अधिक मास 2023: 19 वर्षों बाद श्रावण अधिक का शुभ संयोग-इस दौरान भूल से भी न करें ये गलतियाँ!

वर्ष 2023 में अधिक मास लग रहा है। अधिक मास को मलमास भी कहते हैं। अब ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर अधिक मास या मलमास क्या होता है? इस दौरान क्या कुछ कार्य करने वर्जित होते हैं? क्या कुछ कार्य करके इस दौरान हमें शुभ फलों की प्राप्ति होती है? साथ ही इस वर्ष अधिक मास कब से लग रहा है? आपके इन्हीं सभी सवालों का जवाब आपको ऐस्ट्रोसेज के इस खास ब्लॉग के माध्यम से हम प्रदान कर रहे हैं। 

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अधिकमास (मलमास) क्या होता है?

सबसे पहले बात करें अधिक मास होता क्या है? तो दरअसल ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में जब प्रवेश करता है अर्थात गोचर करता है तो उसे संक्रांति कहते हैं। सूर्यदेव का यह गोचर या संक्रांति तकरीबन हर महीने में होती है। अर्थात सूर्य देव को एक राशि से दूसरी राशि में जाने में लगभग 1 महीने का समय लगता है लेकिन जिस महीने में सूर्य अपनी राशि नहीं बदलते हैं उसे मलमास या फिर अधिक मास कहा जाता है।  

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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि जिस महीने में सूर्य अपनी राशि नहीं बदलते हैं वह महीना मलिन हो जाता है जिसके चलते इस महीने का स्वामी बनने से सभी देवताओं ने अस्वीकार कर दिया था। कहा जाता है तब भगवान विष्णु ने इस महीने को अपनाया और इसके स्वामी बने। मान्यता के अनुसार जो कोई भी व्यक्ति मलमास के दौरान भगवान विष्णु, महादेव, श्री कृष्ण, गणेश भगवान की पूजा करता है उनके जीवन से सभी पाप नष्ट होते हैं और उन्हें पुण्य फलों की प्राप्ति होती है।

वर्ष 2023 में अधिक मास कब से कब तक 

बात करें इस वर्ष अधिक मास की तो, यह 18 जुलाई 2023 से प्रारंभ हो जाएगा और यह अगस्त 16 2023 तक चलने वाला है।

मलमास से आएंगे क्या बदलाव? 

अधिक मास लगने की वजह से साल 2023 में सावन का महीना 2 महीनों का होने वाला है। साथ ही इस वर्ष कुल आठ सोमवार आएंगे। जिस दौरान महादेव की भक्ति और पूजा करके आप भी उनका आशीर्वाद अपने जीवन में प्राप्त कर सकते हैं।

क्या यह जानते हैं आप? अधिक मास और चातुर्मास को अक्सर लोग एक ही समझने लगते हैं हालांकि यह दोनों एक नहीं होते हैं। दोनों में काफी असमानता होती है। जहां अधिक मास 1 महीने का होता है वहीं चातुर्मास में 4 महीने आते हैं।

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अधिक मास क्या है? 

यह बात तो सभी जानते हैं कि हिंदू कैलेंडर सूर्य और चंद्रमा की गणना के आधार पर तैयार किए जाते हैं। सौर कैलेंडर में 365 दिन और 6 घंटे का एक साल होता है। इसमें हर 4 साल में एक लीप ईयर होता है। लीप ईयर में फरवरी का महीना 28 की बजाय 29 दिनों का हो जाता है। वही चंद्र कैलेंडर की बात करें तो चंद्र कैलेंडर के 1 साल में 354 दिन होते हैं। यानी कि सौर कैलेंडर और चंद्र कैलेंडर के 1 वर्ष में कुल 11 दिनों का अंतर होता है। कहा जाता है इसी अंतर को खत्म करने के लिए हर 3 साल पर चंद्र कैलेंडर में एक अतिरिक्त महीना जुड़ जाता है और इसे ही अधिक मास कहा जाता है। इसकी वजह से चंद्र कैलेंडर और सौर कैलेंडर के बीच संतुलन बना रहता है।

अधिक मास को क्यों कहते हैं मलमास? 

