हर वर्ष आश्विन मास की पूर्णिमा के दिन कोजागरी व्रत रखने का विधान है। इस दिन लक्ष्मी माता की पूजा-आराधना कर उन्हें प्रसन्न किया जाता है। मान्यता है कि इस व्रत से देवी लक्ष्मी जल्दी प्रसन्न होकर अपने भक्तों को आशीष देती हैं।
कोजागरी व्रत तिथि
इस वर्ष आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि रविवार, 13 अक्टूबर को पड़ रही है। ऐसे में इस दिन ही कोजागरी व्रत रखा जाएगा।
कोजागरी व्रत की पूजा विधि
-नारद पुराण की मानें तो प्रत्येक आश्विन मास की पूर्णिमा बेहद शुभ होती है। इस दिन प्रातः स्नान कर उपवास रखना भी बेहद अच्छा होता है।
-व्रत रखने के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान-ध्यान कर स्वच्छ हो जाएँ।
-फिर सूर्य को नग्न आँखों से देखते हुए उन्हें अर्घ दें।
-इसके बाद पूजा स्थल की शुद्धि करें।
-अब पीतल, चाँदी, तांबे या सोने से बनी लक्ष्मी देवी की प्रतिमा को कपड़े से ढंककर विभिन्न विधियों द्वारा उनका पूजन करें।
-इसके बाद मां लक्ष्मी की आराधना करें।
-इसके पश्चात रात्रि को चंद्र उदय होते ही घी के 11 दीपक जलाएँ व उन्हें घर के अलग-अलग हिस्सों पर रखें।
-इसके बाद लक्ष्मी जी को भोग लगाने के लिए दूध से बनी हुई खीर बनाए।
-इस खीर को बर्तन में रखकर किसी ऐसी जगह रखें जहाँ चंद्र देव की रौशनी उस बर्तन पर पड़ रही हो।
-कुछ समय बाद चाँद की रोशनी में रखी हुई खीर का देवी लक्ष्मी को भोग लगाएँ।
-फिर उस खीर को प्रसाद के रूप में दान करें।
-व्रत के अगले दिन भी विशेष रूप से मां लक्ष्मी की उपासना करनी चाहिए।
-अगले दिन ही व्रत की पारणा भी की जाती है।
-कोजागरी पूर्णिमा व्रत के दिन कई लोग रात भर जगकर जागरण व लक्ष्मी जी का पूजन करते हैं।
-माना जाता है कि इस व्रत को करने से मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है।
कोजागरी पूर्णिमा व्रत का पौराणिक महत्व
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ये माना जाता है कि कोजागर या कोजागरी व्रत माता लक्ष्मी विशेष रूप से रात के समय स्वर्ग लोक से पृथ्वी लोक पर आकर भ्रमण कर यह देखती हैं कि उनका कौन सा भक्त जाग रहा है। ऐसे में माना ये भी जाता है कि जो जागता है मां लक्ष्मी उसके घर पर अवश्य आती हैं। जिससे उसका जीवन धन-दौलत से भर जाता है।
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