श्राद्ध से जुड़ी पौराणिक कथा: जिसमें कर्ण को स्वर्ग में भूखा मरना पड़ा था।

पितृपक्ष की शुरुआत शुक्रवार, 13 सितंबर से हो चली है। हर साल आने वाले पितृ पक्ष अर्थात श्राद्ध को हिन्दू धर्म में विशेष महत्व दिया जाता रहा है। जिस दौरान लोग अपने पितरों या पूर्वजों की आत्मा की शांति हेतु पूर्ण विधिवत तरीके से पिंडदान और तर्पण की प्रक्रिया करते हैं। 16 दिन तक चलने वाले श्राद्धओं में कुछ विशेष नियमों का भी पालन करना अनिवार्य होता है। पूर्वजों के पिंडदान के लिए गयाजी को सबसे पवित्र स्थल के रूप में देखा जाता है। आज हम अपने इस लेख में आपको श्राद्ध पर्व से जुड़ी एक बेहद पौराणिक लेकिन रोचक कथा के बारे में बताएँगे जिसे पितृपक्ष के दौरान सुने जाने का अपना अलग ही महत्व होता है।

जब कर्ण को स्वर्ग में भूखा मरना पड़ा था 

हिन्दू धर्म में प्राचीन काल से ही दान पुण्य का महत्व विशेष फलदायी बताया गया है। जिसमें सबसे बड़ा दान ‘अन्न दान’ को माना गया है। इसी दान के चलते पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत के अहम पात्र सूर्य पुत्र कर्ण को भी स्वर्ग में भूखा मरना पड़ा था। जी हाँ वहीं कर्ण जिसने मांगने पर अपने शरीर से अलग कर स्वर्ण के कवच और कुण्डल भी निकाल कर दान में दे दिए थे, लेकिन स्वर्ण दान के बाद भी स्वर्ग में उसे अन्न नसीब नहीं हो सका।

कर्ण को खाने के लिए दिया गया सोना  

मान्यता अनुसार एक क्षत्रिय होने के चलते महाभारत के युद्ध में वीरगति को प्राप्त होने के बाद कारण को स्वर्ग मिला। जहाँ उसे अपने द्वारा किये गए सभी पुण्यों का फल तो मिला लेकिन वो स्वर्ग कर्ण के लिए नर्क बन गया था। क्योंकि जहाँ स्वर्ग में उसके साथी दुर्योधन और अन्य योद्धाओं को खाने के लिए लज्जिज व विभिन्न-विभिन्न प्रकार के पकवान मिल रहे थे तो वहीं कर्ण को खाने के लिए सोने की बड़ी-बड़ी थाल में सोने की अशर्फिया और आभूषण ही दिए जा रहे थे। माना जाता है कि कर्ण के साथ ये सुलूक इंद्र देव के आदेश के चलते किया जा रहा था।

पढ़ें: पितृपक्ष के दौरान पितरों की याद में इस पेड़ का रोपण ज़रूर करें !

अपने साथ होता ये सुलूक देख कारण बेहद निराश था। एक दिन भूख से व्याकुल होकर वो भगवान इंद्र के पास पहुंचा जहाँ उसने भगवान से प्रश्न किया कि आखिर वो क्या कारण हैं कि उन्हें भोजन की जगह केवल खाने के लिए सोना ही दिया गया।

यहाँ पढ़ें: पितृ पक्ष में श्राद्ध और पिंडदान का महत्व एवं तर्पण की विधि।

कर्ण ने कभी नहीं किया था पितरों श्राद्ध 

कर्ण के इस सवाल का जवाब देते हुए तब देव इंद्र ने कहा कि यूँ तो तुम बहुत बड़े दानवीर थे लेकिन तुमने जीवनभर प्रसिद्धि और अपना नाम कमाने के लिए केवल और केवल सोने का ही दान दिया था। तुम ये बात अच्छी तरह से जानते थे कि पृथ्वी पर मनुष्य जो भी दान देता है उसे मृत्यु के पश्चात स्वर्ग में वही खाने के लिए प्राप्त होता है। लेकिन तुमने अपने अहंकार और मोह में आकर पितृ पक्ष के दौरान अपने पुरखों व पूर्वजों का कभी श्राद्ध तर्पण भी नहीं किया। यही कारण है कि तुम्हें अब स्वर्ग में होते हुए भी अपने दान के अनुसार ही सोना खाने के लिए दिया जा रहा है। 

पढ़ें: पितृपक्ष  के दौरान गयाजी में पिंडदान करने का महत्व !

पिंडदान कर कर्ण ने पाई पितृ दोष से मुक्ति 

इस बता का पता चलते ही कर्ण ने तर्क देते हुए भगवान इंद्र से कहा कि उसे यह ज्ञात नहीं था कि उनके पूर्वज कौन थे। इसी कारण उसने कभी भी पिंडदान नहीं किया। चूँकि अधर्मी कर्ण को धर्म का बिलकुल भी ज्ञान नहीं था इसलिए वो जीवनभर सोने का दान ही करता रहा। परन्तु वो दानवीर था, इसलिए इंद्र देव ने उसे अपनी गलती सुधारने का मौका दिया और उसे लगभग 16 दिन के लिए पृथ्वी पर अपना पश्चाताप करने के लिए वापस भेजा गया। इस दौरान कर्ण ने अपने पूर्वजों को याद करते हुए न केवल विधि पूर्वक तरीके से उनका श्राद्ध किया बल्कि अपने पितरों को अन्न भी दान कर उनका तर्पण किया। धार्मिक मान्यता अनुसार इन्हीं 16 दिन की अवधि को पितृ पक्ष कहा गया, जिस दौरान मनुष्य अपने पितरों को पिंडदान कर हर प्रकार के पितृ दोष से मुक्त हो जाते हैं।

ये भी पढ़ें: 

हनुमान जी के 108 नाम, जिनको जपने से मिलते हैं मनोवांछित फल। 

रुद्राक्ष की इन खूबियों से दूर हो सकती हैं जीवन की परेशानियां !

कुंडली का ये दोष दे सकता है टी.बी का रोग !

Dharma

बजरंग बाण: पाठ करने के नियम, महत्वपूर्ण तथ्य और लाभ

बजरंग बाण की हिन्दू धर्म में बहुत मान्यता है। हनुमान जी को एक ऐसे देवता के रूप में ...

51 शक्तिपीठ जो माँ सती के शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों के हैं प्रतीक

भारतीय उप महाद्वीप में माँ सती के 51 शक्तिपीठ हैं। ये शक्तिपीठ माँ के भिन्न-भिन्न अंगों और उनके ...

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र (Kunjika Stotram) से पाएँ दुर्गा जी की कृपा

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र एक ऐसा दुर्लभ उपाय है जिसके पाठ के द्वारा कोई भी व्यक्ति पराम्बा देवी भगवती ...

12 ज्योतिर्लिंग: शिव को समर्पित हिन्दू आस्था के प्रमुख धार्मिक केन्द्र

12 ज्योतिर्लिंग, हिन्दू आस्था के बड़े केन्द्र हैं, जो समूचे भारत में फैले हुए हैं। जहाँ उत्तर में ...

दुर्गा देवी की स्तुति से मिटते हैं सारे कष्ट और मिलता है माँ भगवती का आशीर्वाद

दुर्गा स्तुति, माँ दुर्गा की आराधना के लिए की जाती है। हिन्दू धर्म में दुर्गा जी की पूजा ...

Leave a Reply

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा.