माघ मास के शुक्ल पक्ष को ललिता जयंती का पर्व मनाया जाता है। ललिता जयंती के दिन माँ ललिता की पूजा का विधान बताया गया है। मान्यता है कि, जो कोई भी व्यक्ति इस दिन सच्ची श्रद्धा और भक्ति के साथ मां ललिता की पूजा करता है उसे अपने जीवन में सभी सुखों की प्राप्ति होती है और मृत्यु के बाद उसे मोक्ष मिलता है। यही वजह है कि, माघ पूर्णिमा के दिन मां ललिता की पूजा करना सबसे ज्यादा शुभ फलदाई माना गया है।
तो चलिए जानते हैं वर्ष 2021 में ललिता जयंती किस दिन मनाई जाएगी? इस दिन का शुभ मुहूर्त क्या है? ललिता जयंती का महत्व क्या होता है और सही पूजन विधि क्या है? और साथ ही जानिए ललिता जयंती से जुड़ी पौराणिक कथा।
ललिता जयंती कब मनाई जाएगी?
ललिता जयंती 2021- 27 फरवरी शनिवार
ललिता जयंती शुभ मुहूर्त
सूर्योदय 06 बज कर 48 मिनट 57 सेकंड
सूर्यास्त 18 बज-कर 19 मिनट 25 सेकंड
शुभ मुहूर्त : 12 बज-कर 11 मिनट 10 सेकंड से 12 बज-कर 57 मिनट 11 सेकंड तक
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ललिता जयंती का महत्व
प्रत्येक वर्ष माघ मास की पूर्णिमा के दिन ललिता जयंती का व्रत किया जाता है। मान्यता है कि, इस दिन जो कोई भी जातक मां ललिता की पूजा आराधना करता है उसे जीवन में सभी तरह की सुख समृद्धि के साथ-साथ मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। सिर्फ इतना ही नहीं जो कोई भी भक्त सच्ची श्रद्धा भक्ति से मां ललिता की इस दिन पूजा करता है उसे जीवन में सभी प्रकार की सिद्धियों की प्राप्ति भी अवश्य होती है।
ललिता जयंती के मौके पर देश के कई जगहों पर भव्य मेलों का आयोजन किया जाता है। इस दिन माता के मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। ललिता जयंती के दिन मां ललिता के साथ-साथ मां स्कंदमाता और भगवान शंकर की पूजा का भी विधान बताया गया है। माता ललिता को राजेश्वरी, षोडशी, त्रिपुरा सुंदरी इत्यादि नामों से जाना जाता है। क्योंकि मां ललिता मां पार्वती का ही एक रूप है इसलिए इनका एक नाम तांत्रिक पार्वती भी बताया जाता है।
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ललिता जयंती की सही पूजन विधि
- इस दिन व्रत करने वाले या पूजा करने वाले इंसान को सूर्यास्त से पहले उठना होता है और स्नान करने के बाद सफेद रंग के वस्त्र धारण करने होते हैं।
- इसके बाद एक चौकी पर गंगा जल को छिड़ककर स्वयं उत्तर दिशा की ओर मुंह करके बैठ जाएं और चौकी पर सफेद रंग का साफ़ कपड़ा बिछाएं।
- इसके बाद वस्त्र पर माँ ललिता की कोई तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें। यदि मां ललिता की तस्वीर या मूर्ति न हो तो आप इस दिन श्री यंत्र की स्थापना करके उसकी पूजा भी कर सकते हैं।
- इस दिन की पूजा में कुमकुम, अक्षत, फल-फूल, दूध से बना कोई प्रसाद या खीर अवश्य शामिल करें।
- इन सभी चीजों को अर्पित करने के बाद मां ललिता की विधिवत पूजा करें और इस मंत्र का जाप करें। मंत्र: ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः।।
- पूजा के बाद माँ ललिता की कथा पढ़ें या सुने। कथा सुनने के बाद मां ललिता की धूप-दीप से आरती उतारे और फिर सफेद रंग की कोई भी मिठाई या खीर का भोग लगाएं।
- पूजा के अंत में माता से पूजा में अनजाने में हुई किसी भी भूल की क्षमा माँगे और प्रसाद ग्रहण करें।
