हिंदू धर्म में कई व्रत एवं त्योहार मनाए जाते हैं। कुछ व्रत महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना के लिए करती हैं तो कुछ व्रत माएं अपने बच्चों के सुखी जीवन और लंबी उम्र के लिए रखती हैं। संतान की दीर्घायु के लिए किए जाने वाले व्रतों में जीवित्पुत्रिका व्रत का भी बहुत महत्व है। इस व्रत को जितिया व्रत भी कहा जाता है और इस व्रत की खास बात यह है कि इसमें महिलाओं को निर्जल व्रत रखना होता है।
दुनियाभर के विद्वान ज्योतिषियों से करें फ़ोन पर बात और जानें करियर संबंधित सारी जानकारी
जीवित्पुत्रिका व्रत: तिथि एवं मुहूर्त
अश्विन माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत रखने का विधान है। इस बार यह व्रत 06 अक्टूबर, 2023 को शुक्रवार के दिन पड़ रहा है। यह व्रत तीन दिनों तक चलता है इसलिए इसकी शुरुआत 05 अक्टूबर की रात्रि से होगी और इसका पारण 07 अक्टूबर को किया जाएगा। 05 अक्टूबर को नहाय खाय के साथ इस व्रत का आरंभ होगा और 06 अक्टूबर को महिलाएं अपनी संतान की लंबी उम्र की कामना के लिए निर्जल व्रत रखेंगी। इसके अगले दिन यानी 07 अक्टूबर को व्रत का पारण किया जाएगा।
मान्यता है कि, इस व्रत का संबंध महाभारत काल से है और वहीं से इस व्रत को रखने की शुरुआत हुई थी इसलिए मांओं के लिए यह व्रत बहुत महत्व रखता है।
जीवित्पुत्रिका व्रत का समय
जीवित्पुत्रिका व्रत अष्टमी तिथि को रखा जाता है और अष्टमी तिथि 06 अक्टूबर को सुबह 06 बजकर 37 मिनट पर प्रारंभ होकर अगले दिन 07 अक्टूबर, 2023 को प्रात:काल 08 बजकर 11 मिनट पर समाप्त होगी।
जीवित्पुत्रिका व्रत में नहाय खास कैसे करें
छठ की पूजा की तरह ही जीवित्पुत्रिका के व्रत में भी नहाय खाय किया जाता है। व्रत के दिन सुबह के समय महिलाएं गंगा नदी में स्नान करके पूजन करती हैं। अगर आपके घर के पास गंगा नदी या कोई पवित्र नदी या तालाब नहीं है, तो आप अपने घर पर भी स्नान कर सकती हैं। नहाय खाय के दिन महिलाओं को एक बार ही भोजन करना होता है।
बृहत् कुंडली में छिपा है, आपके जीवन का सारा राज, जानें ग्रहों की चाल का पूरा लेखा-जोखा
जीवित्पुत्रिका व्रत की पूजन विधि
व्रत के दिन प्रात: काल स्नान करने के बाद महिलाएं प्रदोष काल में पूजन स्थल को गोबर से लीपकर साफ करती हैं। इसके बाद वहां पर एक छोटा-सा तालाब बनाया जाता है और इस तालाब के नज़दीक ही पाकड़ की डाल खड़ी की जाती है। अब तालाब के जल में कुशा से बनी जीमूतवाहन की मूर्ति स्थापित की जाती है और इसकी धूप-दीप, अक्षत, रोली और फूलों आदि से पूजन किया जाता है। इस व्रत में महिलाएं मिट्टी और गाय के गोबर से चील और सियारिन की मूर्तियां भी बनाती हैं। इन मूर्तियों के माथे पर टीका लगाने के बाद जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनी जाती है।
अब घर बैठे विशेषज्ञ पुरोहित से कराएं इच्छानुसार ऑनलाइन पूजा और पाएं उत्तम परिणाम!
