स्वामी विवेकानंद जयंती पर क्यों मनाया जाता है युवा दिवस?

“उठो जागो और रुको मत जब तक ध्येय (लक्ष्य) तक न पहुँच जाओ”

इस पंक्ति का सरल भाषा में अर्थ समझाएं तो, इसके अनुसार स्वामी विवेकानंद लोगों को इस बात के लिए प्रेरित कर रहे हैं कि, ‘अपने जीवन में एक रास्ता खोजो, उस पर विचार करो, उस विचार को जीवन बना लो, उसके बारे में सोचो और उसी विचार को जियो। अपने शरीर के हर भाग को उस विचार से भर दो और किसी अन्य विचार को जगह मत दो, सफलता का यही रास्ता है।

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सिर्फ यही नहीं, स्वामी विवेकानंद ने इसी तरह अनेकों विचारों से देश के युवाओं का मार्गदर्शन किया है जिसके चलते लोग आज भी उन्हें अपना रोल मॉडल मानते हैं। स्वामी विवेकानंद ने हमेशा से ही दुनिया के सामने हिंदुत्व को लेकर अपने विचार पेश किये और उस पर हमेशा डटे रहे। कहना गलत नहीं होगा कि इससे पूरी दुनिया में हिंदू धर्म का सम्मान बढ़ा। प्रत्येक वर्ष 12 जनवरी, के दिन स्वामी विवेकानंद की जयंती मनाई जाती है। अब आइए आगे बढ़ते हैं और जानते हैं स्वामी विवेकानंद के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें।

यूँ तो भारत की भूमि पर कई महापुरुषों ने जन्म लिया जिनके विचारों ने लोगों को सोच बदलने पर मजबूर किया। इन्हीं महापुरुषों में से एक हैं स्वामी विवेकानंद। 12 जनवरी 1863 को कोलकाता के कायस्थ परिवार में जन्मे स्वामी विवेकानंद को बचपन में नरेंद्र दत्त के नाम से जाना जाता था। स्वामी विवेकानंद के पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। स्वामी विवेकानंद (नरेंद्र)के पिता पेशे से वकील थे और उनकी माता जी धार्मिक प्रवृत्ति की थी। स्वामी विवेकानंद को बचपन से ही तेज बुद्धि और नटखट स्वभाव का माना जाता रहा है। कहते हैं क्योंकि, स्वामी विवेकानंद का परिवार शुरुआत से ही धार्मिक और आध्यात्मिक कर्मों से जुड़ा था और वो बचपन से ही ये सब देखते सुनते आये थे इसके चलते बचपन से ही उनका मन ईश्वर की भक्ति और पूजा में लगने लगा था। उनके मन में ईश्वर को प्राप्त करने और उनके बारे में जानने की लालसा बढ़ने लगी थी। 

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जब अमेरिका के विद्वान भी स्वामी जी के विचार सुन रह गए हैरान

बताया जाता है कि, बचपन से ही धार्मिक स्वभाव के स्वामी विवेकानंद जी ने महज़ 25 साल की उम्र में गेरुआ वस्त्र धारण कर लिया। इसके बाद वह विश्व भ्रमण के लिए पैदल ही निकल पड़े। उन्होंने मायानगरी मुंबई से अपनी विदेश यात्रा की शुरुआत की। मुंबई से वह जापान पहुंचे। जापान के बाद वह चीन और कनाडा होते हुए अमेरिका के शिकागो शहर में पहुंचे थे। 

बताया जाता है कि ये वो समय हुआ करता था जब यूरोप और अमेरिका के लोग भारतीय मूल के लोगों  को बहुत हीन नजर से देखते थे। ऐसे में स्वाभाविक है कि वहां के लोगों ने स्वामी विवेकानंद को सर्वधर्म परिषद में बोलने से भी रोकने की काफी कोशिश की लेकिन एक अमेरिकी प्रोफेसर की कोशिश से उन्हें बोलने का थोड़ा समय मिल गया। जब स्वामी विवेकानंद ने बोलना शुरू किया तो वहां मौजूद सभी विद्वान उनके विचार को सुनकर हैरान रह गए थे। जिसके बाद अमेरिका में उनका स्वागत किया गया। 

