विजया एकादशी का व्रत महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजन विधि, साथ ही जानें इस दिन से जुड़ी पौराणिक कथा

फाल्गुन कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी के बारे में प्रचलित मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि, इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति को हर काम में विजय, सफलता की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि, लंका पर विजय करने से पूर्व भगवान राम ने समुद्र के किनारे यह पूजा की थी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वकदाल्भ्य ऋषि ने भगवान श्रीराम से उनके सेनापतियों के साथ विजया एकादशी व्रत को करने की सलाह दी थी। 

ऐसे में कहा जाता है कि, जो कोई भी इंसान विजया एकादशी के दिन सच्ची श्रद्धा भक्ति के साथ इस दिन का पूजा व्रत करता है उसे हर काम में सफलता प्राप्त होती है। ज्ञात रहे इस दिन के व्रत में इस दिन से संबंधित कथा को अवश्य पढ़ना चाहिए। 

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कब है विजया एकादशी और क्या है इसका शुभ मुहूर्त? 

इस वर्ष विजया एकादशी का व्रत 9 मार्च- मंगलवार के दिन किया जाएगा।

विजया एकादशी शुभ मुहूर्त: 

विजया एकादशी पारणा मुहूर्त :06:37:14 से 08:59:03 तक 10, मार्च को

अवधि : 2 घंटे 21 मिनट

यह समय दिल्ली के लिए मान्य है।
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विजया एकादशी का महत्व 

पद्म पुराण के अनुसार जो कोई भी व्यक्ति विजया एकादशी का व्रत करता है उसे उसके जीवन में धन धान्य का लाभ मिलता है और साथ ही मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस व्रत के बारे में कहा जाता है कि, जो कोई भी व्यक्ति इस व्रत को करता है उसे किसी अन्य कठिन तपस्या से मिलने वाला फल प्राप्त होता है। इस व्रत को करने वाले इंसान को बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। इसके अलावा क्योंकि लंका पर विजय प्राप्त करने से पूर्व प्रभु श्री राम ने भी इस व्रत को किया था ऐसे में इस दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ भगवान राम की भी पूजा का विधान बताया गया है। 

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विजया एकादशी पूजन विधि 

  • विजया एकादशी का व्रत करने वाले इंसान को ब्रह्म मुहूर्त में स्नान आदि से निवृत होकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए। 
  • इसके बाद घट-स्थापना करें। 
  • किसी साफ़ चौकी पर भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। 
  • इसके बाद तस्वीर पर गंगा जल के साथ चावल और रोली छिड़कें और भगवान को भोग लगाएं। 
  • इस दिन की पूजा में भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी के समक्ष भी घी के दीपक जलाएं और उनकी आरती उतारें। 
  • इसके बाद विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें। 
  • विजया एकादशी का व्रत रखने वाले इंसान को पूरे दिन मन ही मन में भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए और शाम को आरती करने के बाद ही फलाहार ग्रहण करना चाहिए। 
  • अगले दिन यानी द्वादशी के दिन सुबह भगवान श्री कृष्ण और राम की पूजा करें। 
  • इसके बाद ब्राह्मण या किसी अन्य ज़रूरतमंद व्यक्ति को अपने यथा सामर्थ्य अनुसार भोजन कराएं और दक्षिणा दें और इसके बाद ही स्वयं व्रत का पारण करें। 

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विजया एकादशी व्रत की कथा 

एकादशी का महत्व सुनने में अर्जुन को बेहद खुशी की अनुभूति हो रही थी। ऐसे में उन्होंने श्री कृष्ण भगवान से कहा कि, हे पुंडरीकाक्ष! फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है और इस व्रत का क्या विधान है? कृपया करके मुझे विस्तार पूर्वक बताइए। तब जवाब में श्री कृष्ण ने कहा, “हे अर्जुन! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी कहते हैं। इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति को हर एक काम में विजय की प्राप्ति होती है। विजया एकादशी के महत्व को पढ़ने या श्रवण करने से सभी पापों का अंत हो जाता है। अब इस व्रत से संबंधित पौराणिक कथा कुछ इस प्रकार है। 

एक बार देव ऋषि नारद ने ब्रह्मा जी से कहा, ‘हे ब्रह्मा जी! आप मुझे फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत तथा उसकी विधि बताने की कृपा करें। नारद जी की बात सुनकर ब्रह्मा जी ने कहा, ‘हे पुत्र! विजया एकादशी का व्रत किसी भी प्रकार के पाप को नष्ट करने वाला होता है। इस एकादशी का विधान मैंने आज तक किसी से नहीं कहा लेकिन, तुम्हें बता रहा हूं। जो कोई भी व्यक्ति विजया एकादशी का व्रत उपवास करता है उस मनुष्य को हर काम में विजय प्राप्त होती है। अब श्रद्धापूर्वक इस व्रत की कथा का श्रवण करो। 

