समस्त सनातन धर्म के अनुयायियों के बीच सत्यनारायण कथा बेहद प्रचलित है। हिन्दू शास्त्रों अनुसार भगवान सत्यनारायण, भगवान विष्णु के ही रूप माने जाते हैं, जिन्हे समस्त जग के पालनहार का दर्जा प्राप्त है। ऐसे में लोगों की मान्यता है कि भगवान सत्यनारायण का विधि-पूर्वक व्रत रखकर श्रद्धा पूर्वक उनकी कथा सुनने मात्र से ही किसी भी मनुष्य के सभी कष्ट मिट सकते हैं। इस व्रत की कथा की महत्वता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सत्यनारायण व्रत कथा का उल्लेख स्कंदपुराण के रेवाखंड में भी आपको मिल जाएगा।
सत्यनारायण व्रत पर की जाती है भगवान सत्यनारायण की कथा
जिस प्रकार हिन्दू में उपवास और पूजा-आराधना करने का विशेष महत्व होता है। उसी प्रकार ये व्रत भी हिन्दू धर्म के सबसे बड़े व पवित्र व्रतों में से एक हैं। भगवान सत्यनारायण का व्रत और उसकी कथा को करने के लिए शुभ दिन हर माह आने वाली पूर्णिमा तिथि को ही बताया गया है, और इस श्रावण माह ये व्रत आज यानी बुधवार, 14 अगस्त के दिन किया जाएगा। इस व्रत को लोग अपनी मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए करते हैं। क्योंकि मान्यता अनुसार कोई भी अटका हुआ या अधूरा काम इस पूजा को करने के बाद पूरा हो जाता है। इसकी पूजा व कथा का महत्व आपको कई पवित्र हिन्दू ग्रंथों में भी मिल जाएगा। तो चलिए उनकी कथाओं के अनुसार जानते हैं सत्यनारायण व्रत का पौराणिक महत्व:-
सत्यनारायण व्रत का पौराणिक महत्व
एक पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में नैमिषारण्य तीर्थ पर शौनकादिक 88,000 ऋषियों ने पुराणवेता महर्षि श्री सूत जी से आग्रह करते हुए पूछा कि, “हे महर्षि कलियुग में बिना वेद बिना विद्या के समस्त प्राणियों का उद्धार कैसे मुमकिन हो पाएगा? क्या आपके पास इसका कोई सरल उपाय है जिससे कलियुग में भी मनुष्य मनोवांछित फल की प्राप्ति कर पाने में सक्षम हो।”
हजारों मुनियों की बात सुनकर महर्षि सूत ने कहा कि, हे ऋषियो एक बार ठीक यही प्रश्न नारद जी ने भी भगवान विष्णु से किया था तब स्वयं भगवान ने नारद जी को जो विधि बताई थी उसके अनुसार, इस संसार में लौकिक क्लेशमुक्ति, सांसारिक सुख-समृद्धि एवं अंत में परमधाम जाने जितना पुण्य प्राप्त करने के लिए अकेला उपाय है सत्यनारायण व्रत करना अर्थात सत्य का आचरण, सत्य के प्रति अपनी निष्ठा, सत्य के प्रति आग्रह करते हुए सच्चे मन से उनकी आराधना करना है। क्योंकि सत्य ईश्वर का ही रुप है, ऐसे में सत्याचरण करना ही ईश्वर की सच्ची आराधना कर उनकी पूजा करना है।
भगवान विष्णु ने नारद जी को इस व्रत के महत्व को स्पष्ट करते हुए एक कथा सुनाई। जिसके अनुसार प्राचीन काल में एक शतानंद नाम के दीन ब्राह्मण हुआ करते थे, जो भिक्षा माँगकर अपना व परिवार का भरण-पोषण करते थे। लेकिन वो सत्य के प्रति निष्ठावान थे जिससे वो सदैव सत्य का आचरण करते रहते थे। इसी कारण उन्होंने सत्याचरण व्रत का पालन करते हुए भगवान सत्यनारायण की विधिवत पूजा अर्चना की, जिसके बाद उन्होंने इस लोक में अपने जीवन के सभी सुखों को भोगते हुए अंतकाल सत्यपुर में प्रवेश किया। उस दौरान एक उल्कामुख नामक राजा भी हुआ करता था जो उन्ही की तरह सत्य के प्रति निष्ठावान था। उन्होंनें भी शतानंद की भाँती ही सत्यनारायण की विधिपूर्वक पूजा करके अपने सभी दुखों से मुक्ति पाई थी।
