जानें मणिकर्णिका घाट का इतिहास और इस घाट पर स्नान करने का महत्व

भारत में नदियों को माता का दर्जा दिया जाता है। हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले लोग नदियों की पूजा अर्चना भी करते हैं। और नदियों की पूजा करने के लिये भव्य घाटों का निर्माण भी भारत में प्राचीन काल से किया जा रहा है। भारत में नदियों के किनारे स्थित कुछ ऐसे घाट भी हैं जिनकी बड़ी धार्मिक मान्यता है। इन्हीं घाटों में से एक है गंगा नदी के तट पर स्थित मणिकर्णिका घाट। मणिकर्णिका घाट का इतिहास सदियों पुराना है ऐसा माना जाता है कि इस घाट में कई राज छुपे हुए हैं। शास्त्रों के अनुसार जब भगवान शिव आकाश मार्ग से देवी सती के पार्थिव शरीर को ले जा रहे थे तो इसी स्थान पर उनके कान के कुंडल गिर गये थे और इसी के चलते इस स्थान को मणिकर्णिका नाम दिया गया। वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन इस घाट पर स्नान करना अति शुभ माना गया है। 

साल 2019 में मणिकर्णिका स्नान

हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मणिकर्णिका घाट पर श्रद्धालुओं द्वारा स्नान किया जाता है। साल 2019 में वैकुण्ठ चतुर्दशी 10 नवंबर को है अत: इसी दिन मणिकर्णिका स्नान भी किया जाएगा। 

मणिकर्णिका घाट भारत के सबसे जाने माने शमशान घाटों में से भी एक है। ऐसा माना जाता है कि यहां जिस किसी के भी पार्थिव शरीर को जलाया जाता है उसे जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। आज भी यहां प्रतिदिन लगभग 300 से ज्यादा पार्थिव शरीरों को जलाया जाता है। मणिकर्णिका घाट पर डोम जाति के लोगों द्वारा चिताएं जलाई जाती हैं। मणिकर्णिका घाट के बारे में कहा जाता है कि चिता की अग्नि यहां कभी भी शांत नहीं होती। 

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मणिकर्णिका घाट पर स्नान का महत्व

हिंदू मान्यताओं के अनुसार मणिकर्णिका घाट का निर्माण स्वयं भगवान विष्णु ने किया था इसलिये लोग मानते हैं कि इस घाट पर जो व्यक्ति भी स्नान करेगा उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी। खासकर कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मणिकर्णिका घाट पर स्नान करने का बड़ा महत्व है। इस दिन यदि कोई मणिकर्णिका घाट पर स्नान करता है तो उसके सारे पाप धुल जाते हैं और मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। 

मणिकर्णिका घाट से जुड़ी पौराणिक कथाएं

इस घाट से जुड़ी एक कथा के अनुसार जब भगवान शिव अपनी पत्नी सती के पार्थिव शरीर को आकाश मार्ग से कैलाश ले जा रहे थे तो उनके शरीर का हर हिस्सा जमीन पर गिर रहा था। माता सती के शरीर के हिस्सों से ही शक्ति पीठों की स्थापना भी हुई। ऐसा माना जाता है कि मणिकर्णिका कुंड में माता सती का एक कुंडल गिर गया था और तभी से इस जगह को मणिकर्णिका घाट के नाम से जाना जाने लगा। 

एक अन्य कथा के अनुसार एक बार जब भगवान शिव हजारों सालों की तपस्या के बाद उठे तो भगवान विष्णु ने एक कुंड उनके स्नान के लिये बनाया। तपस्या से उठने के बाद भगवान शिव ने कुंड में स्नान किया और स्नान करते समय उनके कान का एक कुंडल खो गया। ऐसा माना जाता है कि आज तक भी उनके कान का यह कुंडल नहीं मिला है। इस घाट पर जब चिता जलाई जाती है तो उससे पहले हर व्यक्ति के पार्थिव शरीर से पूछा जाता है कि क्या तुमने भगवान शिव के कान का कुंडल देखा। 

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