विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी, जानें पूजन विधि और इस दिन से जुड़ी पौराणिक कथा

प्रत्येक चंद्र मास में दो चतुर्थी पड़ती हैं। पूर्णिमा के बाद कृष्ण पक्ष पर आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं, और अमावस्या के बाद शुक्ल पक्ष को आने वाले चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं। संकष्टी चतुर्थी का व्रत हर महीने में होता है। संकष्टी चतुर्थी अगर मंगलवार के दिन पड़ती है तो उसे अंगारकी चतुर्थी कहते हैं, और इसे बेहद ही शुभ माना गया है।

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सितम्बर के महीने में  5 सितंबर, शनिवार के दिन विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी है। मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है, और उनकी कृपा पाने के लिए और मनोकामना पूर्ति के लिए इस दिन व्रत भी किया जाता है।

पश्चिम और दक्षिण भारत में संकष्टी चतुर्थी का व्रत बेहद अहम माना जाता है। किसी भी शुभ काम को करने से पहले हिंदू धर्म में भगवान गणेश की पूजा किए जाने का विधान माना गया है। ऐसी मान्यता है कि, संकष्टी चतुर्थी के दिन जो कोई भी इंसान भगवान गणपति की पूरे विधि विधान के साथ पूजा करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती हैं। संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणपति का पूजन कर के कोई भी इंसान विशेष वरदान को बेहद ही आसानी से पा सकता है। साथ ही उसके जीवन में आने वाली किसी भी तरह की सेहत से जुड़ी समस्या को भी हमेशा के लिए दूर किया जा सकता है।

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संकष्टी चतुर्थी पूजन विधि

  • इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लें। 
  • स्नान के बाद हल्के पीले या पीले रंग के वस्त्र पहन लें। 
  • इसके बाद मंदिर या पूजा वाली जगह पर भगवान गणपति का एक चित्र लाल रंग के कपड़े पर स्थापित करें। 
  • भगवान गणेश की पूजा करते समय अपना मूंह/मुख पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ रखें।  
  • इसके बाद भगवान गणपति के आगे दिया जलाएं और उनको लाल गुलाब चढ़ाएं। 
  • इस दिन की पूजा में तिल के लड्डू, रोली, मोली, चावल, फूल, तांबे के लोटे में जल, केला, और उनका प्रिय प्रसाद मोदक अवश्य रखें।  
  • इस मंत्र का जाप करें,
    “माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो |
    मयाहृतानि पुष्पाणि गृह्यन्तां पूजनाय भोः ||”

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संकष्टी चतुर्थी से जुड़ी पौराणिक कथा 

माँ पार्वती ने अपने शरीर के मैल से भगवान गणेश का सृजन किया और एक दिन उन्हें दरवाज़े पर बैठाकर खुद स्नान के लिए चली गयीं। माँ पार्वती ने जाते-जाते भगवान गणेश ने कहा कि, ‘किसी को भी अंदर मत आने देना,’ लेकिन इसी दौरान उनके पति शिव जी वहां आ गए, क्योंकि माँ पार्वती ने भगवान गणेश को आदेश दिया था कि, किसी को भी अंदर नहीं आने देना है, इसलिए उन्होंने शिवजी को अंदर नहीं आने से द्वार पर ही रोक दिया।

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बार-बार कहने पर भी गणेश भगवान ने शिव जी को अंदर जाने नहीं दिया। इस बात से शिव जी बेहद क्रोधित हुए और उन्होंने गणेश जी का सिर धड़ से अलग कर दिया। जब माता पार्वती को इस बात की भनक लगी तो उनको बहुत दुख हुआ। माता पार्वती को दुःख से उबारने के लिए शिवजी ने एक नवजात हाथी का सिर गणेश जी के शरीर में लाकर लगा दिया। उस समय गणेश जी का कटा हुआ सिर चंद्रमा पर जा कर गिरा था। माना जाता है कि तभी से चंद्रमा को अर्घ्य देने की मान्यता की शुरुआत हुई। संकष्टी के दिन भी चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। 

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