क्योंकि, स्वामी विवेकानंद ने आजीवन युवाओं को प्रेरित किया, उनका मार्गदर्शन किया, उनके लिए रोल मॉडल की भूमिका निभाई इसलिए स्वामी विवेकानंद जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस (National Youth Day) के रूप में मनाया जाता है।

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स्वामी विवेकानंद के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातें 

  • कोलकाता के एक कायस्थ परिवार में जन्मे स्वामी विवेकानंद का नाम बचपन में नरेंद्र नाथ दत्त था। 
  • नरेंद्र नाथ दत्त 1871 में 8 साल की उम्र में स्कूल गए थे। इसके बाद 1879  में उन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज की प्रवेश परीक्षा में पहला स्थान हासिल किया था। 
  • महज़ 25 साल की उम्र में नरेंद्र नाथ दत्त अपना घर-परिवार छोड़कर सन्यासी बनने का फैसला ले चुके थे। सन्यास लेने के बाद उनका नाम स्वामी विवेकानंद पड़ा। 
  • 1881 में कोलकाता का दक्षिणेश्वर के काली मंदिर में स्वामी विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस की मुलाकात हुई थी। यहां रामकृष्ण परमहंस ने स्वामी विवेकानंद को शिक्षा दी कि, सेवा कभी दान नहीं बल्कि मानवता में निहित ईश्वर की आराधना होनी चाहिए। 
  • रामकृष्ण परमहंस से मुलाकात के दौरान स्वामी विवेकानंद ने उनसे सवाल किया था कि, ‘क्या आपने भगवान को देखा है?’ जिस पर रामकृष्ण परमहंस ने जवाब दिया था कि, ‘हां मैंने उन्हें देखा है। मैं भगवान को उतना ही साफ और स्पष्ट रूप से देख रहा हूं जितना कि तुम्हें देख सकता हूं। हालांकि मुझ में और तुम में फर्क सिर्फ इतना है कि मैं उन्हें ज्यादा गहराई से महसूस कर सकता हूं।” 
  • धर्म संसद में जब स्वामी विवेकानंद ने अमेरिकियों को भाइयों और बहनों कहकर संबोधित किया था तो पूरे 2 मिनट तक आर्ट इंस्टीट्यूट ऑफ शिकागो में तालियां बजती रहें। यह दिन था 11 सितंबर 1893। लोग इस दिन को आज भी ऐतिहासिक दिन के रूप में याद करते हैं। 
  • 1 मई 1897 में कोलकाता में रामकृष्ण मिशन और 9 सितंबर 1898 को गंगा नदी के किनारे बेलूर में स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण मठ की स्थापना की थी। 
  • 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन को हर साल राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाए जाने की शुरुआत 1985 में हुई थी। 
  • स्वामी विवेकानंद को शुगर और अस्थमा की बीमारी थी। उन्होंने अपनी मृत्यु के बारे में भविष्यवाणी की थी कि, यह बीमारियां मुझे 40 साल के पार नहीं जाने देंगी। उनकी भविष्यवाणी सच हुई और महज़ 39 वर्ष की उम्र में 4 जुलाई 1902 रामकृष्ण मठ में उन्होंने प्राण त्याग दिए थे। 
  • स्वामी विवेकानंद का अंतिम संस्कार बेलूर में गंगा तट पर किया गया था। इसी गंगा तट के दूसरी तरफ रामकृष्ण परमहंस जिन्हें स्वामी विवेकानंद का गुरु माना जाता है उनका अंतिम संस्कार हुआ था। 

विवेकानंद के शिष्यों के मुताबिक 4 जुलाई सन् 1902 को उन्होंने शरीर त्याग दिया और परमात्मा में लीन हो गए।

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