शुक्र बनाएंगे केंद्र त्रिकोण राजयोग, इन राशियों की चमकेगी किस्मत, प्रमोशन के साथ वेतन वृद्धि के योग
वैदिक ज्योतिष के अनुसार ग्रह समय-समय पर राशि परिवर्तन करके अपनी उच्च या स्वराशि में गोचर करते हैं और उनके इस गोचर के दौरान शुभ योग एवं राजयोग का निर्माण होता है। ग्रहों के इन शुभ योगों के निर्माण से मानव जीवन पर गहरा प्रभाव देखने को मिलता है। 18 सितंबर को दोपहर 01 बजकर 42 मिनट पर शुक्र अपनी स्वराशि तुला में गोचर करने जा रहे हैं।
शुक्र के तुला राशि में आने से केंद्र त्रिकोण राजयोग और मालव्य योग बन रहा है। शुक्र के स्वराशि यानी वृषभ और तुला में गोचर करने पर मालव्य योग बनता है। केंद्र त्रिकोण राजयोग बनने से सभी राशियों को फायदा होगा लेकिन तीन राशियां ऐसी हैं जिनकी दुनिया की बदल जाएगी। इन लोगों को खूब धन कमाने का मौका मिलेगा और तरक्की इनके कदम चूमेगी।
तो चलिए आगे बढ़ते हैं और जानते हैं कि शुक्र के तुला राशि में प्रवेश करने पर बन रहे केंद्र त्रिकोण राजयोग से किन तीन राशियों का भाग्योदय होने वाला है।
इस राशि के लग्न भाव में ही शुक्र का गोचर होगा इसलिए मालव्य योग और केंद्र त्रिकोण राजयोग आपके लिए बहुत फलदायी सिद्ध होगा। आपने जो योजनाएं बना रखी हैं, उसमें आपको सफलता मिलेगी। आपके व्यक्तित्व में निखार देखने को मिलेगा। करियर में भी आपको तरक्की मिलने के संकेत हैं।
नौकरीपेशा जातकों को अपने कार्यक्षेत्र में शानदार अवसर प्राप्त होंगे। अटका हुआ पैसा अचानक से वापस मिल सकता है। इससे आपकी आर्थिक स्थिति में सुधार आएगा। वैवाहिक जीवन के लिए भी अनुकूल समय है। पति-पत्नी के बीच प्यार बढ़ेगा और सुख-शांति बनी रहेगी। आपके जीवनसाथी को तरक्की मिलने के आसार हैं। वहीं सिंगल जातकों को अपने सपनों का साथी मिल सकता है।
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मकर राशि
शुक्र ग्रह मकर राशि के करियर और व्यापार के भाव में संचरण कर रहे हैं इसलिए केंद्र त्रिकोण राजयोग और मालव्य योग इस राशि के जातकों के लिए अच्छा रहने वाला है। आपकी आमदनी के स्रोतों में वृद्धि देखने को मिलेगी। इससे आपकी आर्थिक स्थिति में सुधार आएगा। नौकरीपेशा जातकों को तरक्की मिलने की प्रबल संभावना है।
आप पैसों की बचत कर पाने में भी सफल होंगे। विवाहित जातकों का जीवन खुशहाल रहेगा। पति-पत्नी के बीच आपसी तालमेल अच्छा रहने वाला है। व्यापारियों को मोटा मुनाफा कमाने का मौका मिलेगा और आप अपने क्षेत्र में अग्रणी रहेंगे। बेरोज़गार लोगों का मनचाही नौकरी मिल सकती है। नौकरी करने वाले लोगों का मनचाही जगह पर ट्रांसफर हो सकता है।
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कुंभ राशि के नौवें भाव में शुक्र ग्रह संचरण करने जा रहे हैं। यह समय आपके लिए बहुत ही शुभ रहने वाला है। आपको अपने जीवन के हर क्षेत्र में अपने भाग्य का साथ मिलेगा। नौकरीपेशा जातकों के लिए प्रमोशन और तरक्की के योग बन रहे हैं। व्यापारियों को मनचाही सफलता प्राप्त होगी। आपको अचानक से कहीं से अटका हुआ पैसा वापस मिल सकता है। इससे आप अपनी कई ज़रूरतों को पूरा कर पाएंगे।
आपकी आमदनी में वृद्धि देखने को मिलेगी जिससे आप अपनी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम हो पाएंगे। आपके भौतिक सुखों में वृद्धि देखने को मिलेगी। करियर में अचानक से सफलता मिलने के संकेत हैं। आपके वेतन में भी बढ़ोतरी हो सकती है। आपको देश या विदेश की यात्रा पर जाने का सुख मिल सकता है। छात्रों को प्रतियोगी परीक्षा में सफलता मिलने के योग हैं।
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पितृ दोष से छुटकारा पाने के लिए भाद्रपद पूर्णिमा पर जरूर करें ये उपाय, सुख-समृद्धि की होगी प्राप्ति!
सनातन धर्म में भाद्रपद माह का विशेष महत्व है। इस माह को भादो के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू कैलेंडर का छठा महीना है, जो आमतौर पर अगस्त-सितंबर में पड़ता है। यह विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों और त्योहारों के लिए महत्वपूर्ण है। इस महीने में पितृ पक्ष की शुरुआत भी होती है। इस माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को भाद्रपद पूर्णिमा व्रत रखा जाता है और इस दिन स्नान करके दान पुण्य करते हैं। इसके अलावा, व्रत रखकर रात के समय में चंद्र देव की पूजा करके अर्घ्य देते हैं। माना जाता है कि ऐसा करने से कुंडली में चंद्रमा की स्थिति मजबूत होती है और चंद्र दोष से भी छुटकारा पाया जा सकता है। इस दिन लोग सत्यनारायण भगवान की भी पूजा करते हैं और कथा का आयोजन करते हैं। इससे घर में सुख और समृद्धि आती है।
तो चलिए आगे बढ़ते हैं और जानते हैं भाद्रपद पूर्णिमा का व्रत इस साल कब रखा जाएगा, भाद्रपद पूर्णिमा का स्नान और दान किस दिन होगा? भाद्रपद पूर्णिमा की सही तिथि क्या है? आदि के बारे में इस ब्लॉग में चर्चा करेंगे।
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को भाद्रपद पूर्णिमा व्रत रखा जाता है और यह तिथि इस साल 18 सितंबर 2024 बुधवार के दिन पड़ रही है।
पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 17 सितंबर 2024 की रात 11 बजकर 46 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 18 सितंबर 2024 की रात 8 बजकर 06 मिनट तक।
शुभ मुहूर्त:
चंद्रोदय: 18 सितंबर 2024, शाम 7:08 बजे
पूर्णिमा व्रत पारण: 19 सितंबर 2024 की सुबह 6 बजकर 12 मिनट से 8 बजर 06 मिनट तक।
भाद्रपद पूर्णिमा का महत्व
भाद्रपद पूर्णिमा व्रत का सनातन धर्म में बहुत अधिक धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि पर किए जाने वाले इस व्रत को विशेष रूप से पितरों की शांति और उनके उद्धार के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। इसे पितृपक्ष की शुरुआत का संकेत भी माना जाता है। भाद्रपद पूर्णिमा के दिन व्रत करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे परिवार में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है। इस दिन पितरों को जल चढ़ाकर उनका तर्पण किया जाता है, जिसे पितृ तर्पण कहा जाता है। हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है कि इस दिन तर्पण के माध्यम से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वे संतुष्ट होकर अपने वंशजों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं। इस व्रत को करने से व्यक्ति सभी पापों से मुक्ति पाता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इसके अलावा, भाद्रपद पूर्णिमा को चंद्रमा की विशेष पूजा की जाती है। पूर्णिमा का चंद्रमा शांति, समृद्धि और स्थिरता का प्रतीक माना जाता है। इस दिन चंद्रमा को अर्घ्य देकर, उसकी पूजा करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है और व्यक्ति की सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। भाद्रपद पूर्णिमा का व्रत न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह व्यक्ति के जीवन में सामाजिक और आध्यात्मिक संतुलन बनाए रखने में भी सहायक होता है। व्रत के माध्यम से व्यक्ति न केवल अपने पितरों को श्रद्धांजलि देता है, बल्कि अपने जीवन में संयम, धैर्य, और पुण्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी मिलती है।
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भाद्रपद पूर्णिमा व्रत में इस विधि से करें पूजा
भाद्रपद पूर्णिमा की पूजा विधि बहुत अधिक सरल और महत्वपूर्ण है, जिसे पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से करना चाहिए। इस दिन की पूजा विशेष रूप से पितरों की शांति, भगवान विष्णु, और चंद्रदेव को समर्पित होती है। तो आइए जानते हैं पूजा विधि के बारे में…
भाद्रपद पूर्णिमा के दिन पूजा के लिए सबसे पहले प्रातःकाल स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
इसके बाद घर के पूजा स्थल सफाई करें और उसे अच्छे से सजाएं।
इस दिन भगवान विष्णु और चंद्रदेव की पूजा के लिए पुष्प, धूप, दीप, फल, मिठाई, और जल का प्रबंध करें। तर्पण के लिए तिल, जल, दूध, और कुशा घास लेकर एकत्र करें।
पूजा करने के लिए सबसे पहले भगवान विष्णु की पूजा से शुरुआत करें। उनके चरणों में पुष्प, धूप, दीप, और नैवेद्य अर्पित करें। इसके बाद विष्णु सहस्रनाम या विष्णु स्तोत्र का पाठ करें।
इस दिन पितरों का निमित्त तर्पण अवश्य करें। इसके लिए एक साफ बर्तन में जल, दूध, और तिल मिलाएं और कुशा घास के माध्यम से पितरों को जल अर्पित करें। इस दौरान पितरों का ध्यान करते हुए तर्पण मंत्र का उच्चारण करें। ऐसा करने से पितरों की आत्मा की शांति प्राप्त होती है।
शाम के समय चंद्रदेव की पूजा करें। एक साफ थाली में पुष्प, धूप, दीप, और मिठाई रखें। चंद्रमा को अर्घ्य देने के लिए एक बर्तन में शुद्ध जल लें और उसमें चावल और फूल डालें। इस जल को चंद्रमा की ओर मुख करके अर्घ्य दें। चंद्रदेव से मानसिक शांति और जीवन में स्थिरता की कामना करें।
इस दिन व्रत रखें और केवल फलाहार करें। व्रत के बाद, ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, और धन का दान करें।
अंत में विष्णु और चंद्रदेव की आरती करें और प्रसाद का वितरण करें। प्रसाद ग्रहण करने के बाद मुहूर्त पर व्रत पारण करें।
भाद्रपद पूर्णिमा के दिन कई मंत्रों का जाप किया जाता है, जिनमें से कुछ मंत्र इस प्रकार है:
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः
ॐ यं श्रीं लक्ष्मीं नमः
ॐ चन्द्राय नमः
ॐ पूर्णमादस्याय नमः
इन मंत्रों के अलावा, आप अपने इष्ट देवता के मंत्रों का भी जाप कर सकते हैं।
भाद्रपद पूर्णिमा व्रत में जरूर पढ़ें ये कथा
भाद्रपद पूर्णिमा व्रत की कथा हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व रखती है। पौराणिक कथा के अनुसार, एक ब्राह्मण और उसकी पत्नी अपने पुत्र के साथ रहते थे। वे धार्मिक और पुण्य कर्मों में विश्वास रखते थे, परंतु उनके घर में हमेशा दरिद्रता का वास रहता था। ब्राह्मण के पुत्र ने जब युवा अवस्था में कदम रखा, तो उसने अपने माता-पिता से पूछा कि उनके घर में दरिद्रता का कारण क्या है।
ब्राह्मण ने बताया कि यह पितरों का श्राप है। उन्होंने बताया कि उनके पूर्वजों ने अपने जीवन में कुछ ऐसे कार्य किए थे, जिससे पितृ दोष उत्पन्न हुआ और उनका आशीर्वाद प्राप्त नहीं हो रहा। पुत्र ने पूछा कि इस दोष से मुक्ति का उपाय क्या है। ब्राह्मण ने कहा कि, भाद्रपद पूर्णिमा के दिन पितरों का तर्पण और पूजा करनी चाहिए। इस व्रत को श्रद्धा और भक्ति के साथ करने से पितृ दोष समाप्त हो जाता है और पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। जब पितृ प्रसन्न होते हैं, तो वे अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है।
पुत्र ने अपने माता-पिता के कहने पर भाद्रपद पूर्णिमा का व्रत रखा। उसने पूर्ण श्रद्धा और पूरे विधि-विधान से पितरों का तर्पण किया और उनके निमित्त दान-पुण्य भी किया। व्रत के प्रभाव से पितृ प्रसन्न हुए और उन्होंने अपने वंशजों को आशीर्वाद दिया। इसके बाद, ब्राह्मण के घर में दरिद्रता समाप्त हो गई और वहां सुख-शांति और समृद्धि का वास हो गया। इसलिए भाद्रपद पूर्णिमा के व्रत का महत्व तब से बहुत अधिक बढ़ गया। इस व्रत को रखने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस व्रत को श्रद्धा और भक्ति से करने पर जीवन के सभी कष्टों का निवारण होता है और घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
भाद्रपद पूर्णिमा के दिन कुछ विशेष उपाय करने से जीवन में सुख-समृद्धि, शांति और पितरों की कृपा प्राप्त होती है। तो आइए जानते हैं इन उपायों के बारे में…
पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए
भाद्रपद पूर्णिमा के दिन पितरों के लिए तर्पण करना अत्यंत शुभ माना जाता है। एक साफ बर्तन में जल, तिल, और कुशा मिलाकर पितरों को अर्पित करें। पितरों का ध्यान करते हुए उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने की प्रार्थना करें। इस उपाय को करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है और पितरों की आत्मा को शांति प्रदान प्राप्त होती है।
सुख-समृद्धि के लिए
इस दिन दान करने का विशेष महत्व है। किसी ब्राह्मण या जरूरतमंद व्यक्ति को अन्न, वस्त्र, और धन का दान करें। इसके अलावा, गोदान और भूमि का दान भी अत्यधिक फलदायी माना जाता है। दान करने से पितरों की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है।
धन में वृद्धि के लिए
भगवान विष्णु की पूजा करना भी इस दिन अत्यंत लाभकारी होता है। विष्णु सहस्रनाम या विष्णु स्तोत्र का पाठ करें और भगवान विष्णु को पुष्प, धूप, और नैवेद्य अर्पित करें। इससे जीवन में शांति, स्थिरता, और धन की वृद्धि होती है।
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जीवन में उतार-चढ़ाव दूर करने के लिए
भाद्रपद पूर्णिमा के दिन शाम को चंद्र देव की पूजा करें। उन्हें शुद्ध जल से अर्घ्य दें और मिठाई का भोग लगाएं। चंद्रदेव से मानसिक शांति, सुख, और समृद्धि की प्रार्थना करें। इस उपाय से मन को शांति मिलती है और जीवन के उतार-चढ़ाव में स्थिरता आती है।
पुण्य प्राप्ति के लिए
इस दिन उपवास रखने का विशेष महत्व है। यदि संभव हो, तो केवल फलाहार करें और पूरे दिन भगवान का ध्यान करें। व्रत के दौरान संयमित आचरण और विचारों को शुद्ध रखें। यह व्रत पापों का नाश करता है और जीवन में पुण्य की प्राप्ति करता है।
मानसिक शांति प्राप्त करने के लिए
इस दिन विशेष रूप से ध्यान और साधना करें। सुबह-शाम ध्यान करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है और आत्मिक उन्नति होती है। साधना के दौरान अपने पितरों का ध्यान करें और उनसे मार्गदर्शन की प्रार्थना करें।
इसी आशा के साथ कि, आपको यह लेख भी पसंद आया होगा एस्ट्रोसेज के साथ बने रहने के लिए हम आपका बहुत-बहुत धन्यवाद करते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
1. साल 2024 में कब रखा जाएगा भाद्रपद पूर्णिमा का व्रत?
भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को भाद्रपद पूर्णिमा व्रत रखा जाता है और यह तिथि इस साल 18 सितंबर 2024 बुधवार के दिन पड़ रही है।
2. भाद्रपद पूर्णिमा का क्या महत्व है?
भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि पर किए जाने वाले इस व्रत को विशेष रूप से पितरों की शांति और उनके उद्धार के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।
3. भाद्रपद पूर्णिमा को क्या दान करना चाहिए?
भाद्रपद पूर्णिमा को स्नान के बाद सफेद वस्त्र, शक्कर, चांदी, खीर और सफेद फूल या मोती का दान कर सकते हैं।
4. भाद्रपद पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है?
भाद्रपद पूर्णिमा के दिन व्रत करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है, जिससे परिवार में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है।
इस दिन से शुरू हो रहा है पितृपक्ष 2024- जानें महत्व और किस तिथि को किया जाएगा किसका श्राद्ध!
पितृपक्ष यानि पितरों को समर्पित एक ऐसी अवधि जब सनातन धर्म में विश्वास करने वाले लोग पितरों की आत्मा की शांति के लिए विशेष पूजा-पाठ, कर्मकांड आदि करते हैं। हिंदू धर्म में श्राद्ध पक्ष का विशेष महत्व बताया गया है। कहा जाता है कि, इस दौरान हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं। ऐसे में उनके प्रति अगर नियमित रूप से श्राद्ध और पिंडदान आदि किया जाए तो उनकी आत्मा को शांति मिलती है, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है और वह हमारे जीवन में सुख सुविधा का आशीर्वाद देकर जाते हैं।
अपने इस विशेष ब्लॉग में आज हम जानेंगे वर्ष 2024 में पितृपक्ष की यह अवधि कब से शुरू होने वाली है, इसका महत्व क्या है, और आपको अपने पितरों के अनुसार किस दिन उनका श्राद्ध करना चाहिए।
सबसे पहले बात करें वर्ष 2024 में पितृपक्ष कब से है तो दरअसल पितृपक्ष की शुरुआत हर साल भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से लेकर अमावस्या तक रहती है। इस वर्ष 17 सितंबर 2024 के पितृपक्ष आरंभ हो रहे हैं और 2 अक्टूबर 2024 तक पितृपक्ष रहेंगे। यानी कि इस वर्ष कुल 16 तिथियां पड़ने वाली है।
17 सितंबर 2024, मंगलवार- पूर्णिमा का श्राद्ध
18 सितंबर 2024, बुधवार- प्रतिपदा का श्राद्ध
19 सितंबर 2024, गुरुवार- द्वितीय का श्राद्ध
20 सितंबर 2024, शुक्रवार तृतीया का श्राद्ध-
21 सितंबर 2024, शनिवार- चतुर्थी का श्राद्ध
21 सितंबर 2024, शनिवार महा भरणी श्राद्ध
22 सितंबर 2014, रविवार- पंचमी का श्राद्ध
23 सितंबर 2024, सोमवार- षष्ठी का श्राद्ध
23 सितंबर 2024, सोमवार- सप्तमी का श्राद्ध
24 सितंबर 2024, मंगलवार- अष्टमी का श्राद्ध
25 सितंबर 2024, बुधवार- नवमी का श्राद्ध
26 सितंबर 2024, गुरुवार- दशमी का श्राद्ध
27 सितंबर 2024, शुक्रवार- एकादशी का श्राद्ध
29 सितंबर 2024, रविवार- द्वादशी का श्राद्ध
29 सितंबर 2024, रविवार- माघ श्रद्धा
30 सितंबर 2024, सोमवार- त्रयोदशी श्राद्ध
1 अक्टूबर 2024, मंगलवार- चतुर्दशी का श्राद्ध
2 अक्टूबर 2024, बुधवार- सर्वपितृ अमावस्या
कब और कैसे करें श्राद्ध कर्म?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि सुबह और शाम के समय देवी देवताओं की पूजा पाठ की जाती है और दोपहर का समय पितरों को समर्पित होता है। ऐसे में दोपहर 12:00 के बाद आप श्राद्ध कर्म करें तो इससे आपको अनुरूप फल प्राप्त होंगे। इसके अलावा दिन में कुतुप और रोहिणी मुहूर्त पूजा या फिर श्राद्ध कर्म के लिए सबसे शुभ मान जाते हैं। इस दौरान सुबह उठने के बाद स्नान आदि करें, फिर अपने पितरों का तर्पण करें। श्राद्ध के दिन का विशेष रूप से कौवों, चीटियों, गायों, देवताओं, कुत्तों और पंचबली को भोग अवश्य लगाएँ और अंत में किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं।
पितृपक्ष से जुड़ी कुछ अनोखी परंपराएं और उनके कारण
श्राद्ध कर्म करते समय पितरों का तर्पण जब भी किया जाता है तो उन्हें अंगूठे के माध्यम से जलांजलि दी जाती है। महाभारत और अग्नि पुराण के अनुसार अंगूठे से अपने पितरों को जल देने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। ग्रंथ में बताया गया है की हथेली के जिस हिस्से पर अंगूठा होता है वह हिस्सा पितृ तीर्थ कहलाता है। ऐसे में जब अंगूठे से जल चढ़ाया जाता है तो यह जल सीधे पिंडों तक पहुंच जाता है। पितृ तीर्थ से होता हुआ जल जब अंगूठे के माध्यम से पिंडों तक पहुंचता है तो पितृ पूर्ण रूप से तृप्त हो जाते हैं।
इसके अलावा हिंदू धर्म में कुशा घास को बहुत पवित्र माना गया है। कई सारे पूजा पाठ में इस घास को उपयोग में भी लाया जाता है। कुशा घास को अनामिका उंगली में धारण करने की परंपरा है। कहा जाता है कि कुशा के अग्रभाग में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और मूल भाग में भगवान शंकर रहते हैं। श्राद्ध कर्म में कुश की अंगूठी धारण करने से व्यक्ति पवित्र हो जाता है और अपने पितरों की शांति के लिए श्राद्ध कर्म और पिंडदान करता है जो ज्यादा फलित होते हैं।
यह भी जानने योग्य है: महाभारत के अनुसार जब गरुड़ के स्वर्ग से अमृत कलश लेकर आए थे तो उन्होंने यह कलश थोड़ी देर के लिए ही लेकिन कुश पर रख दिया था। कुशा पर अमृत कलश रखे जाने से कुशा को पवित्र माना जाने लगा है।
श्राद्ध कर्म से जुड़ी तीसरी प्रथा के अनुसार कहा जाता है कि इसमें ब्राह्मण को भोजन अवश्य करवाना होता है। ऐसी मान्यता है कि ब्राह्मणों को भोजन करवाए बिना श्राद्ध कर्म अधूरा होता है। धार्मिक ग्रंथो के अनुसार ब्राह्मण के साथ वायु रूप में पितृ भी भोजन करते हैं और यही वजह है कि इस दौरान पितरों को भोजन करवाया जाता है क्योंकि ऐसा मानते हैं कि यह भोजन फिर सीधे पितरों तक पहुंचता है। विद्वान ब्राह्मण को पूरे सम्मान और श्रद्धा के साथ भोजन करने से पितृ भी तृप्त होकर सुख समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
इस बात का भी रखें ध्यान: भोजन करवाने के बाद ब्राह्मणों को घर के द्वारा तक पूरे सम्मान के साथ विदा किया जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ब्राह्मणों के साथ ही पितृ भी चले जाते हैं।
चौथी परंपरा के अनुसार कौवों का इस दिन पर विशेष महत्व होता है। कौवें इस बात का प्रतीक है जो दिशाओं का फलित बताता है इसीलिए श्राद्ध का एक अंशु को भी दिया जाता है। मान्यता है कि कौवों को पितरों का स्वरूप माना गया है। ऐसे में श्राद्ध का भजन कौवों को खिलाया जाए तो पितृ देव प्रसन्न होते हैं और श्राद्ध करने वाले को आशीर्वाद देते हैं।
श्राद्ध के भोजन का एक अंश गाय को भी दिया जाता है क्योंकि धार्मिक ग्रंथो में गाय को वैतरणी से पार लगाने वाले कहा गया है। गाय में सभी देवी देवताओं का भी निवास होता है। गाय को भोजन देने से सभी देवता तृप्त होते हैं इसलिए श्राद्ध का भोजन गाय को भी अवश्य देना चाहिए।
इसके अलावा कुत्ता यम का पशु माना गया है। ऐसे में श्राद्ध का एक अंश जब कुत्ते को डाला जाता है तो इससे यमराज प्रसन्न होते हैं।
बृहत् कुंडली में छिपा है, आपके जीवन का सारा राज, जानें ग्रहों की चाल का पूरा लेखा-जोखा
घर पर कैसे करें श्राद्ध
श्राद्ध तिथि पर सूर्योदय से दिन के 12:24 की अवधि के बीच श्राद्ध करें।
इसके लिए सुबह उठकर स्नान कर लें, घर की साफ-सफाई करें, घर में गंगाजल और गोमूत्र छिड़कें।
दक्षिण दिशा में मुंह रखकर बाएँ पैर को मोड़कर बाएँ घुटनों को जमीन पर टिका कर बैठ जाएँ।
इसके बाद तांबे के चौड़े बर्तन में काले तिल, गाय का कच्चा दूध, गंगाजल पानी डाल दें।
उस जल को दोनों हाथों में भरकर सीधे हाथ के अंगूठे से उसी बर्तन में गिराएँ। इस तरह 11 बार करते हुए अपने पितरों का तर्पण करनें।
घर में रंगोली बनाएं।
महिलाएं शुद्ध होकर पितरों के लिए भोजन तैयार करें।
श्राद्ध करने वाले व्यक्ति इस बात का विशेष ध्यान रखें कि इस दिन आप श्रेष्ठ ब्राह्मण को घर पर अवश्य बुलाएँ, ब्राह्मण को भोजन कराएं और ब्राह्मण के पैर धोएँ। ऐसा करते समय पत्नी को दाहिनी तरफ होना चाहिए।
पितरों के निमित्त अग्नि में गाय के दूध से बनी खीर अवश्य अर्पित करें।
ब्राह्मण को भोजन करने से पहले पंचबली यानी गाय, कुत्ते, कौवे, देवता और चींटी के लिए भोजन अवश्य निकालें।
दक्षिण दिशा में मुंह रखकर कुश, जौ, तिल, चावल और जल लेकर संकल्प करें और फिर एक या तीन ब्राह्मणों को भोजन कराएं।
भोजन के बाद उन्हें भूमि, तिल, स्वर्ण, घी, वस्त्र, अनाज, गुड, चांदी या फिर नमक का दान करें।
ब्राह्मणों का आशीर्वाद लें।
इस बात का विशेष ध्यान रखें कि श्राद्ध में हमेशा सफेद फूलों का ही उपयोग करें।
श्राद्ध करने के लिए दूध, गंगाजल, शहद, सफेद कपड़े, अभिजीत मुहूर्त और तिल मुख्य रूप से जरूरी माने गए हैं।
क्या यह जानते हैं आप? मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि जो लोग पितृपक्ष में अपने पितरों का तर्पण नहीं करते हैं उन्हें पितृ दोष जैसे जटिल दोष का सामना करना पड़ सकता है। ऐसा कई बार देखा गया है कि लोगों के जीवन में पितृ दोष मौजूद होता है हालांकि जानकारी न होने की वजह से लोग इसे नजरअंदाज करते रहते हैं जिससे इस दोष का प्रकोप बढ़ता रहता है। आपकी कुंडली में भी कहीं यह दोष तो नहीं यह जानने के लिए अभी विद्वान ज्योतिषियों से संपर्क करें। बात करें पितृपक्ष में किए जाने वाले श्राद्ध कर्म की तो जिस तिथि को आपके पितृ स्वर्ग को गए हों उस दिन उनके नाम से श्रद्धा अनुसार और अपनी क्षमता अनुसार ब्राह्मण को भोजन अवश्य करवाएँ और तर्पण करें।
क्या होता है तर्पण?
दरअसल भोजन करने के उपरांत जिस तरह से पानी अवश्य पिया जाता है उसी तरह पितरों को पानी पिलाने की प्रक्रिया को तर्पण कहते हैं। तर्पण के लिए अक्सर लोग गया, पुष्कर, प्रयागराज या हरिद्वार जैसे तीर्थ जाते हैं। हालांकि आप अपने गांव, शहर में ही कहीं कोई पवित्र नदी या सरोवर के पास भी तर्पण कर सकते हैं। अगर यह भी ना मौजूद हो तो आप अपने घर पर भी तर्पण विधि संपन्न कर सकते हैं।
कैसे करें तर्पण?
तर्पण करने के लिए आप एक पीतल या फिर स्टील की परात ले लें।
इसमें शुद्ध जल डालें फिर थोड़े काले तिल और दूध डालें।
यह परात अपने सामने रखें और एक अन्य खाली पात्र पास में रखें।
अब अपने दोनों हाथों के अंगूठे और तर्जनी के मध्य में दूर्वा यानी कुश लेकर अंजलि बना लें। यानी दोनों हाथों को मिलाकर उसमें जल भर लें।
अब अंजलि में भरा हुआ जल दूसरे खाली पात्र में डाल लें।
खाली पात्र में जल डालते समय अपने प्रत्येक पितृ के लिए कम से कम तीन बार अंजलि से तर्पण करें।
माना जाता है कि पितृ पक्ष में श्राद्ध की शुरुआत महाभारत काल से चली आ रही है। श्राद्ध कर्म की जानकारी स्वयं भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को दी थी। दरअसल गरुड़ पुराण में बताया गया है कि पितामह ने युधिष्ठिर को पितृपक्ष में श्राद्ध और उसके महत्व के बारे में जानकारी दी थी। भीष्म पितामह ने बताया था कि अत्रि मुनि ने सबसे पहले श्राद्ध के बारे में महर्षि निमि को ज्ञान दिया था।
अपने पुत्र की आकस्मिक मृत्यु से दुखी होकर निमि ऋषि ने अपने पूर्वजों का आवाहन शुरू किया। इसके बाद पूर्वज उनके सामने प्रकट हुए और कहा निमि आपका पुत्र पहले ही पितृ देवों के बीच स्थान ले चुका है क्योंकि आपने अपने दिवंगत पुत्र की आत्मा को खिलाने और पूजा करने का कार्य किया है यह पितृ यज्ञ जैसा है। बताया जाता है कि इसी समय से श्राद्ध को सनातन धर्म में महत्वपूर्ण अनुष्ठान माना जाने लगा।
इसके बाद से महर्षि निमि ने भी श्राद्ध कर्म शुरू किया और उसके बाद धीरे-धीरे सारे ऋषि मुनियों ने श्राद्ध करना शुरू कर दिया और कुछ मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि युधिष्ठिर ने कौरवों और पांडवों की ओर से युद्ध में मारे गए सैनिकों के अंतिम संस्कार के बाद उनका भी श्राद्ध किया गया था।
क्या यह जानते हैं आप? अग्नि देव से भी है श्राद्ध पक्ष का संबंध? जब सभी ऋषि मुनि देवताओं और पितरों को भोजन करा कर साथ में अधिक भोजन करने लगे तो उन्हें अजीर्ण हो गया और वे सभी ब्रह्मा जी के पास पहुंचे। इसके बाद ब्रह्मा जी ने इसमें अग्नि देव की मदद लेने की सलाह दी। अग्नि देव ने कहा कि श्राद्ध में मैं भी आप लोगों के साथ मिलकर भोजन करूंगा। इससे आपकी समस्या का समाधान हो जाएगा। ऐसे में हमेशा पितरों को भोजन करने के लिए श्राद्ध का भोजन कौवों और अग्नि को अवश्य चढ़ाया जाता है।
इंद्र से भी जुड़ी है कथा
एक और मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि दानवीर कर्ण जो अपने दान के लिए जाने जाते थे मृत्यु के बाद स्वर्ग पहुंचे। वहां उनकी आत्मा को खाने के लिए सोना दिया जाने लगा। इस पर उन्होंने देवताओं के राजा इंद्र से पूछा कि उन्हें खाने में सोना क्यों दिया जा रहा है। तब उन्हें बताया गया कि क्योंकि उन्होने अपने जीवनकाल में हमेशा सोने-चांदी का ही दान किया है उन्हें वही वापिस मिल रहा है। तब कर्ण को अपनी गलती का अहसास हुआ और अपनी भूल को सही करने के लिए उन्हें वापस धरती पर भेजा गया। पितृपक्ष के इन 16 दिनों में कर्ण ने श्राद्ध पिंडदान और तर्पण किया और उसके बाद उनके पूर्वज भी खुश हुए और वह वापस स्वर्ग आ गए।
क्यों किया जाता है श्राद्ध और श्राद्ध नहीं किया तो क्या मिलेगा परिणाम?
