हिंदू कैलेंडर के अनुसार माघ महीने की पूर्णिमा के दिन संत रविदास जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष गुरु रविदास जयंती 27 फरवरी-शनिवार के दिन मनाई जाएगी। संत रविदास जी का जन्म वाराणसी के नजदीक एक गांव में हुआ था। कहा जाता है कि, लगभग सन 1450 में जन्मे संत रविदास जी की माता का नाम श्रीमती कलसा देवी था और पिता का नाम श्री संतोख दास जी था। संत रविदास के बारे में प्रचलित सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात के अनुसार बताया जाता है कि, वह बिना लोगों में भेदभाव यह आपस में सद्भाव और प्रेम से रहने की शिक्षा देने के लिए जाने जाते हैं।
संत रविदास जयंती के दिन पवित्र नदी में स्नान करने की है मान्यता
मान्यता के अनुसार संत रविदास जयंती के दिन उनके अनुयायी पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और इसके बाद अपने गुरु यानी की संत रविदास जी के जीवन से जुड़ी महान और रोचक घटनाओं को याद करके उनसे प्रेरित होते हैं। संत रविदास जी के जीवन में एक दो नहीं बल्कि कई ऐसे प्रेरक प्रसंग है जो हमें अपने जीवन को सुख पूर्वक जीने की सीख देते हैं।
संत रविदास जयंती का यह दिन रविदास जी के अनुयायियों के लिए वार्षिक उत्सव की तरह होता है। इस दिन उनके जन्म स्थान पर लाखों भक्तों की भीड़ उमड़ती है और बड़े और भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। इन कार्यक्रमों में संत रविदास जी के दोहे गाए जाते हैं उनसे प्रेरणा ली जाती है और भजन-कीर्तन आदि किया जाता है।
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रविदास जी कैसे बने संत?
रविदास संत कैसे बने इसके बारे में प्रचलित एक कथा के अनुसार बताया जाता है कि, एक दिन रविदास जी अपने साथी के साथ खेल रहे थे। अगले दिन खेल वाली जगह पर रविदास जी तो आ गए लेकिन उनका दोस्त नहीं आया। ऐसे में रविदास जी उन्हें ढूंढने निकल गए। हालांकि तब रविदास जी को यह नहीं पता था कि, उनके दोस्त की मृत्यु हो गई है। जैसे ही उन्हें इस बात की जानकारी मिली वे बेहद दुखी हुए और अपने मित्र के शव के पास पहुंचकर उनसे बोले कि, “उठो यह समय सोने का नहीं मेरे साथ खेलने का है।” इतना कहना ही था कि, उनका मृत साथ ही उठ कर खड़ा हो जाता है।
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माना जाता है ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि, संत रविदास जी को बचपन से ही अलौकिक शक्तियां प्राप्त थी। इस दिन से लोग भी संत रविदास जी के अलौकिक शक्तियों में विश्वास करने लगे। जैसे-जैसे समय बीतता गया रविदास जी ने अपनी शक्ति और भक्ति भगवान राम और कृष्ण में लगानी शुरू कर दी और धर्म-कर्म की राह पर चलते हुए धीरे-धीरे वह कब संत बन गए इस बात की जानकारी किसी को नहीं है।
माघ पूर्णिमा के दिन अलौकिक शक्तियों से परिपूर्ण संत रविदास जी की जयंती मनाई जाती है। बताया जाता है कि, अपने बचपन में संत रविदास जी लोगों के लिए जूते चप्पल बनाने का काम किया करते थे। वह हमेशा लोगों को इस बात की सीख देते थे की जाति के आधार पर ऊंच-नीच, भेदभाव, असमानता इस पर विश्वास नहीं करना चाहिए और प्रत्येक व्यक्ति को आपस में मिलजुल कर प्रेम से रहना चाहिए। उनके द्वारा सिखाई गई बातें आज भी लोग मानते हैं और अनुसरण करते हैं। तो आइए संत रविदास जी की जयंती के मौके पर जानते हैं उनके द्वारा लिखे गए कुछ दोहे जिन की सार्थकता आज भी जस की तस बनी हुई है।
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- मन चंगा तो कठौती में गंगा: संत रविदास जी द्वारा लिखा हुआ ये दोहा सबसे ज्यादा प्रसिद्ध दोहा माना जाता है। इस दोहे का अर्थ यह है कि, जिस व्यक्ति का मन पवित्र होता है, उसके बुलाने पर मां गंगा भी एक कठौती (बर्तन) में आ जाती हैं।
- ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन, पूजिए चरण चंडाल के जो होने गुण प्रवीन: इस दोहे में रविदास जी कहते हैं कि, किसी को सिर्फ इसलिए नहीं पूजा जाना चाहिए क्योंकि वह किसी पूजनीय पद पर बैठा है। यदि व्यक्ति में उस पद के योग्य गुण नहीं हैं तो उसे नहीं पूजना चाहिए। इसकी जगह अगर कोई ऐसा व्यक्ति है, जो किसी ऊंचे पद पर तो नहीं है लेकिन बहुत गुणवान है तो उसका पूजन अवश्य करना चाहिए।
- मन ही पूजा मन ही धूप, मन ही सेऊं सहज स्वरूप: इस दोहे में में रविदास जी कहते हैं कि, निर्मल मन में ही भगवान वास करते हैं। अगर आपके मन में किसी के प्रति बैर भाव नहीं है, कोई लालच या द्वेष नहीं है तो आपका मन ही भगवान का मंदिर, दीपक और धूप है। ऐसे पवित्र विचारों वाले मन में प्रभु सदैव निवास करते हैं।
- रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच, नकर कूं नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच: इस दोहे में रविदास जी कहते हैं कि, कोई भी व्यक्ति किसी जाति में जन्म के कारण नीचा या छोटा नहीं होता है। किसी व्यक्ति को निम्न उसके कर्म बनाते हैं। इसलिए हमें सदैव अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए। हमारे कर्म सदैव ऊँचे होने चाहिए।
- रैदास कहै जाकै हदै, रहे रैन दिन राम, सो भगता भगवंत सम, क्रोध न व्यापै काम: इस दोहे में संत रविदास भक्ति की शक्ति का वर्णन करते हैं। रविदास जी कहते हैं, जिस हृदय में दिन-रात बस राम के नाम का ही वास रहता है, ऐसा भक्त स्वयं राम के समान होता है। राम नाम की ऐसी माया है कि इसे दिन-रात जपने वाले साधक को न तो किसी के क्रोध से क्रोध आता है और न ही कभी काम भावना उस पर हावी होती है।
इन दोहों के साथ हम आशा करते हैं कि, हम आप में से प्रत्येक व्यक्ति रविदास जी के बताये इन दोहों पर गौर फरमाए और इन्हें अपने जीवन में अवश्य अमल में लाये। इन सरल दोहों में जीवन की बेहद ही अच्छी और बेहतरीन सीख छुपी हुई है।
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