प्रभु श्री राम को जब 14 वर्ष का वनवास मिला तब वे माता सीता और अपने भाई लक्ष्मण के साथ पंचवटी में निवास करने लगे थे। उसी समय महा-पापी रावण ने माता सीता का छल पूर्वक हरण कर लिया था। जब इस बात की भनक प्रभु श्री राम और लक्ष्मण जी को लगी तब वे बेहद दुखी हुए और वन-वन भटक कर सीताजी को ढूंढने लगे। जंगल में घूमते हुए जब वे मरणासन्न जटायु के पास पहुंचे तब जटायु ने उन्हें माता सीता के हरण का पूरा वृतांत कह सुनाया और भगवान श्री राम की गोद में जटायु ने अपने प्राण त्याग कर स्वर्ग की तरफ प्रस्थान किया। इसके बाद कुछ आगे चलने पर श्री राम और लक्ष्मण जी की सुग्रीव के साथ मित्रता हो गयी और वहां उन्होंने बाली का वध किया। 

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इसके बाद प्रभु श्री राम के परम भक्त हनुमान जी ने लंका में जाकर माता सीता का पता लगाया और माता सीता से प्रभु श्री राम और महाराज सुग्रीव की मित्रता का वर्णन किया। लंका से लौटने के बाद हनुमान जी ने अशोक वाटिका का सारा वृतांत प्रभु श्री राम को कह सुनाया। सब हाल जानने सुनने के बाद श्री रामचंद्र ने सुग्रीव की सहमति से वानर सेना और भालू की सेना के साथ लंका की तरफ प्रस्थान किया। समुद्र किनारे पहुंचने पर श्री राम जी ने विशाल समुद्र को घड़ियाल से भरा देख लक्ष्मण जी से कहा, ‘हे लक्ष्मण! अनेक मगरमच्छों और जीवों से भरी इस विशाल समुद्र को हम कैसे पार करेंगे? 

प्रभु श्री राम की बात सुनकर लक्ष्मण जी ने कहा कि, ‘भ्राता श्री! आप पुरुषोत्तम आदि पुरुष हैं। आपके लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं है। यहां से आधा योजन दूर कुमारी द्वीप में वकदाल्भ्य मुनि का आश्रम है वे अनेक नाम के ब्रह्माओं के ज्ञाता हैं। ऐसे में आप की विजय का उपाय उनके पास अवश्य मौजूद होगा। लक्ष्मण जी की ऐसी बात सुनकर प्रभु श्री राम वकदाल्भ्य ऋषि के आश्रम में गए और उन्हें प्रणाम कर बैठ गए। तब महर्षि वकदाल्भ्य ने पूछा, ‘हे श्री राम! आप मेरी कुटिया में किस प्रयोजन से आए हैं? तब प्रभु श्री राम ने वकदाल्भ्य ऋषि से कहा, ‘हे ऋषिवर! मैं यहां अपनी पूरी सेना के साथ आया हूं और मैं राक्षसराज रावण को जीतने की इच्छा से लंका जा रहा हूं लेकिन, मुझे यह समुद्र पार करने का कोई उपाय समझ नहीं आ रहा था। आप मुझे कोई हल बताएं। 

तब महर्षि वकदाल्भ्य ने कहा, ‘हे राम! मैं आपको एक ऐसे अति उत्तम व्रत के बारे में बताता हूं जिसे करने से आपको आपके काम में विजय की प्राप्ति अवश्य होगी। तब प्रभु श्री राम ने पूछा यह कौन सा व्रत है जिसे करने से समय क्षेत्रों में विजय की प्राप्ति होती है? महर्षि वकदाल्भ्य ने जवाब देते हुए कहा, हे श्रीराम फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष विजया एकादशी का उपवास करने से आप अवश्य ही समुद्र पार कर लेंगे और युद्ध में भी आपको विजय की प्राप्ति होगी। इसके बाद प्रभु श्री राम ने ऋषि से इस व्रत की विधि पूछी। ऋषि ने बताया कि, उपवास के लिए दशमी के दिन सोना, चांदी, तांबे या मिट्टी का कलश में जल भरकर उसके ऊपर पंच पल्लव रखकर उसे वेदिका पर स्थापित कर दें। उसके नीचे सात अनाज और ऊपर जौ रखें और इसके ऊपर भगवान विष्णु की स्वर्ण प्रतिमा स्थापित करें। 

एकादशी के दिन स्नान आदि करके धूप, दीप, नैवेद्य से भगवान की पूजा करें। सारा दिन भक्ती के साथ उसके समक्ष रहे और रात्रि में जागरण करें। इसके बाद के अगले यानी द्वादशी के दिन किसी नदी या तालाब के किनारे स्नानादि से निवृत्त होकर उसको किसी ब्राह्मण को दान दे दें। ऐसे में यदि आप अपने साथियों के साथ इस व्रत को करते हैं तो आपको अपने काम में सफलता अवश्य प्राप्त होगी। तब मुनि का मुनि द्वारा बताए गए इस व्रत के बारे में सुनने के बाद प्रभु श्री राम ने विजया एकादशी का व्रत किया जिसके प्रभाव से रावण को उसके ऊपर उन्हें विजय की प्राप्ति हुई। ऐसे में कहा जाता है कि जो कोई भी मनुष्य इस व्रत का विधि विधान से पालन करता है उसे दोनों लोग में विजय की प्राप्ति होती है साथ ही जो कोई भी व्यक्ति इस व्रत का मन करता है या बढ़ता है और दूसरों को सुनाता है उसे बाजपेई के समान फल की प्राप्ति होती है

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