दोस्तो, वर्ष 2018 में महा शिवरात्रि का त्योहार शीघ्र ही पूरे धूम-धाम से मनाया जाने वाला है। शिवरात्रि का यह पर्व किस तारीख़ को मनाया जाना चाहिए, इसे लेकर हम पहले ही यहाँ चर्चा कर चुके हैं – कब निकलेगी भोलेनाथ की बारात। आपके शहर या गाँव में इसे कब मनाना चाहिए, इसे आप हमारे महा शिवरात्रि के पृष्ठ पर जा अपनी जगह को चुनकर सटीक तौर पर जान सकते हैं। इस पर्व पर यह जानना रोचक रहेगा कि रूपक के तौर पर महादेव के ऊपर दर्शाए आभूषणों का क्या अर्थ है।
हम सब जानते हैं कि हमारी सृष्टि की रचना ब्रह्मा जी ने की है, विष्णु जी इसके पालक है और इसकी रक्षा का दायित्व निभाते है हमारे भगवान भोलेनाथ। संसार में जब भी कोई असंतुलन पैदा होता है तो उसे संभालना शिवजी की ज़िम्मेदारी होती है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शिव रूप अनेकों प्रतीकों का योग है। भोलेनाथ के शरीर पर हर एक आभूषण का एक विशेष प्रभाव तथा महत्व है। भगवान के इन प्रतीकों में कई सारे रहस्य छुपे हुए है जिन्हे आप अवश्य ही जानना चाहेंगे। आईये जानते है इसके पीछे का सत्य।
भगवान शिव के 9 प्रतीक
भगवान शिव के नौ प्रतीक हैं। उनके आस-पास का हर एक वस्तु या उनके शरीर का आभूषण कोई न कोई सन्देश देता है। आइए, साल 2018 में महाशिवरात्रि के मौक़े पर जानते हैं रुद्र से जुड़े 9 प्रतीकों को–
- पैरों में कड़ा
- मृगछाला
- रुद्राक्ष
- नागदेवता
- खप्पर
- डमरू
- त्रिशूल
- शीश पर गंगा
- चन्द्रमा
शिव जी के नौ प्रतीकों का महत्व, रहस्य और प्रभाव
पैरों में कड़ा – शिवजी के पैरों में कड़ा अपने स्थिर तथा एकाग्रता सहित सुनियोजित चरणबद्ध स्थिति को दर्शाता है। योगीजन और अघोरी भी शिव की तरह अपने एक पैर में कड़ा धारण करते है।
मृगछाल – मृगासन या मृगछाल के आसन को साधना और तपस्या के लिए श्रेष्ठ माना गया है क्योंकि इस पर बैठ कर साधना का प्रभाव बढ़ता है। यही नही इस पर बैठने से मन की अशांति और अस्थिरता दूर होती है।
रुद्राक्ष – यह एक फल की गुठली है जिसका उपयोग आध्यात्मिक क्षेत्र में किया जाता है। कहा जाता है इसकी उत्पत्ति भगवान शिव के आँखों से निकले हुए आंसू से हुई थी। इसे धारण करने से नकारात्मकता दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।
नागदेवता – जब अमृत मंथन हुआ था तब अमृत कलश के पूर्व विष को भोलेनाथ ने अपने कंठ में रखा था। विकार की अग्नि को दूर करने के लिए शिव जी ने विषैले सांपों की माला को पहना।
खप्पर – भगवान भोलेनाथ ने समस्त प्राणियों की क्षुधा को शांत करने के लिए माता अन्नपूर्णा से भीख मांगी थी। इसका अर्थ यह है कि अगर आपसे किसी का भला होता है तो अवश्य ही उसकी मदद करनी चाहिए।
डमरू – यह संसार का सबसे पहला वाघ है। क्योंकि इससे वेदों के शब्दों की उत्पत्ति हुई थी इसलिए इसे नाद ब्रहम या स्वर ब्रह्म कहा गया है।
त्रिशूल – यह संसार का सबसे परम तेजस्वी अस्त्र है जिसमे माता जगदंबा की परम शक्ति है। त्रिशूल से ही सारे राक्षसों का अंत किया गया है। इसमें राजसिक, तामसिक और सात्विक तीनों ही गुण समाहित है।
शीश पर गंगा – भगवान शिव ने गंगा को अपने जटाओं में बाँध कर यह सन्देश दिया है कि आवेग की अवस्था को दृढ संकल्प के माध्यम से संतुलित किया जा सकता है।
चन्द्रमा – चन्द्रमा आभा, प्रज्वल, धवल स्थितियों को प्रकाशित करता है, जिससे मन में शुभ विचार उत्पन्न होते हैं। अपनी इन्ही अच्छे विचारों और सकारात्मक सोच के साथ मनुष्य आगे बढ़े और समस्त संसार का कल्याण हो।
हमें उम्मीद है कि महाशिवरात्रि 2018 के मौक़े पर भगवान भोलेनाथ से जुड़ी यह रोचक प्रस्तुति आपको अवश्य पसंद आएगी। आप सभी को महा शिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ!