सोनपुर में गंगा-नारायणी के संगम तट पर कार्तिक पूर्णिमा को स्नान का बहुत ही महत्व माना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा को हर साल यहां देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु भी इस स्नान के साक्षी बनने आते हैं। इस मौके पर यहाँ एक पशु-मेला भी लगता है जिसे एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला कहते हैं। इसी जगह पर हरिहरनाथ का एक विशाल मंदिर भी है, जिसकी ख़ासियत यह बताई जाती है कि इसमें भगवान हरि (विष्णु) और भगवान हर (शिव) की एक साथ पूजा की जाती है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बताया जाता है कि अगस्त्य मुनि के श्राप से इंद्रद्युम्न नामक एक राजा हाथी बन गया था और देवल मुनि ने श्राप देकर हुहु नाम के गंधर्व को मगरमच्छ बना दिया था। यह मगरमच्छ इसी संगम के तट पर रहने लगा था। एक बार की बात है जब प्यास से व्याकुल गज बना इंद्रद्युम्न इस तट पर पानी पी रहा था कि तभी अचानक मगरमच्छ बने हुहु गंधर्व ने उस पर हमला कर दिया। मगरमच्छ ने गज का पैर अपने मुंह में दबा लिया और उसे गहरे और अथाह पानी में खींचने लगा।
पहले तो हाथी ने मगरमच्छ से जमकर लड़ाई लड़ी लेकिन बाद में जब उनका बल क्षीण हो चला तब मगरमच्छ के हमले से डरे गज ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वो गज को बचा लें। गज की प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र चलाकर दोनों के बीच के युद्ध को शांत किया। क्योंकि यह युद्ध गज और ग्राह के बीच सोनपुर में गंगा और गंडक के संगम पर हुआ था इसलिए शास्त्रों में यह गज-ग्राह युद्ध के नाम से प्रसिद्ध है। बताया जाता है कि भागवत पुराण में इसकी व्याख्या भी की गयी है।
गज ने भगवान विष्णु से जो प्रार्थना की थी उसको आज भी गजेंद्र मोक्ष के नाम से पढ़ा जाता है। हरिहर क्षेत्र में लगने वाला ये मेला का स्थान सोनपुर मेला, छत्तर मेला और कोनहरा घाट मेला के नाम से भी प्रसिद्ध है।
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इस बारे में एक और कथा बहुत मशहूर है जिसके अनुसार बताया जाता है कि एक बार जय और विजय नाम के दो भाई हुआ करते थे। जय भगवान शिव का भक्त था और विजय भगवान विष्णु का भक्त था। अलग-अलग देवताओं के उपासक होने की वजह से अक्सर दोनों में विवाद होता रहता था। काफी समय तक दोनों भाइयों की इस लड़ाई को देखने के बाद कुछ साधु-संतों ने इनकी मध्यस्था कराई जिसके बाद दोनों भाइयों ने आपस में निश्चय करके भगवान शिव और भगवान विष्णु का मंदिर साथ-साथ बनाया, जिससे इस मंदिर का नाम हरिहरक्षेत्र पड़ा। बताया जाता है कि इसी स्मृति में यहां कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर हर साल मेला आयोजित किया जाता है।
वर्ष 1757 के पहले हरिहरनाथ मंदिर इमारती लकड़ियों और काले पत्थरों के कलात्मक शिला खंडों से बना था। इन लकड़ियों और काले पत्थरों पर हरि और हर के चित्र और स्तुतियां बहुत ही खूबसूरती से उतारी गई थीं। कुछ समय बाद मीर कासिम के नायब सूबेदार राजा राम नारायण सिंह ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था। इसके बाद वर्ष 1860 में टेकारी की महारानी ने मंदिर परिसर में एक धर्मशाला का निर्माण कराया।
इसके बाद वर्ष 1871 में मंदिर परिसर के बाकी बचे तीन बरामदों का निर्माण नेपाल के महाराणा जंग-बहादुर ने कराया था। लेकिन 1934 के भूकंप में मंदिर परिसर का भवन, बरामदा और परकोटा काफी बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गए थे। इसके बाद बिड़ला परिवार ने इसका पुनर्निर्माण कराया।
संगम धारा में स्नान करने से कट जाते हैं पाप
बताया जाता है कि अँग्रेज़ लेखक मिंडेन विल्सन ने वर्ष 1871 में सोनपुर मेले का वर्णन अपनी डायरी में भी किया है। देश के चार धर्म महाक्षेत्रों में से एक स्थान हरिहरक्षेत्र को भी दिया गया है। इस मंदिर से जुड़ीं सबसे पुरानी और अटूट मान्यता यह है कि इस संगम धारा में जो कोई भी स्नान कर लेता है उस व्यक्ति के हजारों वर्ष के पाप कट जाते हैं।
इस मंदिर तक कैसे पहुंचे?
हरिहरनाथ मंदिर बिहार की राजधानी पटना से 25 किलोमीटर और वैशाली जिला मुख्यालय हाजीपुर से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दोनों जगहों में से कहीं से भी इस मंदिर तक जाने के लिए आपको बस और टैक्सी बड़े ही आसानी से मिल जाती है। इसके अलावा अगर आप पानी के मार्ग से यहाँ आना चाहते हैं तो यहां पटना के किसी भी घाट से जल-मार्ग द्वारा भी बेहद ही आसानी से पहुंचा जा सकता है। रेलवे से आने के इच्छुक यात्रियों के लिए नज़दीकी रेलवे स्टेशन हाजीपुर और सोनपुर हैं। हवाई-मार्ग से आने वालों के लिए पटना हवाई अड्डा से हरिहरनाथ मंदिर की दूरी 25 किलोमीटर है।