मृत्यु के बाद अतृप्त पूर्वज तीन कारणों से धरती लोक पर आते हैं। वो जाकर यह देखते हैं कि हमारी संतान या हमारे वंश कैसे हैं? वह देखते हैं कि क्या हमें अन्न जल प्राप्त होगा? इसके अलावा तीसरा कारण यह माना जाता है कि पितृ देखते हैं कि हमारी मुक्ति के लिए कोई कर्म आदि किया जा रहा है या नहीं?
गीता विज्ञान में इसे लेकर कहा गया है कि अन्न से शरीर तृप्त होता है। अग्नि को दान किए गए अन्न से सूक्ष्म से शरीर यानी आत्मा का शरीर और मंत्र होता है। इस अग्नि आहुति से आकाश मंडल के समस्त पक्षी भी तृप्त होते हैं। तर्पण, पिंडदान और धूप देने से आत्मा की तृप्ति होती है और तृप्ति आत्माओं को प्रेत बनकर भटकना नहीं पड़ता है।
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माना जाता है कि यह एक कर्तव्य की तरह है जिसका पालन करना अनिवार्य होता है। जो लोग पितरों का श्राद्ध नहीं करते उन्हें पितृ दोष से पीड़ित होना पड़ता है।
श्रद्धा न करने पर पितृ दोष लगता है लेकिन कैसे?
मान्यता के अनुसार जब पूर्वजों की आत्मा तृप्त नहीं होती है तो इससे जो दोष उत्पन्न होता है उसे पितृ दोष कहते हैं। पितृ दोष दो तरह से बनता है पहले इस जन्म के कर्म से और दूसरा पूर्व में किए गए कर्मों से। पूर्व जन्मों के कर्म भी कुंडली में अपने आप आ जाते हैं। अगर किसी की जन्म कुंडली में गुरु दसवें भाव में मौजूद हो तो इसे पूर्ण पितृ दोष माना जाता है। वहीं अगर गुरु सप्तम भाव में हो तो इस आंशिक पितृ दोष कहते हैं। अपनी कुंडली विद्वान ज्योतिषियों से दिखाने के लिए अभी जुड़े।
पितृ दोष के कर्म में क्या आता है? इसकी बात करें तो जीते जी दादा-दादी, नाना-नानी, माता-पिता को परेशान करना, श्राद्ध कर्म न करना, पितृ धर्म को नहीं मानना, संतान को परेशान करना, पीपल का वृक्ष काटना, गाय माता को सताना या गौ हत्या करना और धर्म विरोधी होना पितृ दोष का कारण बनता है।
बात करें पितृदोष होने के लक्षण की तो, अगर किसी व्यक्ति का विवाह नहीं हो पा रहा है, पति-पत्नी में बेवजह की अनबन चल रही है, गर्भधारण में दिक्कत आ रही है, गर्भधारण हो जाता है तो गर्भपात की समस्या आ जाती है, समय से पूर्व संतान का जन्म हो जाता है या फिर विकलांग संतान का जन्म होता है, दरिद्रता जीवन में बनी रहती है, रोग पीछा नहीं छोड़ते हैं तो यह पितृ दोष के लक्षण हैं।
पितृ दोष से बचने के उपाय
कुंडली में पितृ दोष होने पर घर की दक्षिण दिशा की दीवार पर अपने पितरों की फोटो लगाएँ। फूल माला चढ़ाकर नियमित रूप से उनकी पूजा करें, उनके आशीर्वाद से पितृ दोष से मुक्ति मिल जाती है।
स्वर्गीय प्रिय जनों की मृत्यु तिथि यानी पुण्यतिथि पर गरीबों में वस्तुओं का दान करें और ब्राह्मणों को भोजन कराएं। भोजन में कुछ ऐसे व्यंजन जरूर शामिल करें जो स्वर्गीय परिजनों को पसंद हों।
पीपल वृक्ष में दोपहर के समय जल, फूल, अक्षत, दूध, गंगाजल, काला तिल, पितरों को स्मरण करते हुए चढ़ाएँ।
पितृ पक्ष में अपने पितरों की मृत्यु तिथि के अनुसार उनका श्राद्ध कर्म अवश्य करें।
जिन लोगों के घर वाले लोग अक्सर जवानी में ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं और श्राद्ध करता को भी लड़ाई झगड़ों में शामिल होने का खतरा बढ़ जाता है ऐसे में इस दिन केवल उन्हीं लोगों को श्राद्ध करना चाहिए जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो। अकाल मृत्यु का अर्थ होता है कि अगर किसी की मृत्यु हत्या, आत्महत्या, दुर्घटना आदि कर्म से हुई हो तो ही चतुर्दशी तिथि के दिन उनका श्राद्ध करें। जिन लोगों की सामान्य रूप से मृत्यु हुई हो उनका श्राद्ध सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या के दिन करना सबसे अधिक उचित रहता है।
किस तिथि को करें किसका श्राद्ध?
श्राद्ध करने के लिए इस बात का ज्ञान होना भी बेहद आवश्यक है कि किसका श्राद्ध किस दिन किया जाना चाहिए। इसके बारे में बात करें तो किसी भी माह की जिस तिथि में परिजन की मृत्यु हुई हो श्राद्ध पक्ष में उसी से संबंधित तिथि पर श्राद्ध करना उत्तम कहलाता है। हालांकि इसके अलावा भी कुछ खास तिथियां होती हैं जब किसी भी प्रकार से मृत्यु हुई परिजनों का श्राद्ध किया जा सकता है। जैसे,
सौभाग्यवती स्त्री का श्राद्ध करना हो अर्थात किसी ऐसी पत्नी का श्राद्ध करना हो जिसका पति जीवित हो तो उनका श्राद्ध नवमी तिथि को किया जाता है।
अगर किसी स्त्री का श्राद्ध करना हो जिनकी मृत्यु की तिथि का ज्ञात न हो तो उनका भी श्राद्ध मातृ नवमी के दिन किया जा सकता है।
सभी वैष्णव संन्यासियों का श्राद्ध एकादशी में किया जाता है। जबकि शस्त्रघात, आत्म हत्या, विष, और दुर्घटना आदि से मृत लोंगों का श्राद्ध चतुर्दशी को किया जाता है। सर्पदंश, ब्राह्मण श्राप, वज्रघात, अग्नि से जले हुए, दंतप्रहार से, हिंसक पशु के आक्रमण से, फांसी लगाकर मृत्य, कोरोना जैसी महामारी, क्षय रोग, हैजा आदि किसी भी तरह की महामारी से, डाकुओं के मारे जाने से हुई मृत्यु वाले प्राणी श्राद्ध पितृपक्ष की चतुर्दशी और अमावस्या के दिन करना चाहिये। जिनका मरने पर संस्कार नहीं हुआ हो उनका भी अमावस्या को ही करना चाहिए।
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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
1: वर्ष 2024 में पितृ पक्ष कब से प्रारंभ होगा?
इस वर्ष 17 सितंबर 2024 के पितृपक्ष आरंभ हो रहे हैं और 2 अक्टूबर 2024 तक पितृपक्ष रहेंगे।
2: श्राद्ध का क्या अर्थ होता है?
पितृपक्ष में घर के पूर्वजों को याद किया जाता है और इसे ही श्राद्ध कहते हैं।
3: पिंडदान का क्या अर्थ होता है?
पिंडदान का अर्थ होता है कि हम अपने पितरों को खाना खिला रहे हैं।
4: तर्पण का क्या अर्थ होता है?
तर्पण घास की कुश से दिया जाता है जिसका मतलब होता है कि हम अपने पूर्वजों को जल पिला रहे हैं।
पूरे एक साल बाद तुला राशि में बना लक्ष्मी नारायण राजयोग, तीन राशियों को मिलेगी अपार सफलता
सौरमंडल के सभी ग्रह एक तय समयावधि के बाद एक राशि से दूसरी राशि में संचरण करते हैं। गोचर करने के दौरान ग्रहों की एक-दूसरे के साथ युति भी होती है और इस युति से कुछ शुभ योगों का निर्माण होता है। इस बार अक्टूबर के महीने में भी कुछ ऐसा ही होने जा रहा है।
बता दें कि 18 सितंबर को दोपहर 01 बजकर 42 मिनट पर शुक्र स्वराशि तुला में प्रवेश कर चुके हैं और 10 अक्टूबर को सुबह 11 बजकर 09 मिनट पर बुध ग्रह भी इसी राशि में आने वाले हैं। इस तरह 10 अक्टूबर को तुला राशि में बुध और शुक्र की युति हो रही है। यह युति ज्यादा दिन के लिए नहीं होगी क्योंकि 13 अक्टूबर को शुक्र वृश्चिक राशि में प्रवेश कर जाएंगे।
तुला राशि में बुध और शुक्र की युति से लक्ष्मी नारायण राजयोग का निर्माण हो रहा है। यह योग सभी राशियों के जातकों के जीवन को प्रभावित करेगा लेकिन कुछ राशियां ऐसी हैं जिन्हें इस दौरान सबसे अधिक लाभ होने की संभावना है।
तो चलिए जानते हैं कि तुला राशि में बुध और शुक्र की युति होने से बन रहे लक्ष्मी नारायण योग से किन राशियों के लोगों की किस्मत चमकने वाली है।
बृहत् कुंडली में छिपा है, आपके जीवन का सारा राज, जानें ग्रहों की चाल का पूरा लेखा-जोखा
इन राशियों के लिए रहेगा शुभ
तुला राशि
तुला राशि के लग्न भाव में यह योग बनने जा रहा है। यह समय आपके लिए बहुत अनुकूल साबित होगा। इस दौरान आपके व्यक्तित्व में निखार आएगा। विवाहित जातकों के जीवन में सुख-शांति बनी रहेगी। आपके और आपके जीवनसाथी के बीच आपसी समझ अच्छी होने की वजह से सब कुछ ठीक रहने वाला है।
धन के मामले में भी आपको कोई परेशानी नहीं होगी। नौकरीपेशा जातकों को अपनी मेहनत का फल प्राप्त होगा। इन्हें कार्यक्षेत्र में पदोन्नति के साथ वेतन में वृद्धि मिलने के संकेत हैं। इस समय आपकी लोकप्रियता में भी इज़ाफा देखने को मिलेगा। समाज में आपका मान-सम्मान बढ़ेगा।
मकर राशि के कर्म भाव में इस योग का निर्माण होगा। यह समय आपके लिए बहुत भाग्यशाली रहने वाला है। इस समय आपको अपने जीवन के हर क्षेत्र में अनुकुल परिणाम प्राप्त होंगे। नौकरी करने वाले लोगों को खूब तरक्की मिलेगी। वहीं व्यापारियों के लिए भी धन कमाने का समय है। इन्हें अपने क्षेत्र में मोटा मुनाफा कमाने का मौका मिलेगा।
नोकरीपेशा जातकों को अपने कार्यस्थल में कोई ऊंचा पद मिलने की उम्मीद है। आपके बॉस आपसे खुश नज़र आएंगे। आपको नौकरी के दूसरे अच्छे ऑफर भी मिल सकते हैं। आप अपने बिज़नेस का विस्तार करने के बारे में सोच सकते हैं।
लक्ष्मी नारायण योग आपकी राशि से नौवें भाव में बनने जा रहा है इसलिए यह समय आपके लिए लाभकारी सिद्ध होगा। आपको इस दौरान अपनी किस्मत का साथ मिलेगा। करियर के क्षेत्र में भी आप खूब तरक्की करने वाले हैं। इस समय आपको ऐसे अवसर मिल सकते हैं, जो आपको करियर में आगे बढ़ाने का काम करेंगे।
करियर के मामले में आप लंबे समय से जिस चीज़ का इंतज़ार कर रहे थे, अब वो पूरा हो सकता है। आप देश-विदेश की यात्रा पर जा सकते हैं। इसके अलावा आपको किसी धार्मिक या मांगलिक कार्यक्रम में शामिल होने का अवसर प्राप्त होगा।
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सूर्य का कन्या राशि में प्रवेश- मेष राशि से मीन राशि तक का कैसा रहेगा हाल, जानें अभी!
कन्या राशि में सूर्य का गोचर व्यक्तित्व, दक्षता और सटीकता की भावना को बढ़ाने वाला साबित हो सकता है। इस दौरान जातक अधिक मेहनती, व्यवस्थित और विस्तार उन्मुख बनेंगे। आप व्यक्तिगत विकास के लिए शारीरिक और मानसिक कल्याण, आत्म उपचार और सुधार का अनुभव करेंगे। अपने इस खास ब्लॉग के माध्यम से हम आपको विस्तार से बताएंगे कि सभी 12 राशियों के जातकों के जीवन पर सूर्य के गोचर का क्या प्रभाव नजर आने वाला है।
सूर्य का कन्या राशि में गोचर 2024
जैसे-जैसे आकाशीय पिंड अपना परिवर्तन जारी रखते हुए राशियों के माध्यम से गुजरते हैं उनके इस परिवर्तन का हमारे जीवन पर प्रभाव अवश्य पड़ता है। अपने इस खास ब्लॉग में हम बात करने वाले हैं सूर्य के गोचर की और उससे होने वाले परिवर्तनों की। सूर्य की गति हमारे जीवन में विभिन्न ऊर्जा और प्रभाव लेकर आने के लिए जानी जाती है।
वर्ष 2024 में सूर्य कन्या राशि में गोचर करेगा जो कि संगठन, विस्तार पर ध्यान देने और व्यावहारिक समस्या के समाधान की अवधि की शुरुआत कही जा सकती है। सूर्य गोचर की यह ब्रह्मांडीय घटना हमारे दैनिक दिनचर्या को परिष्कृत करने, व्यक्तिगत विकास पर ध्यान केंद्रित करने और हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं में व्यवस्था लाने का एक अनूठा अवसर प्रदान करती है।
सूर्य गोचर- एक नजर
सूर्य गोचर विभिन्न राशियों के माध्यम से सूर्य की गति को संदर्भित करता है। अर्थात जब सूर्य मेष से लेकर मीन राशि में प्रवेश करते हैं तो इसे सूर्य गोचर के नाम से जाना जाता है। सूर्य गोचर की एक और दिलचस्प बात यह होती है कि सूर्य जिस भी राशि में अपना प्रवेश करते है उस गोचर को उसी राशि के नाम से जाना जाता है।
उदाहरण के तौर पर जैसे कि अब सूर्य कन्या राशि में गोचर करेंगे तो इसे कन्या संक्रांति के नाम से जाना जाएगा। कन्या राशि में सूर्य का यह गोचर हमारे व्यक्तिगत और सामूहिक अनुभवों को प्रभावित करता है। सूर्य को हमारे मूल सार और जीवन शक्ति का प्रतिनिधित्व करने वाला ग्रह माना गया है। सूर्य को प्रत्येक राशि में तकरीबन एक महीने का समय लगता है और इसके बाद वह दूसरी राशि में प्रवेश कर जाता है।
सूर्य का कन्या राशि में गोचर- क्या रहेगा समय?
