विष्णु पुराणों में भी आपको इस बात का उल्लेख सुनने को मिलता है कि भगवान-विष्णु के जय और विजय नाम के दो भक्त हुआ करते थे जिनका जन्म शापित होकर हाथी ( गज ) व मगरमच्छ ( ग्राह ) के रूप में धरती पर हुआ था। आज हम आपको भगवान विष्णु के इन्ही दोनों भक्तों के उस युद्ध की पौराणिक कथा सुनाएंगे जो सदियों बाद आज भी बेहद प्रचलित हैं।
जब विष्णु जी के भक्तों में हुआ भयंकर युद्ध
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार गंडक नदी में एक दिन कोनहारा के तट पर जब गज (हाथी) पानी पीने आया तो नदी में मौजूद ग्राह (मगरमच्छ) ने उसे अपने मजबूत जबड़ों में जकड़ लिया। माना जाता है कि गज ग्राह के जबड़ों से खुद को छुड़ाने के लिए कई वर्षों तक उससे लड़ता रहा। इस दौरान गज ने बड़े ही मार्मिक भाव से हरि यानी विष्णु को याद किया।
यह भी पढ़ें : तमिलनाडु के इस अनोखे मंदिर में दूध चढ़ाने पर उसका रंग सफ़ेद से हो जाता है नीला
एक भक्त को दूसरे भक्त से बचने के लिए विष्णु जी ने चलाया सुदर्शन चक्र
माना जाता है कि दर्द से पीड़ित गज की सच्ची प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु वहां उपस्थित हुए और उन्होंने अपना सुदर्शन चक्र चलाकर गज को ग्राह से मुक्ति दिलाई जिससे उसकी जान बच सकी। जिस दिन भगवान विष्णु ने अपने भक्त की मदद की वो दिन कार्तिक पूर्णिमा का ही दिन था। विष्णु जी के इस कृतज्ञ से खुश होकर सभी देवी-देवता गंडक नदी के कोनहारा तट पर ही उपस्थित होकर उनके जयकारे लगाने लगे। लेकिन ये प्रश्न अभी भी चर्चा का मुख्य विषय है कि उस दौरान युद्ध में गज और ग्राह में से कौन विजयी हुआ और कौन पराजित ?
ऐसे पड़ा इस पवित्र स्थान का नाम हरिहर क्षेत्र
एक अन्य पौराणिक कथा की माने तो, जय और विजय दो सगे भाई थे। जिनमें से जय शिव भक्त थे तो वहीं विजय भगवान विष्णु के सबसे बड़े भक्त थे। एक बार दोनों ही भाइयों में अपने ईश्वर को लेकर झगड़ा हो गया जिसके बाद ही दोनों शापित होकर गज और ग्राह बन गए। हाथी और मगर के रूप में जन्म लेने के बाद दोनों में घनिष्ट मित्रता हुई। इसके बाद ही माना जाता है की उन्ही भक्तों के कारण इस जगह शिव और विष्णु दोनों देवों के मंदिर साथ-साथ बनाए गए, जिस कारण इस क्षेत्र का नाम हरिहर क्षेत्र पड़ा।
ये भी पढ़ें: कई मंत्रों के जाप से ज़्यादा फ़लदायी है गायत्री मंत्र, इसके जाप से मिलते हैं कई फ़ायदे
जब शैव और वैष्णव के बीच हुआ युद्ध
एक और अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में सोनपुर में हर साल सैकड़ों ऋषियों और साधुओं का एक विशाल व भव्य सम्मेलन हुआ करता था। एक बार ऋषियों और साधुओं के संगठन में से शैव और वैष्णव के बीच किसी बात को लेकर गंभीर वाद-विवाद खड़ा हो गया। हालांकि बाद में दोनों गुटों में सुलह हो गई और इसी कारण यहाँ शिव तथा विष्णु दोनों की मूर्तियों को एक ही मंदिर में स्थापना किया गया।
हर साल किया जाता है भव्य मेले का आयोजन
माना जाता है कि पौराणिक काल की उन्हीं स्मृतियों के चलते आज भी हर साल सोनपुर में कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। इस स्थान का नाम आपको कई धर्म शास्त्रों में भी पढ़ने को मिलेगा जहाँ इसकी पवित्रता और प्रचीनता का उल्लेख किया गया है। इस स्थान की पवित्रता के चलते ही त्रेतायुग में भगवान राम जब यहां आये थे तब उन्होंने भी बाबा हरिहरनाथ की पूजा-अर्चना यही पर की थी।