वराह जयंती का त्यौहार, भगवान विष्णु के तीसरे अवतार भगवान वराह के जन्मोत्सव के सन्दर्भ में मनाया जाता है। बता दें कि भगवान विष्णु ने दुनिया को बुराई से बचाने के लिए सूअर के रूप में अवतार लिया था, जिन्हें वराह भगवान के रूप में जाना जाता है। भगवान विष्णु का इस रूप में अवतार लेने का केवल यही मकसद था कि उन्हें धर्म को पुनर्स्थापित करके निर्दोष लोगों को असुरों और राक्षसों से बचाना था।
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हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार वराह जयंती की पूर्व संध्या पर कई तरह के आयोजन और अनुष्ठान किये जाते हैं। भक्त भगवान विष्णु की पूजा इसके दूसरे दिन यानि शुक्ल पक्ष के माघ महीने में या द्वितिया तिथि को करते हैं। मान्यता है कि जो कोई भी इंसान इस दिन सच्ची श्रद्धा और आस्था के साथ व्रत और पूजन करता है उसे भगवान अच्छे भाग्य का आशीर्वाद अवश्य प्रदान करते हैं। यही वजह है कि भारत के कई क्षेत्रों में इस दिन भगवान विष्णु के सभी अवतारों की पूजा-अर्चना की जाती है।
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कब है वराह जयंती ?
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, वराह जयंती भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन मनाई जाती हैं। इस वर्ष वराह जयंती 21 अगस्त 2020, शुक्रवार के दिन मनाई जाएगी।
वराह जयंती महत्व
इस दिन के बारे में लोगों के बीच ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु और उनके वराह स्वरुप की पूजा करने से इंसान के जीवन में धन, अच्छे स्वास्थ्य और खुशियों का संयोग बनता है। इसके अलावा क्योंकि भगवान विष्णु ने यह रूप बुराई का अंत करने के लिए धारण किया था, ऐसे में इस दिन की पूजा करने वाले इंसान के सभी पाप और कष्ट भी समाप्त हो जाते हैं।
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जानिए क्या है वराह जयंती के अनुष्ठान?
जानकारी के लिए बता दें कि वराह जयंती का त्यौहार मुख्य रूप से दक्षिण भारत के राज्यों में मनाया जाता है।
- इस दिन सुबह जल्दी उठने का नियम बताया गया है।
- इसके बाद लोग स्नानादि करते हैं।
- फिर मंदिर या पूजा करने वाली जगह को साफ़ करके वहां अनुष्ठान शुरू किया जाता है।
- इसके बाद भगवान विष्णु या भगवान के वराह स्वरुप की मूर्ति को एक पवित्र धातु के बर्तन (कलाश) में स्थापित करें।
- इसके बाद में नारियल के साथ आम की पत्तियों और पानी से उस कलश या बर्तन को भर दें।
- इसके बाद इन सभी चीजों को ब्राह्मण को दान दे दें।
- इस दिन की पूजा में आप कुछ मन्त्रों का जप भी कर सकते हैं, यह है वो मंत्र, “ॐ वराहाय नमः”, “ॐ सूकराय नमः”, “ॐ धृतसूकररूपकेशवाय नमः”
- इसके अलावा इस दिन बहुत से लोग श्रीमद् भगवद् गीता का भी पाठ करते हैं।
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इसके अलावा वराह जयंती की पूजा करने वाले लोग इस दिन जरुरतमंदों को धन और कपड़ों की मदद भी करते हैं। ऐसा करने के पीछे की मान्यता है कि जरूरतमंदों को चीजों दान करने से भगवान विष्णु के आशीर्वाद प्राप्त करने में मदद करती है।
वराह जयंती के उत्सव के पीछे की पौराणिक कथा