यूँ तो ये राजा सत्यनिष्ठ सत्याचरण करने वाला व्रती था। लेकिन जिस प्रकार कुछ लोग स्वार्थबद्ध होकर भी सत्यव्रती होते हैं उसी प्रकार एक साधु वणिक एवं तुंगध्वज नामक एक अन्य राजा इसी प्रकार के व्रती थे उन्होंनें अपने स्वार्थ के लिए सत्यव्रत का संकल्प लिया लेकिन जैसे ही उनका वो स्वार्थ पूरा हुआ वो व्रत का पालन करना ही भूल गये। उन्ही में से साधु वणिक की यूँ तो सत्य में पूर्ण निष्ठा नहीं थी लेकिन संतान प्राप्ति के लिये उसने सत्यनारायण भगवान की पूजा-अर्चना का संकल्प लिया था। जिसके फलस्वरूप उसके यहां एक कलावती नामक कन्या ने जन्म लिया। जैसे ही साधु को संतान की प्राप्ति हुई वो सत्य के प्रति अपना संकल्प भूल गया और उसने सत्यनारायण की पूजा कन्या के विवाह तक टाल दी। इसके बाद कन्या विवाह योग्य हुई और उसका विवाह भी हुआ लेकिन फिर भी साधु ने अपना वचन नहीं पूरा करते हुए पूजा नहीं की और अपने दामाद के साथ यात्रा पर निकल पड़ा।
सत्यनारायण की पूजा न करने हेतु साधु पाप का भोगी बन गया, जिसके परिणामस्वरूप दैवयोग से रत्नसारपुर में साधु और उसके दामाद दोनों पर चोरी का गंभीर आरोप लगा। जिसके चलते वहां के राजा चंद्रकेतु ने उन दोनों को कारागार में डाल दिया। कारागर से मुक्त होने के लिए साधु वणिक ने एक झूठ बोला कि उसकी नौका में रत्नादि नहीं बल्कि लता पत्र हैं। उसके इस झूठ के कारण उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई। जिसके बाद अपने ऊपर एक-के-बाद-एक संकट आते देख साधु को फिर भगवान सत्यनारायण की याद सताई। जिसके बाद तब जाकर उसने भगवान सत्यनारायण का व्रत रख उनकी पूजा की।
माना जाता है कि जैसे ही साधु ने सत्यनारायण की पूजा की वैसे ही साधु वणिक के कपट व छल के कारण उसके घर में भी चोरी हो गई और उसका परिवार दाने-दाने को मोहताज हो गया। तब जाकर साधु वणिक की बेटी कलावती ने अपनी मां के साथ मिलकर भगवान सत्यनारायण की सच्ची श्रद्धा से पूजा की। लेकिन इस दौरान उनसे भी एक बड़ी भूल हो गई और वो दोनों ही अनजाने में कथा के बाद भगवान का प्रसाद लिये बिना ही अपने पिता व पति से मिलने के लिये दौड़ पड़ी। जिस कारण साधु की नाव बीच समुद्र में डूबने लगी।
जिसके बाद जैसे ही बेटी तभी कलावती को अपनी भूल का अहसास हुआ वह दौड़कर घर वापस लौटी और उसने भगवान का प्रसाद ग्रहण किया। इसके बाद मानो सब सब ठीक हो गया। इसी तरह राजा तुंगध्वज ने भी गोपबंधुओं द्वारा की जा रही भगवान सत्यनारायण की पूजा में विघ्न डालने का प्रयास किया और पूजास्थल पर जाने के बाद भी प्रसाद ग्रहण नहीं किया। जिस कारण उन्हें भी राजा होने के बावजूद अनेक कष्ट सहने पड़े, जिसके बाद बाध्य होकर उन्होंने अपने सभी कष्टों के निवारण हेतु भगवान सत्यनारायण की पूजा और व्रत किया।
निष्कर्ष:- भगवान विष्णु द्वारा नारद को सुनाई गई इस कहानी का सार यही है कि हर मनुष्य को भगवान सत्यनारायण की पूजा करनी चाहिये व भगवान सत्य के प्रति अपनी श्रद्धा-भाव दिखाते हुए सत्याचरण का ही व्रत लेना अनिवार्य होता है। ऐसे में यदि कोई भी मनुष्य अपनी मनोकामना पूरी होने के बाद भगवान सत्यनारायण की पूजा नहीं करता हैं या स्वार्थी होकर करता है तो वो सीधे तौर पर पाप का सहभागी बन जाता है। इसके अलावा हमे कभी भी दूसरों द्वारा की जा रही पूजा का न तो मज़ाक उड़ाना चाहिये और न ही प्रसाद का निरादर करना चाहिए।
ये भी पढ़ें:-
–जन्माष्टमी पर अगर करना चाहते हैं बाल गोपाल की स्थापना, तो इन बातों का रखें विशेष ध्यान।
–रक्षा बंधन के साथ मनाई जाएगी गायत्री जयंती, जानें पूजा विधि और इसका महत्व।
–स्वतंत्रता दिवस वाले दिन मनाया जाएगा रक्षा बंधन, जानें इस पर्व को मनाने का सही तरीका।
–अयोध्या जाते समय इन प्राचीन धार्मिक धरोहर के भी करें दर्शन।
-रक्षाबंधन विशेष: जानें भाई को माथे पर क्यों लगाया जाता है तिलक।
–कृष्ण जन्माष्टमी पर मुहूर्त अनुसार करें ये महाउपाय, प्रसन्न होंगे कान्हा।