क्या आप जानते है कि कार्तिकेय और गणेश के अलावा भगवान शिव और माता पार्वती की एक पुत्री भी थी। जी हाँ, हर कोई शिव पुत्रों के विषय में जानता है किन्तु बहुत कम लोग यह जानते है कि कार्तिकेय और गणेश की एक बहन भी थी, जिसका नाम अशोक सुंदरी था और इस बात का उल्लेख पद्मपुराण में भी किया गया है।
आज इस लेख के द्वारा हम आपको बताएंगे कि कौन थी अशोक सुंदरी और कैसे हुआ था उसका जन्म।
कैसे हुआ अशोक सुंदरी का जन्म
अशोक सुंदरी एक देव कन्या थी जो अत्यधिक सुन्दर थी। शिव और पार्वती की इस पुत्री का वर्णन पद्मपुराण में है जिसके अनुसार एक दिन माता पार्वती ने भगवान शिव से संसार के सबसे सुन्दर उद्यान में घूमने का आग्रह किया। अपनी पत्नी की इच्छापूर्ति के लिए भगवान शिव उन्हें नंदनवन ले गए जहाँ माता पार्वती को कलपवृक्ष नामक एक पेड़ से लगाव हो गया। कल्पवृक्ष मनोकामनाए पूर्ण करने वाला वृक्ष था अतः माता उसे अपने साथ कैलाश ले आयी और एक उद्यान में स्थापित किया।
एक दिन माता अकेले ही अपने उद्यान में सैर कर रही थी क्योंकि भगवान् भोलेनाथ अपने ध्यान में लीन थे। माता को अकेलापन महसूस होने लगा इसलिए अपना अकेलापन दूर करने के लिए उन्होंने एक पुत्री की इच्छा व्यक्त की। तभी माता को कल्पवृक्ष का ध्यान आया जिसके पश्चात वह उसके पास गयीं और एक पुत्री की कामना की। चूँकि कल्पवृक्ष मनोकामना पूर्ति करने वाला वृक्ष था इसलिए उसने तुरंत ही माता की इच्छा पूरी कर दी जिसके फलस्वरूप उन्हें एक सुन्दर कन्या मिली जिसका नाम उन्होंने अशोक सुंदरी रखा। उसे सुंदरी इसलिए कहा गया क्योंकि वह बेहद ख़ूबसूरत थी।
माता पार्वती ने अशोक सुंदरी को क्या वरदान दिया था
माता पार्वती अपनी पुत्री को प्राप्त कर बहुत ही प्रसन्न थी इसलिये माता ने अशोक सुंदरी को यह वरदान दिया था कि उसका विवाह देवराज इंद्र जितने शक्तिशाली युवक से होगा।
किससे और कैसे हुआ अशोक सुंदरी का विवाह
ऐसा माना जाता है कि अशोक सुंदरी का विवाह चंद्रवंशीय ययाति के पौत्र नहुष के साथ होना तय था।
एक बार अशोक सुंदरी अपनी सखियों के संग नंदनवन में विचरण कर रहीं थीं तभी वहाँ हुंड नामक एक राक्षस आया। वह अशोक सुंदरी की सुन्दरता से इतना मोहित हो गया कि उससे विवाह करने का प्रस्ताव रख दिया।
तब अशोक सुंदरी ने उसे भविष्य में उसके पूर्वनियत विवाह के संदर्भ में बताया। यह सुनकर हुंड क्रोधित हो उठा और उसने कहा कि वह नहुष का वध करके उससे विवाह करेगा। राक्षस की दृढ़ता देखकर अशोक सुंदरी ने उसे श्राप दिया कि उसकी मृत्यु उसके पति के हाथों ही होगी।
तब उस दुष्ट राक्षस ने नहुष को ढूंढ निकाला और उसका अपहरण कर लिया। जिस समय हुंड ने नहुष को अगवा किया था उस वक़्त वह बालक थे। राक्षस की एक दासी ने किसी तरह राजकुमार को बचाया और ऋषि विशिष्ठ के आश्रम ले आयी जहाँ उनका पालन पोषण हुआ ।
जब राजकुमार बड़े हुए तब उन्होंने हुंड का वध कर दिया जिसके पश्चात माता पार्वती और भोलेनाथ के आशीर्वाद से उनका विवाह अशोक सुंदरी के साथ संपन्न हुआ।
बाद में अशोक सुंदरी को ययाति जैसा वीर पुत्र और सौ रूपवान कन्याओ की प्राप्ति हुई।
कैसे मिली थी नहुष को इन्द्र की गद्दी
इंद्र के घमंड के कारण उसे श्राप मिला तथा जिससे उसका पतन हुआ। उसके अभाव में नहूष को आस्थायी रूप से उसकी गद्दी दे दी गयी थी जिसे बाद में इंद्रा ने पुनः ग्रहण कर लिया था।
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