दरअसल सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार अधिक मास में कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य नहीं किया जाता है। मान्यता है कि इस दौरान नामकरण संस्कार, विवाह संस्कार, यज्ञोपवीत, गृह प्रवेश, करना वर्जित होता है। यह 1 महीने का समय ऐसा समय होता है जिसे मलीन माना जाता है और इसे बहुत ही जगह पर पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं। अधिक मास या मलमास को पुरुषोत्तम मास क्यों कहा जाता है आइए इस पर भी जानकारी प्राप्त कर लेते हैं।

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अधिक मास को पुरुषोत्तम मास क्यों कहते हैं? 

पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कालगणना में हर महीने के लिए एक अधिपति देवता को निर्धारित किया गया है जिनकी पूजा उस निश्चित महीने में की जाती है। जब अधिक मास की बात आई तब किसी भी देवता ने इसे अपनाने के लिए इंकार कर दिया। कहा जाता है तब भगवान विष्णु ने अधिक मास को स्वीकारा और उसके आधिपत्य देव बन गए। भगवान विष्णु का एक नाम पुरुषोत्तम भी है और यही वजह है कि बहुत से लोग अधिक मास को पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं। 

इसी कारण के चलते अधिक मास में भगवान विष्णु की पूजा करने से उनका आशीर्वाद हमारे जीवन में हमेशा बना रहता है। इस महीने जितना हो सके विष्णु पुराण, भागवत कथा सुनने, भगवान विष्णु से संबंधित व्रत पूजा, पाठ, भजन कीर्तन, करने की सलाह दी जाती है। ऐसा करने से हमारे जीवन में सुख शांति समृद्धि आती है।

अधिक मास और चतुर्मास क्या दोनों एक हैं? बिल्कुल भी नहीं। दरअसल अधिक मास और चातुर्मास में बहुत बड़ा अंतर होता है। जहां अधिक मास 1 महीने का होता है और हर 3 साल में एक बार आता है वहीं, चातुर्मास 4 महीने की अवधि होती है और यह हर साल आती है। देवशयनी एकादशी के दिन चातुर्मास प्रारंभ हो जाता है। अर्थात इसी दिन से भगवान विष्णु 4 महीने की योगनिद्रा में चले जाते हैं। इस दौरान किसी भी तरह का शुभ और मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। वर्ष 2023 में चातुर्मास 29 जून से प्रारंभ हो जाएगा।

इस वर्ष का अधिक मास है बेहद दुर्लभ -19 वर्षों बाद बन रहा है शुभ संयोग 

दरअसल वर्ष 2023 में अधिक मास श्रावण महीने के साथ लग रहा है इसलिए इसे श्रावण अधिक कहा जाएगा। ज्योतिषीय गणना के अनुसार माना जा रहा है कि, श्रावण अधिक आखिरी बार वर्ष 2004 में लगा था। यानी कि यह संयोग अब 19 वर्षों बाद बनने जा रहा है। 19 वर्षों बाद बन रहे इस शुभ संयोग से त्योहारों में बड़ा उलटफेर देखने को मिलेगा। इस वर्ष रक्षाबंधन 30 अगस्त को मनाया जाएगा। यानी पिछले वर्ष की तुलना में 19 दिनों बाद। इसके अलावा इस वर्ष कृष्ण जन्माष्टमी, गणेश उत्सव, पितृपक्ष, शारदीय नवरात्रि, दशहरा, धनतेरस, दिवाली, भाई दूज, जैसे बड़े और अहम त्योहार भी इस वर्ष देरी से किए जाएंगे।

जानने योग्य बातें: चूँकि इस वर्ष का अधिक मास श्रावण मास में पड़ रहा है, इसलिए इसे श्रावण अधिक मास कहा जाएगा। इसके बाद अब अगला अधिक मास वर्ष 2026, 2029, 2031 और 2034 में आयेगा।

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अधिक मास में भूल से भी ना करें ये गलतियां 

अधिक मास में कई कार्य वर्जित माने गए हैं जैसे कि, 

  • इस दौरान शादी विवाह नहीं करना चाहिए। 
  • सगाई 
  • घर का निर्माण 
  • संपत्ति से जुड़ा कोई बड़ा काम 
  • संपत्ति को खरीदना या बेचना 
  • कर्णवेध संस्कार 
  • मुंडन संस्कार 
  • किसी भी तरह का नया काम इत्यादि इस दौरान नहीं करना चाहिए।

