइये जानते हैं आषाढ़ी एकादशी के शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व के बारे में।

आषाढ़ी एकादशी का महत्व

कल 12 जुलाई को हिन्दू पंचांग की बेहद महत्वपूर्ण एकादशी है जिसे आषाढ़ी एकादशी या देवशयनी एकादशी कहते हैं। ऐसी मान्यता है की आषाढ़ी एकादशी के दिन से लेकर आने वाले चार महीनों तक भगवान् विष्णु पाताल लोक में निद्रा अवस्था में चले जाते हैं। इस वजह से इस दौरान किसी भी शुभ काम को करने के लिए मनाही होती है। चूँकि भगवान श्री हरि की इन चार महीनों में गैर मौजूदगी होती है इसलिए इस दौरान शादी विवाह, उपनयन संस्कार और गृह प्रवेश जैसे शुभ कार्य नहीं करवाए जाते हैं।

आषाढ़ी एकादशी का शुभ मुहूर्त

आषाढ़ी एकादशी पारणा मुहूर्त : 06:32:03 से 08:17:48 तक 13, जुलाई को

अवधि : 1 घंटे 45 मिनट

हरी वासर होने का समय : 06:32:03 पर 13, जुलाई को

आषाढ़ी एकादशी की पूजा विधि

चूँकि आषाढ़ी एकादशी से लेकर चार महीने के अंतराल तक भगवान् श्री हरि निद्रा अवस्था में चले जाते हैं इसलिए इस दिन उनकी पूजा आराधना का विशेष महत्व है। इस दिन लोग व्रत रखकर विधिवत रूप से भगवान् विष्णु की पूजा अर्चना करते हैं। देवशयनी एकादशी के दिन इस प्रकार से करें विष्णु जी की आराधना –

  • इस दिन सबसे पहले सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि क्रियाओं से निवृत हो जाएँ।
  • इसके बाद पूजा करने के स्थान को अच्छी तरह से धोकर वहां भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें और पूजन विधि आरंभ करें।
  • सबसे पहले भगवान् विष्णु को पीले वस्त्र चढ़ाएं और उसके बाद उन्हें पीले फूल चढ़ाएं।
  • तिलक के लिए पीले रंग के चंदन का ही प्रयोग करें।
  • पूजा के समय विष्णु जी के हाथों में चक्र, शंख और गदा आदि सुशोभित करना भी महत्वपूर्ण माना जाता है।
  • इसके बाद उन्हें पान और सुपारी अर्पित करें और धूप दीप दिखाते हुए श्रद्धा भाव से उनका मनन करें।
  • पूजन क्रिया संपन्न होने के बाद भगवान विष्णु की स्तुति निम्नलिखित मंत्रों के साथ करें।

“सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जमत्सुप्तं भवेदिदम्।
विबुद्धे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्।।”

इसके साथ ही आषाढ़ी एकादशी की पूजा विधि समाप्त होती है और भक्त भगवान् विष्णु से उपरोक्त स्तुति के माध्यम से कहते हैं की “हे श्री हरि आपके निद्रा अवस्था में जाने से संपूर्ण संसार भी नींद की आगोश में चला जाता है और आपके जागते ही संपूर्ण संसार भी जागृत हो उठता है।” पूजन विधि समाप्त होने के बाद ब्राह्मणों को भोजन करवाएँ।

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