गरुड़ पुराण सनातन धर्म के महत्वपूर्ण पुराणों में से एक है। यह पुराण वैष्णव संप्रदाय से संबंधित है। सनातन धर्म में इस पुराण को मृत्यु के बाद श्रवण करने का प्रावधान है। मान्यता है कि इसके श्रवण से मृत्यु के बाद सद्गति प्राप्त होती है। इसमें कुल 19 हजार श्लोक बताए जाते हैं लेकिन फिलहाल यानी कि वर्तमान समय में उपलब्ध पाण्डुलिपियों में इसके 08 हजार श्लोक ही मौजूद हैं।
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गरुड़ पुराण में मनुष्य के कर्म के अनुसार उसे कैसे परालौकिक फल मिलते हैं इस बात की बेहद विस्तार में चर्चा है। यहाँ तक की गरुड़ पुराण में मनुष्य का जीवन कैसे खुशहाल हो इसकी नीतीय भी बताई गयी हैं। इसी क्रम में हमें गरुड़ पुराण में एक श्लोक मिलता है जो उन सात बेहद पवित्र चीजों के बारे में जानकारी देता है जिसे देख भर लेने से ही मनुष्य को पुण्य की प्राप्ति होती है। आज इस लेख में हम आपको गरुड़ पुराण के उसी श्लोक और उन सात चीजों के बारे में बताने वाले हैं।
गरुड़ पुराण में मौजूद श्लोक :
गोमूत्रं गोमयं दुग्धं गोधूलिं गोष्ठगोष्पदम्।
पक्कसस्यान्वितं क्षेत्रं द्ष्टा पुण्यं लभेद् ध्रुवम्।।
श्लोक का अर्थ:
गोमूत्र, गोबर, गोदुग्ध, गोधूलि, गौशाला, गोखुर और पकी हुई फसल से भरपूर खेत देख लेने मात्र से ही पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
आइये अब विस्तार से इन सात चीजों के बारे में आपको जानकारी देते हैं।
गोमूत्र
सनातन धर्म में गाय को दैवीय पशु माना गया है। गाय को सनातन धर्म के अनुयायी माता का दर्जा देते हैं। मान्यता है कि गौ के पूरे शरीर में समस्त देवी-देवताओं का वास है। ठीक उसी तरह गोमूत्र का भी सनातन धर्म में काफी महत्व है। गोमूत्र का इस्तेमाल कई आयुर्वेदिक औषधियों को बनाने में भी किया जाता है। यही वजह है कि गरुड़ पुराण में गोमूत्र को ऐसी वस्तु बताई गयी है जिसे देखने भर से पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
गोबर
गोमूत्र की ही तरह गोबर को भी सनातन धर्म में बेहद पवित्र माना जाता है। पूजा के स्थान को गोबर से पवित्र करने की परंपरा रही है। आज भी गांवों में लोग घर का आँगन और घर की दीवारें गाय के गोबर से पवित्र करते हैं। कई पूजन कार्यक्रमों में गौरी और गणेश की प्रतिमा गाय के गोबर से भी निर्मित की जाती है। गरुड़ पुराण के अनुसार अगर आप गोबर के दर्शन भर कर लें तो आपको शुभ फल मिलता है।
गोदुग्ध
गोदुग्ध यानी गाय का दूध। गाय के दूध को सनातन धर्म में अमृत समान माना गया है। गाय के दूध के वैज्ञानिक गुण तो आज के दौर में बच्चे-बच्चे को पढ़ाये जाते हैं। पूजन में उपयोग होने वाले पंचामृत में अधिकांश चीजें गोदुग्ध से ही निर्मित वस्तुएँ हैं। आयुर्वेदिक इलाजों में भी गाय के दूध का बड़ा महत्व है।
गोधूलि
गोधूलि यानी कि गाय के चरणों की धूल। दिन के चार पहरों में भी एक जिक्र गोधूलि बेला का होता है। गोधूलि बेला का नाम असल में गाय के चरणों की धूल पर ही रखा गया है। पुराने जमाने में शाम के उस वक़्त को गोधूलि बेला कहते थे जब चरवाहे गायों को मैदानों में चराने के बाद घर लेकर जाते थे। तब गायों के चलने की वजह से पूरे वातावरण में गाय के चरणों की धूल हो जाया करती थी। सनातन धर्म के कई अनुयायी गाय के चरणों की धूल से माथे पर तिलक करते हैं। गरुड़ पुरान के अनुसार गाय के चरणों की धूल के दर्शन भर मात्र से आपको पुण्य फल की प्राप्ति हो जाती है।
गौशाला
गौशाला उस स्थान को कहते हैं जहां गायें रहती हैं। गौशाला में अक्सर सनातन धर्म के अनुयायी गायों को चारा खिलाने हेतु जाते हैं। गौशाला को देव स्थान माना जाता है और इसका महत्व किसी मंदिर से कम नहीं है। गरुड़ पुराण के अनुसार आपने अगर गौशाला के दर्शन भर भी कर लिए तो आप पुण्य के भागीदार बन जाते हैं।
गोखुर
गोखुर यानी कि गाय के पाँव। आज भी जिस तरह से सनातन धर्म में बच्चे अपने बड़े-बुजुर्गों का पैर छू कर आशीर्वाद लेते हैं। ठीक वैसे ही गौ माता के पैर भी अत्यंत पूजनीय हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार गाय के खुरों के दर्शन से ही आपको शुभ फल और पुण्य की प्राप्ति हो जाती है।
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पके हुए फसल से भरा खेत
गरुड़ पुराण के अनुसार पके हुए फसल से भरा खेत देखने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है। जाहीर है कि पके हुए फसल से भरा खेत एक मनुष्य के मेहनत और दैवीय कृपा का सूचक है। सनातन धर्म में कई ऐसे पर्व भी हैं जो खेत में फसल पक जाने की खुशी में मनाए जाते हैं। ऐसे खेत न सिर्फ समृद्धि के सूचक हैं बल्कि पुनि और शुभ फल के दाता भी माने गए हैं।
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