हर व्यक्ति की जन्म कुंडली ऐसे कई संकेत देती है जिससे पता चल सकता है कि व्यक्ति कैसे बीमार पड़ सकता है। सभी चंद्र राशियों के सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष होते हैं, लेकिन जल तत्व की राशियों को मानसिक बीमारी होने का खतरा अधिक होता है।
जल तत्व की राशियां बहुत सहानुभूतिपूर्ण और दूसरों का भला चाहने वाली होती हैं। जल तत्व की राशियों पर यदि कुंडली में कोई बुरा प्रभाव हो तो यह अवसाद, चिंता, दवा या शराब की लत, बाईपोलर बीमारी या सिज़ोफ्रेनिया का कारण बन सकता है।
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ज्योतिष विज्ञान, विज्ञान की शाखाओं में से एक है और यह व्यक्ति को खुद के बारे में जानने और जीवन का मूल्यांकन करने में मदद करता है। यह हमें पारिवारिक जीवन के बारे में, वित्तीय और स्वास्थ्य की स्थिति के बारे में जानकारी देता है, हमारा भाग्य कैसा होगा इसकी भविष्यवाणी करता है, प्रयासों के लिए सही दिशा प्रदान करता है और बेहतर भविष्य के लिए कर्मों को बेहतर बनाने के लिए अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। ज्योतिष विज्ञान व्यक्ति के सभी प्रश्नों का उत्तर दे सकता है और उसे मार्गदर्शन कर सकता है कि उसके लिए क्या अच्छा है और उसे क्या सावधानी बरतनी चाहिए। आपको बता दें कि कुंडली में चंद्रमा, बुध और बृहस्पति मानसिक स्वास्थ्य के लिए जिम्मेदार होते हैं। जब ये ग्रह जन्म कुंडली के पांचवें और छठे भाव में किसी भी तरह से पीड़ित होते हैं तब मानसिक बीमारी होने की संभावना अधिक होती है।
चंद्रमा मन और व्यक्ति की बुद्धि को नियंत्रित करता है और यदि किसी की कुंडली में चंद्रमा पीड़ित है तो यह मानसिक उत्तेजना या अवसाद का कारण बनता है। बुध पूरे तंत्रिका तंत्र, संचार, सक्रिय सोच प्रक्रियाओं, बुद्धिमत्ता को नियंत्रित करता है और यदि कुंडली में बुध अनुकूल नहीं है तो यह मानसिक असंतुलन का कारण बन सकता है। मिथुन राशि तर्क को दर्शाती है और कर्क राशि भावनाओं को दर्शाती है। यह दोनों राशियां यदि पीड़ित हों तो, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह मानसिक विकार का कारण बन सकते हैं। मानसिक स्थिति का पूरा आकलन चंद्रमा (मन की स्थिरता), बुध (तंत्रिका तंत्र) और बृहस्पति (परिपक्वता / ज्ञान / नैतिक मूल्य) द्वारा किया जा सकता है। जब यह तीनों ग्रह किसी व्यक्ति की कुंडली में पीड़ित होते हैं तो मानसिक बीमारी होने की संभावना अधिक होती हैं। पंचम भाव सीखने, शिक्षा, तर्क और ज्ञान का कारक माना जाता है वहीं छठा घर मानसिक क्षमता और विचार प्रक्रिया को संदर्भित करता है। पांचवें घर में बृहस्पति की स्वराशि या मित्र राशि में उपस्थिति, सर्वश्रेष्ठ परिणाम देती है लेकिन इस पर किसी क्रूर ग्रह का प्रभाव न हो खासकर एकादश भाव से। पांचवें घर में बृहस्पति की उपस्थिति से छात्र उच्च रैंक प्राप्त करने में सफल होते हैं। अपनी राशि कन्या में छठे भाव में राहु की उपस्थिति व्यक्ति को सबसे कुशल व्यवसायी और बुद्धिजीवी बनाती है। वहीं कुंडली के छठे भाव में शनि यदि तुला राशि में हो तो यह व्यक्ति को उच्च बौद्धिक स्तर देता है।