सूर्य जब कन्या राशि में प्रवेश करता है तो क्योंकि यह एक पृथ्वी राशि है तो इसके व्यावहारिक विश्लेषण आत्मक और सेवा उन्मुख गुणों को सामने लेकर आने के लिए यह समय सबसे अनुकूल साबित होता है। बुद्ध द्वारा शासित कन्या राशि का संबंध कुछ विशेष चीजों से भी है जैसे सूर्य का यह गोचर स्वास्थ्य और कल्याण महत्वपूर्ण सोच, व्यवहारिकता और दक्षता हमारे जीवन में लेकर आता है। इस दौरान हमें अपने जीवन को व्यवस्थित करने, बारीक से बारीक चीजों पर ध्यान देने और अपनी दैनिक दिनचर्या में सुधार करने की तीव्र इच्छा महसूस हो सकती है।
सूर्य का कन्या राशि में गोचर- समय और प्रभाव
कन्या राशि में सूर्य के इस गोचर की बात करें तो यह गोचर, सूर्य का कन्या राशि में गोचर 16 दिसंबर 2024 को 19:29 पर होने जा रहा है। इस अवधि के दौरान सूर्य की ऊर्जा कन्या राशि की विशेषताओं के साथ सुसंगत नजर आएगी जो हमारे विचारों, कार्य और अनुभव को प्रभावित अवश्य करेगी। कन्या राशि में सूर्य का गोचर हमारे जीवन में कई तरह की प्रभाव लेकर आ सकता है। जैसे की,
संगठन पर बढ़ा हुआ फोकस- इस दौरान जातक अपने स्थान को व्यवस्थित करने, अपने कार्य को व्यवस्थित करने और अपने जीवन में अधिक कुशल सिस्टम बनाने की तीव्र इच्छा महसूस कर सकते हैं।
स्वास्थ्य और कल्याण पर ध्यान- सूर्य का यह गोचर स्वास्थ्य मामलों में नए सिरे से रुचि लेकर आएगा। नई स्वास्थ्य दिनचर्या शुरू करने या मौजूदा दिनचर्या को वापस सही करने के लिए यह उत्कृष्ट समय साबित होगा।
विश्लेषणात्मक सोच- इस अवधि के दौरान स्थितियों का विश्लेषण करने और समस्याओं को हल करने की आपकी क्षमता में वृद्धि नजर आएगी।
उत्पादकता में वृद्धि- कन्या राशि का प्रभाव आपके काम और व्यक्तिगत परियोजनाओं में उत्पादकता और दक्षता बढ़ाने में मददगार साबित होगा।
सेवा उन्मुख मानसिकता- इस गोचर के दौरान आप दूसरों की मदद करने या स्वयंसेवी कार्यों में संलग्न होने के प्रति ज्यादा इच्छुक महसूस कर सकते हैं।
सूर्य का कन्या राशि में गोचर का लाभ उठाना है तो इन बातों का रखें विशेष ख्याल
इस गोचर से लाभ उठाने के लिए आपको हम नीचे कुछ सटीक सुझावों के बारे में जानकारी प्रदान कर रहे हैं।
अपना स्थान व्यवस्थित करें। इस गोचर के दौरान अपने घर या कार्य स्थल को व्यवस्थित करने और सभी चीजों को सही करने के लिए समय अवश्य निकालें।
अपने दिनचर्या की समीक्षा करें। अपनी दैनिक दिनचर्या का विश्लेषण करें और उन्हें अधिक कुशल बनने के तरीकों की तलाश करें।
अपने स्वास्थ्य पर ध्यान दें। जरूरत लगे तो किसी नए व्यायाम दिनचर्या को शुरू करें या फिर अपने आहार पर ध्यान दें।
कोई नया कौशल सीखें। कन्या राशि ऊर्जा सीखने और कौशल विकास का समर्थन करती है। ऐसे में कोई नई चीज़ सीखने, कोई क्लास अटेंड करने या नए अध्ययन शुरू करने के लिए यह अवधि अनुकूल रहेगी।
संचेतना का अभ्यास करें। अपने दैनिक जीवन के विवरणों पर ध्यान दें।
अपनी सेवाएं प्रदान करें। स्वयं सेवी कार्य में संलग्न हो या फिर किसी जरूरतमंद की मदद करें।
व्यवहारिक लक्ष्य निर्धारित करें। सूर्य गोचर का यह समय का सदुपयोग अपने लिए प्राप्त करने योग्य व्यावहारिक लक्ष्य निर्धारित करने में करें।
निष्कर्ष: कन्या राशि में सूर्य का गोचर 2024 हमारे जीवन के विभिन्न पहलुओं में व्यवस्था, दक्षता और सुधार लेकर आने के लिए एक मूल्यवान अवसर प्रदान करेगा। इस ब्रह्मणीय प्रभाव को समझ कर और इसके साथ काम करके हम अपने व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन में महत्वपूर्ण प्रगति हासिल कर सकते हैं। इस सूर्य गोचर को आत्म चिंतन और विकास के लिए एक उपकरण के रूप में प्रयोग करें और आप खुद देखेंगे कि इस ब्रह्मांड में यात्रा के अंत तक आप खुद को बेहतर, संगठित और अधिक कुशल पाएंगे।
अब आगे बढ़ते हैं और बात करते हैं सूर्य के इस गोचर का सभी 12 राशियों के जातकों के जीवन पर क्या कुछ प्रभाव पड़ने की संभावना है तो इससे संबंधित महत्वपूर्ण राशिफल हम आपको नीचे प्रदान कर रहे हैं।
सूर्य का कन्या राशि में गोचर- राशि अनुसार प्रभाव और उपाय
सूर्य का कन्या राशि में गोचर 16 सितंबर को होने वाला है। इसके बाद 17 अक्टूबर 2024 तक सूर्य यहीं मौजूद रहेंगे। इसके अलावा समय की बात करें तो सूर्य का कन्या राशि में गोचर 16 दिसंबर 2024 को 19:29 पर होने जा रहा है।
2: ज्योतिष में कन्या राशि में सूर्य का अर्थ क्या है?
ज्योतिष में कन्या राशि में सूर्य व्यवहारिकता, विस्तार पर ध्यान और स्वास्थ्य और दूसरों की सेवा पर ध्यान देने का समय का प्रतिनिधित्व करता है।
3: सूर्य के कन्या राशि में गोचर के दौरान जीवन के किन तीन क्षेत्रों पर प्रकाश डाला जा सकता है?
सूर्य का यह गोचर कार्य, स्वास्थ्य, दैनिक दिनचर्या और व्यक्तिगत संगठन जैसे क्षेत्रों पर प्रकाश डालने के लिए जाना जाता है।
अनंत चतुर्दशी 2024: सुख, समृद्धि और सौभाग्य की कामना के लिए जरूर करें ये एक उपाय!
सनातन धर्म में अनंत चतुर्दशी का विशेष महत्व है। हर वर्ष भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी मनाई जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अनंत चतुर्दशी का दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना का लिए समर्पित है और इस चतुर्दशी को चौदस के रूप में भी जाना जाता है। साथ ही, यह भी माना जाता है कि अनन्त चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान के साथ पूजा और व्रत करने से साधक को बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।
इसके अलावा, अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु के अनंत रूपों की पूजा की जाती है। साथ ही इस दिन एक कच्ची डोरी में 14 गांठ लगाकर भगवान विष्णु को अर्पित करने का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ये 14 गांठ 14 लोकों का प्रतीक हैं, ये 14 लोक इस प्रकार हैं – भूर्लोक, भुवर्लोक, स्वर्लोक, महर्लोक, जनलोक, तपोलोक, ब्रह्मलोक, अतल, वितल, सुतल, रसातल, तलातल, महातल और पाताल लोक।
तो चलिए आगे बढ़ते हैं और जानते हैं अनंत चतुर्दशी का व्रत इस साल कब रखा जाएगा, अनंत चतुर्दशी की सही तिथि क्या है? आदि के बारे में इस ब्लॉग में चर्चा करेंगे।
हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी मनाई जाती है। इस साल यह तिथि 17 सितंबर 2024 मंगलवार को पड़ रही है।
अनंत चतुर्दशी की शुरुआत: यह तिथि 16 सितंबर की दोपहर 3 बजकर 12 मिनट से शुरू होकर
अनंत चतुर्दशी समाप्त: 17 सितंबर 2024 की रात 11 बजकर 46 बजे तक रहेगी।
अनंत चतुर्दशी पूजा मुहूर्त
अनंत चतुर्दशी पूजा मुहूर्त : 17 सितंबर 2024 की सुबह 06 बजकर 07 मिनट से 11 बजकर 46 मिनट तक।
अवधि : 5 घंटे 39 मिनट
अनंत चतुर्दशी का महत्व
अनंत चतुर्दशी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा की जाती है। बता दें कि भगवान विष्णु को “अनंत” कहा जाता है, जिसका अर्थ है “असीम” या “अखंड”। यह पर्व विशेष रूप से भगवान विष्णु से अनंत सुख, शांति, और समृद्धि की कामना करने के लिए मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी कष्टों का निवारण होता है और व्यक्ति को जीवन में अनंत सुख और शांति की प्राप्ति होती है।
अनंत चतुर्दशी के दिन भक्त व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। पूजा के दौरान भगवान विष्णु को पुष्प, फल, पान, सुपारी, नारियल और विशेष रूप से अनंतसूत्र अर्पित किया जाता है। जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि अनंतसूत्र एक धागा होता है, जिसमें चौदह गांठ लगी होती हैं, जो चौदह लोकों का प्रतीक मानी जाती हैं। इसे पूजा के बाद दाहिने हाथ में धारण किया जाता है, ताकि व्यक्ति को भगवान विष्णु की कृपा और सुरक्षा प्राप्त हो। बता दें कि महाराष्ट्र और अन्य स्थानों में अनंत चतुर्दशी का दिन गणेशोत्सव का अंतिम दिन होता है, जब गणपति बप्पा का विसर्जन किया जाता है। भक्त इस दिन भगवान गणेश की प्रतिमा को जल में विसर्जित करते हैं और उनसे अगले वर्ष पुनः आगमन की प्रार्थना करते हैं। इस दिन भगवान गणेश के साथ-साथ भगवान विष्णु की भी पूजा करने का विधान है।
बृहत् कुंडलीमें छिपा है, आपके जीवन का सारा राज, जानें ग्रहों की चाल का पूरालेखा-जोखा
अनंत चतुर्दशी व्रत में इस विधि से करें पूजा
अनंत चतुर्दशी व्रत का पालन करते समय पूजा विधि का विशेष ध्यान रखना चाहिए, तभी भगवान विष्णु की कृपा और अनंत सुख की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं अनंत चतुर्दशी की पूजा विधि के बारे।
अनंत चतुर्दशी के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर घर के सभी कार्यों को पूरा करके स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
पूजा स्थल की सफाई करें और उसे गंगाजल से पवित्र करें।
पूजा के लिए पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ मुंह करके बैठें।
हाथ में जल, अक्षत (चावल), और पुष्प लेकर व्रत का संकल्प करें।
भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए उनसे व्रत की सफलता और जीवन में सुख-शांति की कामना करें।
इसके बाद पूजा स्थल पर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
भगवान विष्णु के सामने दीपक जलाएं और धूप अर्पित करें।
उन्हें पीले पुष्प, फल, पान, सुपारी, और मिठाई अर्पित करें।
अनंत सूत्र की पूजा के लिए अनंतसूत्र लें (एक धागा जिसमें 14 गांठें बंधी होती हैं) को भगवान विष्णु के चरणों में रखें।
अनंतसूत्र में केसर, हल्दी, और चंदन से लगाएं।
पूजा के बाद अनंतसूत्र को अपने दाहिने हाथ में धारण करें। महिलाएं इसे बाएं हाथ में बांध सकती हैं।
पूजा के दौरान अनंत चतुर्दशी व्रत कथा का श्रवण या पाठ करें। ऐसा करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
इस दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है। गरीबों और ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र, और धन का दान करें।
दान करने से व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है और भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है।
अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की विशेष पूजा और मंत्र जाप का बहुत महत्व है। इस दिन कुछ विशेष मंत्रों का जाप करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सुख-समृद्धि और शांति का वास होता है। आइए जानते हैं इन मंत्रों के बारे में।
ॐ अनंताय नमः
यह मंत्र भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप को समर्पित है। इसका जाप करने से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं।
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
यह मंत्र भगवान विष्णु के 12 अक्षरों का महामंत्र है, जिसे विष्णु द्वादशाक्षर मंत्र भी कहा जाता है। इस मंत्र का जाप करने से सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं।
ॐ विष्णवे नमः
इस मंत्र का जाप भगवान विष्णु की आराधना के लिए किया जाता है। यह मंत्र व्यक्ति के जीवन में शांति, सुरक्षा, और समृद्धि प्रदान करता है।
ॐ अनन्त रूपाय नमः
इस मंत्र का जाप भगवान विष्णु के अनंत रूप की आराधना के लिए किया जाता है। यह मंत्र व्यक्ति के जीवन में अनंत खुशियों और अनंत आशीर्वाद की प्राप्ति करता है।
श्री विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र
अनंत चतुर्दशी के दिन श्री विष्णु सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ अत्यंत शुभ माना जाता है। इसमें भगवान विष्णु के हजार नामों का वर्णन है।
अनंत चतुर्दशी की कथा
अनंत चतुर्दशी व्रत के बारे में सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था। यह बात तब की है जब कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था। पांडव युद्ध में विजय प्राप्त कर चुके थे, लेकिन उनकी कई समस्याएं और दुख खत्म नहीं हुए थे। युधिष्ठिर, जो पांडवों में सबसे बड़े थे, इस बात से चिंतित थे कि इतने बड़े युद्ध के बाद भी उनके जीवन में शांति क्यों नहीं आ रही है। एक दिन युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से इस बारे में सलाह मांगी। श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया कि वह अनंत चतुर्दशी का व्रत करें और अनंत भगवान की पूजा करें। इस व्रत को करने से उन्हें सभी कष्टों से मुक्ति मिलेगी और जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होगा।
अनंत चतुर्दशी की कथा की कथा की बात करें तो, पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है कौंड़िन्य नामक एक ब्राह्मण था, जो अपनी पत्नी सुशीला के साथ शांति व सुख से जीवन व्यतीत कर रहा था। एक दिन कौंड़िन्य और सुशीला दोनों ने एक व्रत का पालन करने का निश्चय किया। सुशीला ने पूरे विधि-विधान के साथ अनंत चतुर्दशी का व्रत रखा और अनंत भगवान की पूजा की। उन्होंने पूजा के बाद अनंतसूत्र को अपने हाथ में बांध लिया। अनंत सूत्र बांधते ही उनका जीवन सुख-समृद्धि से भर गया।
कौंड़िन्य को जब इस अनंतसूत्र के बारे में पता चला, तो उन्होंने इसे मात्र एक साधारण धागा समझकर अपमानित कर दिया और इसे अपनी पत्नी के हाथ से उतार दिया। इसके परिणामस्वरूप उनके जीवन में सभी सुख और समृद्धि समाप्त हो गई, और वे दरिद्रता में आ गए। इसके बाद कौंड़िन्य को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने अपने किए पर पछतावा किया। उन्होंने भगवान विष्णु से क्षमा याचना की और पुनः अनंत चतुर्दशी का व्रत किया। भगवान विष्णु ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद दिया और उनके जीवन में फिर से सुख-समृद्धि का वास हुआ।
बता दें कि युधिष्ठिर ने इस कथा को सुनकर ही अनंत चतुर्दशी का व्रत रखा और भगवान विष्णु की कृपा से पांडवों के जीवन में सुख-समृद्धि का वास हुआ।
अनंत चतुर्दशी का दिन भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन कुछ विशेष उपाय करने से जीवन में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है। एक नज़र डालते हैं इन उपायों के बारे में…
अनंत सूत्र धारण करें
अनंत चतुर्दशी के दिन अनंत सूत्र धारण करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह एक धागा होता है जिसमें 14 गांठ बंधी होती हैं। इसे भगवान विष्णु की पूजा के बाद दाहिने हाथ में बांधें। महिलाएं इसे बाएं हाथ में भी बांध सकती हैं। अनंत सूत्र धारण करने से जीवन में सुरक्षा, शांति और समृद्धि बनी रहती है।
भगवान विष्णु की पूजा करें
इस दिन भगवान विष्णु की पूजा अवश्य करें। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें या भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें। पूजा के दौरान भगवान विष्णु को पीले पुष्प, फल, पान, सुपारी, और मिठाई अर्पित करें। इससे भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त होती है।
दान-पुण्य करें
अनंत चतुर्दशी के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है। किसी गरीब या जरूरतमंद को अन्न, वस्त्र, और धन का दान करें। गोदान (गाय का दान) और भूमि का दान भी अत्यंत शुभ माना जाता है। दान करने से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।
गणेश विसर्जन में भाग लें
यदि आपने गणेशोत्सव के दौरान गणपति की स्थापना की है, तो अनंत चतुर्दशी के दिन उनका विसर्जन करना न भूलें। भगवान गणेश का विसर्जन करते समय उनसे अगले वर्ष पुनः आने की प्रार्थना करें।
चावल का प्रयोग
अनंत चतुर्दशी के दिन पूजा में चावल का प्रयोग शुभ माना जाता है। भगवान विष्णु को चावल अर्पित करें और इसके बाद घर के चारों कोनों में चावल की थोड़ी मात्रा छिड़कें। इससे घर में समृद्धि और शांति बनी रहती है।
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पवित्र जल से स्नान
इस दिन सुबह पवित्र नदियों या तीर्थ स्थलों पर स्नान करने का विशेष महत्व है। यदि संभव हो तो गंगा, यमुना या किसी अन्य पवित्र नदी में स्नान करें। यदि यह संभव नहीं है, तो घर पर ही स्नान के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। इससे शरीर और मन की शुद्धि होती है और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
श्री विष्णु सहस्रनाम का पाठ
अनंत चतुर्दशी के दिन श्री विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना अत्यंत फलदायी माना जाता है। इसका पाठ करने से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
उपवास रखें
अनंत चतुर्दशी के दिन व्रत रखने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। इस दिन निराहार या फलाहार व्रत रखें और भगवान विष्णु का ध्यान करें।
इसी आशा के साथ कि, आपको यह लेख भी पसंद आया होगा एस्ट्रोसेज के साथ बने रहने के लिए हम आपका बहुत-बहुत धन्यवाद करते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
1. साल 2024 में कब रखा जाएगा अनंत चतुर्दशी का व्रत?
हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी मनाई जाती है। इस साल यह तिथि 17 सितंबर 2024 मंगलवार को पड़ रही है।
2. अनंत चतुर्दशी का क्या महत्व है?
यह पर्व विशेष रूप से भगवान विष्णु से अनंत सुख, शांति, और समृद्धि की कामना करने के लिए मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी कष्टों का निवारण होता है।
3. अनंत चतुर्दशी को क्या दान करना चाहिए?
अनंत चतुर्दशी के दिन अनाज का दान करें।
4. अनंत चतुर्दशी क्यों मनाई जाती है?
अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से जीवन के कष्टों का अंत होता है और प्रत्येक व्यक्ति को अनंत सुख मिलता है।
साल का आखिरी चंद्रग्रहण इन राशियों पर डालेगा प्रभाव; गर्भवती महिलाएं इन बातों का रखें ध्यान!
चंद्र ग्रहण 2024: 18 सितंबर 2024 को लगने वाला चंद्र ग्रहण साल का आखिरी चंद्र ग्रहण होगा। धार्मिक नजरिए से ग्रहण की घटना को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। ग्रहण के दौरान कई तरह के कार्य करने की मनाही होती है। ऐसी मान्यता है कि चंद्र ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाओं को अपने गर्भ में पल रहे बच्चों का विशेष ध्यान देना चाहिए क्योंकि इन पर ग्रहण का बुरा प्रभाव जल्दी पड़ता है। बता दें कि जब सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी एक सीध में होते हैं और पृथ्वी चंद्रमा और सूर्य के बीच में दिखाई देती है और चंद्रमा पर अपनी छाया डालती है जिससे चंद्रमा पूरी तरह या आंशिक रूप से छिप जाता है, तो इसे चंद्र ग्रहण कहा जाता है। साल के आखिरी चंद्र ग्रहण का प्रभाव गर्भवती महिलाओं के अलावा सभी 12 राशियों पर भी देखने को मिलेगा। आइए एस्ट्रोसेज के इस विशेष ब्लॉग में जानते हैं चंद्र ग्रहण से जुड़ी सभी जरूरी बातें।
यह चंद्र ग्रहण एक आंशिक यानी कि खंडग्रास चंद्र ग्रहण होने वाला है। खंडग्रास चंद्र ग्रहण एक आंशिक चंद्र ग्रहण है जो पूर्णिमा को होता है। साल का यह आखिरी चंद्र ग्रहण बुधवार, 18 सितंबर 2024 को भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन सुबह 07 बजकर 43 मिनट पर शुरू होगा और सुबह 08 बजकर 46 मिनट तक रहेगा। भाद्रपद मास में लगने वाला यह खंडग्रास चंद्र ग्रहण 2024 मीन राशि के अंतर्गत पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में लगेगा।
ग्रहण के दौरान राहु चंद्रमा और सूर्य के साथ युति करेंगे, जबकि शुक्र और केतु सातवें भाव में मौजूद होंगे। चंद्रमा से बृहस्पति तीसरे भाव में, मंगल चौथे में, बुध छठे में और वक्री शनि बारहवें में भाव में रहेंगे। इसके परिणामस्वरूप, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में मीन राशि के तहत पैदा हुए जातकों को इस ग्रहण के दौरान लाभ होगा।
चंद्र ग्रहण 2024: दृश्यता
तिथि
दिन व दिनांक
चंद्र ग्रहण प्रारंभ समय
चंद्र ग्रहण समाप्त समय
दृढ़ता के क्षेत्र
भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा
बुधवार, 18 सितंबर, 2024
प्रातः काल 7: 43 बजे से
प्रातः काल 8:46 बजे तक
दक्षिणी अमेरिका, पश्चिमी अफ्रीका और पश्चिमी यूरोप (भारत में जब यह खंडग्रास चंद्र ग्रहण प्रारंभ होगा तब तक संपूर्ण भारत में चंद्रस्त की स्थिति हो चुकी होगी इसलिए यह ग्रहण भारत में लगभग दृश्यमान नहीं होगा। केवल उपच्छाया प्रारंभ होते समय उत्तर पश्चिम भारत और उत्तर दक्षिणी शहरों में चंद्रस्त होगा इसलिए कुछ समय के लिए चंद्रमा की चांदनी में धुंधलापन आ सकता है। इस प्रकार भारत में यह उपच्छाया के रूप में भी आंशिक रूप से ही दिखाई देने के कारण यह ग्रहण की श्रेणी में नहीं आएगा।)
अंतिम चंद्र ग्रहण 2024: सूतक काल
चूंकि चंद्र ग्रहण 2024 भारत में दिखाई नहीं देगा इसलिए इस ग्रहण के लिए सूतक काल की गणना नहीं की जाएगी यानी कोई सूतक काल नहीं होगा। हालांकि, इस बात की जानकारी जरूर होनी चाहिए कि सूतक काल के दौरान, किसी भी शुभ कार्य को करने से बचना चाहिए। चंद्र ग्रहण प्रारंभ होने से पूर्व लगभग तीन पहर पूर्व का समय होता है। यानी कि जब चंद्र ग्रहण शुरू होने वाला हो तो उसे लगभग 9 घंटे पूर्व से उसका सूतक काल प्रारंभ हो जाता है और सूतक काल का समापन चंद्र ग्रहण के मोक्ष यानी कि चंद्र ग्रहण के समापन के साथ ही हो जाता है। यदि आप इस दौरान कोई शुभ कार्य करते हैं तो मान्यता अनुसार उसके शुभ फल प्रदान करने की स्थिति समाप्त हो जाती है।
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चंद्र ग्रहण और इसके प्रकार
पूर्ण चंद्र ग्रहण
जब पृथ्वी की छाया द्वारा सूर्य के प्रकाश को चंद्रमा पर पहुंचने से पूर्ण रूप से रोक लिया जाता है तो ऐसी स्थिति में सूर्य के प्रकाश से कुछ समय के लिए हीन होकर चंद्रमा लाल या गुलाबी रंग का प्रतीत होने लगता है और पृथ्वी से देखने पर तो चंद्रमा के धब्बे भी स्पष्ट दिखाई देने लगते हैं। ऐसी स्थिति को पूर्ण चंद्र ग्रहण या फिर सुपर ब्लड मून कहा जा सकता है।
आंशिक चंद्र ग्रहण
आशिक चंद्र ग्रहण की बात करें तो यह वह स्थित है जब पृथ्वी की चंद्रमा से दूरी अधिक होती है तो ऐसी स्थिति में सूर्य का प्रकाश पृथ्वी पर पड़ता है लेकिन पृथ्वी की छाया द्वारा चंद्रमा की दूरी अधिक होने के कारण पूर्ण रूप से चंद्रमा ग्रसित नहीं हो पाता है बल्कि पृथ्वी की छाया से उसका कुछ भाग ही ग्रसित दिखाई देता है। तो इस स्थिति को आंशिक चंद्र ग्रहण कहा जाता है
उपच्छाया चंद्र ग्रहण
उपच्छाया चंद्र ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा पृथ्वी की उपछाया (पृथ्वी की छाया का हल्का बाहरी भाग) से होकर गुजरता है, जिसके कारण चंद्रमा हल्का काला हो जाता है, जिसे देख पाना बहुत कठिन हो जाता है।
चंद्र ग्रहण कब और कैसे होता है
संरेखण: चंद्र ग्रहण होने के लिए, सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा को एक सीधी रेखा में या उसके बहुत करीब संरेखित होना चाहिए। यह संरेखण पूर्णिमा के दौरान होता है।
आवृत्ति: चंद्र ग्रहण साल में कम से कम दो बार होता है, लेकिन पूर्ण चंद्र ग्रहण बहुत कम होता है। सटीक आवृत्ति पृथ्वी और चंद्रमा की विशिष्ट कक्षीय गतिशीलता पर निर्भर करती है।
अवधि: चंद्र ग्रहण का कुल चरण कुछ मिनटों से लेकर एक घंटे से अधिक तक चल सकता है, जबकि आंशिक चरणों सहित पूरी घटना कई घंटों तक चल सकती है।
दृश्यता: सूर्य ग्रहण के विपरीत, चंद्र ग्रहण को अपनी आंखों से देखा जा सकता है और यह सुरक्षित है।
सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व: चंद्र ग्रहण का विभिन्न सभ्यताओं में सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व रहा है। इसे महत्वपूर्ण घटनाओं के रूप में देखा गया है। चंद्र ग्रहण को ऐसे अनुष्ठान करने के लिए भी शुभ समय माना जाता है जो व्यक्ति की भावनात्मक और आध्यात्मिक ऊर्जा को संतुलित और सामंजस्य बनाने का प्रयास करते हैं।
वैज्ञानिक महत्व: विज्ञान के अनुसार, चंद्र ग्रहण मात्र एक खगोलीय घटना है। जिस तरह पृथ्वी सूर्य के चक्कर लगाती है, उसी तरह चंद्रमा एक प्राकृतिक उपग्रह है, जो पृथ्वी के चक्कर लगाती है।
कुल मिलाकर, चंद्र ग्रहण देखने में आश्चर्यजनक और वैज्ञानिक रूप से दिलचस्प घटना है, जो हमें व्यापक ब्रह्मांड से जोड़ती हैं।
चंद्र ग्रहण 2024: सभी 12 राशियों पर प्रभाव
मेष राशि
मेष राशि के लिए, चंद्रमा चौथे भाव के स्वामी हैं और यह राहु के साथ बारहवें भाव में मौजूद होंगे। इस दौरान लंबी दूरी की यात्रा या विदेश यात्रा करने से बचें क्योंकि आपको कई प्रकार की बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है। बारहवें भाव में चंद्रमा और राहु की युति आपके विवाह और घरेलू जीवन पर प्रभाव डाल सकती है। इस दौरान आप एक्स्ट्रा मैरिज अफेयर में फंस सकते हैं।
यह ग्रहण आपके आर्थिक जीवन को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती है और इस दौरान आप धन की बचत करने में असफल हो सकते हैं। आशंका है कि आपके परिवार में कोई बीमार पड़ जाए और आपका पैसा अस्पताल के बिलों का भुगतान करने में खत्म हो जाए।
वृषभ राशि
वृषभ राशि के जातकों के लिए चंद्रमा तीसरे भाव के स्वामी हैं और अब यह आपके ग्यारहवें भाव में स्थित होंगे। जब राहु ग्यारहवें भाव में चंद्रमा के साथ युति करते हैं, तो यह जातक के रिश्तों, सामाजिक जीवन और वैवाहिक जीवन पर बुरा प्रभाव डाल सकते हैं।
राहु चंद्रमा आपस में शत्रुता का भाव रखते हैं। राहु के साथ मीन राशि में चंद्रमा कमजोर है। ऐसे में, इस अवधि के दौरान आपको हानि हो सकती है या पैतृक संपत्ति से नुकसान उठाना पड़ सकता है। यह ग्रहण आपके स्वास्थ्य पर भी असर डाल सकता है जैसे कि कान में संक्रमण, सुनने की समस्या आदि परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
मिथुन राशि
चंद्रमा मिथुन राशि के जातकों के लिए दूसरे भाव के स्वामी हैं और राहु के साथ दसवें भाव में स्थित होंगे। अन्य राशियों के विपरीत, मिथुन राशि के जातकों को इस चंद्र ग्रहण से करियर और आर्थिक जीवन में लाभ होगा। आप काम में उत्कृष्टता प्राप्त करेंगे और आपको पदोन्नति भी हासिल होगी।
साथ ही, आय के नए स्रोत आपके लिए खुलेंगे। हालांकि, आपको अहंकार की भावना से दूर रहना होगा और अपनी आंखों का ख्याल रखना होगा क्योंकि आंखों का संक्रमण आपको परेशान कर सकता है।
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कर्क राशि
चंद्रमा कर्क राशि के जातकों के लिए लग्न या पहले भाव के स्वामी हैं और अब नौवें भाव में राहु के साथ युति करेंगे। इसके परिणामस्वरूप, आपके पिता पर भी इस ग्रहण का प्रभाव पड़ेगा। वे किसी घातक बीमारियों से ग्रस्त हो सकते हैं या मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझते सकते हैं।
कार्यक्षेत्र में आपको बहुत अधिक बदलाव देखने को मिल सकते हैं और इस वजह से आपको बार-बार नौकरी बदलनी पड़ सकती है। आप एक ही समय तक एक ही नौकरी में संतुष्ट नहीं रह सकते।
सिंह राशि
सिंह राशि के जातकों के लिए चंद्रमा बारहवें भाव के स्वामी हैं और यह आपके आठवें भाव में स्थित होंगे। आठवें भाव में चंद्रमा और राहु की युति बिल्कुल भी अनुकूल प्रतीत नहीं हो रही है। चंद्र ग्रहण के दौरान आपका मन चंचल और विकृत मानसिकता वाला होगा। साथ ही, आप लोगों के सामने संदिग्ध व्यवहार करेंगे और नैतिकता की कमी महसूस करेंगे।
आठवें भाव स्थित होने की वजह से आपके आर्थिक जीवन में बहुत अधिक प्रभाव देखने को मिलेगा और अचानक धन की हानि हो सकती है। गाड़ी या अन्य चीज़ों के बिलों का भुगतान करना आपके लिए मुश्किल हो सकता है, जिस वजह से आप तनाव में आ सकते हैं। आशंका है कि इस दौरान आपको अवांछित और अस्पष्टीकृत चिंता और भय हो।
कन्या राशि
कन्या राशि के जातकों के लिए चंद्रमा ग्यारहवें भाव के स्वामी हैं और यह आपके सातवें भाव में स्थित होंगे। इसके परिणामस्वरूप, आप स्वाभाविक रूप से चतुर, चालाक और आत्मनिर्भर होंगे। हालांकि, आप व्यवसाय या काम को लेकर परेशान व मानसिक चिंता का अनुभव कर सकते हैं। इस अवधि आपके व्यवहार में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा। आप ईर्ष्यालु होंगे और कार्यस्थल पर अहंकार की भावना से भरे होंगे।
हालांकि, आपका जीवनसाथी रचनात्मक, दयालु और समझदार होगा। सातवें भाव में राहु और चंद्रमा की युति है इसलिए आप अपनी पत्नी की तरफ से भी धन की उम्मीद कर सकते हैं। हो सकता है कि आप दोनों रोमांटिक रूप से नहीं बल्कि शैक्षणिक रूप से अधिक अनुकूल हों।
तुला राशि
तुला राशि के जातकों के लिए चंद्रमा दसवें भाव के स्वामी है और यह आपके छठे भाव में राहु के साथ युति करेंगे। इसके परिणामस्वरूप, आपके लिए अनुकूल परिणाम प्राप्त करना मुश्किल हो सकता है। आपका तनाव और मानसिक थकावट से ग्रस्त हो सकते हैं। यदि आपका औरा नकारात्मक है तो लोगों को अपने पक्ष में रखना आपके लिए मुश्किल हो सकता है।
छठे भाव में राहु-चंद्रमा की युति अभिचार दोष को भी प्रकट करता है। इसके परिणामस्वरूप आप भावनात्मक रूप से प्रताड़ित हो सकते हैं। यदि आपके कोई दुश्मन हैं, तो आप उनसे बदला लिए बिना उन्हें नहीं छोड़ेंगे।
