जानिए कब है यशोदा जयंती, शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि और यशोदा जंयती की कथा

भगवान कृष्ण की माता मैया यशोदा वात्सल्य की देवी मानी जाती है। जिस मां यशोदा की गोद में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने ऐसे यश को प्राप्त हुए जो और किसी को प्राप्त नहीं हुआ उन माँ यशोदा का जन्म दिवस यशोदा जयंती के रूप में प्रतिवर्ष मनाया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की षष्ठी तिथि को माता यशोदा का जन्म दिवस मनाया जाता है।

इस दिन को यशोदा जयंती के रूप में भारत के विभिन्न राज्यों में काफी हर्षोल्लास और उत्साह के साथ मनाया जाता है। यूं तो भगवान श्री कृष्ण का जन्म माता देवकी की कोख से हुआ था लेकिन उनका पालन पोषण मां यशोदा ने किया था। ऐसे में इस दिन के बारे में मान्यता है कि जो कोई भी स्त्री सच्चे मन से यशोदा जयंती के दिन मां यशोदा और भगवान श्री कृष्ण की पूजा करती है उसे भगवान की कृपा अवश्य प्राप्त होती है और उन्हें संतान के रूप में श्री कृष्ण अवश्य दर्शन देते हैं।

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आइए जानते हैं इस महत्वपूर्ण दिन का शुभ मुहूर्त, महत्व, सही पूजन विधि, और व्रत कथा। 

यशोदा जयंती व्रत की सही पूजा विधि 

  • यशोदा जयंती के दिन पूजा करने वाली स्त्री को सुबह जल्दी उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करें।
  • इसके बाद एक साफ चौकी लें और उस पर गंगा जल छिड़कर कर शुद्ध कर लें और उस पर लाल कपड़ा बिछा-कर कलश स्थापित करें।
  • कलश स्थापित करने के बाद उस पर यशोदा जी की गोद में बैठे हुए लड्डू गोपाल की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें।
  • इसके बाद मां यशोदा को लाल चुनरी अर्पित करें और कुमकुम, फल,फूल, पंजीरी, माखन आदि सभी चीजें अर्पित करें।
  • यह सब चीजें अर्पित करने के बाद धूप व दीप जलाएं और यशोदा माता और भगवान श्री कृष्ण की विधिवत पूजा करें।
  • इसके बाद यशोदा जयंती की कथा सुने और माता योशोदा और लड्डू गोपाल की आरती उतारें।
  • आरती उतारने के बाद माता यशोदा को मीठे रोठ का भोग लगाएं और भगवान श्री कृष्ण को पंजीरी और माखन का भोग लगाएं।
  • इसके बाद माता यशोदा और लड्डू गोपाल से अनजाने में ही हुई किसी भूल की क्षमा याचना करें।
  • माता यशोदा और लड्डू गोपाल से क्षमा याचना करने के बाद पंजीरी का प्रसाद स्वंय भी ग्रहण करें और परिवार के सभी लोगों में भी बांटे।
  • अंत में सभी पूजा विधि संपन्न करने के बाद गाय को भोजन अवश्य कराएं। क्योंकि भगवान श्री कृष्ण को गाय अत्याधिक प्रिय हैं।

क्या है यशोदा जयंती का महत्व 

यशोदा जयंती के दिन स्त्रियां व्रत आदि रखकर अपनी संतान के सुख के लिए मन्नत मांगती हैं। इस दिन के बारे में ऐसी भी मान्यता है कि, अगर इस दिन कोई भी निसंतान स्त्री सच्ची श्रद्धा और आस्था से व्रत रखकर विधि पूर्वक पूजा करती है तो उसे संतान सुख अवश्य प्राप्त होता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष यशोदा जयंती का यह पर्व 4 मार्च 2021 को बृहस्पतिवार के दिन मनाया। जाएगा इस व्रत के बारे में ऐसी भी मान्यता है कि, जो कोई भी इंसान इस दिन सच्ची श्रद्धा और आस्था से व्रत रखता है भगवान श्री कृष्ण उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं और उसके जीवन से कठिनाइयाँ भी खत्म या कम अवश्य कर देते हैं। 

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षष्ठी तिथि प्रारंभ : 00:20 – 4 मार्च  2021

षष्ठी तिथि समाप्त: 22:00 – 4 मार्च 2021

जैसा कि, हमने पहले भी बताया कि यशोदा जयंती का यह पर्व फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन मनाया जाता है। ऐसे में इस दिन यशोदा मां की गोद में बैठे हुए भगवान श्री कृष्ण और मां यशोदा की पूजा करने से इंसान के जीवन में संतान से संबंधित सभी परेशानियां अवश्य खत्म हो जाती है। साथ ही उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। शास्त्रों में इस व्रत का वर्णन करते हुए लिखा गया है कि, इस दिन जो कोई भी स्त्री सच्ची श्रद्धा और आस्था के साथ भगवान श्री कृष्ण और यशोदा की पूजा करती है उसे स्वयं श्री कृष्ण बाल रूप में दर्शन देते हैं और उसकी इच्छाओं को पूरा भी करते हैं। 

