महज एक रात में बनकर तैयार हुआ था देश का ये प्रसिद्ध मंदिर !

हमारे देश में ऐसे बहुत से मंदिर हैं जिनकी अपनी अलग-अलग मान्यता और महत्व है। हर मंदिर अपनी किसी ना किसी विशेषता और रहस्य के लिए जानी जाती है। देश में ऐसे बहुत से भव्य मंदिर भी हैं जिनके निर्माण काल में काफी समय लगा है। आज हम आपको देश के एक ऐसे प्रसिद्ध मंदिर के बारे में बताने जा रहें हैं जो सिर्फ एक दिन के भीतर ही बनकर तैयार हो गया था। आइये जानते हैं कौन सा है वो प्रसिद्ध मंदिर जो इतने कम समय में ही बनकर तैयार हो गया था।

बिहार के औरंगाबाद में स्थित है वो प्रसिद्ध मंदिर

आपको बता दें कि, आज जिस मंदिर के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं वो असल में बिहार के औरंगाबाद में स्थित पश्चिनोभिमुख सूर्य मंदिर है। बता दें कि, ये देश का एकमात्र ऐसा सूर्य मंदिर है जिसका मुख्य द्वार पूर्व दिशा में होकर पश्चिम दिशा में। पश्चिम दिशा में मुख होने की वजह से ही इस मंदिर को पश्चिनोभिमुख मंदिर के नाम से जाना जाने लगा। सूर्यदेव के इस मंदिर में दर्शन के लिए देश अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु आते हैं। माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण स्वयं हुआ था, बिहार के पुरातत्व विभाग का ऐसा मानना है कि इस प्रसिद्ध मंदिर का निर्माण कब और किसने करवाया इस बारे में कोई जानकारी अभी तक नहीं मिली है। सूर्य देव के इस मंदिर पर सबसे ज्यादा भीड़ छठ पूजा के दौरान एकत्रित होती है।

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अनोखी है इस मंदिर के निर्माण की कहानी

इस मंदिर के निर्माण को लेकर प्रचलित एक कथा के अनुसार इस मंदिर का निर्माण रातों रात हुआ था। माना जाता है कि हमेशा से इस मंदिर का मुख पश्चिम दिशा की तरफ नहीं था बल्कि एक समय ऐसा भी था जब इस मंदिर का द्वार पूर्व दिशा की तरफ ही था। ये बात मुग़ल काल की है जब औरंगजेब पर देश के सभी मंदिरों को तुड़वाने का जोश सवार था। इस मंदिर के पुजारियों का ऐसा मानना है कि जब औरगंजेब मंदिर को तुड़वाने पहुंचा तो मंदिर के सभी पुजारियों ने उससे ऐसा ना करने की विनती की। इस बात पर औरंगजेब ने जवाब दिया कि वो एक शर्त पर मंदिर को नहीं तोड़ेंगे यदि सचमुच आपके हिन्दू देवता इतने प्रबल हैं तो कल तक इस मंदिर का द्वार पश्चिम दिशा की तरफ हो जाएगा। अगले दिन सुबह जब मंदिर के पुजारी वहाँ पूजा के लिए पहुंचें तो वो ये देखकर हैरान रह गए की मंदिर का द्वार अपने आप पश्चिम दिशा की तरफ हो गया है।

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माना जाता है कि इस मंदिर के निर्माण में स्वयं भगवान् विश्वकर्मा का हाथ था, इसलिए ये मंदिर औरंगजेब के प्रकोप से बच गया। दूसरी तरफ इस मंदिर को लेकर औरंगाबाद के स्थानीय लोगों में ऐसा विश्वास है की यहाँ आने वाले भक्तों की मनोकामनाएं जरूर पूरी होती हैं।

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