गोस्वामी तुलसीदास जी को संस्कृत के एक सबसे विख्यात विद्वान और एक महान कवि के रूप में जाना जाता है। उनके ही स्मरण और उनके योगदान के प्रति अपनी श्रद्धा भक्ति दिखाते हुए संपूर्ण भारतवर्ष में हर वर्ष तुलसी जयंती मनाई जाती है। तुलसीदास की जयंती प्रत्येक वर्ष के श्रावण मास की सप्तमी के दिन आयोजित होती है और इस वर्ष यह 7 अगस्त 2019, बुधवार के दिन मनाई जाएगी।
इस बात में कोई संदेह नहीं है कि वो गोस्वामी तुलसीदास जी ही थे जिन्होंने सगुण भक्ति से अपनी रामभक्ति की पवित्र धारा को एक ऐसा प्रवाह दिया कि आज की सदी में भी वह धारा न केवल प्रवाहित हो रही है, बल्कि इसके सुविचारों से जन-कल्याण की प्राप्ति भी हो पा रही है। रामभक्ति के द्वारा तुलसीदास जी ने अपना जीवन तो कृतार्थ किया ही, साथ ही मनुष्यों को भी भगवान राम के आदर्शों से बांधने का सफल प्रयास किया। उन्होंने वाल्मीकि जी की रचना ‘रामायण’ को अपनी भक्ति का आधार मानकर लोक भाषा में राम कथा की रचना के साथ-साथ कई पुस्तकें लिखी है। जिसे पढ़कर आज कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में सफलता के रास्ते पर आगे बढ़ने की प्रेरणा ले सकता है। आइए जानते हैं उनके जीवन के कुछ ऐसे ही अनमोल विचारों को:-
जैसा कर्म, वैसा फल
तुलसीदास जी अनुसार भगवान ने समस्त संसार को कर्म प्रधान बना रखा है। जिस कारण जो मनुष्य जैसा कर्म करता है, उसका फल भी उसे उसी जन्म में वैसा ही मिलता है। इसलिए हमें निराधार की बातों पर ध्यान न देते हुए केवल और केवल अपने कर्म पर भरोसा रखना चाहिए। क्योंकि यहीं चीज़ हमारे जीवन में आगे बढ़ने का मार्ग तय करती है।
धन का आगमन लाता है स्वभाव में नम्रता
तुलसीदास जी का मानना है कि जिस प्रकार एक पौधे पर फल लगते ही वह झुक जाता है और वर्षा के आने से बादल भी झुक जाता हैं, ठीक उसी प्रकार जब मुनष्य के पास धन आने लगता है तो उसके अंदर नम्रता का भाव भी आने लगता है। इसलिए मनुष्य को इस बात का ध्यान रखते हुए ही अपने सही मार्ग का चयन करना चाहिए।
अपनी समस्याओं के बावजूद दूसरों के लिए करें अच्छा
तुलसीदास की मानें तो जिस प्रकार एक विशाल वृक्ष खुद सर्दी, गर्मी, बरसात यानी हर मौसम की मार सहकर दूसरों को केवल और केवल छांव देता है। ठीक उसी प्रकार एक सच्चा मनुष्य वही होता है, जो खुद परेशान होकर भी दूसरों को केवल सुख प्रदान करता है। ऐसे में हमे भी अपने जीवन में इस बात को समझते हुए ही हर कार्य को करना चाहिए।
अपनी चादर अनुसार ही फैलाएं अपने पांव
तुलसीदास जी अनुसार, व्यक्ति को अपनी चादर अनुसार ही अपने पांव फैसलाने चाहिए। अर्थात हमें अपने कद से ज्यादा अपने पांव नहीं फैलाने चाहिए और केवल वहीं सपना देखना चाहिए, जिसे हम पूरा कर पाने में सक्षम हो, वरना अगर हम परेशानियों में उलझ कर रह गए तो उससे निकलना बेहद मुश्किल हो जाता है क्योंकि वह कभी भी खत्म नहीं होती हैं।