यूं तो हमारे देश को पर्वों और त्योहारों का देश कहा जाता है लेकिन अगर दक्षिण भारत की बात करें तो उसमें भी कई व्रत एवं पर्व मनाए जाने का विधान है। हिंदू धर्म में कार्तिक मास का हमेशा से ही अपना एक अलग महत्व रहा है। तमिलनाडु राज्य में भी कार्तिक महीना बेहद महत्वपूर्ण होता है।
छः दिवसीय पर्व ‘सूरसम्हारम’ का हुआ शुभारंभ
इस माह की प्रतिपदा तिथि से सृष्टि तिथि यानी छठ तक छः दिवसीय पर्व मनाए जाने का विधान है जिस दौरान इस पर्व के छठे दिन उपवास रखकर पर्व का समापन किया जाता है। दक्षिण भारत में इस पर्व को सूरसम्हारम पर्व कहा जाता है। मुख्य रूप से यह पर्व माता पार्वती और भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय जिसे दक्षिण भारत में भगवान मुरुगन कहा जाता है उन्हें समर्पित होता है।
भगवान मुरुगन को समर्पित होता है कार्तिक माह
वर्ष 2019 में ये 6 दिवसीय पर्व 3 नवंबर यानी आज से शुरू होगा। अगर उत्तर भारत की बात करें तो उत्तर भारत के अन्य राज्यों में इस पर्व को षष्ठी तिथि के दौरान मनाया जाता है जिसे स्कंद षष्ठी व्रत कहा गया है। मान्यता अनुसार कार्तिक महीने का नाम भगवान कार्तिकेय के नाम पर ही रखा गया है इसलिए इस महीने की षष्ठी तिथि सभी तिथियों में बेहद महत्वपूर्ण मानी गई है। इस पर्व के दौरान देशभर के भगवान मुरुगन के मंदिरों में भगवान कार्तिकेय का विशेष अभिषेक और श्रृंगार किया जाता है। विशेषतौर पर तिरुचेंदुर के लोकप्रिय मुरुगन मंदिर में इस पर्व पर ख़ास उत्सव मनाते हुए भव्य आयोजन किया जाता है।
स्कन्द षष्ठी पर्व
जैसा हमने पहले ही बताया कि दक्षिण भारत में सुरसम्हारम पर्व को स्कन्द षष्ठी भी कहा जाता है और यह पर्व भगवान मुरुगन को पूरी तरह समर्पित होता है। दक्षिण भारत के लोग इस पर्व को अपने अपने इष्ट देवता की याद में पूरे रीति-रिवाज एवं विधि पूर्वक तरीके से मनाते हैं जिसे स्कंद षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। पंचांग अनुसार स्कन्द षष्ठी का दिन पूरी तरह चंद्रमा के आधार पर ही तय किया जाता है जो अमूमन कार्तिक माह के छठवें दिन पड़ता है। इस वर्ष यह व्रत 3 नवंबर से शुरू होगा जो अगले 6 दिनों तक रखा जाएगा। सूरसम्हारम के अगले दिन थिरुकल्याणम मनाया जाता है।
तमिल हिंदुओं के बीच बहुत प्रचलित है सूरसम्हारम पर्व
पंचांग अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से छठ तक चलने वाले इस 6 दिवसीय उत्सव का शुभारंभ आज 3 नवंबर से किया जाएगा जिसका अंतिम व सर्वाधिक दिन बेहद महत्वपूर्ण दिवस होता है और उसी दिन को सूरसम्हारम पर्व कहा जाता है। इस दौरान पञ्चमी और षष्ठी तिथि के एकसाथ आने पर यानी जब पञ्चमी तिथि के दिन सूर्यास्त से पहले षष्ठी तिथि शुरू हो जाए तो उसी दिन सूरसम्हारम व्रत रखा जाता है। इसलिये अधिकांश मन्दिर पञ्चमी तिथि को कन्द षष्ठी के रूप में भी मनाते हैं।
बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है सूरसम्हारम पर्व
पौराणिक मान्यताओं अनुसार सूरसम्हारम के दिन ही भगवान मुरुगन ने दानव सुरपद्मन को युद्ध में पराजित कर उसे मोक्ष दिलाया था। इसलिये भी इस पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत के संदेश के रूप में हर साल मनाए जाने का विधान है।
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