कुंडली के पहले घर (मस्तिष्क का कारक) में विराजमान ग्रह भी मानसिक स्वास्थ्य में समान रूप से योगदान देता है। एक नियम के अनुसार हर भाव पर उसके सातवें भाव का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। इसलिए प्रथम और सप्तम, पंचम और एकादश, षष्ठम और द्वादश घरों में स्थित ग्रहों की स्थिति का आकलन गंभीरता से किया जाना चाहिए। मनोवैज्ञानिक विकार के मामलों से संबंधित कई कुंडलियों का अध्ययन करने के बाद प्राप्त परिणामों के आधार पर, निष्कर्षों को व्यवस्थित रूप से नीचे संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है। यह निष्कर्ष लोगों की मदद कर सकते हैं। यदि किसी की कुंडली में मानसिक विकार के लक्षण दिखते हैं तो वो समय पर रोकथाम शुरू कर सकते हैं और उपाय ढूंढ सकते हैं।
बृहत् कुंडली : जानें ग्रहों का आपके जीवन पर प्रभाव और उपाय
1. पीड़ित चंद्रमा के कारण मनोवैज्ञानिक विकार
चंद्रमा के पीड़ित होने पर मानसिक समस्याएं होती हैं। ये मानसिक असामान्यताओं से लेकर न्यूरो-साइकोटिक विकारों तक कई तरह की हो सकती हैं। जब चंद्रमा कमजोर स्थिति मे छठे, आठवें और बारहवें घर में होता है और इस पर किसी क्रूर ग्रह का प्रभाव भी होता है तो यह पीड़ित माना जाता है।
- सूर्य से पीड़ित चंद्रमा व्यक्ति को झगड़ालू, आत्म आलोचक बनाता है।
- मंगल द्वारा पीड़ित चंद्रमा व्यक्ति को आक्रामक बनाता है और उसे हिंसक भी बना सकता है।
- शनि से पीड़ित चंद्रमा तीव्र अवसाद, उन्माद पैदा कर सकता है।
- राहु द्वारा पीड़ित चंद्रमा सिज़ोफ्रेनिया, फोबिया और आत्महत्या को प्रेरित कर सकता है।
- केतु द्वारा पीड़ित चंद्रमा आत्मघाती प्रवृत्ति और तर्कहीन व्यवहार का कारण बनता है।
- बुध से पीड़ित चंद्रमा अवसाद, अलगाव और आत्महत्या की प्रवृत्ति का कारण बनता है।
डिप्रेशन, पीड़ित चंद्रमा से जुड़ी एक बहुत ही आम समस्या है। स्थिति और भी खराब हो सकती है यदि चंद्रमा प्रथम भाव में किसी शत्रु राशि में विराजमान हो और व्यक्ति चंद्रमा की दशा से गुजर रहा हो। रोगी की स्थिति में अमावस्या और पूर्णिमा की रात में बड़े परिवर्तन देखने को मिलते हैं। बृहस्पति यदि चंद्रमा के साथ कर्क राशि में हो तो व्यक्ति अत्यधिक भावुक होता है। कर्क राशि में चंद्रमा, अति उत्साह और बार-बार मूड स्विंग की स्थिति पैदा करता है। छठे, आठवें और बारहवें घर में चंद्रमा की उपस्थिति असामयिक मृत्यु की ओर भी इशारा करती है।
2. पीड़ित बुध के कारण मनोवैज्ञानिक प्रभाव
स्वस्थ तंत्रिका तंत्र के लिए कुंडली में बुध का अच्छी स्थिति में होना अनिवार्य होता है, क्योंकि यह तंत्रिका तंत्र को नियंत्रित करता है। कुंडली में बुध-शनि के संयोजन से नर्वस ब्रेकडाउन की भविष्यवाणी आसानी से की जा सकती है। यदि बुध कमजोर हो या किसी भी ग्रह से पीड़ित हो तो अक्सर वाणी विकार होता है। कमजोर या वक्री बुध यदि पांचवें घर में हो तो यह पागलपन, मानसिक समस्याओं या खराब रिफ्लेक्स का कारण बन सकता है।
3. पीड़ित शनि के कारण मनोवैज्ञानिक प्रभाव