वृश्चिक राशि के जातकों के लिए चंद्रमा नौवें भाव के स्वामी हैं। चंद्रमा और राहु की पांचवें भाव में युति होगी। यह युति स्वाभाविक रूप से आपको बुद्धिमान और समझदार बनाएगी। कई बार ऐसा भी हो सकता है कि आपको लगे कि कोई भी आपको नहीं समझता, लेकिन जब तक आप अपना आत्मविश्वास बनाए रखेंगे, तब तक आपके जीवन में सब कुछ ठीक रहेगा।
राहु और चंद्रमा आपकी जन्म कुंडली के पांचवें भाव में युति कर रहे हैं और पितृ दोष को बना रहे हैं। परिणामस्वरूप, आप गर्भावस्था संबंधी समस्याओं या बच्चों से संबंधित अन्य कठिनाइयों से पीड़ित हो सकते हैं। यह भी संभावना है कि आपको गर्भपात करना पड़े।
धनु राशि
चंद्रमा धनु राशि के लिए आठवें भाव के स्वामी हैं और चौथे भाव में राहु के साथ युति करेंगे। इसके परिणामस्वरूप, अस्थिर मानसिकता वाले बेचैन हो सकते हैं क्योंकि राहु और चंद्रमा दोनों चौथे भाव में हैं। आपका मस्तिष्क सक्रिय रहेगा और आप जल्दी चीज़ों को समझने में सक्षम होंगे।
इस अवधि के दौरान आपकी माता का स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है और उन्हें स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती है। इसके अलावा, परिवार के सदस्यों के बीच बहस व विवाद होने की आशंका है, जिसके कारण घर का माहौल पूरी तरह खराब हो सकता है। संभावना है कि आप चंद्र ग्रहण 2024 के दौरान घर अच्छे माहौल का आनंद लेने में सक्षम न हो।
मकर राशि
मकर राशि के जातकों के लिए चंद्रमा सातवें भाव के स्वामी हैं और अब राहु के साथ तीसरे भाव में स्थित होंगे। तीसरे भाव में राहु और चंद्रमा की युति के प्रभाव के कारण आपका मन उदास हो सकता है।
कभी-कभी आप बहुत ज़्यादा मेहनत करते हैं और कभी-कभी आप अपने दैनिक जीवन पर विचार नहीं कर पाते हैं। आशंका है कि इस अवधि के दौरान आपका अपने छोटे भाई-बहनों के साथ रिश्ता खराब हो। साथ ही, आप अपने कार्यों पर संदेह कर सकते हैं क्योंकि आपमें साहस की कमी देखने को मिल सकती है। इस दौरान आर्थिक जीवन में कठिनाइयां आपके संघर्षों को और अधिक बढ़ा सकता है।
कुंभ राशि
कुंभ राशि के जातकों के लिए चंद्रमा छठे भाव के स्वामी हैं, लेकिन चंद्र ग्रहण 2024 के दौरान यह दूसरे भाव में स्थित होंगे। इसके फलस्वरूप आपकी आवाज़ मधुर और कोमल होगी और आप अपनी संपत्ति, यहां तक कि अपने पैसे का भी प्रदर्शन करना पसंद कर सकते हैं।
चंद्रमा और राहु के दूसरे भाव में होने से आप चालाक प्रवृत्ति के हो सकते हैं। आपके लिए अपनी ही बातों से किसी को गुमराह करना आसान होगा। परिणामस्वरूप, आप स्वभाव से धोखेबाज या बेईमान बन सकते हैं। इस बात की प्रबल संभावना है कि आपका परिवार आपसे खुश न रहे। आपके आस-पास, लगातार विवाद करने वाले और झूठ बोलने वाले लोग रहेंगे। आपको सलाह दी जाती है कि इस अवधि के दौरान किसी को भी पैसा उधार न दें क्योंकि आशंका है कि वह पैसे आपको कभी वापस न मिले।
मीन राशि के जातकों के लिए चंद्रमा आपके पांचवें भाव के स्वामी हैं, लेकिन अब चंद्र ग्रहण 2024 के दौरान यह आपके पहले भाव में स्थित होगा। पहले भाव में राहु और चंद्रमा की युति आपको एक संदिग्ध चरित्र दे सकती है और महिलाओं की वजह से आपकी बदनामी हो सकती है।
आप ऐसे व्यक्ति हो सकते हैं, जिनकी लोगों के सामने झूठ बोलने की प्रवृत्ति हो। ज़रूरत पड़ने पर आप कूटनीतिक पक्ष दिखा सकते हैं और स्थिति के अनुसार अपने व्यवहार और जवाबों को समायोजित कर सकते हैं। पहले भाव में राहु और चंद्रमा की युति के नकारात्मक पहलू की बात करें तो, आप आसानी से उत्तेजित हो सकते हैं। चाहे कार्यस्थल पर हो या बाहर आप नकारात्मक सोच रख सकते हैं और चीजों को गुप्त रखने की आजीवन आदत बना सकते हैं।
आखिरी चंद्र ग्रहण: उपाय
राहु के बीज मंत्र: “ॐ रां राहवे नमः” का प्रतिदिन 108 बार जाप करें।
चंद्रमा को मजबूत करने के लिए भगवान शिव की पूजा करें और रुद्राभिषेक करें
चंद्र ग्रहण के दौरान ध्यान करने से आपको राहु के नकारात्मक प्रभावों से बचने में मदद मिल सकती है।
राहु के नकारात्मक प्रभावों को कम करने में मदद के लिए अपने गले में नीले धागे में चंदन बांधकर पहनें।
भगवान विष्णु की पूजा करें और विष्णु सहस्रनाम सुनें क्योंकि बृहस्पति ही एकमात्र ऐसा ग्रह है जो राहु की नकारात्मकता को दूर कर सकता है।
चंद्र ग्रहण 2024: गर्भवती महिलाओं के लिए सावधानियां
ग्रहण के दौरान गर्भवती माताओं को बेहद सावधान रहने की ज़रूरत होती है क्योंकि चंद्रमा राहु की छाया में होता है, जो महिलाओं को भावनात्मक रूप से परेशान कर सकता है। बता दें कि चंद्रमा भावनाओं का कारक है। यह मां की भावनात्मक या मनोवैज्ञानिक सेहत को प्रभावित कर सकता है जिसका असर गर्भ में पल रहे बच्चे पर नकारात्मक रूप से पड़ सकता है इसलिए, गर्भवती माताओं को चंद्र ग्रहण के दौरान कुछ सावधानियां अवश्य बरतनी चाहिए।
गर्भवती महिलाओं को चंद्र ग्रहण के दौरान बाहर जाने से बचना चाहिए क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दौरान निकलने वाली हानिकारक किरणों से भ्रूण को नुकसान पहुंच सकता है।
गर्भवती महिलाओं को कैंची या ब्लेड जैसे किसी भी नुकीले उपकरण का उपयोग करने से बचने की सलाह दी जाती है।
आमतौर पर, लोग चंद्र ग्रहण के दौरान खाने से परहेज़ करते हैं। हालांकि, गर्भवती महिलाएं दवाएं ले सकती हैं और ताज़े फल या सात्विक भोजन भी खा सकती हैं।
चंद्र ग्रहण के दौरान, गर्भवती महिलाओं से खिड़कियां और दरवाज़े ढके रखने का आग्रह किया जाता है।
चंद्र ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाओं को ध्यान लगाने और मंत्र पढ़ने से लाभ होगा।
किसी भी हानिकारक परिणाम को रोकने के लिए, गर्भवती महिलाओं को चंद्र ग्रहण से पहले और बाद में स्नान करने की सलाह दी जाती है।
गर्भवती महिलाओं को सेफ्टी पिन, चूड़ियां और पिन सहित किसी भी तरह का कोई भी धातु का आभूषण नहीं पहनना चाहिए।
चंद्र ग्रहण के दौरान, सोना सख्त वर्जित होता है।
गर्भवती महिलाओं को इन सभी दिशा-निर्देशों का पालन करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि 18 सितंबर को होने वाला चंद्र ग्रहण सूतक काल के भीतर नहीं आता है।
चिंता और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को रोकने के लिए मंत्र या भजन का जाप करने और ईश्वर-पूजा में भाग लेने से केवल गर्भवती महिलाओं को ही नहीं बल्कि सभी को लाभ होगा।
चंद्र ग्रहण 2024 : देश-दुनिया पर प्रभाव
सितंबर में लगने वाला चंद्र ग्रहण भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष में होगा। चूंकि यह चंद्र ग्रहण भाद्रपद माह में पड़ेगा इसलिए भारत के पश्चिमी हिस्से में स्थित देश हमारे लिए परेशानी खड़ी कर सकता है, लेकिन भारत इन समस्याओं का समझदारी से सामना कर पाएगा।
भारत के पश्चिमी हिस्से में स्थित देशों के साथ व्यापार पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
चंद्र ग्रहण भाद्रपद महीने में पड़ने के कारण दुनिया भर में प्राकृतिक आपदाएं आ सकती हैं।
चंद्र ग्रहण के दौरान दुनिया भर में आत्महत्या या भावनात्मक उत्पीड़न के मामलों में वृद्धि देखी जा सकती है। ऐसे में, परिवार और उन लोगों के करीब रहना सबसे अच्छा है, जिन पर आप भरोसा कर सकते हैं।
इस दौरान अकाउंट और फाइनेंस, बिजनेस, फार्मास्युटिकल इंडस्ट्रीज आदि क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों को इस दौरान परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
भारत में पंजाब, गुजरात, राजस्थान आदि राज्यों में पानी से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं।
पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में चंद्र ग्रहण के कारण डॉक्टर, चिकित्सक और व्यवसाय से जुड़े लोगों को अपने पेशे में मंदी का सामना करना पड़ सकता है।
इसी आशा के साथ कि, आपको यह लेख भी पसंद आया होगा एस्ट्रोसेज के साथ बने रहने के लिए हम आपका बहुत-बहुत धन्यवाद करते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
1- चंद्र ग्रहण क्या है?
जब सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी एक सीध में होते हैं और पृथ्वी चंद्रमा और सूर्य के बीच में दिखाई देती है और चंद्रमा पर अपनी छाया डालती है जिससे चंद्रमा पूरी तरह या आंशिक रूप से छिप जाता है, तो इसे चंद्र ग्रहण कहा जाता है।
2- चंद्र ग्रहण को खगोलीय घटना के रूप में कब खोजा गया था?
29 जनवरी, 1137 ईसा पूर्व
3- क्या चंद्र ग्रहण किसी के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है?
यदि कोई व्यक्ति चंद्र ग्रहण के दौरान पहले से ही अस्वस्थ है, तो यह उसके स्वास्थ्य और मानसिक स्वास्थ्य पर और भी अधिक नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
गणेश विसर्जन 2024- इन मंत्रों का जाप और विधि का कर लिया पालन तो सालों साल बनी रहेगी बाप्पा की कृपा!
गणेश उत्सव के भव्य त्यौहार का समापन होता है गणेश विसर्जन के साथ। इस दिन को अनंत चतुर्दशी भी पड़ती है। अगर आप गणेश उत्सव से संबंधित हमारा विस्तृत ब्लॉग पढ़ना चाहते हैं तो आप इस लिंक पर क्लिक कर सकते हैं।
बात करें गणेश विसर्जन की तो, गणेश उत्सव के दौरान जिस तरह से भव्य रूप से बाप्पा को घर लाया जाता है, उनका आदर सत्कार, पूजा की जाती है, उसी तरह से अनंत चतुर्दशी के दौरान ढोल नगाड़ों के साथ झांकियां निकालकर बाप्पा को स-सम्मान विधिपूर्वक पूजा आदि करके किसी भी पवित्र जलाशय या नदी में विसर्जित कर दिया जाता है। माना जाता है कि गणेश चतुर्थी के दिन ही भगवान गणेश का जन्म हुआ था।
जिस तरह से बाप्पा को घर में लाने का एक शुभ मुहूर्त होता है ठीक उसी तरह से विसर्जन का भी शुभ मुहूर्त होता है जिसका पालन करके अगर आप बाप्पा का विसर्जन करते हैं तो आपको अपने जीवन में शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं। बात करें वर्ष 2024 में गणपति बाप्पा विसर्जन के शुभ मुहूर्त की तो,
इस दिन का अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:51 से दोपहर 12:40 तक रहेगा और विजय मुहूर्त दोपहर 2:18 से 3:07 तक रहेगा।
इसके अलावा इस बात का विशेष ध्यान रखें की विसर्जन के समय अनंत चतुर्दशी रहती है और ऐसे में भगवान गणेश के साथ भगवान अनंत की पूजा इस दिन अवश्य करें।
गणेश विसर्जन के लिए शुभ चौघड़िया मुहूर्त
प्रातः मुहूर्त (चर, लाभ, अमृत) – 09:11 से 13:47
अपराह्न मुहूर्त (शुभ) – 15:19 से 16:51
सायाह्न मुहूर्त (लाभ) – 19:51 से 21:19
रात्रि मुहूर्त (शुभ, अमृत, चर) – 22:47 से 27:12+
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ – सितम्बर 16, 2024 को 15:10 बजे
चतुर्दशी तिथि समाप्त – सितम्बर 17, 2024 को 11:44 बजे
बृहत् कुंडली में छिपा है, आपके जीवन का सारा राज, जानें ग्रहों की चाल का पूरा लेखा-जोखा
गणेश विसर्जन का महत्व
हिंदू धर्म में भगवान गणेश को बुद्धि, विवेक और समृद्धि का देवता माना गया है। हिंदू धर्म में कोई भी शुभ कार्य करने से पहले गणपति बाप्पा या भगवान गणेश की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। ऐसी मान्यता है कि भगवान गणेश की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन की सारे परेशानियां धीरे-धीरे करके दूर होने लगती है। इसके अलावा भगवान गणेश का संबंध बुध ग्रह से जोड़कर देखा जाता है। ऐसे में अगर आप भगवान गणपति की सच्चे दिल से पूजा करते हैं तो आपको उनकी पूजा से मिलने वाले शुभ परिणाम के साथ-साथ ग्रहों की शांति का भी शुभ परिणाम प्राप्त होता है।
इसके अलावा गणेश भगवान की पूजा से कई तरह के वास्तु दोष भी जीवन से दूर होने लगते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार गणेश चतुर्थी का पर्व भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है इसलिए इसे विनायक चतुर्थी या कलंक चतुर्थी भी कहते हैं। इस दिन भगवान गणेश की प्रतिमा को लोग घरों और पंडालों में स्थापित करते हैं, विधि विधान से बाप्पा की पूजा करते हैं। 10 दिनों तक चलने वाले इस भव्य उत्सव के आखिरी दिन गणेश भगवान की प्रतिमा को विसर्जित कर दिया जाता है। विसर्जन के दौरान लोग भगवान गणेश से अगले वर्ष जल्दी आने की कामना करते हैं।
क्यों किया जाता है गणपति विसर्जन?
