23 मई को मकर राशि में शनि होंगे वक्री, जानें वक्री शनि से जुड़ी 10 खास बातें

साल 2021 का मई महीना ज्योतिषीय दृष्टिकोण से बहुत अहम रहा है। इस महीने अब तक लगभग तीन बड़े ग्रह गोचर कर अपनी राशि परिवर्तन कर चुके हैं और फिलहाल तीन ग्रहों का गोचर होना अभी बाकी है। साथ ही इस महीने साल का पहला चन्द्र ग्रहण भी हो रहा है। लेकिन इन सब के अलावा एक और ज्योतिषीय घटना होने जा रही है जिसकी तरफ इस वक़्त दुनिया भर के ज्योतिषों का ध्यान है।

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दरअसल 23 मई को शनि ग्रह वक्री हो रहे हैं। ऐसे में आज हम आपको इस लेख में शनि ग्रह के वक्री होने से जुड़ी दस खास बातें बताने जा रहे हैं जिनका आपके लिए जानना बेहद जरूरी है।

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1) शनि देवता का सनातन धर्म में स्थान

शनि देवता भगवान सूर्य के पुत्र हैं। मान्यता है कि भगवान शनि के श्याम वर्ण के होने की वजह से भगवान सूर्य ने उन्हें अपना पुत्र मानने से इंकार कर दिया था। यही वजह है कि भगवान शनि अपने पिता से बैर रखते हैं। शनि यमराज के भाई हैं और माँ यमुना शनि की बहन हैं।

शनि देवता को तीनों लोकों का न्यायधीश कहा जाता है। मान्यता है कि शनि देवता सभी जातकों को उसके कर्म के अनुसार फल देते हैं। शनि देवता को उनकी अशुभ दृष्टि की वजह से जाना जाता है। शनि देव की दृष्टि जिस पर भी पड़ जाती है उसका कुछ न कुछ अनिष्ट होना निश्चित है। मान्यता है कि स्वयं देवों के देव महादेव के पुत्र श्री गणेश भी शनि देवता के प्रभाव से नहीं बच सके थे और उन्हें अपना सिर शनि की दृष्टिपात की वजह से गंवाना पड़ा था।

लेकिन फिर भी शनि देवता सनातन धर्म में पूजनीय हैं। देश भर में उनके कई मंदिर हैं जहां श्रद्धा भाव से शनि देवता के भक्त अपना मत्था टेकते हैं। भगवान शनि की सवारी कर्कश आवाज वाला कौवा माना जाता है और काला रंग भगवान शनि को बेहद प्रिय है। शनि को नवग्रहों के बीच अहम स्थान प्राप्त है जो मानव जीवन को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। 

2) शनि देवता का ज्योतिषीय महत्व

ज्योतिषीय दृष्टिकोण से शनि का बहुत महत्व है। यह किसी भी जातक की कुंडली में दुख, रोग, पीड़ा, खनिज, तेल, लोहा, विज्ञान आदि का कारक माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के 12 राशियों में से दो राशियाँ यानी कि मकर और कुम्भ राशि पर शनि देवता का आधिपत्य है। वहीं 27 नक्षत्रों के बीच यह पुष्य, अनुराधा और उत्तराभाद्रपद नक्षत्रों के स्वामी माने जाते हैं। शनि तुला राशि में उच्च होते हैं और मेष राशि में नीच हो जाते हैं।

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शनि को लेकर लोगों के मन में यह धारणा बनी हुई है कि शनि लोगों का हमेशा अनिष्ट ही करते हैं लेकिन यह पूरी तरह सत्य नहीं है। शनि अगर किसी जातक की कुंडली में शुभ स्थान पर बैठे हों तो वे शुभ फल भी प्रदान करते हैं। लेकिन यह भी सत्य ही है कि शनि अगर किसी जातक की कुंडली में नीच स्थान पर बैठे हों तो सामान्य स्थिति में उस जातक का जीवन कष्टों से भर जाता है। 

3) शनि का जीवन पर प्रभाव

शनि यदि किसी जातक की कुंडली में नीच हो जाये तो ऐसे जातक को जीवन में आर्थिक, शारीरिक और मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जीवन में दुर्घटनाओं के योग बनते हैं। साथ ही पिता से मनमुटाव भी बढ़ जाता है। कारावास तक के योग भी बनते हैं। शनि यदि बुरी स्थिति में हो तो गंभीर रोगों जैसे कि कैंसर, पैरालिसिस, इत्यादि को जन्म देता है।

वहीं किसी जातक की कुंडली में यदि शनि शुभ फल देने की स्थिति में हो तो ऐसे जातक को सकारात्मक फल मिलते हैं। ऐसे जातक स्वभाव से मेहनती, लगनशील और न्यायप्रिय होते हैं। ऐसे जातकों का चित्त स्थिर होता है और वह काफी धैर्यवान हो जाता है। आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ होती है और साथ ही  शनि जातक को दीर्घायु भी बनाते हैं।

4) कब वक्री हो रहे हैं शनि?

