संकष्टी चतुर्थी को हिन्दू धर्म के एक प्रमुख त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से विघ्नहर्ता भगवान् श्री गणेश की पूजा अर्चना की जाती है। हिन्दू धर्म में किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले विशेष रूप से सबसे पहले गणेश पूजा की जाती है। यहाँ हम आपको संकष्टी चतुर्थी के महत्व और इस दिन की जाने वाली पूजा अर्चना की संपूर्ण विधि के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं। आइये जानते हैं आखिर हिन्दू धर्म में संकष्टी चतुर्थी को क्यों महत्वपूर्ण माना जाता है।
संकष्टी चतुर्थी का महत्व
हिन्दू धर्म के अनुसार हर माह के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। ये मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं, पूर्णिमा तिथि के बाद आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी और आमवस्या के बाद आने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। संकष्टी चतुर्थी के दिन खासतौर से गणेश जी की पूजा अर्चना को महत्व दिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन गणेश जी की पूजा अर्चना करने से जीवन में आने वाले सभी विघ्नों से मुक्ति मिलती है। इसके साथ ही इस दिन गणेश जी की पूजा अर्चना करने से आपको स्वस्थ्य संबंधी समस्याओं से भी निजात मिल सकता है। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन गणेश जी की पूजा अर्चना करना और व्रत रखना आपके लिए हर मायने में लाभप्रद साबित हो सकता है।
संकष्टी चतुर्थी पर ऐसे करें गणेश जी की पूजा
- इस दिन सबसे पहले सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करने के बाद साफ़ सुथरे वस्त्र धारण करें।
- अब पूजा घर के ईशानकोण में एक चौकी पर लाल या पीले रंग का कपड़ा बिछाकर उसपर भगवान् श्री गणेश की मूर्ती स्थापित करें।
- अब सबसे पहले गणेश जी का ध्यान करते हुए व्रत और पूजा का संकल्प लें।
- पूजन विधि शुरू करते हुए सबसे पहले गणेश जी को जल, दूर्वा, अक्षत, पान अर्पित करें।
- अब धूप दिखाते हुए गणेश जी से अपने अच्छे जीवन की कामना करें। इस दौरान “गं गणपतये नम:” मंत्र का जाप करें।
- प्रसाद के रूप में गणेश जी को मोतीचूर के लड्डू, बूंदी या पीले मोदक चढ़ा सकते हैं।
- अब चतुर्थी पूजा विधि संपन्न करने के लिए त्रिकोण के अगले भाग पर एक घी का दीया, मसूर की दाल और सात सबूत मिर्च रखें।
- पूजा विधि संपन्न होने के बाद दूध, चंदन और शहद से चंद्रदेव को अर्घ दें और प्रसाद ग्रहण करें।