गणेश विसर्जन के सही कारण को ढूंढने जाए तो हिंदू धर्म ग्रंथो में इसका उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि महाभारत ग्रंथ को भगवान गणेश ने ही लिखा था। ऐसा कहा जाता है कि महर्षि वेदव्यास ने गणेश जी को लगातार 10 दिनों तक महाभारत की कथा सुनाई और गणेश जी ने लगातार 10 दिनों तक इस कथा को लिखा। 10 दिनों बाद जब वेदव्यास जी ने गणेश जी को छुआ तो उनका शरीर तप रहा था। इसके बाद वेदव्यास जी ने उन्हें तुरंत ही पास के एक कुंड में ले जाकर उनके तापमान को शांत किया। ऐसा कहा जाता है कि गणेश विसर्जन करने से गणपति महाराज को शीतलता प्राप्त होती है।
परंपरा के अनुसार कहा जाता है कि भगवान गणेश को ठीक उसी तरह से घर से विदा किया जाना चाहिए जैसे हम हमारे घर के सबसे प्रिय व्यक्ति को किसी पर यात्रा पर भेजने से पहले उनकी चीजों और उनकी जरूरत का ध्यान रखते हैं। ऐसे में बात करें गणपति बाप्पा की विदाई के दौरान किन विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए तो,
गणेश भगवान के विसर्जन से पहले उनकी विधिवत रूप से पूजा करें।
पूजा में उन्हें मोदक और फल का भोग अवश्य लगाएँ।
इसके बाद भगवान गणेश की आरती उतारें।
उनसे विदा लेने की प्रार्थना करें।
पूजा वाली जगह पर गणपति महाराज की प्रतिमा को सम्मान पूर्वक उठा लें।
एक पटरे पर गुलाबी रंग का वस्त्र बिछा लें अब प्रतिमा को एक लकड़ी के पटरी पर धीरे से रख लें।
लकड़ी के पटरी को पहले गंगाजल से साफ अवश्य करें।
गणेश मूर्ति के साथ-साथ फल, फूल, वस्त्र और मोदक की पोटली जरूर रख दें।
इसके अलावा एक पोटली में थोड़े से चावल, गेहूं और पांचों मेवे रखकर कुछ सिक्के भी इसमें डाल दें।
अब इसे भी गणेश भगवान की प्रतिमा के पास रख दें।
इसके बाद गणेश भगवान की मूर्ति को किसी बहते हुए जल में विसर्जित कर दें।
विसर्जन करने से पहले उनकी आरती करें। आरती के बाद गणपति बाप्पा से मनोकामना पूरी करने का अनुरोध करें।
गणेश विसर्जन की पूजा के दौरान इन बातों का रखें विशेष ख्याल
जब भी भगवान गणेश की पूजा करें कि तो उनकी पूजा में तुलसी का प्रयोग बिल्कुल भी नहीं करना है। पूजा में भगवान गणपति की ऐसी ही प्रतिमा लाएं जिससे गणेश भगवान की सूंड बाईं दिशा की तरफ घूम रही हो। गणेश जी को मोदक और मूषक दोनों ही बहुत प्रिय हैं इसलिए ऐसी मूर्ति का चयन करें जिसमें यह दोनों चीज हों।
कब किया जा सकता है गणेश विसर्जन?
गणेश विसर्जन को लेकर अलग-अलग लोगों के बीच अलग-अलग मान्यताएं होती हैं। हालांकि अगर परंपरा के अनुसार बात करें तो गणेश चतुर्थी के दिन भी गणेश विसर्जन किया जाता है। दरअसल इस दिन की पूजा करने के बाद भी बहुत से लोग विसर्जन कर देते हैं लेकिन चतुर्थी के दिन ही गणेश विसर्जन बेहद ही कम लोकप्रिय है।
इसके अलावा डेढ़ दिन के बाद गणेश विसर्जन किया जा सकता है। बहुत से लोग या यूं कहें कि एक बड़ी आबादी गणेश विसर्जन डेढ़ दिन के बाद कर देती है। इस बात का ध्यान रखें की गणेश पूजा के बाद प्रतिमा को मध्याह्न के अगले पहर पर विसर्जित करें।
इसके अलावा बहुत से लोग तीसरे दिन या फिर पांचवें दिन या फिर सातवें दिन विसर्जन करते हैं। हालांकि इसमें सबसे ज्यादा लोकप्रिय तो अनंत चतुर्दशी का ही दिन है लेकिन फिर भी बहुत से लोग तीसरे दिन, पांचवें दिन और सातवें दिन भी गणेश विसर्जन करते हैं। ऐसे में आप भी चाहें तो इन दिनों का चयन गणेश विसर्जन के लिए कर सकते हैं।
इसके बाद अंत में आता है अनंत चतुर्थी। दसवें दिन विसर्जन करना अर्थात अनंत चतुर्दशी के दिन विसर्जन करना सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। चतुर्दशी तिथि के दिन भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा की जाती है जिससे चतुर्थी का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। इसके अलावा भगवान विष्णु के भक्त अनंत चतुर्दशी के दिन उपवास रखते हैं, भगवान विष्णु की पूजा करते हैं और इस दौरान हाथों में धागा बांधते हैं जिसमें 14 अनंत गांठे होती हैं। कहा जाता है यह धागा भक्तों के हर संकट से जीतने की क्षमता देता है।
विसर्जन के दौरान इन दो मंत्रों का कर लिया जप तो सालों साल बनी रहेगी बाप्पा की कृपा
गणेश विसर्जन के दौरान इन बातों का रखें विशेष ख्याल
पूजा की हड़बड़ी या बाप्पा की विदाई अपने आप में भावुक पल होता है। ऐसे में कई बार लोगों से अनजाने में गलती हो जाती है। कहा जाता है कि इन गलतियों के चलते व्यक्ति को उनकी पूजा का पूर्ण फल नहीं मिल पाता है। आपसे भी ऐसी चूंक या गलती ना हो जाए इसलिए हम आपको पहले से ही बता देते हैं कि गणेश विसर्जन के दौरान आपको किन बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना है। अगर आपने इन बातों का पालन कर लिया तो आपके जीवन में गणपति बाप्पा की विशेष कृपा हमेशा बनी रहेगी।
गणेश जी की पूजा अर्चना अवश्य करें। बाप्पा की पूजा करना ना भूलें। इसके अलावा गणेश जी को फल, फूल और मोदक अर्पित करें।
बहुत से लोग विसर्जन के दौरान एक पोटली बनाकर ये सभी वस्तुएं गणेश जी के साथ ही विसर्जित कर देते हैं।
इसके अलावा जब आप घर से बाप्पा को विदा करें तो उनसे मंगल की कामना अवश्य करें। कहा जाता है कि बाप्पा अपने भक्तों की हर एक बात अवश्य सुना करते हैं।
ऐसे में पूजा के दौरान अनजाने में भी हुई गलती की क्षमा मांगें और मंगल की कामना करें और उसके बाद बाप्पा की विदाई करें।
घर से निकलते समय बाप्पा को पूरे घर में एक बार अवश्य घुमाएँ और घर की चौखट से निकलते वक्त बाप्पा का मुख घर की तरफ रखें और पीठ बाहर की तरफ। इसी तरह से उन्हें विसर्जन की जगह ले जाएँ।
उनसे दोबारा अगले वर्ष जल्दी आने की कामना करें।
अगर आप कहीं बाहर जाकर गणेश विसर्जन नहीं करते हैं अर्थात घर में ही गणपति बाप्पा का विसर्जन करते हैं तो आपको किन बातों का ध्यान रखना है: इको फ्रेंडली गणपति बाप्पा की मूर्ति बनाएं, इसके बाद आप घर में ही किसी प्लास्टिक के टब या किसी बड़ी वस्तु में गणपति विसर्जन कर दें। विसर्जन करने के बाद उस पानी और मिट्टी को घर के ही किसी गमले या फिर गार्डन में डाल दें। इसके बाद बाप्पा से अगले वर्ष जल्दी आने की कामना करें और अपने जीवन से कष्टों को दूर करने की प्रार्थना करें।
गणेश विसर्जन का वैज्ञानिक कारण जानते हैं आप?
बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि इस विसर्जन में भी विज्ञान छुपा हुआ है। दरअसल बाप्पा का विसर्जन हमें बहुत कुछ बताता है जैसे कि संसार में विसर्जन या यूं कहीं गणेश स्थापना और विसर्जन मानव को यह संकेत देता है कि इस दुनिया में कुछ भी अटल नहीं है। हर किसी को एक न एक दिन जल और जमीन में समाना ही होता है। इसके अलावा इससे पर्यावरण शुद्ध हो जाता है। गणेश विसर्जन के पीछे वैज्ञानिक कारण यह भी माना जाता है कि इससे पर्यावरण शुद्ध हो जाता है। इस मौसम में नदी, तालाब, पोखरे में जमा हुआ बारिश का पानी गणेश विसर्जन से शुद्ध होता है जिससे मछली, जोक जैसे अन्य दूसरे जीव जंतु किसी भी तरह की परेशानी नहीं उठाते हैं।
इतना ही नहीं विसर्जन के लिए चिकनी मिट्टी से बनी गणेश प्रतिमा को शुभ माना जाता है क्योंकि यह जल्दी पानी में घुल जाती है। हल्दी से बढ़ती है पानी की स्वच्छता। मिट्टी से बनी गणेश प्रतिमा को चावल और फूलों के रंगों से रंगने के पीछे का कारण यह बताया जाता है कि इससे पानी दूषित नहीं होता है बल्कि साफ हो जाता है। इसके अलावा गणेश विसर्जन के समय पानी में कई सारी चीज नदी तालाब में प्रवाहित होती है जो बारिश के जल को आसानी से साफ कर देती हैं।
विसर्जन के दौरान गणेश प्रतिमा के साथ हल्दी कुमकुम भी पानी में समाहित होता है। हल्दी एंटीबैक्टीरियल क्वालिटी रखती है। इसके साथ ही दूर्वा, चंदन, धूप, फूल भी पर्यावरण को स्वच्छ बनाते हैं।
इस बात का रखें विशेष ख्याल
आप जब भी बाजार से गणेश प्रतिमा लाने जाएं तो इस बात का विशेष ख्याल रखें कि आप मिट्टी से बनी इको फ्रेंडली प्रतिमा ही घर लेकर आयें। आजकल चंद पैसों की लालच में लोग पीओपी की प्रतिमाएं अर्थात प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी प्रतिमाएं भी बनाने लगे हैं जो दिखने में खूबसूरत तो लगती है लेकिन जब इन प्रतिमाओं को विसर्जित किया जाता है तो यह पानी में घुलती नहीं है और पानी को साफ करने के बजाय उन्हें दूषित और जहरीला कर देती है जो पर्यावरण के लिए भी बहुत खतरनाक है। ऐसे में पीओपी प्रतिमाएं लाने से बचें और जितना हो सके आप घर पर ही इको फ्रेंडली गणपति को बनाकर इन्हें घर पर ही विसर्जित करें। इससे आपकी भक्ति के साथ-साथ पर्यावरण की स्वच्छता भी बनी रहेगी।
अनंत चतुर्दशी का व्रत
बहुत से लोग अनंत चतुर्दशी का व्रत भी रखते हैं। माना जाता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति को अनंत पुण्य प्राप्त होता है। इस दिन भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा की जाती है। पूजा के बाद हाथ में रक्षा सूत्र बांधा जाता है जिसे अनंत कहते हैं। इसे पुरुष दाएं हाथ में बांधते हैं और स्त्रियां बाएं हाथ में पहनती हैं।
इस अनंत सूत्र में 14 गाँठे होती हैं। अगर आप इस दिन का व्रत कर रहे हैं तो,
सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद कलश की स्थापना करें।
कलश पर अष्टदल कमल के समान बने बर्तन में कुश से बने अनंत की स्थापना करें।
इसके आगे कुमकुम, केसर और हल्दी के रंग से बनाया हुआ कच्ची डोर का 14 गांठों वाला अनंत रखें।
इसके बाद इस मंत्र का जाप करें: ‘हे वासुदेव, इस अनंत संसार रूपी महासमुद्र में डूबे हुए लोगों की रक्षा करो और उन्हें अपने ध्यान करने में संलग्न करो। अनंत रूप वाले प्रभु तुम्हें नमस्कार है।
इस मंत्र का उच्चारण करने के बाद अपने हाथ या फिर गले में इस धागे को बांध लें।
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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
1: वर्ष 2014 में गणेश विसर्जन किस दिन किया जाएगा?
गणेश विसर्जन 17 सितंबर 2024 को किया जाने वाला है।
2: अनंत चतुर्दशी का क्या महत्व है?
अनंत चतुर्दशी का व्रत करने से व्यक्ति को अनंत पुण्य प्राप्त होता है। इस दिन भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा की जाती है।
3: भगवान गणेश को किसका देवता कहा जाता है?
भगवान गणेश को विद्या और बुद्धि का देवता माना गया है। साथ ही गणेश भगवान को सनातन धर्म में प्रथम पूजनीय का भी दर्जा दिया गया है।
शुभ नहीं है इस साल का पितृ पक्ष या श्राद्ध, ये दो अशुभ घटनाएं लगा रही हैं ग्रहण
श्राद्ध के 16 दिनों को पितरों के तर्पण लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। भाद्रपद पूर्णिमा से आश्चिन अमावस्या तक पितृ पक्ष चलते हैं और इस बार पितृ पक्ष की शुरुआत 17 सितंबर, 2024 से हो रही है और इसका समापन 02 अक्टूबर, 2024 पर होगा। पितृ पक्ष की 16 तिथियों में पूर्वजों का श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान किया जाता है।
17 सितंबर से पितृ पक्ष शुरू हो रहे हैं लेकिन पहला श्राद्ध 18 सितंबर को होगा। मान्यता है कि पितृ पक्ष के दिनों में हमारे पितर धरती पर आते हैं और अपने परिजनों से मिलते हैं। इस दौरान हम अपने पितरों के लिए जो भी तर्पण या श्राद्ध करते हैं, उससे वे तृप्त होकर हमें अपना आशीर्वाद देते हैं।
ज्योतिष की मानें तो इस साल का श्राद्ध शुभ नहीं है। इसकी एक वजह यह है कि पितृ पक्ष की शुरुआत और इसके समापन दोनों पर ही ग्रहण लग रहा है। ऐसे में कई लोगों के मन में यह संशय है कि क्या पितृ पक्ष के दिन ग्रहण लगने पर तर्पण किया जाना चाहिए या नहीं?
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पितृ पक्ष में लग रहा है ग्रहण
18 सितंबर को पहला श्राद्ध है और इसी दिन साल का दूसरा चंद्र ग्रहण लग रहा है। हालांकि, भारत में यह ग्रहण दिखाई नहीं देगा। 02 अक्टूबर को आखिरी श्राद्ध है और इस दिन आश्विन अमावस्या पर साल का आखिरी सूर्य ग्रहण लग रहा है। ये ग्रहण भी भारत में दिखाई नहीं देगा। इस प्रकार पहले और आखिरी श्राद्ध पर ग्रहण का साया मंडरा रहा है। हालांकि, दोनों ही ग्रहणों का सूतक काल नहीं होगा क्योंकि ये भारत में दिखाई नहीं देंगे।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ग्रहण एक अशुभ घटना होती है और 15 दिनों के भीतर ही दो ग्रहण लगने को और भी ज्यादा अशुभ माना जा रहा है। ऐसे में पहले और आखिरी श्राद्ध पर पितरों का पिंडदान करते समय आपको कुछ विशेष सावधानियां रखनी होंगी।
श्राद्ध के पहले ही दिन चंद्र ग्रहण लग रहा है इसलिए इस दिन मोक्षकाल के खत्म होने के बाद ही पिंडदान करें। वहीं दूसरी ओर, आखिरी श्राद्ध पर सूर्य ग्रहण रात्रि के समय लग रहा है इसलिए आप इस दिन तर्पण आदि कार्य दिन में ही संपन्न कर सकते हैं। इस तरह पितृ पक्ष पर सूर्य ग्रहण का प्रभाव नहीं रहेगा।
बता दें कि 18 सितंबर, 2024 को सुबह 07 बजकर 43 मिनट से लेकर 08 बजकर 46 मिनट तक चंद्र ग्रहण लगेगा। यह ग्रहण भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को लग रहा है। यह ग्रहण दक्षिण अमेरिका, पश्चिम अफ्रीका और पश्चिमी यूरोप में नज़र आएगा। भारत में जब यह खंडग्रास चंद्र ग्रहण शुरू होगा, तब तक संपूर्ण भारत में चंद्र अस्त हो चुका होगा इसलिए यह ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा।
02 अक्टूबर, 2024 को रात को 09 बजकर 13 मिनट पर सूर्य ग्रहण शुरू होगा और इसकी समाप्ति मध्यरात्रि उपरांत सुबह 03 बजकर 17 मिनट पर होगी। यह ग्रहण दक्षिण अमेरिका के उत्तरी हिस्सों, प्रशांत महासागर, अटलांटिक, आर्कटिक, चिली और पेरू आदि में दिखाई देगा। भारत में यह सूर्य ग्रहण दिखाई नहीं देगा।
पितृ दोष से मुक्ति के उपाय
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में पितृ दोष है, तो इससे मुक्ति पाने के लिए श्राद्ध के दिनों में कुछ ज्योतिषीय उपाय किए जा सकते हैं।
अपने पितर की मृत्यु की तिथि पर गरीबों और ब्राह्मणों को भोजन करवाएं। इसके अलावा उन्हें अपने सामर्थ्यानुसार दक्षिणा भी दें।
पीपल के पेड़ पर जल अर्पित करें और अक्षत, पुष्प, गंगाजल और काले तिल चढ़ाएं।
श्राद्ध के दिनों में रोज़ सुबह उठने के बाद दक्षिण दिशा में मुख कर के अपने पितरों को प्रणाम करें।
किसी गरीब कन्या के विवाह में आर्थिक मदद करने से भी पितृ दोष हट जाता है।
पितृ पक्ष में गौ दान का भी बहुत महत्व है।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न 1. सूर्य ग्रहण 2024 कब लग रहा है?