सभी नौ ग्रहों के बीच शनि की चाल सबसे धीमी है। इस ग्रह का नाम भी इसकी धीमी चाल (जिसे संस्कृत में ‘शनये’ कहते हैं) पर ही रखा गया है। शनि ग्रह अपने गोचर का 36 प्रतिशत हिस्सा वक्री रह कर ही बिताता है। इससे आप समझ सकते हैं कि ज्योतिषीय दृष्टिकोण से शनि का वक्री होना कितनी महत्वपूर्ण घटना है।

शनि देवता अभी मकर राशि में हैं और 23 मई को वो इसी राशि में वक्री भी होंगे। 23 मई 2021 को शनि देवता वृषभ राशि में मौजूद सूर्य देवता से 120 डिग्री के अंश से दूर हो जाएंगे जिसके साथ ही शनि ग्रह की वक्री चाल शुरू हो जाएगी और 11 अक्टूबर 2021 तक वो इसी तरह गोचर करेंगे। 11 अक्टूबर 2021 को जब एक बार फिर से सूर्य देवता कन्या राशि में मौजूद रह कर शनि देवता से 120 डिग्री नजदीक आएंगे तो शनि देवता पुनः मार्गी हो जाएंगे।

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5) क्या होता है वक्री होना?

आप में से शायद कई लोगों को इस बात की जानकारी नहीं होगी कि वक्री होना क्या होता है। ऐसे में हम आपको बता दें कि वक्री होना एक खास ज्योतिषीय घटना है जिसमें कोई ग्रह पीछे की ओर चलता हुआ प्रतीत होता है। यहाँ इस बात को बताना बहुत जरूरी हो गया है कि इस स्थिति में ग्रह पीछे की ओर नहीं चलता है बल्कि ऐसा “प्रतीत” होता है कि ग्रह पीछे चल रहा है।

6) वक्री शनि का देश-दुनिया पर क्या होता है प्रभाव?

शनि के वक्री होने की घटना इस वजह से भी महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि इसका प्रभाव किसी व्यक्ति विशेष तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि देश-दुनिया भी इस ज्योतिषीय घटना से समान रूप से प्रभावित होती है। इस दौरान दुनिया भर में आपको भूस्खलन और भूकंप जैसी घटनाओं में अचानक से वृद्धि होती दिख सकती है। साथ ही बवंडर या तूफान की समस्या से भी देश-दुनिया प्रभावित होती है। वातावरण में अत्यधिक शीतल और तेज हवाएँ चलती हैं।

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7) वक्री शनि का जातकों पर प्रभाव 

आप इसे इस तरह से भी समझ सकते हैं कि यदि शनि आपकी कुंडली में अशुभ फल देने की स्थिति में बैठा हुआ है तो शनि का वक्री होना भी आपके लिए अशुभ होगा और जीवन में इस अवधि में समस्याएं थोड़ी और बढ़ती हुई सी प्रतीत होंगी। जबकि यदि शनि आपकी कुंडली में शुभ स्थान पर बैठा हुआ है तो वक्री शनि की अवधि भी आपको शुभ फल देगी।

इस दौरान यदि शनि आपको शुभ फल देने की स्थिति में है तो वक्री शनि के दौरान आपको कार्यक्षेत्र में सफलता, किसी निवेश आदि से मुनाफा इत्यादि हो सकता है। वहीं शनि यदि कुंडली में अशुभ फल देने की स्थिति में बैठा हो तो शनि वक्री के दौरान आपको जोड़ों में दर्द, कार्य में विलंब, नौकरी में परेशानी, निवेश में घाटा, लोहे के व्यापार में घाटा इत्यादि समस्याओं से दो-चार होना पड़ सकता है।

शनि के वक्री होने का प्रभाव वैसे तो सभी बारह राशियों पर पड़ता है लेकिन इससे विशेष तौर पर वैसे जातक प्रभावित होते हैं जिनकी कुंडली में शनि की साढ़े साती या फिर शनि की ढैय्या चल रही हो। ऐसे जातक वक्री शनि की अवधि के दौरान आम दिनों से ज्यादा आर्थिक, मानसिक व शारीरिक समस्याओं का सामना करते हैं।  

ऐसे में आपके लिए यहाँ ये भी समझना जरूरी हो जाता है कि शनि साढ़े साती और शनि की ढैय्या क्या होती है। आइये अब आपको इसके बारे में भी बता देते हैं।

