प्रदोष व्रत से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी और व्रत कथा

प्रदोष का व्रत शिव और शक्ति को समर्पित होता है, और हर महीने के शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत मनाया जाता है | यानि हर माह में दो बार प्रदोष व्रत होता है, और इस तरह 12 महीने में यानि एक साल में कुल 24 प्रदोष व्रत पड़ते है, और ये व्रत स्त्री और पुरुष दोनों कर सकते हैं | धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अगर शनिवार के दिन किसी दंपत्ति को संतान सुख की कामना है तो प्रदोष व्रत करने से उन्हें जल्द संतान सुख की प्राप्ति होती है। वहीं बुधवार का प्रदोष व्रत सुख समृद्ध जीवन की कामना के लिए किया जाता है। लेकिन स्कंद पुराण के अनुसार आप चाहे कोई भी प्रदोष व्रत करें, आपको सच्चे मन से पूजा-पाठ करने और प्रदोष व्रत कथा सुनने से ही मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। आइए अपने इस लेख में आपको प्रदोष व्रत की कथा के बारे में बताते हैं, लेकिन उससे पहले साल 2021 में होने वाले प्रदोष व्रत की तिथि जान लेते है   

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जनवरी –
10 रविवार – प्रदोष व्रत (कृष्ण)
26 मंगलवार- प्रदोष व्रत (शुक्ल)


फरवरी –
9 मंगलवार- प्रदोष व्रत (कृष्ण)
24 बुधवार- प्रदोष व्रत (शुक्ल)

मार्च
10 बुधवार- प्रदोष व्रत (कृष्ण)
26 शुक्रवार- प्रदोष व्रत (शुक्ल)

अप्रैल
9 शुक्रवार- प्रदोष व्रत (कृष्ण)
24 शनिवार- प्रदोष व्रत (शुक्ल)

मई
8 शनिवार- प्रदोष व्रत (कृष्ण)
24 सोमवार- प्रदोष व्रत (शुक्ल)

जून
7 सोमवार- प्रदोष व्रत (कृष्ण)
22 मंगलवार- प्रदोष व्रत (शुक्ल)

जुलाई
7 बुधवार- प्रदोष व्रत (कृष्ण)
21 बुधवार- प्रदोष व्रत (शुक्ल)

अगस्त
5 गुरुवार- प्रदोष व्रत (कृष्ण)
20 शुक्रवार- प्रदोष व्रत (शुक्ल)

सितंबर
4 शनिवार- प्रदोष व्रत (कृष्ण)
18 शनिवार- प्रदोष व्रत (शुक्ल)

अक्टूबर
4 सोमवार- मासिक शिवरात्रि, प्रदोष व्रत (कृष्ण)
17 रविवार- प्रदोष व्रत (शुक्ल), तुला संक्राति

नवंबर
2 मंगलवार- धनतेरस, प्रदोष व्रत (कृष्ण)
16 मंगलवार- प्रदोष व्रत (शुक्ल)

दिसंबर
16 गुरुवार- प्रदोष व्रत (कृष्ण)
31 शुक्रवार- प्रदोष व्रत (शुक्ल)

प्रदोष व्रत की कथा

स्कंद पुराण की कथा के अनुसार, पुराने वक्त की बात एक गांव में गरीब विधवा ब्राह्मणी और उसका एक पुत्र रहा करते थे । जो भिक्षा मांग कर अपना भरण-पोषण करते थे। एक दिन वह दोनों भिक्षा मांग कर वापस लौट रहे थे तभी उन्हें अचानक नदी के किनारे एक सुन्दर बालक दिखा। विधवा ब्राह्मणी उसे नहीं जानती थी। की वह बालक विदर्भ देश का राजकुमार, धर्मगुप्त है। और उस बालक के पिता विदर्भ देश के राजा है ,जो की युद्ध में के दौरान मारे गए  थे और उनके सारे राज्य पर दुश्मनों ने कब्जा कर लिया था।

जिसके बाद पति के शोक में धर्मगुप्त की माता का भी निधन हो गया, और अनाथ बालक को देख ब्राह्मण महिला को उसपर बहुत दया आई और वह उस अनाथ बालक को अपने साथ ले आई और अपने बेटे के सामान ही उस बालक का भी पालन-पोषण करने लगी | और फिर एक दिन बुजुर्ग महिला की मुलाकात ऋषि शाण्डिल्य से हुई , उन्होंने उस बुजुर्ग महिला और दोनों बेटों को प्रदोष व्रत रखने की सलाह दी, और इस प्रकार दोनों बालकों ने ऋषि के द्वारा बताए गए नियमों के अनुसार  ब्राह्मणी और बालकों ने अपना व्रत सम्पन्न किया जिसके कुछ दिन बाद ही दोनों बालक जंगल में सैर कर रहे थे तभी उन्हें दो सुंदर गंधर्व कन्याएं दिखाई दी |

जिनमें से एक कन्या जिसका नाम अंशुमती था उसे देखकर राजकुमार धर्मगुप्त आकर्षित हो गए । और फिर गंधर्व कन्या अंशुमती और राजकुमार धर्मगुप्त का विवाह सम्पन्न हो गया। जिसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने पूरी लगन और मेहनत से दोबारा गंधर्व सेना को तैयार किया, और अपने विदर्भ देश पर वापस लौटकर उसे हासिल कर लिया। और सब कुछ हासिल होने के बाद धर्मगुप्त को यह ज्ञात हुआ की आज उसे जो कुछ भी हासिल हुआ है वो उसके द्वारा किए गए प्रदोष व्रत का फल है, जिसके बाद हिन्दू धर्म में यह मान्यता हो गई कि जो भी इंसान  पूरे विधि-विधान से प्रदोष व्रत करके  व्रत कथा सुनेगा उसके आने वाले हर जन्म में किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा और वो सभी सुखों को भोगने वाला होगा


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