जीवित्पुत्रिका व्रत कहां मनाया जाता है
दक्षिण भारत खासतौर पर बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और मध्य प्रदेश में जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाता है। इस व्रत के पारण का समय 07 अक्टूबर को सुबह 10 बजकर 21 मिनट है। हर मां अपनी संतान या पुत्र के उत्तम स्वास्थ्य और लंबी उम्र के लिए इस व्रत को रखती है।
पाएं अपनी कुंडली आधारित सटीक शनि रिपोर्ट
जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा
जीवित्पुत्रिका व्रत को लेकर कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के दौरान अश्वत्थामा अपने पिता गुरु द्रोण और मित्र दुर्योधन की मृत्यु से काफी निराश हो गया था और वह पांडवों से बदला लेना चाहता था। प्रतिशोध लेने के लिए वह पांडवों के शिविर में गया जहां पर 5 लोग सो रहे थे। अश्वत्थामा को लगा कि वह पांडव हैं और उसने पांचों का संहार कर दिया। मृत्यु को प्राप्त हुए वे पांच शख्स द्रापैदी के पांच पुत्र थे। इस घटना के बाद अर्जुन ने अश्वत्थामा को बंदी बना लिया और उससे उसकी दिव्य मणि भी छीन ली। इस बात से गुस्से में आकर अश्वत्थामा ने अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र का उपयोग किया।
तब उत्तरा के पुत्र को जीवित करने और पांडवों के वंश को आगे बढ़ाने के लिए श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्यों का फल देकर उस शिशु को जीवित किया था। गर्भ में पल रहे इस पुत्र को जीवित्पुत्रिका का नाम दिया गया और तभी से संतान की लंबी उम्र और स्वास्थ्य के लिए माएं यह व्रत रखने लगीं। इस व्रत में जीमूतवाहन भगवान की प्रदोष काल में पूजा करने का विधान है।
जीवित्पुत्रिका व्रत के नियम
अगर आप जीवित्पुत्रिका व्रत रख रही हैं, तो इसे लेकर आपको कुछ नियमों का भी पालन करना होगा। नीचे जीवित्पुत्रिका व्रत से जुड़े नियम बताए गए हैं।
- इस व्रत के लिए महिलाओं को सूर्योदय से पहले ही स्नान करना होता है और स्नान के बाद पूजन आरंभ किया जाता है।
- पूजा के बाद महिलाएं भोजन करती हैं और फिर उसके पश्चात पूरा दिन निर्जल व्रत रखती हैं।
- अब दूसरे दिन प्रात: काल स्नान करने के बाद महिलाएं पूजा-पाठ करती हैं और व्रत रखती हैं।
- व्रत के तीसरे दिन पारण किया जाता है।
संतान प्राप्ति के उपाय
- अगर आपको संतान सुख नहीं मिल पा रहा है, तो आप अपनी कुंडली में बृहस्पति को मज़बूत करने का प्रयास करें। इसके लिए आप बृहस्पति देव की पूजा करें और गुरुवार के दिन गुड़ का दान करें।
- संतान प्राप्ति के लिए श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा को भी बहुत शुभ माना जाता है। आप अपने घर के पूजन स्थल में बाल गोपाल की स्थापना करें और रोज़ उनकी पूजा करें।
- अपने बेडरूम में हंसते हुए बच्चे की तस्वीरें लगाएं। इस वास्तु उपाय को करने से आपके संतान प्राप्ति की संभावना बढ़ सकती है।
- इसके अलावा कमरे में अनार की तस्वीर लगाने से भी प्रजनन क्षमता बढ़ती है।
संतान के लिए कुछ ज्योतिषीय उपाय
- वैदिक ज्योतिष के अनुसार रोज़ गायत्री मंत्र का जाप करने सूर्य मज़बूत होता है जिससे बच्चे को करियर और जीवन में सफलता प्राप्त होती है। आप अपने बच्चे को रोज़ गायत्री मंत्र का जाप करने के लिए कहें।
- अगर आपका बच्चा चंचल स्वभाव का है, तो मां द्वारा बच्चे को चांदी का कड़ा या चूड़ी उपहार में देने से चंद्रमा मज़बूत होता है। इससे बच्चा अनुशासन में रहना सीखता है।
सभी ज्योतिषीय समाधानों के लिए क्लिक करें: ऑनलाइन शॉपिंग स्टोर
हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा यह लेख ज़रूर पसंद आया होगा। अगर ऐसा है तो आप इसे अपने अन्य शुभचिंतकों के साथ ज़रूर साझा करें। धन्यवाद!