ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंगल ग्रह को बरगद के वृक्ष का स्वामी माना गया है। इसलिए मंगल की शांति के लिए वट वृक्ष मूल को धारण करना शुभ होता है। यदि कोई वट वृक्ष मूल को धारण करता है इसके प्रभाव से मंगल ग्रह को शांति मिलती है। साथ ही बरगद की जड़ से आप ब्रह्मा जी का आशीर्वाद भी प्राप्त कर सकते हैं। इस जड़ को धारण करने से व्यक्ति को न केवल मानसिक शांति का आभास होता है बल्कि उसका भटक रहा ध्यान भी केंद्रित होता है। इसके साथ ही वट वृक्ष की मूल कई प्रकार के रोगों के इलाज के लिए भी रामबाण साबित होती है। यदि किसी भी बांझ महिला को इस जड़ को पीसकर दूध में मिलाकर पिला दिया जाए तो इससे उस महिला का बांझपन तक दूर हो सकता है।
वट वृक्ष मूल को धारण करने की विधि:
- जड़ को धारण करने से पूर्व इस पर गंगाजल अथवा कच्चे दूध के छीठे मारकर इसे शुद्ध करें।
- जड़ को कपड़े में लपेटकर बाजू या कलाई में बांधे।
- इसे आप लॉकेट में भी पहन सकते है।
- अब ब्रह्रमा जी को धूप-दीप, अगरबत्ती अर्पित करते हुए मंगल मन्त्र “ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः” का 108 बार जाप करना चाहिए।
- उपरोक्त विधि को करने के पश्चात आप बुधवार या मंगलवार को अथवा मृगशिरा, चित्रा और धनिष्ठा नक्षत्र में इस जड़ को धारण करें।
Rudraksha Bracelet – रुद्राक्ष ब्रेसलेट
वनस्पति शास्त्र के अनुसार रुद्राक्ष बीज के फल से प्राप्त होने वाली रुद्राक्ष की गुरिया, पाप से मुक्ति तथा विभिन्न रोगों से छुटकारा पाने के लिए धारण की जाती हैं। इसके वृक्ष मुख्य रूप से दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों जैसे- सुमात्रा, जावा, बाली, जया, नेपाल और इण्डोनेशिया में ही पाए जाते हैं। वेदों में भी रुद्राक्ष को एक पवित्र बीज बताया गया है, जिसका उपयोग ईश्वर की आराधना और विभिन्न आध्यात्मिक क्रियाओं में होता है। रुद्राक्ष का संबंध सीधा भगवान शिव से है, इसी लिए जो भी मनुष्य रुद्राक्ष ब्रेसलेट को विधि अनुसार धारण करता है तो उसे महादेव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। ज्योतिषी विशेषज्ञों की मानें तो रुद्राक्ष ब्रेसलेट में मौजूद हर रुद्राक्ष में कई तरह की पवित्र शक्तियाँ होती हैं, जिसे धारण करने से व्यक्ति को मनोवांछित फल की प्राप्ति तो होती ही हैं साथ ही रुद्राक्ष का यह ब्रेसलेट एक ढाल की तरह हर बुरी शक्तियों से उसकी रक्षा भी करता है। इससे जातक के जीवन में सकारात्मकता भी बढ़ती है। पवित्र रुद्राक्ष से बने इस ब्रेसलेट में कई प्रकार के रुद्राक्ष पिरोये गए हैं जो इसकी सुंदरता और महत्व को बढ़ाते हैं।
रुद्राक्ष ब्रेसलेट धारण करने की विधि:
- ब्रेसलेट को सबसे पहले गंगाजल या कच्चे दूध से शुद्ध करें।
- फिर भगवान शिव की आराधना करते हुए “ॐ नमः शिवाय” मन्त्र का 108 बार जाप करें और इस ब्रेसलेट को धारण करें।
- ब्रेसलेट को आप बाजू या कलाई में पहन सकते हैं।
- ब्रेसलेट को धारण करने के पश्चात मांस-मछली और शराब इत्यादि से दूर रहें।
- ब्रेसलेट के अधिक से अधिक लाभ पाने के लिए इसे दिन में 12 से 14 घंटे धारण करें।
- इसे सोमवार के दिन धारण करें।
Turkish Evil Eye – नज़र बट्टू
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नज़र बट्टू एक ऐसा यंत्र है जो आपको दूसरों की बुरी नज़र से बचाता है। नज़र बट्टू आप पर बुरी और नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव नहीं होने देता जिससे आपके जीवन में परेशानियां और अड़चने नहीं आती हैं। नज़र बट्टू को नज़र सुरक्षा यंत्र भी कहा जाता है जिसका इस्तेमाल कर किसी भी तरह की आप बुरी नज़र के प्रभाव से बच सकते हैं। इसे आप अपने घर और ऑफिस के प्रवेश द्वार पर लगा सकते हैं।
नज़र बट्टू को स्थापित करने की विधि :
- गंगाजल छिड़ककर नज़र बट्टू को शुद्ध कर लें।
- नज़र बट्टू की धूप दीप से पूजा करें।
- इसके बाद इसे अपने घर या कार्यालय के मुख्य द्वार पर लटका दें।
- नज़र बट्टू की स्थापना शनिवार के दिन शनि के होरा में करें।
Kale Ghode Ki Naal – काले घोड़े की नाल
यदि आप जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाना चाहते हैं तो काले घोड़े की नाल आपके लिए वरदान है। काले घोड़े की नाल का संबंध शनि ग्रह से है। जो कोई व्यक्ति इसको धारण करता है उसे भगवान शनि की कृपा प्राप्त होती है। इसके साथ ही व्यक्ति के भाग्य में वृद्धि होती है और घर तथा व्यापार में संवृद्धि आती है। यह चमत्कारिक नाल वाहन दुर्घटना, बुरी नज़र, काली शक्तियों आदि से भी बचाव करती है। इसके द्वारा जीवन में सफलता एवं शांति प्राप्तकी जा सकती है। इसे घर के मुख्य द्वार या फिर लिविंग रूम में लगाया जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, अगर घर का मुख्य द्वार उत्तर, उत्तर-पश्चिम या फिर पश्चिम दिशा में हो तो घर के मुख्य द्वार पर घोड़े की नाल को अवश्य लगाना चाहिए। इससे घर को किसी की बुरी नज़र नहीं लगती है। साथ ही घर में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। यह शनि दोषों से मुक्ति दिलाने में भी कारगर होती है।
काले घोड़े नाल को लगाने की विधि:
- नाल की स्थापना करने से पूर्व इसे गंगाजल अथवा कच्चे दूध से शुद्ध करें।
- इसके पश्चात भैरव जी और शनि देव को काले तिल, धूप-दीप, अगरबत्ती अर्पित करते हुए शनि मन्त्र “ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः” का 108 बार जाप करें।
- नाल को शनिवार को सूर्यास्त के बाद अथवा पुष्य, अनुराधा, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में स्थापित करें।
- नाल मुख्य द्वार या फिर लिविंग रूम में ही लगाएँ।