शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष की समाप्ति 28 सितंबर को पितृमोक्ष अमावस्या के दिन होने जा रहा है। इससे पहले कल श्राद्धपक्ष की चतुर्दशी तिथि है जिसे हिन्दू धर्म में काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। सोलह दिनों तक चलने वाले पितृपक्ष के दौरान खासतौर से मृत पितरों के आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और तर्पण की क्रिया की जाती है। आज हम आपको विशेष रूप से पितृपक्ष के चतुर्दशी तिथि का महत्व और इस दिन से जुड़े ख़ास तथ्यों के बारे में बताने जा रहे हैं। आइये जानते हैं, इस दिन को क्यों इतनी महत्ता दी जाती है।
पितृपक्ष के चतृर्दशी तिथि का महत्व
बता दें कि, पितृपक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन मुख्य रूप से उन पितरों का श्राद्ध कर्म किया जाता है जिनकी मृत्यु समय से पहले हुई हो । यानि की इस दिन उनकी आत्मा की शांति के लिए क्रिया कर्म किये जाते हैं जिनकी अकाल मृत्यु होती है। जैसे कि यदि किसी की मौत असामयिक ही किसी दुर्घटना में हुई हो या किसी जहरीले जीव जंतु के काटने से हुई हो। इसके साथ ही साथ गरुड़ पुराण के अनुसार जिन पितरों की मृत्यु आत्महत्या करने या किसी के द्वारा हत्या कर देने की वजह से हुई हो, उनका श्राद्ध कर्म भी चतुर्दशी तिथि के दिन किया जाता है। जानकारी के लिए बता दें कि, केवल उन्हें ही पितर नहीं माना जाता है जिनकी मृत्यु समय के साथ हुई होती है बल्कि वो दिवंगत आत्माएं भी पितरों की श्रेणी में ही आती हैं जिनकी मृत्यु किसी कारणवश असमय हुई होती है। पितृपक्ष में सभी पितरों के आत्मा की शांति के लिए एक दिन निश्चित किया गया है। जैसे की चतुर्दशी तिथि को मुख्य रूप से असमय मृत्यु को प्राप्त हुए पितरों के श्राद्ध के लिए निश्चित किया गया है।
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चतुर्दशी तिथि के दिन भूले से भी ना करें सामान्य मृत्यु प्राप्त पितरों का श्राद्ध
बता दें कि, महाभारत काल में भीष्म पितामह ने खासतौर से युधिष्ठिर को इस बात का ज्ञान दिया था की पितृपक्ष की चतुर्दशी तिथि को केवल उन दिवंगत आत्माओं का ही श्राद्ध किया जाना चाहिए जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो। इसके साथ ही साथ इस बात का ख़ास ध्यान रखना चाहिए की इस दिन उन पितरों का श्राद्ध भूलकर भी ना करें जिनकी मृत्यु सामान्य रूप से हुई हो। शास्त्रों में इस बात का उल्लेख मिलता है की, पितृपक्ष की चतृर्दशी तिथि को अन्य पितरों का श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को चोट पहुँचती है और उन्हें तकलीफ़ से गुजरना पड़ता है। कर्मपुराण में इस बात का जिक्र मिलता है की सामान्य मृत्यु वाले पितरों का श्राद्ध चतुर्दशी तिथि के दिन करने से परिवार के सदस्यों पर भी उसका विपरीत परिणाम पड़ता है।
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गौरतलब है की पितृपक्ष के आखिरी दिन यानि की पितृमोक्ष अमवस्या या सर्वपितृ अमावस्या के दिन उन पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है जिनकी मृत्यु तिथि परिवार को याद ना हो। इस दिन को इसलिए भी सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है क्योंकि इस दिन सभी पितरों का श्राद्ध नियम पूर्वक किया जा सकता है।