Parad Shivling – पारद शिवलिंग
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पारद शिवलिंग को बहुत शुभ माना गया है। पारद शिवलिंग शुद्ध पारा धातु से बना होता है। इसकी स्थापना से दरिद्रता दूर हो जाती है और माता लक्ष्मी का घर में वास होता है। पारद शिवलिंग को स्थापित करने से आरोग्य, धन-धान्य, सुख और पद-प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है। पारद शिवलिंग को भगवान् शिव, माँ लक्ष्मी और कुबेर देव का प्रतीक माना जाता है। आंतरिक और आध्यत्मिक शक्ति पाने के लिए भी पारद शिवलिंग की स्थापना की जाती है।
पारद शिवलिंग को स्थापित करने की विधि:
- पारद शिवलिंग को स्थापित करने से पहले स्नान आदि करके स्वच्छ हो जाएं।
- पूजा स्थल को साफ़ करके वहां गंगाजल छिड़कें।
- पूजा स्थल या किसी भी पवित्र स्थल पर शिवलिंग को नंदी और नाग के साथ स्थापित करें।
- शिवलिंग को उतर या पूर्व की दिशा की ओर ही स्थापित करें। पारद शिवलिंग की स्थापना करने के बाद ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप 108 बार करें।
- साथ ही माँ लक्ष्मी और कुबेर देव को प्रसन्न करने के लिए ‘ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं श्रीं कुबेराय अष्ट-लक्ष्मी मम गृहे धनं पुरय पुरय नमः’ मंत्र का पाठ करें।
- इस शिवलिंग की स्थापना आप सोमवार या चंद्र के किसी भी नक्षत्र यानि रोहिणी, हस्त या श्रवण नक्षत्र में कर सकते हैं।
Narmadeshwar Shivalinga – नर्मदेश्वर शिवलिंग
दुनिया भर में सभी पवित्र शिवलिंगों में से सर्वश्रेष्ठ नर्मदेश्वर शिवलिंग को ही माना गया है। इस शिवलिंग की उत्पत्ति पवित्र नर्मदा नदी से होती है। प्राचीन हिन्दू धर्म के अनुसार नर्मदा नदी को शिव जी का वरदान प्राप्त था और इसलिए इस नदी के एक एक कण में शिव का वास माना गया है। यही कारण हैं कि यहाँ से उत्पन्न होने वाले शिवलिंग बेहद पवित्र होते हैं। ऐसी मान्यता है कि नर्मदेश्वर शिवलिंग का जहां वास होता है वहाँ यम और काल का भय नहीं सताता। इसकी स्थापना करने से घर में सुख, समृद्धि और धन का आगमन होता है। इसके साथ ही साथ जीवन में हर दिशा में सफलता भी प्राप्त होती है। नर्मदेश्वर शिवलिंग का दैवीय प्रतीक शिव जी को माना जाता है।
नर्मदेश्वर शिवलिंग को घर में स्थापित करने की विधि:
- प्रातः काल उठकर स्नान ध्यान के बाद किसी बड़े पात्र में नर्मदेश्वर शिवलिंग को रखें और इसके ऊपर बेलपत्र और जल अर्पित कर पूजा अर्चना करें।
- इसके पश्चात जिस स्थान पर भी इसे स्थापित करें उस जगह की पहले साफ़ सफाई जरूर कर लें।
- इसके पश्चात भगवान शिव की आराधना करते हुए तथा “ॐ नमः शिवाय” मन्त्र का 108 बार जाप करते हुए इस शिवलिंग की स्थापना करें।
- अगर घर के मंदिर में शिवलिंग की स्थापना कर रहे हैं तो ज्यादा बड़ा शिवलिंग स्थपित ना करें।
- इसकी स्थापना सोमवार के दिन चंद्र के होरा में करें।
Sphatik Shivling – स्फटिक शिवलिंग
वैदिक शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि स्फटिक शिवलिंग की आराधना करने से व्यक्ति को ज्योतिर्लिंग की पूजा के समान ही फल प्राप्त होता है। इसकी पूजा से भक्तों को कई लाभ मिलते हैं। स्फटिक शिवलिंग की आराधना से जीवन में सुख-शांति तथा समृद्धि आती है और शिवजी का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त शिवलिंग की पूजा से घर में प्रेम और सौहार्द का वातावरण रहता है। ये शिवलिंग समस्त प्रकार के कष्टों को हरता है। साथ ही यदि कोई व्यक्ति शिव की अनु-कंपा प्राप्त करना चाहता है तो उसे स्फटिक से बने इस शिवलिंग की पूजा अवश्य करनी चाहिए। यह शिवभक्तों की मनोकामनाओं को शीघ्र पूरा करता है।