कहा जाता है इस दौरान यदि हम कोई भी शुभ मांगलिक कार्य कर भी लें तो हमें उसका पूर्ण फल जीवन में नहीं प्राप्त होता है।

अधिक मास से व्रत त्योहारों की तिथियों में बड़ा परिवर्तन 

सबसे पहले बात करें सावन की तो जैसा हमने पहले भी बताया कि इस वर्ष सावन 2 महीने का होने वाला है जिसके चलते इस वर्ष आठ सावन सोमवार होंगे 

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सावन सोमवार व्रत की दिनांक राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, पंजाब एवं बिहार के लिए

मंगलवार, 04 जुलाई श्रावण मास का पहला दिन

सोमवार, 10 जुलाई सावन सोमवार व्रत

सोमवार, 17 जुलाई सावन सोमवार व्रत

सोमवार, 21 अगस्त सावन सोमवार व्रत

सोमवार, 28 अगस्त सावन सोमवार व्रत

गुरुवार, 31 अगस्त श्रावण मास का अंतिम दिन

सावन सोमवार की दिनांक पंश्चिम एवं दक्षिण भारत के लिए

गुरुवार, 17 अगस्त श्रावण मास का पहला दिन

सोमवार, 21 अगस्त सावन सोमवार व्रत

सोमवार, 28 अगस्त सावन सोमवार व्रत

सोमवार, 04 सितंबर सावन सोमवार व्रत

सोमवार, 11 सितंबर सावन सोमवार व्रत

शुक्रवार, 15 सितंबर श्रावण मास का अंतिम दिन

इसके अलावा इस वर्ष चातुर्मास भी 5 महीने का होगा 

आप बात करें त्योहारों की तो इस साल चातुर्मास 5 महीने का होगा- 29 जून 2023 से चातुर्मास प्रारम्भ होगा और 23 नवंबर 2023 को इसका समापन होगा। 

इस दौरान कोई भी शुभ मांगलिक कार्य नहीं किया जाएगा। 

रक्षाबंधन 30 अगस्त को मनाया जाएगा। 

4 एकादशी और 9 मंगला गौरी व्रत का शुभ संयोग 

इसके अलावा वर्ष 2023 के सावन के महीने में चार एकादशी व्रत का शुभ संयोग भी बन रहा है- 1 महीने में दो एकादशी व्रत किए जाते हैं लेकिन चूंकि इस वर्ष सावन का महीना 2 महीनों का होने वाला है ऐसे में इस दौरान चार एकादशी व्रत पड़ने वाले हैं। इनमें से पहला एकादशी व्रत 13 जुलाई को रखा जाएगा इसे कामिका एकादशी कहते हैं, दूसरा एकादशी व्रत पद्मिनी एकादशी 29 जुलाई को रखा जाएगा, तीसरा एकादशी व्रत परमा एकादशी के नाम से जाना जाएगा और इसे 12 अगस्त को रखेंगे और अंतिम एकादशी व्रत पुत्रदा एकादशी 27 अगस्त को रखा जाएगा।

यहां यह भी जानना आवश्यक है कि, मलमास या पुरुषोत्तम मास की वजह से मंगला गौरी के व्रत की संख्या भी वर्ष 2023 में बढ़ गई है। हर साल केवल चार या पांच मंगला गौरी व्रत ही किए जाते हैं जबकि इस वर्ष 9 मंगला गौरी व्रत का शुभ संयोग बन रहा है। सावन मास की शुरुआत ही मंगला गौरी व्रत से होगी। मंगला गौरी व्रत के बारे में मान्यता है कि यह भगवान शिव और के लिए किया जाता है और मां पार्वती के लिए किया जाता है और इस व्रत से बेहद ही आसानी से मां पार्वती और भगवान शिव की प्रसन्नता हासिल की जा सकती है। 

तिथियों की बात करें तो नीचे हम आपको इस वर्ष पड़ने वाली सभी मंगला गौरी व्रत की जानकारी प्रदान कर रहे हैं : 

