दिवाली से पहले रमा एकादशी का व्रत, इस दिन से शुरू हो जाएगी लक्ष्मी पूजा

कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह एकादशी दिवाली के कुछ दिन पहले आती है। ऐसे में इसका महत्व कई गुना बढ़ जाता है।

रमा एकादशी के दिन से ही लक्ष्मी पूजा की शुरुआत कर दी जाती है। दिवाली में मुख्य रूप से पूजित लक्ष्मी देवी का ही एक नाम रमा भी होता है। ऐसे में रमा एकादशी की पूजा में भगवान विष्णु पूर्णावतार केशव स्वरूप के साथ-साथ माता लक्ष्मी की भी पूजा अर्चना का विधान है।

इस आर्टिकल में हम आपको रमा एकादशी के महात्मय से जुड़े कुछ विषयों से अवगत कराएंगे।

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कब है रमा एकादशी? 

भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी का एक नाम है रमा भी है इसी वजह के चलते इस एकादशी को रमा एकादशी के नाम से जाना जाता है। वर्ष 2020 में रमा एकादशी 11 नवम्बर यानी कि बुधवार को मनाई जाएगी। 

12 को पारण/व्रत तोड़ने का समय : 06 बजकर 41 मिनट से लेकर 08 बजकर 51 मिनट तक 

अवधि :2 घंटे 9 मिनट

एकादशी तिथि प्रारंभ : 11 नवंबर 2020, 03 बजकर 25 मिनट पर 

एकादशी तिथि समाप्त : 12 नवंबर 2020, 00 बजकर 43 मिनट पर 

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एकादशी में आमतौर पर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है लेकिन रमा एकादशी में भगवान विष्णु के पूर्ण अवतार केशव की भी पूजा किये जाने का विधान बताया गया है। कहा जाता है कि जो कोई भी इंसान इस व्रत को रखता है उसके जीवन में कभी भी पैसों की कमी नहीं होती है। 

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रमा एकादशी पूजन विधि 

  • रमा एकादशी के दिन भगवान विष्णु के प्रति मन में श्रद्धा रखें। 
  • इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और उसके बाद साफ कपड़े पहनकर पूजा करें। 
  • इस दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा की जानी चाहिए। पूजा में इस दिन माता लक्ष्मी और केशव भगवान को भी शामिल अवश्य करें। 
  • भगवान को भोग लगाएं और इस बात का ख़ास ध्यान रखें कि पूजा के बाद इस प्रसाद को सभी लोगों में वितरित अवश्य किया जाए। 
  • रमा एकादशी के दिन गीता का पाठ करने का बेहद महत्व बताया गया है। 
  • शाम के समय भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करें। 
  • अगले दिन मंदिर में जाकर पूजा-पाठ कर दान-दक्षिणा दें। अगले दिन कुछ ब्राह्मणों को घर बुलाकर अपनी यथासंभव उन्हें भोजन भी करवा सकते हैं।

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रमा एकादशी व्रत महत्व 

यूं तो साल में आने वाले सभी एकादशी व्रत का बेहद महत्व बताया गया है लेकिन दिवाली से कुछ दिन पहले आने वाले रमा एकादशी का महत्व अन्य सभी एकादशियों से कई गुना ज़्यादा माना गया है। रमा एकादशी अन्य दिनों की तुलना में हजारों गुना अधिक फलदाई मानी गई है। कहते हैं इस व्रत के प्रभाव से इंसान के जीवन की सभी मनोकामनाएं अवश्य पूरी होती हैं। इस व्रत को रखने वाले इंसान के जीवन में कभी कोई कष्ट नहीं होता।  

पुराणों के अनुसार रमा एकादशी का व्रत कामधेनु और चिंतामणि के समान फल देने वाला साबित होता है। इस व्रत को जो कोई भी इंसान करता है उसे समृद्धि और संपन्नता अवश्य मिलती है। इस व्रत के प्रभाव से आप न केवल विष्णु जी को बल्कि मां लक्ष्मी को भी प्रसन्न कर सकते हैं। इस व्रत के प्रभाव से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं और मृत्यु के बाद इंसान विष्णु लोक को प्राप्त होता है।