स्फटिक शिवलिंग को स्थापित करने की विधि:
- सर्वप्रथम प्रतिमा को गंगाजल एवं कच्चे दूध से नहलाएं।
- किसी बड़े पात्र में स्फटिक शिवलिंग को रखें और इसके ऊपर बेलपत्र और जल अर्पित कर पूजा अर्चना करें।
- इसके पश्चात जिस स्थान पर भी इसे स्थापित करें उस जगह को पहले स्वच्छ कर लें।
- फिर भगवान शिव की आराधना करते हुए “ॐ नमः शिवाय” मन्त्र का 108 बार जाप करें और इस शिवलिंग को स्थापित करें।
- इसकी स्थापना सोमवार के दिन चंद्र के होरा में करें।
Shaligram – शालिग्राम
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शालिग्राम को भगवान विष्णु का रूप माना जाता है। इसलिए विष्णु देव को प्रसन्न करने के लिए इसकी स्थापना करना शुभ होता है। यदि कोई विधि-विधान और पूरे अनुष्ठान अनुसार शालिग्राम की स्थापना करता है तो इससे भगवान विष्णु उसे सामंजस्य और समृद्धि की प्राप्ति कराते हैं। ज्योतिषियों अनुसार जहाँ शालिग्राम के स्पर्शमात्र से आप बुध ग्रह को शांत कर अपने पापों का अंत कर सकते हैं वहीं उसका पूजन कर भगवान विष्णु का आशीर्वाद भी पा सकते है। क्योंकि भगवान विष्णु को बुध ग्रह का स्वामित्व प्राप्त है। इसी लिए शालिग्राम की स्थापना से आपका लोगों को बुरी नज़र और दुष्प्रभाव से पूरी तरह बचाव होता है।
शालिग्राम की स्थापना करने की विधि:
- शालिग्राम को स्थापित करने से पूर्व इसे गंगाजल अथवा कच्चे दूध में डालकर इसे शुद्ध करें।
- विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करते हुए शालिग्राम को पंचामृत से स्नान करवाएं।
- इसके पश्चात भगवान का पंचोपचार पूजन करें। इसमें गंध, पुष्प, धूप, दीप और तुलसी के साथ नैवेद्य को शामिल करें।
- फिर इसे घर के पवित्र स्थल पर पूर्व या उत्तर-पूर्व की ओर स्थापित करें।
- स्थापना से पूर्व जगह को सही से साफ़-सफाई कर उसपर गंगाजल का छिड़काव करते हुए पवित्र करें।
- अब शालिग्राम को धूप-दीप, अगरबत्ती अर्पित करते हुए विष्णु मन्त्र “ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय“ का 108 बार जाप करना चाहिए।
- शालिग्राम को स्थापित करते हुए तुलसी के पैधे की भी पूजा करें, अन्यथा बिना तुलसी के शालिग्राम की पूजा करने पर दोष लगता है।
- उपरोक्त विधि को करने के पश्चात आप बुधवार को अथवा अश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती नक्षत्र में इसे स्थापित करें।
Parad Shri Yantra – पारद श्री यंत्र
सुख वैभव की प्राप्ति और जीवन की सभी बाधाओं को दूर करने के लिए पारद श्री यंत्र को घर में स्थापित करना बेहद शुभ होता है। इस यंत्र की घर में स्थापना करने से सभी कष्टों से छुटकारा मिलता है और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। पारद श्री यंत्र का दैवीय प्रतीक लक्ष्मी माता और कुबेर देव को माना गया है। पारिवारिक सुख और आर्थिक मजबूती के लिए लक्ष्मी माता का ये यंत्र स्थापित किया जाता है। इसे सभी यंत्रों में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इस यंत्र को प्रभावकारी बनाए रखने के लिए प्रतिदिन इसकी पूजा अर्चना के साथ मंत्र उच्चारण करना बेहद आवश्यक है। विशेषरूप से होली, दिवाली, नवरात्री और शिवरात्रि के दौरान सही मंत्रोच्चार कर इस यंत्र को अधिक प्रभावकारी बनाया जाता है। पारद श्री यंत्र सोना, चांदी और तांबे का हो सकता है।
पारद श्री यंत्र को स्थापित करने की विधि:
- घर, दफ्तर या तिजोरी के उत्तर और पूर्व दिशा में इसकी स्थापना करें।
- इसे घर या दफ्तर में बने मंदिर में स्थापित करें।
- इसकी स्थापना शुक्रवार के दिन ब्रह्म मुहूर्त में अथवा दिवाली और नवरात्री मे करें।