यशोदा जयंती से जुड़ी पौराणिक कथा 

इस व्रत के बारे में जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार बताया जाता है कि, पूर्व जन्म में मां यशोदा की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान दिया था कि, अगले जन्म में आप ही मेरी मां बनेंगी। इसके अलावा गीता के अनुसार समय के साथ ऐसा ही हुआ। हालांकि भगवान कृष्ण का जन्म देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान के रूप में हुआ था लेकिन, उनके पिता वासुदेव ने उन्हें उनके मामा के डर से यशोदा मैया के घर छोड़ दिया था। ऐसे में उन्हें मां का सुख यशोदा मां से ही प्राप्त हुआ था।

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यशोदा जयंती के दिन किए जाने वाले कुछ बेहद सरल उपाय 

  • अगर किसी व्यक्ति को संपत्ति से लाभ प्राप्त करना हो तो उन्हें यशोदा जयंती के दिन गेहूं से भरा तांबे का कलश कृष्ण मंदिर में चढ़ाने की सलाह दी जाती है।
  • घर में हो रहे क्लेश से मुक्ति पाने के लिए माँ यशोदा और भगवान कृष्ण पर चढ़ी मौली घर के मुख्य द्वार पर बांध दें।
  • जीवन में आने वाले किसी भी प्रकार के कष्टों से मुक्ति पाने के लिए इस दिन ग़रीबों और ज़रूरतमंदों को दान पुण्य करें।
  • जिस किसी दंपत्ति को संतान सुख की प्राप्ति करनी हो उन्हें यशोदा जयंती के दिन मां यशोदा और भगवान कृष्ण पर चढ़ा कोहड़ा नाभि से वार कर चौराहे पर रखने की सलाह दी जाती है।
  • इसके अलावा अगर आपके घर में नकारात्मक ऊर्जा या भूत प्रेत का साया है तो उससे छुटकारा पाने के लिए घर के मुख्य द्वार पर स्वास्तिक और ॐ बनाने की सलाह दी जाती है। ऐसा करने से भूत प्रेत और ऐसी शक्तियों से छुटकारा मिलता है। 

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यशोदा जयंती 

देशभर में यशोदा जयंती के दिन भगवान कृष्ण के मंदिरों के साथ दुनिया भर में फैले इस्कॉन मंदिरों में भी इस दिन का पर्व बेहद ही उत्साह और धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इसके अलावा इस दिन का असली रंग गोकुल में देखने को मिलता है क्योंकि यहीं पर भगवान कृष्ण ने मां यशोदा के साथ अपना बचपन व्यतीत किया था। इसके अलावा क्योंकि श्री कृष्ण द्वारका के राजा थे जो कि आज गुजरात में है इसलिए गुजरात में भी यशोदा जयंती का यह पर्व बेहद ही शानदार और भव्य तरीके से मनाया जाता है। इस दिन गुजरात के लोग अपने घरों में मां यशोदा और भगवान कृष्ण की तस्वीरों से सजाते हैं और उनकी पूजा अर्चना करते हैं। 

माता यशोदा के जन्म की कथा 

बताया जाता है कि ब्रह्मा जी के आशीर्वाद से फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को ब्रज में स्थित सुमुख नाम के गोप और उनकी पत्नी पाटला के यहां एक कन्या का जन्म हुआ था। यह कन्या मां यशोदा ही थी। कुछ समय व्यतीत होने के बाद उनका विवाह ब्रज के राज नंद से किया गया था। 

मां यशोदा के जन्म से जुड़ी एक अन्य कथा के अनुसार बताया जाता है कि, पूर्व जन्म में माता यशोदा की की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उनसे वर मांगने को कहा था। मां यशोदा ने कहा कि, मेरी तपस्या तभी पूरी होगी जब आप मुझे पुत्र के रूप में प्राप्त होंगे। इस पर भगवान ने प्रसन्न होकर कहा था कि, मैं वासुदेव और माता देवकी के घर जन्म लूँगा लेकिन मुझे माँ का सुख आप से ही प्राप्त होगा। समय जैसे बीता, आगे जाकर भगवान विष्णु द्वारा कही गयी बात सत्य साबित हुई और भगवान कृष्ण को मां यशोदा ने ही मातृत्व सुख दिया।

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