वराह जयंती के बारे में जो पौराणिक कथा है उसके अनुसार बताया जाता है कि, दिति ने हिरण्यकश्यपु और हिरण्याक्ष नाम के दो अत्यधिक शक्तिशाली राक्षसों को जन्म दिया। अब इन दोनों राक्षसों ने भगवान ब्रह्मा की प्रसन्नता हासिल करने के लिए उनकी पूजा करनी शुरू की। दोनों के कठोर तप से ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए और दोनों से कहा कि तुम्हें जो भी वरदान चाहिए मुझसे कहो।
ब्रह्मा जी ने दोनों को मनचाहा वरदान दे दिया और वहां से चले गए। लेकिन वरदान मिलने के बाद से ही हिरण्याक्ष और अधिक उत्पति और उद्दंड हो गया। सभी लोक में अशांति फैलाता हुआ वो खुद को सबसे ऊपर और शक्तिशाली समझने लग गया। वो सिर्फ इतने पर ही नहीं रुका, एक दिन वो इन्द्रलोक पहुँच गया और फिर अपनी शक्तियों से उसने इन्द्रलोक पर अपना कब्ज़ा कर लिया।
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इसके बाद हिरण्याक्ष वरुण की राजधानी विभावरी नगरी में पहुंचा और वरुण देव को युद्ध के लिए ललकारने लगा। हिरण्याक्ष की बात सुनकर वरुण देव को गुस्सा तो आया लेकिन उन्होंने कहा कि, हो सकता है की तुम महान योद्धा और शूरवीर हो लेकिन तुम भगवान विष्णु से ज्यादा शक्तिशाली नहीं हो सकते है।
इसके बाद वरुण ने दैत्य से कहा कि अगर तुम्हे लड़ना ही है तो तुम भगवान विष्णु से युद्ध करो, वो तुम्हें पराजित कर देंगे। इतना सुनते ही दैत्य को गुस्सा आ गया और वो भगवान विष्णु की खोज में निकल गया। देवर्षि नारद उसे बताते हैं कि भगवान विष्णु इस समय वाराह का रूप धारण कर पृथ्वी को रसातल से निकालने के लिये गये हैं। तब हिरण्याक्ष भी वहां पहुँच कर उनसे असभ्य भाषा में बात करते हुए उनके काम में बाधा लाने का प्रयास करता है।
बहुत समय तक भगवान विष्णु पर जब हिरण्याक्ष की बात का असर नहीं होता तो वो हाथ में गदा लेकर भगवान विष्णु पर प्रहार करता है तब भगवान हिरण्याक्ष के हाथ से गदा छीनकर उसे दूर फेंक देते हैं। फिर लंबे समय तक दोनों में युद्ध होता है और अन्त में भगवान वाराह के हाथों से हिरण्याक्ष का वध होता है।
मान्यता है कि भगवान विष्णु हरिण्याक्ष का वध करने के लिए जिस दिन प्रकट हुए थे वह भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि थी इसलिये इस दिन को वराह जयंती के रूप में भी मनाये जाने की शुरुआत हुई।
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भारत के वो प्रसिद्ध मंदिर जहां वराह जयंती मनाई जाती है
वराह जयंती का त्यौहार भारत के विभिन्न हिस्सों में बेहद ही धूमधाम से मनाया जाता है। हाँ लेकिन, देश के कुछ मंदिर ऐसे भी हैं जहाँ इस त्यौहार की अलग ही धूम देखने को मिलती है। जानिए कहाँ हैं वो मंदिर,
- मथुरा में, भगवान वराह का एक बहुत पुराना और खूबसूरत मंदिर है जहां यह उत्सव एक भव्य स्तर पर मनाया जाता है।
- इसके अलावा तिरुमाला में स्थित भु वराह स्वामी मंदिर में इस दिन का बेहद ही खूबूसरत नज़ारा देखने को मिलता है। यहाँ वराह जयंती के दिन देवता की मूर्ति को नारियल के पानी, दूध, शहद, मक्खन और घी के साथ नहलाया जाता है और फिर उनकी पूजा की जाती है।
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