पहला मंगला गौरी व्रत – 4 जुलाई 2023

दूसरा मंगला गौरी व्रत – 11 जुलाई 2023

तीसरा मंगला गौरी व्रत – 18 जुलाई 2023

चौथा मंगला गौरी व्रत – 25 जुलाई 2023

पांचवां मंगला गौरी व्रत – 1 अगस्त 2023

छठवां मंगला गौरी व्रत – 8 अगस्त 2023

सातवां मंगला गौरी व्रत – 15 अगस्त 2023

आठवां मंगला गौरी व्रत – 22 अगस्त 2023

नौवां मंगला गौरी व्रत – 29 अगस्त 2023

महत्वपूर्ण जानकारी: पुरुषोत्तम मास या मलमास को हिंदू धर्म में बेहद ही पवित्र महीना माना जाता है और इसे साफ तौर पर शुद्धीकरण, तपस्या, और आध्यात्मिक विकास से जोड़कर देखा जाता है। यह महीना धार्मिक अनुष्ठान करने, व्रत करने, दान पुण्य करने, पूजा भक्ति करने, के लिए बेहद शुभ महीना माना गया है। माना जाता है कि जो कोई भी व्यक्ति इस शुभ महीने में धार्मिक गतिविधियों में ज्यादा से ज्यादा शामिल होता है, पूजा-पाठ, दान पुण्य, करता है उसके जीवन से सभी तरह की अशुभ और पापी चीजें दूर होती हैं। इसके अलावा अधिक मास के दौरान जो कोई भी व्यक्ति व्यक्ति व्रत रखता है उसे 100 से अधिक यज्ञ करने के समान लाभ मिलता है।

अधिक मास के यह राशि अनुसार उपाय दिलाएंगे श्रीहरि का आशीर्वाद 

मेष राशि: मेष राशि के जातक इस महीने में रोजाना भगवान विष्णु को केसर मिश्रित दूध दक्षिणावर्ती शंख में डालकर अर्पित करें। 

वृषभ राशि: वृषभ राशि के जातक शनिवार के दिन सुबह स्नान करने के बाद पीपल के पेड़ में जल डालें और तेल का दीपक जलाएं। 

मिथुन राशि: मिथुन राशि के जातक ‘यस्य स्मरण मात्रेन जन्म संसार बन्धनात्‌ । विमुच्यते नमस्तमै विष्णवे प्रभविष्णवे ॥’ इस मंत्र का स्पष्ट उच्चारण पूर्वक जप करें।  

कर्क राशि: कर्क राशि के जातक आश्विन शुक्ल पक्ष की नवमी को 5 कन्याओं को घर बुलाकर भोजन कराएं और इस भोजन में खीर अवश्य शामिल करें। 

सिंह राशि: सिंह राशि के जातक इस दौरान धार्मिक स्थल की यात्रा पर जरूर जाएं और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। 

कन्या राशि: कन्या राशि के जातक ‘नमः समस्त भूतानां आदि भूताय भूभृते। अनेक रुप रुपाय विष्णवे प्रभविष्णवे॥’ मंत्र का स्पष्ट उच्चारण पूर्वक जाप करें। 

तुला राशि: तुला राशि के जातक मां लक्ष्मी की पूजा करें और उनके मंत्रों का जाप करें। 

वृश्चिक राशि: वृश्चिक राशि के जातक मां लक्ष्मी की पूजा करें। एकादशी का व्रत करें और विष्णु मंदिर में दान करें। 

धनु राशि: धनु राशि के जातक विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें और भगवान विष्णु की नियमित रूप से पूजा करें। 

मकर राशि: मकर राशि के जातक गायत्री मंत्र का पाठ करें। 

कुम्भ राशि: कुंभ राशि के जातक तुलसी के पेड़ में रोजाना जल अर्पित करें। 

मीन राशि: मीन राशि के जातक ‘ईशानः प्राणदः प्राणो ज्येष्ठः श्रेष्ठः प्रजापतिः। हिरण्यगर्भो भूगर्भो माधवो मधुसूदनः।।’ मंत्र का स्पष्ट उच्चारण पूर्वक जप करें।

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