सोमवार का व्रत मुख्य रूप से भगवान शिव को समर्पित है जो कि देवों के देव महादेव हैं और जिसको महादेव की कृपा प्राप्त हो जाए उसको किसी अन्य वस्तु की आवश्यकता ही नहीं होती। सोमवार का दिन भगवान शंकर को अत्यंत प्रिय है इसलिए भगवान शंकर की कृपा प्राप्ति के लिए सोमवार का व्रत किया जाता है।
महादेव के सोमवार व्रत का महत्व
सोमवार के व्रत की बहुत महिमा बताई गई है। मान्यता है कि सोमवार के व्रत करने से न केवल भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है बल्कि माता पार्वती भी प्रसन्न होकर अपनी कृपा की वर्षा करती हैं। सोमवार का दिन ज्योतिषशास्त्र में चंद्र ग्रह को दिया गया है इस कारण सोमवार का व्रत करने से कुंडली में चंद्रमा की स्थिति मजबूत होती है और उससे संबंधित कष्टों का शमन भी होता है। इसके अतिरिक्त मनचाहा जीवनसाथी पाने के लिए भी सोमवार का व्रत किए जाने का विधान है।
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सोमवार व्रत की विधि
सोमवार के व्रत मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं:
- सामान्य सोमवार व्रत
- सोम प्रदोष व्रत
- सोलह सोमवार व्रत
उपरोक्त तीनों प्रकार के व्रत भगवान शंकर के लिए ही किए जाते हैं और इनकी विधि भी लगभग एक समान ही है। सोमवार व्रत लगभग तीसरे पहर तक किया जाता है। इसमें फलाहार या पारणा का कोई विशेष नियम नहीं है परंतु पूरे दिन में केवल एक बार ही भोजन किया जाता है। व्रत खोलने से पूर्व और प्रातः काल भगवान शिव और माता पार्वती की पंचोपचार अथवा षोडशोपचार पूजा की जाती है और उसके बाद व्रत खोला जाता है।
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व्रत से जुड़े इन नियमों का रखें ध्यान
सोमवार की सुबह जल्दी उठें और स्नान से पवित्र होकर सफेद वस्त्र पहनें। पूजा हेतु भगवान शिव के मंदिर जाएं अथवा घर पर ही भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें। सबसे पहले शिव जी का जल से अभिषेक करें और उसके बाद श्रद्धा और बिना उबला हुआ दूध अर्पित करें। इसमें थोड़ा गंगाजल भी मिला लें। आप पंचामृत से भी स्नान करा सकते हैं। इसके बाद बिल्वपत्र, आंकड़े के फूल, फल, यज्ञोपवीत आदि चढ़ाएं। भगवान शंकर और माता पार्वती के मध्य गठबंधन करें और फिर भगवान को भोग लगाएँ। इसके अतिरिक्त तीनों में से जिस प्रकार का व्रत आप रख रहे हैं उस व्रत की कथा अवश्य पढ़नी या सुननी चाहिए क्योंकि तीनों व्रतों की अलग-अलग कथा है। इस दिन मुख्य रूप से ॐ नमः शिवाय मंत्र का जाप करना चाहिए।
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सोमवार व्रत की पूजा सामग्री
- शिव एवं पार्वती जी की मूर्ति
- चंद्र देव की मूर्ति अथवा चित्र
- चौकी या लकड़ी का पटरा
- अक्षत
- ऋतुफल
- चंदन
- मौली
- कपूर-
- रूई- बत्ती के लिये
- पंचामृत (गाय का कच्चा दूध, दही,घी,शहद एवं शर्करा मिला हुआ)
- गंगाजल
- लोटा
- नैवेद्य
- आरती के लिये थाली
- कुशासन
उपरोक्त सामग्री जुटाकर भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना करें। साथ ही साथ चंद्रदेव की भी पूजा करें। पूजा के उपरांत आरती करें और भोग अर्पित करें तत्पश्चात व्रत खोले।
सोमवार व्रत का उद्यापन
व्रत प्रारंभ करने से पहले संकल्प लें कि आप कितने व्रत करना चाहते हैं। जैसे यदि आप सोलह सोमवार का व्रत करते हैं तो सोलह सोमवार व्रत पूरे होने पर सत्रहवें सोमवार को उद्यापन करना चाहिए। मुख्य रूप से कार्तिक, सावन, ज्येष्ठ, वैशाख या मार्गशीर्ष महीने के किसी भी सोमवार को व्रत का उद्यापन कर सकते है। यदि आप विशिष्ट रूप से यह व्रत करना चाहते हैं तो आपको यह व्रत लगातार चौदह वर्ष तक करना चाहिए। उद्यापन के अंत में भगवान शंकर माता पार्वती और चंद्र देव का संयुक्त रूप से हवन और पूजन करें। आप इस हेतु किसी योग्य ब्राह्मण की सहायता ले सकते हैं।
सोमवार व्रत उद्यापन विधि
- उद्यापन वाले दिन सुबह जल्दी उठे और स्नान कर पवित्र हो जाएँ।
- पूजा हेतु ब्राह्मण द्वारा चार द्वारो का मंडप तैयार करें।
- इसके बाद वेदी बनाकर देवताओ का आह्नान करें और कलश की स्थापना करें।
- मंत्रों द्वारा भगवान् शिव जी, माता पार्वती, चंद्र देव आदि का आवाहन करें।
- गंध, पुष्प, धूप, नैवेद्य, फल, दक्षिणा, पान, फूल, आदि देवताओ को अर्पित करें।
- इसके बाद आप शिव जी को स्नान कराएं और हवन आरम्भ करें।
- हवन की समाप्ति पर यथाशक्ति दक्षिणा अथवा गौ दान करें।
- तत्पश्चात ब्राह्मण को भोजन करा कर विदा करें और स्वयं भोजन करें।