- पूजा का प्रसाद 9 वर्ष से छोटी कन्याओं के बीच वितरित करना ना भूलें। अगर 9 वर्ष से छोटी कन्याएं ना मिले तो आप माता का यह प्रसाद किसी गाय को स-सामान खिला सकते हैं।
ललिता जयंती पौराणिक कथा
इस दिन से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार बताया जाता है कि, एक बार नैमिषारण्य में यज्ञ हो रहा था। जहां दक्ष प्रजापति के आने पर सभी देवता उनके सम्मान और स्वागत के लिए उठे। हालांकि इस सभा में भगवान शंकर भी मौजूद थे लेकिन वह नहीं उठे। बताया जाता है कि, इस बात से राजा दक्ष को अपमानित महसूस हुआ और अपने अपमान का बदला लेने के लिए राजा दक्ष ने अपने यज्ञ में शिव जी को आमंत्रित नहीं किया। इस बात की भनक राजा दक्ष की बेटी मां सती को पता नहीं चली इसलिए वह बिना भगवान शंकर से अनुमति लिए अपने पिता राजा के दक्ष के यज्ञ में शामिल हो गयीं। हालांकि यहां आकर जब उन्हें अपने पति की के अपमान के बारे में पता चला तो इससे बेहद आहत और दुखी होकर माँ सती ने यज्ञ के अग्नि कुंड में कूद कर उन्होंने अपने प्राण की आहुति दे दी।
भगवान शिव को जब इस बात की जानकारी हुई तो वह मां सती के प्रेम में व्याकुल हो गए और सती के शव को कंधे पर रखकर विश्व भर में घूमना शुरू कर दिया। भगवान शिव की स्थिति से संपूर्ण विश्व की व्यवस्था छिन-भिन्न हो गई और ऐसी स्थिति में विवश होकर भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शव के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। इसके बाद माता सती के शव के अंग जहां-जहां गिरे वहां उन अंगों से शक्ति विभिन्न प्रकार की आकृतियों से उन स्थान पर विराजमान हुई और वहां शक्ति पीठ बनते चले गए। बताया जाता है क्योंकि नैमिशराय में मां सती का हृदय गिरा था इसलिए नैमिष एक लिंग धारिणी शक्ति-पीठ स्थल माना जाता है, यहां लिंग के स्वरूप में भगवान शिव की पूजा की जाती है और यहां पर मां ललिता देवी का एक मंदिर भी है।
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एक अन्य कथा के अनुसार कहा जाता है कि, ललिता देवी का प्रादुर्भाव उस समय होता है, जब श्री विष्णु द्वारा छोड़े गए सुदर्शन चक्र से पाताल का अस्तित्व मिटने लगता है और संपूर्ण पृथ्वी धीरे-धीरे जल में समाने लगती है। तब इस बात से चिंतित होकर सभी ऋषि-मुनि घबराकर माता ललिता की उपासना करते हैं। ऋषि-मुनियों की प्रार्थना से प्रसन्न होकर ललिता देवी प्रकट होती हैं तथा इस विनाशकारी चक्र को थाम लेती हैं। जिसके बाद सृष्टि पुन: नव जीवन प्राप्त करती है।
शक्ति पीठ
भारतीय राज्य त्रिपुरा में स्थित त्रिपुर सुंदरी का शक्ति पीठ है। इस जगह के बारे में ऐसा माना जाता है कि, यहां माता के धारण किए हुए वस्त्र गिरे थे। त्रिपुर सुंदरी शक्ति पीठ भारत-वर्ष के अज्ञात 108 एवं ज्ञात 51 पीठों में से एक माना गया है।
दक्षिणी
त्रिपुरा उदयपुर शहर से तीन किलोमीटर दूर, राधा किशोर ग्राम में राज-राजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी का भव्य मंदिर स्थित है, जो उदयपुर शहर के दक्षिण-पश्चिम में पड़ता है। यहां सती के दक्षिण ‘पाद’ का निपात हुआ था। यहां की शक्ति त्रिपुर सुंदरी तथा शिव त्रिपुरेश हैं। इस पीठ स्थान को ‘कूर्भपीठ’ भी कहते हैं।
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