नेशनल अवार्ड विनर मनोज बाजपेयी का ‘भोंसले’ अवतार: एक ख़ास इंटरव्यू

जाने माने अभिनेता मनोज बाजपेयी ने एक और नेशनल अवॉर्ड अपने नाम कर लिया है। इस बार उन्हें उनकी शानदार फिल्म ‘भोंसले’ के लिए पुरस्कृत किया गया है। जानकारी के लिए बता दें कि, फिल्म भोंसले 26 जून तो ओटीटी प्लेटफार्म (सोनी लिव) पर रिलीज़ की गयी थी। यूँ तो मनोज बाजपेयी की इस फिल्म ने कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार झटके थे, लेकिन फिर भी मनोज बाजपेयी को अपनी इस फिल्म पर भारतीय दर्शकों की प्रतिक्रिया और सराहना का इंतज़ार था एक दिन वो था और एक आज का दिन जब मनोज बाजपेयी की इस शानदार फिल्म के लिए नेशनल अवार्ड  (बेस्ट एक्टर) मिल चुका है। इसी मौके पर एक नज़र डालते हैं मनोज बाजपेयी और पियूष पांडे के इस ख़ास इंटरव्यू पर एक नज़र।

सवाल: ‘भोंसले’ को आप मार्च-अप्रैल में रिलीज करने की योजना बना रहे थे। लेकिन,ये ओटीटी पर रिलीज हो रही है। तो क्या आप मानते हैं कि हर फिल्म का एक भाग्य होता है। ये सवाल इसलिए भी क्योंकि आपकी राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म 1971 जब 2007 में रिलीज हुई थी, तब बिलकुल नहीं चली लेकिन, कोरोना काल में यूट्यूब पर रिलीज हुई तो दो करोड़ से ज्यादा लोगों ने देख लिया।

जवाब: देखिए,मैं कर्म प्रधान व्यक्ति भी हूं और भाग्य प्रधान भी। दोनों का मिश्रित रुप हूं। आध्यात्मिक हूं और मानता हूं कि अध्यात्म मेरे जीवन की सबसे बड़ी शक्ति है। और मैं मानता हूं कि, मुझे कर्म करना है। फिर, जो भाग्य में होगा, वो मिलेगा। मैं भाग्य से झगड़ा नहीं करता, और ना ही शिकायत करता हूं।

सवाल: तो आप सफलता में मेहनत और भाग्य का कितना योगदान मानते हैं। 50-50 फीसदी?

जवाब: मेरा मानना है कि मेरे हाथ में तो सिर्फ 100 फीसदी कर्म करना है। बाकी उसके निष्कर्ष से जूझने की जरुरत नहीं है। कर्म करो और फिर भाग्य के भरोसे छोड़ दो।

सवाल: ‘भोंसले’ के विषय में कुछ बताइए।

जवाब: एक बुजुर्ग पुलिसवाले की कहानी है ये, जो रिटायर हो चुका है, लेकिन रिटायर होना नहीं चाहता था क्योंकि, उसकी जिंदगी में नौकरी के अलावा कुछ और नहीं है। समाज से, उसके लोगों से उसका कोई वास्ता नहीं। उसे उनमें कोई दिलचस्पी नहीं। उसका एकाकीपन ही उसकी परेशानी है। लेकिन जिस वक्त घर के भीतर वो अपने तनाव से जूझ रहा है, ठीक उसी वक्त बाहर लोकल बनाम प्रवासी का मुद्दा उठ खड़ा हुआ है। माइग्रेंट की समस्या उसकी अपनी समस्या कैसे हो जाती है और कैसे उनका तनाव भोंसले की जिंदगी को एक नया अर्थ देता है, यही कहानी का सार है।

सवाल: कोरोना के चलते आपको फिल्म ओटीटी पर रिलीज करनी पड़ रही है। इसे कैसे देखते हैं?

जवाब: फिल्म के साथ इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता था। ये भी फिल्म की किस्मत है। क्योंकि, आज की तारीख में ‘भोंसले’ जैसी फिल्मों को दर्शक मिलना ओटीटी पर ही संभव है। थिएटर तक फिल्म ले जाने में खासी मशक्कत है, और इसके बाद भी कायदे के शोज नहीं मिलते। ट्रेड पंडित दो दिन में ही फिल्म को फ्लाप घोषित कर देते हैं। ऐसी फिल्म हम अपने जुनून के लिए बनाते हैं। सोनी लिव पर भोंसले लाने का फैसला हुआ तो मुझे और मेरे निर्देशक को बहुत खुशी हुई, क्योंकि हमें मालूम है कि छह दिन में इसे जितने दर्शक देखेंगे, उतने थिएटर में तीन हफ्ते में नहीं देख पाते।

सवाल: इस साल और कौन सी फिल्म आएगी।

जवाब: अभी तो भोंसले का इंतजार है। ये 26 जून को सोनी लिव पर आ रही है। लोगों की प्रतिक्रिया का इंतजार है। फिर, कोरोना से मुक्ति पाई तो ‘सूरज पे मंगल भारी’ भी इस साल आ सकती है।

कोरोना महामारी की मार सिर्फ निर्माता-निर्देशकों पर ही नहीं पड़ी है, आज हम सभी इस समस्या से जूझ रहे हैं। ऐसे में इस दौरान अगर आपके मन में भी कोई सवाल या कोई चिंता है तो आप हमारे विशेषज्ञ ज्योतिष से प्रश्न पूछ कर अपनी समस्या का समाधान जान सकते हैं।  

देखें ‘भोंसले’ फिल्म की एक शानदार झलक :

 

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