उत्तर. 02 अक्टूबर, 2024 को साल का आखिरी सूर्य ग्रहण लगेगा।
प्रश्न 2. साल 2024 का दूसरा चंद्र ग्रहण कब लगने जा रहा है?
उत्तर. 18 सितंबर को साल का दूसरा चंद्र ग्रहण लगेगा।
प्रश्न 3. पितृ पक्ष की शुरुआत कब से हो रही है?
उत्तर. 17 सितंगर से पितृ पक्ष शुरू हो रहे हैं।
प्रश्न 4. 2024 का दूसरा चंद्र ग्रहण किस तिथि पर पड़ रहा है?
उत्तर. भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को दूसरा चंद्र ग्रहण लगेगा।
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कन्या संक्रांति पर राशिनुसार करें इन चीज़ों का दान, सोने की तरह चमक उठेगी किस्मत!
कन्या संक्रांति ग्रहों के जनक “सूर्य देव” को समर्पित होती है और यह दिन इनकी पूजा-पाठ करने के लिए श्रेष्ठ होता है। हालांकि, सनातन धर्म में संक्रांति के दिन को बहुत पुण्यकारी माना जाता है और इस तिथि पर दान, धर्म, स्नान और पितृ तर्पण आदि कार्य किये जाते हैं। एक वर्ष में आने वाली सभी संक्रांति तिथियों पर दान-पुण्य शुभ माना गया है और इन्हीं में से एक है कन्या संक्रांति। भारतीय हिंदू कैलेंडर के अनुसार, कन्या संक्रांति को आमतौर पर हिन्दू वर्ष का छठा माह शुरू होने पर मनाया जाता है। यह दिन धार्मिक एवं ज्योतिषीय दृष्टि से बहुत ख़ास होता है और शास्त्रों में कन्या संक्रांति को एक पर्व के रूप में मनाया जाता है।
जैसे कि हम सभी जानते हैं कि हिंदू धर्म में जहां सूर्य को देवता स्वरूप में पूजा जाता है, तो वहीं, ज्योतिष में इन्हें नवग्रहों के राजा कहा जाता है। ऐसे में, सूर्य ग्रह के राशि परिवर्तन को एक महत्वपूर्ण घटना के रूप में देखा जाता है जो अब जल्द ही कन्या राशि में प्रवेश करने जा रहे हैं। एस्ट्रोसेज का यह विशेष ब्लॉग आपको कन्या संक्रांति 2024 से संबंधित समस्त जानकारी प्रदान करेगा जैसे कि तिथि, मुहूर्त और समय आदि। सिर्फ इतना ही नहीं, आपको अवगत करवाएंगे कि क्यों मनाई जाती है कन्या संक्रांति, क्या है इसका महत्व और किन कार्यों को इस दिन करना चाहिए। साथ ही बताएंगे, कन्या संक्रांति के दिन सूर्य देव का आशीर्वाद पाने के लिए किन उपायों को करना चाहिए। तो आइए शुरुआत करते हैं इस ब्लॉग की और जानते हैं सबसे पहले कन्या संक्रांति 2024 की तिथि एवं मुहूर्त।
कन्या संक्रांति 2024: तिथि और मुहूर्त
सूर्य देव पूरे संसार को अपने प्रकाश से जीवन देते हैं और यह एकमात्र ऐसे देवता हैं जिनके दर्शन मनुष्य साक्षात कर सकता है इसलिए इनकी चाल-दशा में होने वाला बदलाव महत्वपूर्ण होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सूर्य देव वर्तमान समय में अपनी स्वयं की राशि सिंह में उपस्थित हैं और इसके बाद, यह बुध ग्रह की राशि कन्या में 16 सितंबर की शाम 07 बजकर 29 मिनट पर प्रवेश कर जाएंगे। सूर्य ग्रह अपने गोचरकाल में 26 सितंबर को हस्त नक्षत्र में और 10 अक्टूबर को चित्रा नक्षत्र में प्रवेश करेंगे। इसके पश्चात, 17 अक्टूबर की सुबह 07 बजकर 27 मिनट पर सूर्य देव तुला राशि में चले जाएंगे। चलिए अब आएगी बढ़ते हैं और नज़र डालते हैं कन्या संक्रांति के पूजा मुहूर्त पर।
कन्या संक्रांति पर सूर्य पूजा का शुभ मुहूर्त
कन्या संक्रांति की तिथि: 16 सितंबर 2024, सोमवार
कन्या संक्रांति का पुण्यकाल: दोपहर 12 बजकर 15 मिनट से शाम 06 बजकर 25 मिनट तक
अवधि: 06 घंटे 10 मिनट
कन्या संक्रांति का महापुण्य काल: शाम 04 बजकर 22 मिनट से शाम 06 बजकर 25 मिनट तक
अवधि: 02 घंटे 03 मिनट
कन्या संक्रांति का क्षण: शाम 07 बजकर 53 मिनट पर।
नोट: कन्या संक्रांति पर आप पुण्यकाल और महापुण्य काल के दौरान दान-पुण्य कर सकते हैं।
बृहत् कुंडलीमें छिपा है, आपके जीवन का सारा राज, जानें ग्रहों की चाल का पूरालेखा-जोखा
कन्या संक्रांति पर बन रहा है ये शुभ योग
साल 2024 की कन्या संक्रांति बेहद खास होगी क्योंकि इस दिन अत्यंत शुभ सुकर्मा योग का निर्माण होने जा रहा है। इस योग की समाप्ति 16 सितंबर 2024 की सुबह 11 बजकर 41 मिनट पर होगी और वहीं, शाम को रवि योग बन रहा है। साथ ही, कन्या संक्रांति पर बहुत शुभ शिववास योग भी निर्मित होने जा रहा है और ऐसे में, इस तिथि पर भगवान शिव अपने वाहन नंदी पर दोपहर 03 बजकर 10 मिनट तक विराजमान रहेंगे।
क्या है सूर्य का संक्रांति तिथि से संबंध?
कन्या संक्रांति के धार्मिक महत्व को जानने से पहले आपको बता दें कि ज्योतिष शास्त्र में सूर्य देव को अपना राशि चक्र पूरा करने में एक वर्ष का समय लगता है। सामान्य शब्दों में कहें, तो भगवान सूर्य हर माह अपनी राशि बदलते हैं और इसके फलस्वरूप, वह मेष से लेकर मीन राशि तक, सभी राशियों में बारी-बारी से गोचर करते हैं और इनके गोचर को ही संक्रांति कहा जाता है। सूर्य ग्रह जब-जब जिस राशि में गोचर करते हैं, उस संक्रांति को राशि के नाम से जाना जाता है जैसे कि मेष संक्रांति, वृषभ संक्रांति या मकर संक्रांति।
कन्या संक्रांति का पर्व भगवान सूर्य को समर्पित होता है। नवग्रहों के जनक कहे जाने वाले सूर्य को राशि चक्र में सिंह राशि का स्वामित्व प्राप्त है। यम देव, शनि देव और यमुना भगवान सूर्य की संताने हैं और यह हनुमान जी के गुरु हैं। बजरंगबली ने सूर्य देव से ही सभी वेदों का ज्ञान प्राप्त किया था। बता दें कि सूर्य महाराज को पंचदेवों में से एक स्थान हासिल हैं और इसमें श्री गणेश, भगवान शिव, श्रीहरि विष्णु,देवी दुर्गा और सूर्य देव शामिल हैं।
कन्या संक्रांति का धार्मिक महत्व
सूर्य देव का राशि परिवर्तन प्रत्येक माह होता है इसलिए एक वर्ष में आने वाली सभी 12 संक्रांति तिथियों का अपना धार्मिक महत्व होता है। हिंदू धर्म में संक्रांति को बहुत पुण्यकारी एवं कल्याणकारी माना जाता है। यह दिन दान, धर्म, स्नान और पितृ तर्पण के लिए उत्तम होता है। मान्यता है कि कन्या संक्रांति से हिंदू कैलेंडर के छठे महीने का आरंभ हो जाता है। साथ ही, कन्या संक्रांति के दिन भगवान विश्वकर्मा की भी पूजा की जाती है क्योंकि इस दिन इनकी जयंती मनाई जाती है। सूर्य महाराज इस तिथि पर सिंह राशि से निकलकर कन्या राशि में गोचर कर जाते हैं इसलिए इसे कन्या संक्रांति कहा जाता है। आइए अब हम आपको रूबरू करवाते हैं कन्या संक्रांति के दिन किये जाने वाले धार्मिक अनुष्ठानों के महत्व से।
कन्या संक्रांति पर किये जाने वाले अनुष्ठानों का धार्मिक महत्व
सूर्य उपासना से मिलेगी भगवान सूर्य की कृपा
प्रत्येक संक्रांति की तरह कन्या संक्रांति पर सूर्य देव की पूजा-अर्चना की जाती है जो सृष्टि के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस अवसर पर सूर्य देव की कृपा पाने के लिए विशेष पूजा आयोजित की जाती है और ऐसा करने से जातक को आरोग्यता, वैभव और सफलता का आशीर्वाद मिलता है।
कन्या संक्रांति पर करें विश्वकर्मा पूजा
कन्या संक्रांति को देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है इसलिए इस दिन बंगाल और उड़ीसा के औद्योगिक शहरों में विशेष तौर पर विश्वकर्मा पूजा की जाती है। कन्या संक्रांति पर भगवान विश्वकर्मा की पूजा से भक्तों को उत्कृष्टता और अच्छी गुणवत्ता के साथ काम करने का आशीर्वाद मिलता हैं। इस अवसर पर विश्वकर्मा पूजा के लिए महाराष्ट्र, बिहार और गुजरात समेत भारत के अन्य हिस्सों में भगवान विश्वकर्मा के मंदिरों को सजाया जाता है।
सूर्य भगवान को अर्घ्य
कन्या संक्रांति पर किये जाने वाले धार्मिक कार्यों में सबसे शुभ एवं महत्वपूर्ण सूर्य देव को अर्घ्य देना है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान के बाद तांबे के लोटे से ‘ऊँ सूर्याय नम:’ मंत्र का जाप करते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए।
कन्या संक्रांति पितरों के तर्पण एवं शांति कर्म करने के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है और इस दिन पिंडदान या पितृ तर्पण करने से जातक को पितरों की कृपा प्राप्त होती है। साथ ही, इस तिथि पर पितरों की आत्मा की शांति कराने से सभी तरह के कष्ट एवं संकट दूर होते हैं।
स्नान का महत्व
सूर्य देव को समर्पित कन्या संक्रांति को धार्मिक दृष्टि से विशेष माना जाता है। यह दिन दान-स्नान के लिए सर्वोत्तम होता है इसलिए कन्या संक्रांति पर आत्मा की शुद्धि और शरीर को पापों से मुक्ति दिलाने के लिए व्यक्ति को पवित्र नदियों के जल में स्नान करना चाहिए। अगर नदी में स्नान करना संभव न हो, तो नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर सकते हैं।
दान का महत्व
प्रत्येक संक्रांति के दिन दान-पुण्य करना शुभ रहता है इसलिए इस तिथि पर अनेक प्रकार के दान-पुण्य किए जाते हैं। कन्या संक्रांति पर गरीबों को अपने सामर्थ्य के अनुसार दान करना चाहिए। मान्यता के अनुसार, इस दिन जरूरतमंदों को दान देने से जातक के जीवन से सभी तरह की आर्थिक समस्याओं का अंत हो जाता है। इस दिन सबसे पहले नदी स्नान करें और इसके बाद, सूर्य को अर्घ्य दें फिर दान-पुण्य करें।
कन्या संक्रांति से होती है पितृपक्ष की शुरुआत
सामान्य तौर पर पितृ पक्ष का आरंभ कन्या संक्रांति से माना जाता है जो कि 16 दिनों तक निरंतर चलते हैं। इस दौरान पूर्वजों का तर्पण एवं श्राद्ध कर्म किया जाता है। इस साल पितृ पक्ष 17 सितंबर से शुरू होंगे और इसका अंत 02 अक्टूबर 2024 को सर्वपितृ अमावस्या के साथ हो जाएगा। जब सूर्य देव कन्या में होते हैं, तब पितरों के लिए श्राद्ध कार्य करना चाहिए।
कन्या संक्रांति पर सूर्य देव की कृपा पाने के लिए राशि अनुसार करें ये सरल उपाय
मेष राशि
मेष राशि के जातक कन्या संक्रांति के दिन गायत्री मंत्र का जाप करते हुए जल में लाल गुलाब की पंखुड़ियां और थोड़ा गुड़ मिलाकर सूर्य देव को अर्घ्य दें।
वृषभ राशि
वृषभ राशि वाले कन्या संक्रांति पर किसी ब्राह्मण को या फिर गरीबों को गुड़ और गेहूं का दान करें।
मिथुन राशि
मिथुन राशि वालों के लिए कन्या संक्रांति पर आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करना शुभ रहेगा।
कर्क राशि
कर्क राशि के जातक इस दिन लाल या नारंगी रंग के वस्त्र धारण करें। साथ ही, देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा को नारंगी रंग के फूल अर्पित करें।
सिंह राशि
सिंह राशि के जातक कन्या संक्रांति के अवसर पर गरीबों एवं जरूरतमंदों को तिल और उड़द की दाल का दान करें।
कन्या राशि
कन्या राशि वाले इस दिन सूर्य देव के मंत्र “ ॐ सूर्याय नमः” का 108 बार जाप करें।
तुला राशि
तुला राशि के जातक कन्या संक्रांति पर भगवान सूर्य देव की पूजा-अर्चना करें। साथ ही, गरीबों को सफेद या पीली मिठाई का दान करें।
वृश्चिक राशि
कन्या संक्रांति के दिन वृश्चिक राशि वाले अपने घर या ऑफिस में सूर्य यंत्र की स्थापना करके उसकी पूजा करें।
धनु राशि
धनु राशि के जातक कन्या संक्रांति पर भगवान सूर्य की पूजा करने के बाद शंख बजाएं। साथ ही, पितरों की शांति के लिए भी इस दिन पूजा करें।
मकर राशि
मकर राशि वाले इस दिन सूर्य देव की कृपा के लिए बने हुए भोजन या फिर गेहूं और चावल का दान करें।
कुंभ राशि
अगर संभव हो, तो कुंभ राशि वाले किसी तीर्थ स्थल की यात्रा पर जाएं और सूर्य देव से अपनी जाने-अनजाने में हुई गलतियों के लिए क्षमायाचना करें। इसके बाद, बुजुर्गों एवं गरीबों का आशीर्वाद लें।
मीन राशि
मीन राशि वाले कन्या संक्रांति पर कुछ मीठा या हलवा बनाकर गरीबों को दान करें।