शनि एक न्याय प्रिय ग्रह है जो मुश्किल परिस्थितियों, बुरे समय में मानव शक्ति का मूल्यांकन करता है। यह हमारे कार्यों का आकलन करता है और कुंडली के अनुसार जब यह किसी भी दशा या महादशा में आता है तो हमारे कर्मों के अनुसार हमें फल देता है। कुंडली में यदि शनि अकेले या राहु के साथ प्रथम और द्वितीय भाव में विराजमान हो तो यह व्यक्ति को ड्रग्स, धूम्रपान, तंबाकू या शराब का आदी बना देता है। शत्रु राशि में विराजमान शनि आसानी से व्यक्ति को अविवेकी, अमानवीय व्यवहार करने वाला, अनैतिक बना देता है। प्रथम भाव में शनि और पांचवें, सातवें या नौवें स्थान पर मंगल विक्षिप्त व्यवहार की ओर ले जाता है। बारहवें घर में चंद्रमा के साथ शनि भी व्यक्ति के पागलपन का कारण बन सकता है। सूर्य के साथ मिलकर शनि आक्रामक व्यवहार, चिंता, अलगाव और मनोवैज्ञानिक विकारों की ओर ले जाता है। शनि आठवें घर में बुरे परिणाम देता है।
4. पीड़ित शुक्र के कारण मनोवैज्ञानिक प्रभाव
शुक्र मुख्य रूप से व्यक्ति के यौन व्यवहार को दर्शाता है। शुक्र कन्या राशि में नीच का माना जाता है और कुंडली के छठे घर में भी यह अच्छा नहीं माना जाता है। यह कर्क राशि में अति उत्साह को दर्शाता है। शनि, केतु और राहु द्वारा पीड़ित होने पर शुक्र यौन व्यवहार को प्रभावित करता है।
सूर्य द्वारा शुक्र के पीड़ित होने पर यौन इच्छा बहुत बढ़ जाती है। चंद्रमा द्वारा शुक्र के पीड़ित होने पर यौन इच्छा बहुत कम हो जाती है। शुक्र के राहु-केतु और शनि द्वारा पीड़ित होने पर यौन कुंठा में वृद्धि होती है। शनि, केतु और राहु से पीड़ित शुक्र के कारण व्यक्ति का नैतिक पतन भी संभव है। ऐसे लोगों में यौन कुंठा के कारण मानसिक विकार भी हो सकते हैं और यह बेवजह की चिंताओं का कारण भी बन सकता है। ऐसे लोग कई लोगों के साथ यौन संबंध बनाने के इच्छुक होते हैं, बलात्कार की प्रवृत्ति या अपराधी कामों में भी ऐसे लोग शामिल होते हैं। इस संयोजन के साथ-साथ सूर्य की उपस्थिति भी हो तो यह यौन इच्छा को आगे बढ़ाता है। शुक्र और राहु का संयोजन व्यक्ति को यौन इच्छाओं का गुलाम बना देता है, कन्या राशि में यह युति व्यक्ति को सभी नैतिक सीमाओं को पार करवा सकती है और समलैंगिक व्यवहार भी करवा सकती है। इसके साथ ही, सूर्य का प्रभाव, बृहस्पति और बुध की अशुभ स्थिति आगे चलकर हालात को और भी बिगाड़ सकती है। शुक्र पर राहु के प्रभाव से यौन रूप से व्यक्ति को असंतोष होता है, यौन रोग होने की भी संभावना होती है और व्यक्ति अपने स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है।
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5. पीड़ित मंगल के कारण मनोवैज्ञानिक प्रभाव
मनुष्य के साहस, निष्ठा, ऊर्जा और खेलकूद पर मंगल का बड़ा प्रभाव होता है। मंगल के प्रतिकूल प्रभाव से पुरानी बीमारियां बार-बार परेशान कर सकती हैं और शारीरिक बीमारियां हो सकती हैं। पहले, तीसरे, पांचवें घर में मंगल और राहु की युति के चलते व्यक्ति का झुकाव आपराधिक कामों में हो सकता है या वह आतंकवादी हो सकता है। अगर मंगल, शनि और राहु, चंद्रमा और बुध पर बुरा प्रभाव डालते हैं या पांचवें, छठे और आठवें भाव पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं तो गंभीर मानसिक विकारों से व्यक्ति को जूझना पड़ सकता है। प्रत्येक सामान्य मनुष्य अपने जीवनकाल के दौरान मंगल या शनि के प्रभाव के कारण किसी मानसिक परेशानी से जूझ सकता है, लेकिन इसका ज्यादा बुरा प्रभाव कुछ मामलों में ही होता है। मंगल और शनि के संयोजन से व्यक्ति का व्यवहार अलगाववादी, कठोर और असामाजिक हो जाता है।