रमा एकादशी के दिन भूल से भी ना करें ये काम 

  • चावल खाना वर्जित है : हर एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित बताया गया है। ऐसे में रमा एकादशी के दिन भी चावल खाने से परहेज करना चाहिए। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार एकादशी में चावल का सेवन करने से मन में चंचलता आती है जिसके कारण इंसान का मन इधर-उधर भटक सकता है, इसलिए एकादशी के दिन और उससे एक दिन पहले चावल ना खाया जाए तो ज्यादा बेहतर होता है। 
  • नशीली चीजों का सेवन भी है वर्जित : रमा एकादशी के दिन किसी भी तरह की नशीले पदार्थों का भी सेवन वर्जित बताया गया है। 
  • इस दिन ना करें क्रोध और ना ही लें तनाव : रमा एकादशी के दिन इंसान को किसी भी बात पर गुस्सा और तनाव करने से बचना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि क्रोध और तनाव से इंसान के मन में नकारात्मक विचार आते हैं जिसके कारण पूजा में सही ढंग से मन नहीं लग पाता है।
  •  इस दिन दातुन करना भी मना है : रमा एकादशी के दिन दातुन से दांत नहीं साफ़ करने  चाहिए। आमतौर पर देखा जाता है किसी व्रत-त्यौहार के दिन लोग दातून से दांत साफ करते हैं लेकिन रमा एकादशी के दिन ऐसा करने से बचना चाहिए। अन्यथा टहनी तोड़ने से भगवान विष्णु और लक्ष्मी नाराज हो सकते हैं।
  •  बिस्तर पर सोना भी है वर्जित : रमा एकादशी के दिन रात में बिस्तर पर सोने से बचना चाहिए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत का अगर पूरा लाभ चाहिए हो तो हमें इस दिन बिस्तर के बजाय ज़मीन पर ही सोना चाहिए। 

रमा एकादशी व्रत कथा 

रमा एकादशी के विषय में बताया जाता है कि प्राचीन समय में एक राजा हुआ करते थे जिनका नाम था मुचुकंद। राजा मुचुकंद भगवान विष्णु के परम भक्त थे। राजा की एक बेटी थी चंद्रभागा। राजा की बेटी चंद्रभागा जब विवाह के योग्य हुई तो उनके पिता ने अपनी बेटी का विवाह चंद्रसेन के बेटे सोभन से कर दिया। सोभन शारीरिक रूप से काफी कमजोर थे। चंद्रभागा एकादशी के व्रत में बेहद विश्वास रखती थी और एकादशी का व्रत अवश्य किया करती थी। एक बार पत्नी के कहने पर सोभन ने भी एकादशी का व्रत किया जिससे भूख प्यास के कारण उनकी मृत्यु हो गई। चंद्रभागा ने अपने पति के शरीर को जल में प्रवाहित कर दिया और उसके बाद रमा एकादशी का व्रत करने लगी।

व्रत के प्रभाव से सोभन को नदी से बाहर निकाल लिया गया और वह जीवित हो उठा उसके बाद मंदराचल पर्वत पर मौजूद एक राज्य का सौभान राजा बन गया।  इसी बीच मुकुंद नगर का एक ब्राह्मण सोभन से मिलने गया। तब सोभन ने उसे बताया कि इस राज्य के अस्थिर होने के कारण वह बाहर जाकर अपने पति चंद्रभागा से नहीं मिल पा रहा है। जब इस बात की जानकारी चंद्रभागा को मिली तो चंद्रभागा ने एकादशी व्रत के दौरान भगवान विष्णु से प्रार्थना की और अपने पति के राज्य में उनसे मिलने पहुंच गई। जैसे ही चंद्रभागा अपने पति से मिलने पहुंची वो वहां पर मौजूद सिंहासन पर बैठ गई। सिंहासन पर बैठते ही वह नगर एकदम स्थिर हो गया। माना जाता है इस प्रकार रमा एकादशी के व्रत के प्रभाव से उन दोनों का जीवन हमेशा हमेशा के लिए सुखमय हो गया।

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