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8) शनि की ढैय्या

चंद्र राशि से जब शनि चौथे अथवा आठवें भाव में गोचर करता है तब शनि की ढैय्या शुरू होती है। इसकी अवधि शनि के गोचर की अवधि के बराबर होती है यानी कि ढाई साल। इस दौरान जातक की कुंडली में शनि की स्थिति के अनुसार ये निर्भर करता है कि शनि की ढैय्या उसे शुभ परिणाम देगी या अशुभ परिणाम।

9) शनि की साढ़े साती

शनि देवता एक राशि से दूसरी राशि में गोचर करने में ढाई साल का वक्त लेते हैं। गोचर के बाद शनि जिस भी राशि में मौजूद होता है, वह राशि, उससे अगली राशि और बारहवीं राशि शनि साढ़े साती से प्रभावित हो जाती है। साढ़े सात वर्ष इसलिए क्योंकि शनि को तीन राशियों से गुजरने में सात वर्ष और छह महीने का वक़्त लगता है।

शनि साढ़े साती के बारे में लोग यही सोचते हैं कि यह बुरा फल देने वाली अवधि होती है। ऐसे में आपको बता दें कि जिन जातकों की कुंडली में शनि शुभ फल देने वाला ग्रह होता है, उन जातकों के लिए शनि साढ़े साती नुकसानदायक नहीं होती है। आपको बता दें कि शनि साढ़े साती के तीन चरण होते हैं और हर चरण में ये राशि अनुसार शुभ या अशुभ फल देता है। 

पहले चरण में शनि की साढ़े साती धनु, वृषभ और सिंह राशि वालों को अधिक प्रभावित करता है। वहीं दूसरे चरण में ये मकर, मेष, कर्क और वृश्चिक राशि जबकि तीसरे चरण में ये मिथुन, कर्क, तुला, वृश्चिक और मीन राशि के जातकों को अधिक प्रभावित करता है।

आइये अब हम आपको वक्री शनि के दौरान शनि के अशुभ प्रभावों को कम करने के लिए अपनाए जाने वाले ज्योतिषीय उपाय बता देते हैं।

10) शनि को शांत करने के ज्योतिषीय उपाय

पहला उपाय : शनिवार का दिन शनि देवता को समर्पित होता है। ऐसे में शनिवार के दिन आप सुबह स्नान करने के बाद काले वस्त्र धारण करें। आस पास यदि कहीं कोई शनि देवता का मंदिर हो तो वहाँ जाकर शनि देवता के दर्शन करें और उनका सरसों तेल से अभिषेक करें। शनि देवता सरसों तेल के अभिषेक से बहुत प्रसन्न होते हैं। शनिवार के दिन किसी पीपल पेड़ के नीचे दीपक जलाएं और पीपल पेड़ की जड़ में जल अर्पित करें।

दूसरा उपाय : वे जातक जो शनि देवता के प्रकोप से परेशान हैं उन्हें मंगलवार और शनिवार को हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए। हनुमान जी के भक्तों को शनि देवता कभी भी परेशान नहीं करते। ऐसे में आप मंगलवार और शनिवार के दिन हनुमान चालीसा का पाठ करें। रामायण के सुंदरकांड का पाठ करेंगे तो और भी शुभ फल प्राप्त होगा। शनि देव इससे शीघ्र ही शांत होते हैं।

तीसरा उपाय : भगवान शंकर की पूजा से भी शनिदेव का प्रकोप कम होता है। ऐसे में आप प्रतिदिन गाय के दूध में काला तिल मिला कर भगवान शंकर का अभिषेक करें। इससे शनि देवता के अशुभ प्रभाव खत्म होते हैं। यदि यह अभिषेक का कार्य किसी पीपल पेड़ के नीचे संपान्न हो तो और भी शुभ फल प्राप्त होते हैं।

चौथा उपाय : भगवान शनि न्याय के देवता हैं यानी कि वे जातकों को उसके कर्मों के अनुसार फल देते हैं। चूंकि सनातन धर्म में दान कर्म को सर्वश्रेष्ठ कर्मों में से एक माना गया है। ऐसे में आप शनिवार के दिन काला तिल, काल उड़द और सरसों का तेल दान करें। साथ ही शनिवार के दिन काले कौवे या फिर काले कुत्ते को रोटी खिलाएं। इससे शनि देवता प्रसन्न होते हैं।

पांचवा उपाय : शनिवार के दिन भगवान शनि की पूजा करते वक़्त ॐ शं शनैश्चराय नमः” और “ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः” मंत्रों का जाप करें। नहाने के पानी में कुछ बूंद सरसों तेल और काला तिल मिलाकर स्नान करें। शनिवार के दिन माँ काली के पूजा से भी शनि देवता शांत होते हैं।

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हमें उम्मीद है कि वक्री शनि से जुड़ा हमारा यह लेख आपके लिए काफी मददगार साबित हुआ होगा। अगर ऐसा है तो आप इसे अपने अन्य शुभचिंतकों के साथ जरूर साझा करें। आपका बहुत बहुत धन्यवाद! 

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