6. पीड़ित राहु, केतु का मनोवैज्ञानिक प्रभाव
राहु सोच और कल्पना को प्रभावित करता है। यदि कुंडली में प्रथम भाव का स्वामी कमजोर अवस्था में हो या शत्रु राशि में छठे, आठवें और बारहवें भाव में हो तो व्यक्ति भयग्रस्त हो सकता है और नकारात्मक शक्तियों से संपर्क की शिकायत कर सकता है। यह तब होता है जब राहु पहले घर में विराजमान होता है या प्रथम भाव का स्वामी किसी भाव में राहु के साथ युति करता है। राहु और चंद्रमा का संयोजन भी समान परिणाम देता है। कुंडली में राहु / केतु / शनि / सूर्य यदि द्वितीय भाव में हों तो ऐसे व्यक्ति “वाणी दोष” से परेशान हो सकते हैं। ऐसे लोग अपनी वाणी से लोगों को आहत कर सकते हैं। यह व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन को बहुत आसानी से बर्बाद कर सकता है और अवसाद की ओर ले जा सकता है। राहु और केतु पांचवें स्थान में विराजमान हों तो व्यक्ति अतार्किक, तर्कहीन बकबक करता है। आठवें घर में विराजमान राहु व्यक्ति को ऐसा रोग दे सकता है जिसका आसानी से पता नहीं चलता या जिसका निदान मुश्किल होता है।
7. पीड़ित बृहस्पति और सूर्य का मनोवैज्ञानिक प्रभाव
कुंडली में बृहस्पति की अनुकूल स्थिति कई मानसिक विकारों को दूर कर सकती है। वक्री स्थिति में या प्रतिकूल स्थिति और छठे, आठवें, बारहवें घर में इसकी स्थिति कई अप्राकृतिक समस्याओं, मनोवैज्ञानिक / तंत्रिका संबंधी विकार और भय पैदा कर सकती है। यदि कुंडली में या वर्षफल में ऐसी स्थिति हो तो धार्मिक स्थलों, मंदिर आदि में जाना अनुकूल नहीं माना जाता। दूसरे भाव में सूर्य व्यक्ति को अहंकारी बना सकता है और अति आत्मविश्वास दे सकता है। यदि सूर्य कन्या या मिथुन राशि में हो तो व्यक्ति अति उत्साही हो सकता है। कुंडली में सूर्य यदि छठे और बारहवें स्थान में हों तो व्यक्ति में आत्मविश्वास की कमी देखी जा सकती है।
मनोवैज्ञानिक विकार के उपाय:
मनोवैज्ञानिक विकारों के कई ज्योतिषीय उपाय हैं। इन उपायों के तरीकों और महत्व को समझना बहुत महत्वपूर्ण है। यहाँ हम आपको मन की शांति के लिए ज्योतिषीय उपाय बताने जा रहे हैं। कुछ उपाय इस प्रकार हैं:
पीड़ित ग्रहों की पूजा और मंत्रों के जाप।
- मानसिक तनाव को दूर रखने के लिए चंद्रमा यंत्र को स्थायी रूप से पहनें।
- चांदी और अन्य संबंधित धातुओं का दान यह आपके मानसिक तनाव को दूर करने में मदद करेगा।
- नियमित रूप से भगवान सूर्य, चंद्रमा और बुध की पूजा फूल, मिठाई और धूप से करें।
- मानसिक तनाव के लिए जिम्मेदार ग्रह को प्रसन्न करने के उपाय करें।
- पूरी श्रद्धा के साथ भगवान शिव की पूजा करना सबसे अच्छे ज्योतिषीय उपाय में से एक है।
- ओम श्री गणेशाय नमः का जप करने से आपको सभी मानसिक तनावों से राहत मिलेगी।
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