- पारद श्री यंत्र की स्थापना से पूर्व श्री यंत्र मन्त्र “ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं नम:” और “ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्री ह्रीं श्री ॐ महालक्ष्म्यै नम:” का जाप करें।
- प्रतिदिन धूप-दीप दिखाते हुए इस यंत्र की पूजा अर्चना करें।
Navdurga Kavach – नवदुर्गा कवच
नवदुर्गा कवच अति पवित्र और बहुमूल्य है। इसे ख़ास नैनो तकनीक के माध्यम से आधुनिक रूप में तैयार किया गया है। इस कवच में माँ नवदुर्गा की भव्य प्रतिमा है। माँ भगवती से संबंधित मंत्रों के माध्यम से इसे सक्रिय किया गया है। वैसे तो नवरात्रि के पावन अवसर पर माँ नवदुर्गा के नौ रुपों की आराधना होती है। लेकिन आप इस नवदुर्गा कवच के माध्यम से हर समय माँ के नौ रुपों का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। इस कवच के मध्य में हाई डेफिनिशन लेंस द्वारा नव दुर्गा की नौ शक्तियों का स्वरूप देखा जा सकता है। यह कवच किसी भी प्रकार की बुरी ताक़त से बचाव करता है। जो कोई व्यक्ति इस यंत्र को धारण करता है वह निडर भाव से हर परिस्थिति का सामना करने में सक्षम होता है। साथ ही उसके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इससे एकाग्रता शक्ति भी बढ़ती है और रोगों, दुखों, दरिद्रता एवं भय से मुक्ति मिलती है।
नवदुर्गा कवच धारण करने की विधि:
- नवदुर्गा कवच को लाॅकेट में धारण करें।
- इसके पूर्व इस कवच को गंगाजल या कच्चे दूध की छींटे मारकर इसे शुद्ध करें।
- इसके पश्चात इससे संबंधित मंत्र का शुद्ध रूप में उच्चारण करें।
- साथ ही दुर्गा कवच का पाठ करें।
- अब दुर्गा कवच को धारण कर लें।
- नव दुर्गा मंत्र का जाप करें।
शैलपुत्री – ह्रीं शिवायै नमः।।
ब्रह्मचारिणी – ह्रीं श्रीं अम्बिकायै नमः।।
चंद्रघंटा – ऐं श्रीं शक्तयै नमः।।
कूष्मांडा – ऐं ह्रीं देव्यै नमः।।
स्कंदमाता – ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नमः।।
कात्यायनी – क्लीं श्रीं त्रिनेत्रायै नमः।।
कालरात्रि – क्लीं ऐं श्री कालिकायै नमः।।
महागौरी- श्रीं क्लीं ह्रीं वरदायै नमः।।
सिद्धिदात्री – ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धयै नमः।।
- कवच को नवरात्रि के दौरान अथवा शुक्रवार के दिन किसी भी शुभ नक्षत्र और योग में धारण करें।
Kuber Kunji – कुबेर कुंजी
भगवान कुबेर धन एवं निधि के देवता हैं और कुबेर कुंजी के माध्यम से इनका आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है। यदि कोई जातक सच्चे मन से कुबेर कुंजी की आराधना करता है तो उसके भाग्य में वृद्धि होती है तथा जीवन धन एवं वैभव से परिपूर्ण रहता है। कुबेर कुंजी घर के मंदिर, तिजोरी एवं अलमारी में राखी जाती है। वहीं ऑफिस आदि में जहाँ से आर्थिक लेनदेन होता हो वहाँ पर भी कुबेर कुंजी को स्थापित किया जा सकता है। कुबेर कुंजी सभी प्रकार की आर्थिक समस्याओं को दूर करती है। करियर क्षेत्र में भी यह बेहद लाभकारी है। इससे जातक नई नौकरी, प्रमोशन, इंक्रीमेंट एवं अन्य प्रकार के लाभ प्राप्त कर सकते हैं। इससे आर्थिक जीवन भी मजबूत होता है।
कुबेर कुंजी को स्थापित करने की विधि:
- कुबेर कुंजी को पहले गंगा जल अथवा कच्चे दूध का छिड़काव कर शुद्ध करें।
- इसके बाद लाल चंदन, लाल फूल, अबीर, रोली और अक्षत चढ़ाकर कुंजी की विधिवत पूजन करें।
- पूजा के दौरान कुबेर देव को धूप-दीप दिखाते हुए “ॐ श्रीं, ॐ ह्रीं श्रीं, ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय: नम:” मंत्र का जाप करें।
- कुबेर कुंजी की स्थापना त्रयोदशी तिथि में करें।