हिन्दू धार्मिक मान्यता के अनुसार शारदीय नवरात्रि के चौथे दिन विशेष रूप से माँ दुर्गा के कुष्मांडा स्वरुप की पूजा की जाती है। देवी माँ के विभिन्न नौ रूपों में से माता कुष्मांडा को सभी प्रकार के रोगों को हरने वाली माता के रूप में पूजा जाता है। देवी माँ के इस रूप को दैदीप्यमान भी कहा जाता है। कहते हैं की माँ का ये रूप सूर्य को भी अपने नियंत्रण में रखती है। आज हम आपको माँ कुष्मांडा की महिमा और पूजा विधि के बारे में बताने जा रहे हैं। आइये जानते हैं किस प्रकार से की जाए माँ के इस रूप की पूजा अर्चना।
माता कुष्मांडा का स्वरुप
सूर्य को भी अपने नियंत्रण में रखने वाली माता कुष्मांडा मुख्य रूप से आठ भुजाओं वाली देवी है। देवी माँ के मुख पर सूर्य सी तेज है और उनेक विभिन्न हाथों में कमंडल, बाण, धनुष, कमल का फूल, अमृत कलश, गदा, माला और चक्र है। कहते हैं की सूर्य देव को अपने नियंत्रण में रखने की वजह से ही ये संसार इतना प्रकाशमय है। ऐसी मान्यता है कि, माता के इस स्वरुप की वजह से ही सूर्य देव को भी ऊर्जा मिलती है।
माता कुष्मांडा के पूजा का महत्व
ऐसी मान्यता है कि, नवरात्रि के चौथे दिन देवी माँ के इस रूप की पूजा करने से व्यक्ति को सभी रोगों से मुक्ति मिलती है। माता कुष्मांडा की विधिवत पूजा अर्चना करने से आयु, बुद्धि और यश में वृद्धि होती है। इसके साथ ही साथ व्यक्ति के जीवन में चल रहे सभी दुखों से भी उन्हें मुक्ति मिलती है। माँ अपने भक्तों के सभी दुखों का नाश कर उनके जीवन में खुशियों का संचार करती हैं। विभिन्न प्रकार की सिद्धियां प्राप्त करने के लिए लोग आज के दिन देवी कुष्मांडा की पूजा अर्चना करते हैं।
आज इस प्रकार से करें माँ कुष्मांडा की पूजा
- नवरात्रि के चौथे दिन माता कुष्मांडा की पूजा अर्चना के लिए सुबह सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करने के बाद साफ़ कपड़े पहने।
- इसके बाद पूजा स्थल की साफ़ सफाई करें और एक चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर माँ की प्रतिमा स्थापित करें।
- आज देवी माँ की पूजा के लिए मुख्य रूप से हरे रंग के आसन का प्रयोग करना शुभ फलदायी माना जाता है।
- अब सबसे पहले देवी को लाल रंग की चुनड़ी ओढ़ाएं, इसके बाद कुमकुम, हल्दी, चंदन, रोली, दूर्वा और बेलपत्र का इस्तेमाल करते हुए माँ की पूजा करें।
- अब माँ के प्रमुख मंत्र “सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च. दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु “ का जाप करते हुए सच्चे मन से देवी माँ से प्रार्थना करें।
- माता कुष्मांडा की पूजा के बाद विशेष रूप से भगवान् शिव और देवी लक्ष्मी की पूजा अर्चना भी विशेष रूप से करें।
- देवी माँ को प्रसाद के रूप में फलों का भोग लगाएं।
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