हिंदू धर्म में कई तरह के व्रत और त्योहार मनाए जाते हैं इन सभी व्रत और त्योहारों का अपना अलग महत्व होता है। इन्हीं में से एक व्रत है मोक्षदा एकादशी का व्रत जिसे भी काफी महत्वपूर्ण बताया गया है। यूं तो हिंदू धर्म में एकादशी के दिन को ही महत्वपूर्ण माना गया है लेकिन मोक्षदा एकादशी सभी एकादशियों में बेहद पुण्यदायी मानी जाती है।
कहा जाता है कि, अगर किसी इंसान से अनजाने में कोई गलती हुई हो और इंसान को उसका प्रायश्चित करना हो तो उसके लिए मोक्षदा एकादशी से बेहतरीन कोई दिन नहीं हो सकता है। एक वर्ष में कुल 24 (मलमास हो तो 26) एकादशी व्रत आते हैं लेकिन इनमें से कुछ एकादशी का महत्व अन्य एकादशी से महत्वपूर्ण बताया गया है।
मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहते हैं। इस दिन के बारे में ऐसी मान्यता है कि मोक्षदा एकादशी व्रत का दिन वही दिन है जिस दिन भगवान श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र की धरा पर मानव जीवन को नई दिशा दिलाने वाली गीता का उपदेश दिया था।
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इस वर्ष कब है मोक्षदा एकादशी और जाने शुभ मुहूर्त
2020 में मोक्षदा एकादशी कब है?
25 दिसंबर, 2020 शुक्रवार
मोक्षदा एकादशी पारणा मुहूर्त :08:32:00 से 09:16:03 तक 26, दिसंबर को
अवधि :0 घंटे 44 मिनट
हरि वासर समाप्त होने का समय :08:32:00 पर 26, दिसंबर को
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मोक्षदा एकादशी व्रत की पूजन विधि
मोक्षदा एकादशी के दिन भगवान श्री कृष्ण, महर्षि वेदव्यास, और श्रीमद्भागवत गीता की पूजा किये जाने का विधान बताया गया है।
- एकादशी व्रत से एक दिन पहले यानि दशमी तिथि को दोपहर में सिर्फ एक बार ही भोजन करना चाहिए। ध्यान रहे एकादशी से पहले वाले दिन रात्रि में भोजन नहीं करना है।
- एकादशी के दिन प्रात काल उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें।
- व्रत का संकल्प लेने के बाद भगवान श्री कृष्ण की पूजा करें। उन्हें धूप, दीप, नैवेद्य इत्यादि अर्पित करें।
- इसके बाद रात्रि में भी पूजन और जागरण करें।
- अगले दिन यानी द्वादशी के दिन पूजा करें और उसके बाद ज़रूरतमंद व्यक्तियों को भोजन और दान दक्षिणा दें या किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं और उसके बाद ही भोजन करके अपना व्रत पूरा करें।
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मोक्षदा एकादशी का दिन वही दिन है जब भगवान श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में गीता का उपदेश दिया था इसी वजह से मोक्षदा एकादशी के दिन ही गीता जयंती का भी पर्व मनाया जाता है। बता दें कि गीता ग्रन्थ सिर्फ लाल कपड़े में बाँधकर घर में रखने के लिए नहीं है बल्कि उसे पढ़कर उसके संदेशों को अपने जीवन में अपनाने के लिए होती है। भागवत गीता के चिंतन से अज्ञानता दूर होती है और मनुष्य का मन आत्मज्ञान की ओर अग्रसर होता है। इसके अलावा भागवत गीता के पठन-पाठन और श्रवण से इंसान के जीवन को एक नई प्रेरणा मिलती है। ऐसे में हमें इसका पाठ अवश्य करना चाहिए।
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जाने मोक्षदा एकादशी व्रत का महत्व
पौराणिक ग्रंथों में मोक्षदा एकादशी को बेहद ही शुभ फलदाई माना गया है। इस दिन के बारे में ऐसी मान्यता है कि इस दिन तुलसी की मंजरी, धूप, दीप, नैवेद्य, आदि से भगवान श्री कृष्ण का पूजन करने से और व्रत रखने से इंसान के पाप एवं महा पाप सभी नष्ट हो जाते हैं। इसके अलावा इस दिन के बारे में ऐसी भी मान्यता है कि, जो कोई भी इंसान इस दिन व्रत-पूजन करता है उनके पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति अवश्य होती है।
यह एकादशी मुक्ति दायिनी तो है ही साथ साथ इस दिन इंसान की सभी मनोकामनाएं भी अवश्य पूरी होती हैं। माना जाता है कि जो कोई भी इंसान एकादशी की व्रत कथा पढ़ता है या सुनता है और दूसरों को सुनाता है, इतना करने मात्र से ही उसे वाजपेई यज्ञ के समान पुण्य की प्राप्ति होती है।
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मोक्षदा एकादशी व्रत कथा
मोक्षदा एकादशी के बारे में प्रचलित व्रत कथा के बारे में बताया जाता है कि एक बार चंपा नामक एक नगरी हुआ करती थी। इस नगर में चारों वेदों के एक ज्ञाता राजा वैखानस राज किया करते थे। इस नगरी की प्रजा बेहद ही खुशी से अपना जीवन यापन कर रही थी। राजा वैखानस के बारे में भी कहा जाता है कि वे बेहद ही धार्मिक, न्याय प्रिय और अपनी जनता से प्यार करने वाले राजा थे।
एक बार की बात है राजा नींद में एक सपना देखते हैं कि उनके पिता (जिनकी मृत्यु हो चुकी है) वह नरक की आग में जल रहे हैं। सुबह उठकर राजा ने अपने इस सपने के बारे में अपनी पत्नी को बताया। पत्नी ने राजा को गुरु से सलाह लेने की बात कही। इसके बाद हैरान-परेशान राजा गुरु के आश्रम में गए और वहां जाकर बेहद ही दुखी मन से उन्होंने अपने पिता के बारे में देखे गए सपने का जिक्र किया।
राजा की बात सुनकर पर्वत मुनि ने राजा से कहा कि तुमने जो सपना देखा है उसके अनुसार तुम्हारे पिता को उनके कर्मों का फल मिल रहा है। तुम्हारे पिता ने अपने जीवन काल में तुम्हारी माता को यातनाएँ दी थी। जिसके कारण वह पाप के भागी बने और अब नरक भोग रहे हैं। तब बेहद ही दुखी मन से राजा ने उनसे पूछा कि क्या कोई ऐसा कोई उपाय है जिससे मैं अपने पिता की इन ग़लतियों को ठीक कर सकूँ और उन्हें नर्क से निकाल सकूँ?
इस पर मुनि ने उन्हें मोक्षदा एकादशी व्रत करने की सलाह दी। इसके बाद उन्हें पूजन विधि और व्रत कथा इत्यादि भी बताई। राजा ने मुनि के कहे अनुसार व्रत किया और व्रत से मिलने वाले पुण्य को उन्होंने अपने पिता को अर्पण कर दिया। व्रत के प्रभाव से राजा के पिता को नरक से मुक्ति मिल गई। माना जाता है तभी से मोक्षदा एकादशी का व्रत रखे जाने की परंपरा की शुरुआत हुई।
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